आप-समर्थक और मोदी-विरोधी इंटरनेट ट्रोल ध्रुव राठी ने एक बार फिर आधे सच, पूरे झूठ, और भ्रामक विश्लेषण से लोगों को भरमाने की कोशिश की है। उन्होंने दो ट्वीट किए जिनका लब्बोलुआब था कि सीबीएसई ने राजनीति शास्त्र से जुड़े तीन अध्याय ‘लोकतंत्र और विभिन्नता’, ‘चर्चित संघर्ष और आन्दोलन’ व ‘लोकतंत्र के लिए चुनौतियाँ’ को इम्तिहान में शामिल न कर बड़ा भारी अपराध कर दिया है। अब तो फ़ासीवाद बस फैलने ही जा रहा है; लोकतंत्र खतरे में है!
Shocking changes to CBSE Class X syllabus.
— Dhruv Rathee (@dhruv_rathee) April 17, 2019
Following chapters will not come in Board Exams anymore from next year –
– Democracy and Diversity
– Popular struggle and movements
– Challenges to democracy
Is this yet another way to infuse fascist propaganda in children?
While these chapters will still be there, but if they’re not included in board exam syllabus anymore, it means that students / school will never give enough focus on them.
— Dhruv Rathee (@dhruv_rathee) April 17, 2019
Source: https://t.co/ptmlzMs5Yl
यह फर्जी चिंता और पीत-पत्रकारिता (येलो जर्नलिज्म) किस-किस स्तर पर, कितना-कितना और कैसे-कैसे गलत है, इसकी पूरी मीमांसा में तो शायद 2022 के योगी वाले चुनाव में ही आ जाए, पर अगर केवल मुख्य-मुख्य मुद्दों को भी पकडूँ तो भी यह साफ़ पता चलता है कि ध्रुव राठी को या तो खुद नहीं पता कि शिक्षा व्यवस्था कैसे चलती है, किताबों की बातें किस प्रकार जीवन में आत्मसात होतीं हैं, या फिर अगर पता है तो वह हमें-आपको बरगलाने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।
सतत है पाठ्यक्रम बदलाव प्रक्रिया
सबसे पहले तो पाठ्यक्रम में बदलाव कोई नींद से उठकर नहीं किया जा रहा, यह सतत प्रक्रिया है जो कॉन्ग्रेस के समय से चली आ रही है। लम्बे समय से स्कूलों के पाठ्यक्रम के विषयवस्तु में बदलाव की माँग उठ रही है, परीक्षा का बोझ कम करने की माँग उठ रही है। यह कोई भाजपा-संघ की देन नहीं है, कपिल सिब्बल के शिक्षा मंत्री रहते इसकी शुरुआत हुई थी।
तोता-रटंत से बेहतर होता है व्यवहारिक-प्रायोगिक उपयोग
ध्रुव राठी यह तो बताते हैं कि इन चीज़ों को बोर्ड परीक्षा के पाठ्यक्रम से बाहर किया जा रहा है पर यह नहीं बताते कि इन पर आंतरिक परीक्षाओं और सतत मूल्यांकन के ज़रिए साल-भर जोर रहेगा। इससे पहले जब यह केवल इम्तिहान का हिस्सा थीं तो छात्र परीक्षा से तीन दिन पहले घोंट कर पी जाते थे और उत्तर-पुस्तिका में उलट आते थे। परीक्षा-केंद्र तो दूर की बात, कक्ष से निकलते ही सब डब्बा गोल हो जाता था।
और इन विषयों पर कुल जमा अधिक जोर दी जाने की बात उस रिपोर्ट में भी लिखी गई है, जिसे राठी अपने ट्वीट का आधार बनाते हैं- वह भी CBSE की नगर संयोजिका और डीपीएस जैसे प्रतिष्ठित विद्यालय की प्रिंसिपल के हवाले से। पर उसकी साँस-डकार तक लेना राठी आवश्यक नहीं समझते! वैसे भी ऐसे ट्रोल से इस तरह की उम्मीद करना बेकार ही है।
राजनीति व्यवहार की चीज़ है, पोथी बाँचने की नहीं
अगर विषय को अपने आप में पकड़ें तो तीनों अध्याय राजनीति के हैं- और राजनीति व्यवहार में होने वाली चीज़ है, कोई वैचारिक प्रयोग नहीं। राजनीति के विषय जितना प्रैक्टिकल से सीखे जा सकते हैं उतना थ्योरी में नहीं।
भारत के इतिहास में पोलिटिकल थ्योरिस्ट शायद डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर से बड़ा कोई नहीं हुआ। संविधान सभा के अध्यक्ष थे, भारत के सबसे बड़े राजनीतिक विद्वानों में उनके सबसे कट्टर विरोधी भी गिनते हैं। पर चुनावों में दो-दो बार हारे। जमानत भी जब्त हो गई। राजनीति में व्यवहारिक ज्ञान का कोई थ्योरी पूरक नहीं बन सकती।
इसी सिविक्स/नागरिक शास्त्र में बचपन से पढ़ते हैं कि देश को साफ़ रखना और सड़क पर संभल कर चलना हर नागरिक का कर्त्तव्य है। पर होता यह है कि प्रधानमंत्री झाड़ू मारने लगे तो भी भारत स्वच्छ नहीं होता। रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों के मताधिकार छिनने की चिंता में दुबले हो रहे देश में अगर 67% लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर लें तो चुनाव सफल माने जाते हैं, और अनिवार्य मतदान अधिकारों में कटौती बन जाता है। यह अत्यधिक किताबी ज्ञान और व्यवहारिकता के अभाव में ही होता है।
इसलिए बेहतर होगा, राठी जी, कि आप या तो पहले खुद का फंडा साफ कर लें, और जनता को मूर्ख न बनाएँ!