Sunday, December 22, 2024
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रावण ने ठुकराया हश्र हम जानते हैं, कॉन्ग्रेस ने ठुकराया हश्र हम देखेंगे

मोदी सरकार में यह दूसरा मौका है जिसने कॉन्ग्रेस को पुराने पापों से मुक्ति पाने का अवसर प्रदान किया है। लेकिन कॉन्ग्रेस ने दोनों ही मौकों को बढ़-चढ़कर गँवाया है। 370 से लेकर अयोध्या तक वह अपनी भूलों का पिंडदान कर सकती थी, लेकिन उसने खुद को दफन करना चुना है।

कॉन्ग्रेस पार्टी का प्रभु श्री राम विरोधी चेहरा राष्ट्र के सम्मुख प्रस्तुत हो चुका है। इंडी एलायंस ने कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में बार-बार सनातन धर्म का अनादर किया है। अब उनके नेताओं द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा के पुण्य आमंत्रण को ठुकराना उनके सनातन विरोधी सोच को दर्शाता है।

यह कहना है कि मोदी सरकार की मंत्री स्मृति ईरानी का। उनका यह बयान 22 जनवरी 2024 की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण कॉन्ग्रेस की ओर से ठुकराने के बाद आया है।

बौद्धिक जुगाली करने वाले चाहें तो इसे एक कॉन्ग्रेस विरोधी नेता की कुंठा बताकर खारिज कर सकते हैं। लेकिन उन सवालों का क्या जो कॉन्ग्रेस के भीतर से उठ रहे हैं। कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम कॉन्ग्रेस के ही हैं। उन्होंने पार्टी के इस फैसले पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा है- श्री राम मंदिर के ‘निमंत्रण’ को ठुकराना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और आत्मघाती फैसला है। आज दिल टूट गया।

जुगालीबाजों की पत्तलचाटुकार औलादें पार्टी नेतृत्व के साथ आचार्य प्रमोद कृष्णम के हालिया संबंधों का उल्लेख कर उन्हें ‘नाराज फूफा’ बताकर उनकी चिंताओं को भी खारिज कर सकते हैं। अर्जुन मोढवाडिया गुजरात में कॉन्ग्रेस के विधायक हैं। राज्य के पार्टी अध्यक्ष रह चुके हैं। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे हैं। पार्टी के प्रवक्ता हैं। उन्होंने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है, “भगवान श्री राम आराध्य देव हैं। यह देशवासियों की आस्था और विश्वास का विषय है। कॉन्ग्रेस को ऐसे राजनीतिक निर्णय लेने से दूर रहना चाहिए था।’

असल में कॉन्ग्रेस का यह फैसला आरोप-प्रत्यारोप वाली सामान्य राजनीतिक शब्दावली तक ही सीमित नहीं है। अपने ही कुछ नेताओं की नाराजगी का जोखिम ही इसमें सिमटा हुआ नहीं है। यह उस पार्टी के लिए खुद की ही कब्र खोदने जैसा है जो पहले ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और अब ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के जरिए भारत की राजनीति में अपने लिए फिर से जमीन बनाने की कोशिश में है। जो पिछले कई सालों से वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। जिसके सामने दो ही विकल्प हैं। पहला, इस संकट से निजात पाने का कोई तरीका तत्काल ढूँढ़ना। दूसरा, इतिहास के पन्नों में समा जाना। ऐसा लगता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी ने अपने लिए दूसरा विकल्प ही चुनकर रखा है।

मोदी सरकार में यह दूसरा मौका है जिसने कॉन्ग्रेस को पुराने पापों से मुक्ति पाने का अवसर प्रदान किया है। लेकिन कॉन्ग्रेस ने दोनों ही मौकों को बढ़-चढ़कर गँवाया है। कॉन्ग्रेस चाहती तो 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर पर जवाहर लाल नेहरू के किए भूलों का पिंडदान कर सकती थी। पर उसने तुष्टिकरण की राजनीति के लिए उस समय भी राष्ट्रहित को दरकिनार कर अपना पिंडदान करने का विकल्प चुना था।

अब रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के निमंत्रण ने कॉन्ग्रेस को अयोध्या पर नेहरू से लेकर सोनिया गाँधी तक किए गए पापों से मुक्ति का एक झटके में अवसर उपलब्ध कराया था। लेकिन उसने राम मंदिर को ‘हिंदुओं का नहीं, RSS/BJP का इवेंट, उनका राजनीतिक प्रोजेक्ट’ बताकर अपने लिए उन्हीं पापों के साथ दफन होने का विकल्प चुना है।

कॉन्ग्रेस ने इस मामले में वैसा ही रवैया दिखाया है, जैसा त्रेता में रावण ने दिखाया था। समुद्र पार कर जब भगवान श्रीराम ने अपनी सेना के साथ लंका के बाहर पड़ाव डाला था, तब उन्होंने भी अंगद को भेजकर रावण को पाप से मुक्ति का अवसर प्रदान किया था। इसी तरह यह जानते हुए भी कि नेहरू अयोध्या से रामलला की मूर्ति को हटवाना चाहते थे, कॉन्ग्रेस की शह पर वामपंथी इतिहासकारों ने अयोध्या को लेकर प्रपंच रचे, जिस सरकार को सोनिया गाँधी पर्दे के पीछे से हाँक रही थी उसने कोर्ट में हलफनामा देकर राम के अस्तित्व को नकार दिया था, कॉन्ग्रेस के एक ही नेता ने वकील का चोगा पहनकर रामजन्मभूमि पर फैसले को यह कहकर लटकाने की कोशिश की चुनाव होने हैं, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने फिर भी निमंत्रण भेजकर कॉन्ग्रेस को इस पुण्य क्षण का साक्षी बनने और पाप से मुक्ति का अवसर दिया था।

कॉन्ग्रेस नेताओं को निमंत्रण भेजना राम की मर्यादा का पालन करना है। हिंदुओं ने अपनी ओर से हिंदू घृणा से सनी पार्टी के साथ भी इस मर्यादा का पालन किया। लेकिन कॉन्ग्रेस का अहंकार देखिए, उसने इसमें भी राजनीति दे​खी, ठीक वैसे ही जैसे रावण ने प्रभु श्रीराम में सामान्य वनवासी देखा था।

इस भूल की कीमत रावण ने केवल अपने नाश से ही नहीं चुकाई। अपने बंधु-बांधवों के नाश से ही नहीं चुकाई। इसकी कीमत आज भी रावण हर साल दहन होकर चुकाता है। कॉन्ग्रेस ने भी अपने लिए वही रास्ता चुना है।

गोस्वामी तुलसीदास जानते थे कि अहंकार और सनातन से घृणा करने वाले हर समय में होंगे। इसलिए वे लिखकर गए हैं- सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहहु मुनिनाथ, हानि लाभ जीवन मरन जस अपजस विधि हाथ। विधाता ने रावण को अवसर दिया। कौरवों को भी। आज कॉन्ग्रेस को भी। लेकिन कॉन्ग्रेस ने अपने लिए वही चुना है जो विधाता ने उसके लिए लिख रखा है। हमारी पीढ़ियाँ इनका भी हश्र देखेंगी। फैज के शब्दों में कहें तो लाजिम है कि हम भी देखेंगे।

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अजीत झा
अजीत झा
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