अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर है। वे दिल्ली में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर विचार-विमर्श कर रहे थे, उसी दौरान उनकी पत्नी मेलानिया ट्रंप दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में थीं। कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप की पत्नी दिल्ली के स्कूलों में चल रहे हैप्पीनेस क्लास को देखने पहुँची थीं।
क्या है हैप्पीनेस क्लास?
दिल्ली सरकार ने जुलाई 2018 में इस कार्यक्रम को कई NGO की मदद से कंटेंट तैयार कर लागू किया। हैप्पीनेस में मुख्य रूप से माइंडफुलनेस, कहानी और गतिविधियाँ शामिल हैं। प्रतिदिन कक्षा की शुरुआत 2 मिनट ध्यान करने से शुरू होती है। वहीं 45 मिनट की एक विशेष कक्षा प्रतिदिन कक्षा 3 से 8वीं तक के बच्चों के लिए आवंटित है। इसमें कहानियाँ सुनाई जाती है। कहानी के साथ-साथ कई गतिविधियाँ भी शामिल होती है।
ध्यान सुनने में भले भारतीय लगती हो, कहानियाँ सेक्युलर/लिबरल विचारों की उस मानसिकता से रची गढ़ी मालूम पड़ती है जो गरीब के बच्चों को ख़राब से बढ़िया बनाने की सोच रखती है। मानों भारत में गरीब के बच्चे और उनका परिवार हिंसक, असभ्य और तमाम बुराइयों से घिरे होते है, जिन्हें कहानियाँ सुनाकर बदला जा सकता है।
इधर हजारों बच्चों को स्कूल से निकाला, उधर ख़ुश रहने का दिखावा
जुलाई 2018 में आनन-फानन में हैप्पीनेस क्लास की शुरुआत की गई थी। तब यह साफ़ समझ में आ रहा था कि यह बिना किसी तैयारी के स्कूलों में थोपा गया कार्यक्रम है। जब दिल्ली सरकार दुनियाभर में बच्चों को ख़ुश रखने के कार्यक्रम शुरू करने का ढिंढोरा पीट रही थी, ठीक उसी समय दिल्ली के स्कूलों से जुड़े हजारों बच्चे रो रहे थे, उनके गरीब माँ-बाप अपने बच्चों के भविष्य के प्रति चिंतित और परेशान थे।
दरअसल वर्ष 2017-18 के एकेडमिक सत्र में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में डेढ़ लाख से अधिक बच्चें 9वीं कक्षा से लेकर 12वीं तक में फेल हो गए थे। फेल होने के बाद कानूनन इन्हें दुबारा नामांकन मिलना चाहिए था। लेकिन सरकार की अघोषित नीति के तहत फेल हुए दो तिहाई से अधिक बच्चों को दुबारा एडमिशन लेने ही नही दिया गया। दिल्ली हाई कोर्ट में सोशल जूरिस्ट बनाम दिल्ली सरकार के मामले में सुनवाई हुई तो यह पता लगा कि 10वीं और 12वीं के बोर्ड परीक्षा में फेल हुए 91 फीसदी बच्चों को दुबारा नामांकन नही दिया गया। वहीं 9वीं व 11वीं में फेल हुए क्रमशः 52 एवं 58 फीसदी बच्चों को स्कूलों से बाहर निकाल दिया गया। अगर आँकड़ों की बात करें तो फेल हुए 1,55,436 में से 1,02,854 बच्चों को स्कूली व्यवस्था से बेदखल कर दिया गया। जब इतने बच्चे कोर्ट का चक्कर लगा रहे थे, रो-बिलख रहे थे, सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए ख़ुश रहने का कार्यक्रम लॉन्च कर रही थी।
कहानी सुनाने के लिए महत्वपूर्ण विषयों के क्लास किए ख़त्म
हैप्पीनेस क्लास की जब शुरुआत हुई तो इसे चलाने के लिए को-करिकुलर एक्टिविटी के दोनों क्लास खत्म कर दिए गए। ड्राइंग व संगीत के 3 में से 2 क्लास, फिजिकल एजुकेशन/स्पोर्ट्स के 3 में से 2 क्लास खत्म करके हैप्पीनेस को आवंटित कर दिए गए। बात यही नहीं खत्म हुई। हिंदी और तीसरी भाषा (पंजाबी, संस्कृत आदि) के भी एक-एक क्लास हैप्पीनेस को आवंटित कर दिए गए।
जिस दिल्ली का प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर पर हुए नेशनल अचीवमेंट सर्वे में बेहद ख़राब रहा हो, हिंदी के मामले में जो दिल्ली नीचे से टॉपर बना हो, उस दिल्ली में हिंदी के क्लास कम करके कहानी सुनाने की कक्षा लगाना समझ से परे है।
