भारतीय मीडिया का एक बड़ा धड़ा तब कुछ ज़्यादा ही सक्रिय हो जाता है, जब किसी भाजपा शासित राज्य में कोई घटना होती है। लेकिन, जहाँ विपक्षी दलों की सरकारें हैं वहाँ कितनी भी वीभत्स घटना क्यों न हो जाए, उन्हें रियायत दी जाती है। क्या आपने सोशल मीडिया के बुद्धिजीवियों या फिर मेनस्ट्रीम मीडिया में कहीं इस खबर पर बहस होते देखा कि केरल में बिहार के एक दलित मजदूर की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई, वो भी मुस्लिमों द्वारा?
मेनस्ट्रीम मीडिया के स्टार एंकर्स इस घटना को कवर करने के लिए केरल नहीं पहुँचे। अख़बारों में इस घटना पर संपादकीय नहीं दिखे। सोशल मीडिया में बुद्धिजीवियों ने CPM सरकार की आलोचना नहीं की। दलित हितों की बात करने वाले खामोश रहे। यूट्यूब से कमाई करने वाले नए-नवेले वरिष्ठ पत्रकारों की जमात ने अख़बारों की कटिंग शेयर नहीं की। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के शासन पर सवाल नहीं उठाए गए। मृतक के परिवार के लिए किसी मुआवजे की घोषणा नहीं की गई।
क्या आप जानते हैं इसका कारण क्या है? इसका कारण ये है कि केरल में वामपंथी दलों की सरकार है, भाजपा की विरोधी दलों की। इसीलिए, एक दलित मजदूर की मॉब लिंचिंग पर अंतरराष्ट्रीय अख़बारों में भी संपादकीय नहीं आता है। वहीं अगर उत्तर प्रदेश में दलितों का आपस का झगड़ा भी होगा तो उसे ऐसे पेश किया जाता है जैसे दलित पर अत्याचार हो रहा हो। आगे बढ़ने से पहले आइए जान लेते हैं कि केरल में हुआ क्या है।
केरल में भाजपा के दलित मजदूर की पीट-पीट कर हत्या
केरल के मलप्पुरम में चोरी के शक में बिहार के पूर्वी चम्पारण के रहने वाले 36 वर्षीय दलित मजदूर को बाँध कर पीटा गया। शनिवार (6 मई, 2023) को दोपहर हुई इस घटना में 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है – अफजल, फाजिल, शराफुद्दीन, महबूब, अब्दुसमद, नासिर, हबीब, अयूब और जैनुल। इस घटना की कोई चर्चा न होने का एक कारण ये भी है कि हत्यारे मुस्लिम समुदाय से आते हैं। मुस्लिमों द्वारा किए जाने वाले अपराधों को छिपाना कोई नया ट्रेंड नहीं है, काफी पहले से चला आ रहा है।
लगभग ढाई घंटे तक उक्त मजदूर के हाथ बाँध कर उसे पीटा गया, पाइप और लाठियों द्वारा। फिर उसे एक दुकान के बाहर फेंक दिया गया। इसके एक घंटे बाद पुलिस को सूचना मिली। राजेश माँझी को इसके बाद नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। हत्यारों ने सबूतों के साथ भी छेड़छाड़ किया, सर्विलांस कैमरे के फुटेज को डिलीट कर दिया गया। कॉन्डोत्ती के पास किझिसेरी इलाके में उक्त युवक पर चोरी का इल्जाम लगाया गया था।
वहाँ कुछ दिनों पहले मृतक ने एक चिकन की दुकान पर काम किया था। पोस्टमॉर्टम में पता चला कि मृतक को क्रूरता से पीटा गया था, जिससे उसकी कई पसलियाँ टूट गई थीं। हत्यारों ने झूठ बोल कर बचने की कोशिश की कि राजेश माँझी चोरी की कोशिश में पहले माले से गिर गए। केरल में इस तरह की ये पहली घटना नहीं है। फरवरी 2018 में मधु नाम के जनजातीय समाज के युवक की इसी तरह हत्या कर दी गई थी। ताज़ा मामले पर बिहार के सामाजिक कल्याण मंत्री मदन साहनी ने निंदा कर के इतिश्री कर ली है।
जुनैद के परिजनों को केरल सरकार ने दिया था मुआवजा, राजेश माँझी को क्या?
22 जून, 2017 को एक आपसी झगड़े में ट्रेन में जुनैद नाम के युवक की हत्या कर दी गई थी। अपना अम्मी-अब्बू की 8 संतानों में छठे नंबर का जुनैद इमाम बनना चाहता था। उसकी हत्या के बाद देश भर में मॉब लिंचिंग वाला प्रोपेगंडा चलाया गया और कहा गया कि उसके मजहब के कारण हिन्दू गुंडों ने उसे मारा है। जुनैद और उसके साथी ईद की शॉपिंग कर के दिल्ली से लौट रहे थे, रास्ते में सीट के लिए एक दूसरे समूह से उनका झगड़ा हो गया था।
जुनैद का केरल से कोई लेनादेना नहीं था। न तो वो केरल का रहने वाला था और न ही केरल में ये घटना हुई थी। लेकिन, केरल की वामपंथी सरकार ने जुनैद के परिजनों को रुपए देने का ऐलान किया था। अगस्त 2017 में केरल की सत्ताधारी पार्टी CPI(M) ने ऐलान किया था कि जुनैद के परिजनों को 10 लाख रुपए दिए जाएँगे। पार्टी की राज्य कमिटी की बैठक में ये फैसला लिया गया। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन भी परिवार से मिले थे।
कुख्यात वामपंथी महिला नेता वृंदा करात के साथ जुनैद के परिवार ने दिल्ली स्थित ‘केरल हाउस’ में सीएम से मुलाकात की थी। CPI(M) ने ऐलान किया था कि पार्टी की सेन्ट्रल कमिटी द्वारा ये रकम जुनैद के परिवार वालों को दिए जाने की बात कही गई थी। पार्टी ने सीधा कह दिया था कि RSS ने जुनैद की हत्या की। क्या राजेश माँझी के परिवार से मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन इसीलिए मुलाकात नहीं करेंगे और CPI(M) वित्तीय सहायता नहीं करेगी, क्योंकि वो जुनैद की तरह किसी मदरसे में नहीं पढ़ते थे?
