Monday, November 18, 2024
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दिल्ली को और झटके मत दीजिए केजरीवाल जी! ताहिर, शाहरुख़ और शरजील अभी भी लोगों के जेहन में हैं

दिल्ली अभी-अभी हिन्दू-विरोधी दंगों से उबरी है। ऐसे माहौल में कोरोना के आने से जनता पर क्या बीत रही है, ये सोचा जा सकता है। अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठप्प है। ऐसे में समय है जनता की समस्याओं को सुनने का न कि आरोप-प्रत्यारोप का!

सबसे पहले तो जानते हैं कि दिल्ली में क्या हुआ। जैसा कि आरोप है, अरविन्द केजरीवाल ने कई बसों में मजदूरों को भर के उन्हें दिल्ली बॉर्डर तक छोड़ दिया। वहाँ उन्हें भगवान भरोसे ढाह दिया गया। कपिल मिश्रा ने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें अनाउंस किया जा रहा है कि मजदूरों को बसों से आनंद विहार छोड़ा जाएगा। यहाँ हमारा सवाल ये है कि अगर 23-24 मार्च को ही मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने घोषणा की थी कि दिल्ली में बसें नहीं चलेंगी, फिर रातोंरात उन्हें क्यों चलाया गया? आख़िर बिना किसी सार्वजनिक घोषणा किए बसों को अचानक से सक्रिय कर दिया गया, किसके आदेश पर?

घटना का दूसरा पहलू सामने आता है राजेंद्र नगर के आम आदमी पार्टी विधायक राघव चड्ढा के बयान से। चड्ढा ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली से लौटे मजदूरों को दौड़ा-दौड़ा कर पिटवा रहे हैं और उनसे पूछा जा रहा है कि वो दिल्ली क्यों गए थे? क्या बिना किसी सबूत के ये आरोप मानने लायक है? योगी छोड़िए, किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री मजदूरों पर बिना मतलब लाठी क्यों चलवाएगा, वो भी इस विकट परिस्थिति में? चड्ढा ने ये भी आरोप लगाया कि सीएम योगी उन मजदूरों को धमका रहे हैं कि वो दोबारा दिल्ली न जाएँ।

हम सबने देखा है कि योगी आदित्यनाथ किस तरह लगातार जनता के लिए समुचित व्यवस्थाएँ करने में प्रयासरत हैं, ताकि लॉकडाउन के दौरान किसी को कोई परेशानी न हो। वो रात में जाग कर ज़रूरी सामग्रियों के वितरण का निरीक्षण कर रहे हैं और लोगों के घरों तक चीजें पहुँचाई जा रही हैं। कमजोर आय वर्ग के श्रमजीवी जनों के भोजन के लिए ‘कम्युनिटी किचन’ प्रारंभ किए गए हैं। लखनऊ में हॉस्पिटलों का दौरा कर उन्होंने ख़ुद तैयारियों का निरीक्षण किया। 12 राज्यों में नोडल अधिकारी तैनात किए गए, ताकि यूपी के लोगों को अन्य राज्यों में कोई समस्या न हो।

ऐसे में क्या मजदूरों को दिल्ली-यूपी सीमा पर छोड़ने वाले अरविन्द केजरीवाल ने यूपी सीएम से बात की? संकट के इस माहौल में जब सभी दलों को मिलजुल कर और सभी राज्यों को समन्वय बना कर काम करना चाहिए (जैसा कि अधिकांश मामलों में हो ही रहा है), केजरीवाल की पार्टी के नेताओं द्वारा आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू कर देना भारत में इटली जैसा माहौल पैदा कर सकता है। मनीष सिसोदिया का बयान भी काफ़ी विरोधाभाषी है। एक तरफ़ उन्होंने कहा कि जो जहाँ है वहीं रहे, दूसरी तरफ उन्होंने बसों का इंतजाम करने की भी बात कही। आख़िर केजरीवाल सरकार अपने ही लॉकडाउन के आदेश पर अमल क्यों नहीं कर रही?

विपक्षी राजनीति के स्तर का इस तरह गिरने के पीछे एक और कारण ये हो सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संकट की परिस्थिति में देश के एक कमांडर की तरह नेतृत्व कर रहे हैं। सार्क देशों ने भी उन्हें ध्यान से सुना। ‘वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाईजेशन’ उनसे प्रभावित है। कई देशों के अध्यक्ष उनकी नेतृत्व क्षमता की तारीफ कर चुके हैं। उनके एक इशारे पर लोगों ने जनता कर्फ्यू’ के दौरान ख़ुद को घरों में बंद रखा। उन्होंने जिस सम्बोधन में लॉकडाउन की घोषणा की, वो सबसे ज्यादा देखे जाने वाले कार्यक्रमों में से एक बन गया। इसका अर्थ है कि लोग उन्हें सुनते हैं और उनका कहा मानते हैं। फिर मजदूरों को किसने भड़काया?