अपने रिसर्च के दौरान मुझे कई स्कूलों के बच्चों ने बताया कि संस्कृत की कक्षा लगभग नहीं के बराबर चलती है। अगर चलती है तो उसमें ड्राइंग की कक्षा लगाई जाती है। कई स्कूलों के बच्चों ने बताया कि उनकी क्लास में ज्यादातर समय हैप्पीनेस की कहानियों में ही गुजरता है। वैसे समय में जब बड़ी संख्या में शिक्षकों के पद खाली हो, ऐसे आरोपों को नजरअंदाज करना मुश्किल है कि कहानियों में ही उलझा कर बच्चों को मूल पढ़ाई से अलग की बातों में उलझाए रखने में ही सरकार की दिलचस्पी है।
बच्चों से बात करके लगा कि कहानियों की आड़ में पढ़ने के कौशल पर ध्यान नही दिया जा रहा। यही बच्चे जब फेल हो जाते है तो उन्हें स्कूलों से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
आधी अधूरी तैयारी के लॉन्चिंग, बिना रिसर्च के दावे अनगिनत
हैप्पीनेस क्लास की जब 2018 में शुरुआत हुई थी तब नर्सरी से कक्षा-2, कक्षा 3 से 5 और कक्षा 6 से 8 के लिए अलग-अलग 3 टीचर हैंडबुक तैयार किए गए थे। लेकिन पिछले वर्ष हर कक्षा के लिए अलग-अलग हैंडबुक जारी किया गया। यानी चमत्कार की जो प्रक्रिया थी, वह न तो अच्छे से योजनाबद्ध थी, न ही पूरी तैयारी के साथ लागू की गई है।
यही नहीं, इस क्लास से होने वाले परिणाम पर कोई भी रिसर्च अबतक नहीं हुई है लेकिन पिछले एक साल से हैप्पीनेस क्लास पर मीडिया में सैकड़ों ख़बर आ चुकी है। खासकर जब से ट्रंप के पत्नी के स्कूल जाने की ख़बर आई है, हैप्पीनेस क्लास से जुड़ी ख़बरें धड़ाधड़ छप रही है।
चूँकि इस कार्यक्रम में किसी तरह की परीक्षा अथवा बच्चों के ऊपर हो रहे प्रभाव को आँकने की व्यवस्था नही है, इसलिए इस कार्यक्रम से होने वाले बदलाव की सारी कहानी संदिग्ध ही लगती है। शायद यही वजह है कि ब्रुकिंग इंडिया, ड्रीम अ ड्रीम संस्था दिल्ली सरकार के साथ अक्टूबर-नवम्बर, 2018 से इस कार्यक्रम के प्रभाव को आँकने के लिए काम शुरू हुआ है, जिसकी रिपोर्ट 9 महीने की अवधि में आने की उम्मीद है कि सच में इससे क्या फायदा हुआ है!
फिलहाल जैसे निर्मल बाबा डोसा खिलाकर पारिवारिक समस्या से निजात देने की बातें करते हैं, दिल्ली सरकार भी बिना किसी रिसर्च या रिपोर्ट के हैप्पीनेस क्लास के नामपर ऐसी ऐसी कहानियाँ गढ़ रही है जिसे सुनकर लगता है कि बड़ा ही चमत्कारिक कार्यक्रम दिल्ली के स्कूलों में चल रहा है। यही नहीं, यह बातें भी लोगों को बताई जा रही है कि इस कार्यक्रम से बच्चा ही नहीं, उसका परिवार भी इस हैप्पीनेस रूपी दैवीय चमत्कार से लाभान्वित हो रहा है।
दलाई लामा के नाम का इस्तेमाल
हैप्पीनेस क्लास को लोकप्रिय बनाने के लिए आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार ने दलाई लामा के नाम और कद का इस्तेमाल किया। दलाई लामा के हाथों ही हैप्पीनेस क्लास के पाठ्यक्रम को लॉन्च भी किया गया। इस क्लास के जरिए बच्चों में बड़े-बड़े बदलाव की बातें बताई गई। हैप्पीनेस क्लास को बड़ी उपलब्धि बताते हुए इसके विश्व भर में लोकप्रिय होने की बात भी दिल्ली के शिक्षा मंत्री खूब करते हैं। अपने दावे के समर्थन में मीडिया में छपे कतरन दिखाते हुए इसे विश्व का सबसे बड़ा कार्यक्रम बताते हैं।
पिछले साल हैप्पीनेस क्लास के एक वर्ष पूरे पर त्यागराज स्टेडियम में एक बड़ा जलसा भी आयोजित हुआ था। उस दौरान मेट्रो से लेकर दिल्ली के हर चौक-चौराहे पर बड़े बड़े होर्डिंग लगाए गए थे, जिनमें कुछ गिने-चुने बच्चों की कहानियाँ हैप्पीनेस क्लास के चमत्कारिक बदलाव के रुप में प्रस्तुत किए गए थे।
वामपंथी प्रोपेगेंडा का हिस्सा है हैप्पीनेस
धनी व्यक्ति के घर में चोरी हो जाए और चोर पकड़ा जाए तो सजा किसे मिलेगी?