जब हजारों किलोमीटर दूर हुई एक घटना को लेकर केरल की सत्ताधारी पार्टी और सरकार वित्तीय सहायता कर सकती है, तो फिर उनके राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा करती मुस्लिम भीड़ द्वारा की गई दलित प्रवासी मजदूर की हत्या पर क्या वो परिवार की सहायता नहीं कर सकते? खुद मलप्पुरम के पुलिस अधीक्षक ने इसे मॉब लिंचिंग का मामला माना है। हत्यारे मुस्लिम हैं, इसीलिए केरल सरकार चुप्पी साधे हुए बैठी है?
केरल कॉन्ग्रेस की चुप्पी का कारण क्या?
न सिर्फ केरल की सत्ताधारी पार्टी और मीडिया, बल्कि केरल की मुख्य विपक्षी पार्टी कॉन्ग्रेस ने भी इस घटना को लेकर राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाए हैं। गुजरात के ‘अमूल’ और कर्नाटक की ‘नंदिनी’ को लेकर क्षेत्रवाद की राजनीति करने वाली कॉन्ग्रेस बिहार के एक दलित मजदूर के लिए आवाज़ उठाएगी, इसकी उम्मीद भी शायद ही है। वैसे भी कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी भारत को एक देश की जगह ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’ कहते हैं।
कॉन्ग्रेस नेता शशि थरूर, जो केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद हैं, वो इस पर कुछ बोलेंगे? ‘The Kerala Story’ फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे वहाँ हिन्दू लड़कियों को फँसा कर उनका इस्लामी धर्मांतरण करा दिया जाता है और फिर उनकी मानव तस्करी कर के उन्हें ISIS का सेक्स स्लेव बनने भेज दिया जाता है। इस पर तो शशि थरूर ने खूब हंगामा मचाया था कि ये सच्चाई नहीं है। उम्मीद नहीं ही है कि दलित मजदूर की हत्या पर वो कुछ बोलेंगे।
This is the other Kerala Story. Will @ShashiTharoor defend this saying “not my Kerala Story”? Or will he finally recognise the dangerous mindset which has become the ground reality of God’s Own Country? pic.twitter.com/yeGniKkqll
— BALA (@erbmjha) May 16, 2023
कॉन्ग्रेस बिहार के महागठबंधन में शामिल है, जो राज्य की सत्ताधारी पार्टी भी है। इस हिसाब से भी उसे इस मामले पर आवाज़ उठानी चाहिए थी। बिहार सरकार तो इस मामले पर बोलने से रही। तमिलनाडु में जब बिहारी प्रवासी मजदूरों के साथ हिंसा की खबरें आईं तो बिहार सरकार ने यूट्यूबर मनीष कश्यप पर फेक न्यूज़ फैलाने का आरोप लगा कर उन्हें तमिलनाडु पुलिस के हवाले कर दिया गया। अब उन पर NSA के तहत कार्रवाई की जा रही है।
शर्म की बात है कि एक पिछड़ राज्य के पिछड़े समाज का कोई व्यक्ति किसी अन्य राज्य में मॉब लिंचिंग का शिकार हो जाता है और उस राज्य का मुख्यमंत्री अपने लोगों के हितों की रक्षा करने की बजाए देश भर में घूम-घूम कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ गठबंधन बनाने में लगा है। वो अलग बात है कि उससे ये भी नहीं हो पा रहा। बिहार जैसे पिछड़े राज्य का दुर्भाग्य है कि यहाँ ऐसे नेता सत्ता में हैं। इस स्थिति में उन्हें इसकी चिंता करनी चाहिए थी कि राजेश माँझी का शव बिहार कैसे आएगा, अंतिम संस्कार कैसे होगा और उनके परिवार का क्या होगा।
ये वही नीतीश कुमार हैं, जिनका एक आतंकी को लेकर ऐसा प्यार उमरा था कि उन्होंने गुजरात पुलिस द्वारा एनकाउंटर में मारी गई इशरत जहाँ को ‘बिहार की बेटी’ कह दिया था। तेज प्रताप यादव ने बाद में उनके इस बयान का समर्थन किया था। लालू यादव के बेटे तेज प्रताप इस समय नीतीश सरकार में मंत्री भी हैं। जबकि CBI कोर्ट ने भी 2021 में कहा कि इसे फेक एनकाउंटर मानने का कोई सवाल ही नहीं उठता और वो आतंकी नहीं थे ये मानने के लिए कोई तथ्य ही नहीं हैं। तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस पर खूब राजनीति की थी।