आरोप लगाया गया है कि दिल्ली सरकार ने इन मजदूरों के घरों का बिजली-पानी कनेक्शन काट लिया, जिससे वो दिल्ली छोड़ने को विवश हुए। दिल्ली में राजस्थान के भी मजदूर रहते हैं। उत्तर प्रदेश के ईंट-भट्ठे के कारोबार में छत्तीसगढ़ के न जाने कितने ही मजदूर हैं। इन सबका पलायन क्यों नहीं हुआ? सिर्फ़ यूपी-बिहार के मजदूर ही क्यों घर से निकलने को विवश हुए? जिस तरह सीएम योगी आदित्यनाथ को निशाना बनाया गया, उससे तो यही लगता है कि इस घड़ी में भी हिटजॉब की राजनीति चल रही है, जो देश के लिए सही नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में जनसमर्थन देख कर विपक्ष अब उन पर सीधा हमला करने से बच रहा है। इसीलिए दूसरे नेताओं को चुन कर निशाना बनाया जा रहा है। इसी क्रम में राघव चड्ढा जैसे नेताओं ने सीएम योगी पर वार किया लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ क्योंकि यूपी में मजदूरों के रहने और खाने-पीने के साथ उनके मेडिकल टेस्ट व स्क्रीनिंग की भी समुचित व्यवस्था कराई गई। मनीष सिसोदिया मजदूरों से मिलने पहुँचे थे लेकिन उन्होंने इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा कि क्या उनके मेडिकल स्क्रीनिंग के बाद ही राज्य से बाहर भेजा जा रहा है या सब कुछ यूपी सरकार पर ही छोड़ दिया गया है?

भारत में अब तक कोरोना वायरस का प्रकोप तुलनात्मक रूप से नियंत्रण में है। अब तक 1050 लोगों को इसका संक्रमण हुआ है, जिनमें से 86 ठीक हो गए हैं और 27 की मृत्यु हो गई है। अभी कुल 937 सक्रिय मामले हैं, जिनका इलाज जारी है। पीएम मोदी ने भी ‘मन की बात’ में कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों और इस संक्रमण से उबरे लोगों से बातचीत कर उनका अनुभव दुनिया के सामने रखा। ऐसे समय में सभी नेताओं को अपने-अपने प्रदेशों में कुछ ऐसा ही करना चाहिए, जिससे सकारात्मकता से चीजे आगे बढ़े, नकारात्मकता न फैले। लेकिन, कुछ नेता इसके उलट काम कर रहे हैं।

दिल्ली अभी-अभी हिन्दू-विरोधी दंगों से उबरी है। सड़क पर पिस्टल लहरा कर गोलीबारी करते शाहरुख़ को देश भुला नहीं है। शरजील इमाम और वारिस पठान जैसे नेताओं के बयान अभी भी जेहन में हैं। फैसल फ़ारूक़ के स्कूल को दंगाइयों द्वारा अटैक बेस बनाया जाना याद ही होगा। ताहिर हुसैन ने अपने हजारों लोगों के साथ मिल कर जो कत्लेआम मचाया, उसकी जाँच जारी है। अमानतुल्लाह ख़ान ने जिस तरह दंगाइयों का बचाव किया, वो सभी को पता ही है। ऐसे माहौल में कोरोना के आने से जनता पर क्या बीत रही है, ये सोचा जा सकता है। अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठप्प है। दिल्ली को लगातार दो बड़े झटके लगे हैं, शाहीन बाग़ के बाद।

अभी ज़रूरत है संवेदनशीलता से काम करने की। तब भी कुछ नेता पीएम मोदी पर हमले से बचते हुए भाजपा के अन्य नेताओं पर किसी न किसी तरह निशाना साध रहे हैं। भाजयुमो और संघ के कर्मठ कार्यकर्ता लोगों तक राशन-पानी और राहत पहुँचाने में लगे हुए हैं। हो सकता है सरकार की कुछ कमियाँ हों लेकिन इसे लेकर सार्वजनिक रूप से आपत्तिजनक आरोप-प्रत्यारोप करने का समय अभी नहीं है। अभी समय है जनता की समस्याओं को सुनने का, लॉकडाउन में जिन्हें परेशानी हो रही है उनकी समस्याएँ दूर करने का। हारे हुए नेता तजिंदर बग्गा और कपिल मिश्रा से काफ़ी कुछ सीखा जा सकता है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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