इस आसान से सवाल का हर कोई यही जबाब देगा- सजा तो चोर को ही मिलेगी।
लेकिन दिल्ली सरकार के स्कूली बच्चों के लिए इसका जबाब कुछ अलग होगा। चोर ही नहीं चोरी जिसके घर में हुई, वह भी चोर है क्योंकि उसके पास पैसे है।
हैपीनेस क्लास के लिए तैयार टीचर हैंडबुक में वैसे तो बहुत सारी कहानी है, लेकिन कई कहानी लिबरल बनाने की पहली सीढ़ी हैं। “असली चोर कौन” शीर्षक से एक कहानी शामिल है, जो टिपिकल वामपंथी सोच से प्रेरित है, जो यह मानता है कि धनवान व्यक्ति चोर है। यह कहानी 6ठी से 8वीं तक के बच्चे को पढ़ाने के लिए SCERT और दिल्ली शिक्षा विभाग द्वारा तैयार की गई थी।
दरअसल आप सरकार में शिक्षा क्षेत्र में सक्रिय अधिकतर लोग वामपंथी विचारधारा से जुड़े हुए लोग रहे है। आप सरकार के शुरूआती दिनों में पूरी शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की वजाये गरीब, अमीर की नैरेटिव बनाते हुए दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों को विलेन बनाया गया। फिर प्राइवेट स्कूलों को बंद करके सरकारी स्कूलों में घटते नामांकन पर लगाम लगाने की कोशिश हुई। सरकारी स्कूलों में साइंस, गणित, तकनीकी शिक्षा की वजाये केवल सोशल साइंस को बढ़ावा दिया, वही बच्चों को सरकारी खेल तमाशे में उलझाते हुए कहानी सुनाने को ही पढ़ाई-लिखाई माना गया, कहानियां गढ़कर वाहवाही बटोरने की कोशिश हुई। बच्चों के लर्निंग आउटकम पर कौन ध्यान दे।
कुछ नया नहीं है हैप्पीनेस
देश भर के सरकारी स्कूलों की तुलना दिल्ली के स्कूलों से करें तो सिद्धांतः यहाँ कुछ अनोखा नहीं हो रहा। देश के लगभग सभी राज्यों में टाइम टेबल का एक हिस्सा उन गतिविधियों पर जरूर केन्द्रित रहता है, जो बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के साथ-साथ बच्चों की जीवन शैली, व्यवहार और आम-जिन्दगी की बातों से उन्हें परिचय करवाए। हर राज्य के टाइम टेबल में एक अच्छा ख़ासा समय इस बात के लिए जरूर रहता है जो बच्चों को उनकी मनमर्जी के काम करने की छूट दे, जिनसे बच्चों को ख़ुशी मिले।
अलग बस इस मायने में है कि दिल्ली सरकार ने भारी-भरकम बजट खर्च कर, सरकार की सहयोगी अनेक संस्थाओं को उपकृत करके सेक्युलर/लिबरल कहानियों का संग्रह तैयार करवाई, गतिविधियाँ जोड़ी और आकर्षक बुकलेट के फॉर्म में उसे हर विद्यालय में मुख्यमंत्री/शिक्षामंत्री के फोटो और संक्षिप्त भाषण के साथ सभी स्कूलों तक पहुँचवा दिया। कहना बिल्कुल गलत नही होगा कि हैप्पीनेस पाठ्यक्रम दशकों से स्कूलों में होनेवाली गतिविधियों की रि-पैकेजिंग है, जिसमें कहानियों का संग्रह और दैनिक जीवन के व्यावहारिक गुणों के बारे में विशेष जोर है। फर्क बस इतना है कि जहाँ बाकी राज्य में स्कूल प्रचार कर सकने में पीछे रहे, दिल्ली ने पैसे खर्च करके इसे बुकलेट का शक्ल दिया, दलाई लामा जी के हाथों से लॉन्च करवाया और पूरी दुनिया में अपनी PR एक्टिविटी के जरिए वाहवाही बटोरी।
बच्चा कितना ख़ुश है अथवा नहीं, इसका अंदाजा बाद में लगेगा, लेकिन फिलहाल जो भी ख़ुशी बच्चों को मिल रही है 8वीं तक, उनपर 9वीं आते-आते ग्रहण लगना तय है क्योंकि सरकार पढ़ाने पर ध्यान देने की बजाए अच्छा प्रदर्शन न करने की क्षमता आँकते हुए उन्हें फेल करेगी ताकि 10 वीं और फिर बाद में 12वीं की परीक्षा परिणाम सुधारा जाए और दुनिया को अच्छी तस्वीरें दिखाई जाए। शायद लाखों बच्चों की रोने और रोते-बिलखते बच्चों की तस्वीर दिल्ली के किसी और स्कूल के किसी हँसते हुए बच्चों के आगे दब जाएगी।