अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली की आप सरकार के पाँच साल केंद्र का हवाला देते-देते कब गुजर गए पता ही नहीं चला। चूँकि अब 2020 के विधानसभा चुनाव एक बार फिर से सिर पर हैं तब बड़े-बड़े वादों से जनता को लुभाने वाली आम आदमी पार्टी फिर से सक्रिय है। कभी दिल्ली मेट्रो में महिलाओं को फ्री राइड के ऑफर दिए जा रहे हैं तो कभी सीलिंग रुकवाने के नाम पर व्यापारियों से साँठ-गाँठ की जा रही है।
चुनावों में खुद के अस्त्तिव को बचाए रखने के लालच में आज केजरीवाल ने एक बार फिर दिल्लीवासियों को नया तोहफा दिया है। दरअसल, दिल्ली में सरकार ने प्रति महीना 200 यूनिट तक बिजली बिलकुल फ्री कर दी है। जिसका मतलब यदि दिल्ली वाले 200 यूनिट तक बिजली खपत करते हैं तो उन्हें बिजली बिल नहीं भरना होगा।
Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal: Those in Delhi, who consume up to 200 units of electricity, need not pay their electricity bills; they will get a zero electricity bill. Consumers of 201-400 units of electricity will receive approximately 50% subsidy. pic.twitter.com/j7cdmwH3Qz
— ANI (@ANI) August 1, 2019
केजरीवाल के इस नज़राने का फायदा दिल्ली वालों को आज से ही मिलना शुरू होगा। इसके अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने बताया है कि 201 से 400 यूनिट तक आधी सब्सिडी जनता को देनी होगी। यानी 3 रुपए यूनिट चार्ज के मुताबिक बिजली का बिल 0-200 यूनिट तक माफ़ होगा जबकि 4.50 रुपए यूनिट के अनुसार 201-400 यूनिट तक आधा बिल उपभोक्ता अदा करेंगे।
केजरीवाल की मानें तो दिल्ली के लोगों में बिजली बचाने और उसका चतुराई से इस्तेमाल करने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए यह कदम उठाया गया है। उनका दावा है पूरे देश में दिल्ली सबसे सस्ती बिजली उपलब्ध कराती है। पता नहीं केजरीवाल को ऐसा क्यों लगता है कि अगर दिल्ली में लोगों को मुफ्त बिजली दी जाएगी तो वो उसका समझदारी से उपयोग करेंगे! जबकि वास्तविक हकीकत तो यह है कि जितनी मुफ्तखोरी की आदत दिल्ली वालों को पड़ रही है वो उतने ही लापारवाह और गैर-जिम्मेदार होते जा रहे हैं। एक बार को दिल्ली में अगर बिजली महंगी हो जाए तो जरूर दिल्ली के लोग उसका प्रयोग संभलकर करेंगे, लेकिन फ्री ऑफर सुनकर तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
खैर, आम आदमी पार्टी द्वारा किए गए कुछ कामों का उद्देश्य जानना और हवा में चलाए तीरों के पीछे का कारण जानना दोनों एक बराबर हैं। केजरीवाल के इस कदम पर भाजपा नेता हरीश खुराना ने उनसे एक आरटीआई शेयर करते हुए सवाल किया है। इस आरटीआई में बिजली कंपनियों को दी गई उन बढ़ती सब्सिडी का लेखा-जोखा है, जिनका पिछले 5 सालों में भुगतान किया गया है।
आप दम तो भर रहे हो की पाँच साल में आपने बिजली के दाम नहीं बढ़ने दिए तो यह भी बता दो यह जो सब्सिडी हर साल बढ़ा कर बिजली कम्पनी को दे रहे हो वो किसका पैसा है?
— Harish Khurana (@HarishKhuranna) August 1, 2019
तुम्हारा या @msisodia का?
बस इतना और बता दो फ़िक्स्ट चार्ज और सब्सिडी के नाम पर कितना कट आपको गया?@BJP4Delhi https://t.co/iOxYGt1eJC pic.twitter.com/AGINBlnbxQ
आरटीआई के आँकड़े दर्शाते हैं कि 2014-15 के बाद से लगातार बिजली कंपनियों को जाने वाली सब्सिडी में बढ़ोतरी हुई है। साथ ही हरीश खुराना द्वारा शेयर की गई दूसरी तस्वीर में हम देख सकते हैं कि बिजली कंपनियाँ लगातार हर साल हर कैटेगरी में फिक्सड चार्ज को बढ़ा रही हैं।
अब सवाल यह है कि ये पैसे दिल्ली सरकार कहाँ से देती है? जाहिर है प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष ये पैसे हमसे ही लिए जाते हैं और आखिर में ‘फ्री’ शब्द की घोषणा के साथ हमें बरगला दिया जाता है। हम समझ ही नहीं पाते कि केजरीवाल जैसे लोग हमें किस स्कीम के तहत अंदर से खोखला कर रहे हैं। हम सिर्फ़ ‘फ्री’ सुनते हैं और उनके वादों, उनकी स्कीमों पर फ्लैट हो जाते हैं। हम मानकर चलते हैं ‘चलिए इतना नहीं तो कुछ तो देगा ही।’
लेकिन केजरीवाल और पार्टी द्वारा इस मुफ्तखोरी की सर्विस को आप ऐसे समझिए कि आज से 18-20 साल पहले जब कॉल की दरें 8-10-12 रुपए/मिनट हुआ करती थी, उस समय आईस्क्रीम या समोसा 2 रुपए में मिल जाते थे। लेकिन आज स्थिति उलटी है। कॉल की दरें 25 पैसे-50 पैसे से लेकर फ्री तक पहुँच गई है और समोसे-आइसक्रीम के रेट 10-15 रुपए हो गए हैं। पैसा हमारी जेब से दो अलग-अलग जगह उतना ही जा रहा है, लेकिन चूँकि कॉल दरों के रेट हमें फ्री कहकर बेची जा रही हैं और उनकी हमें रोज के हिसाब से जरूरत है, तो वो हमें सस्ती और अपने जेब के अनुकूल लग रही है। इसी प्रकार दिल्ली सरकार द्वारा ‘फ्री’ में दी गई सभी चीजों के पीछे यही सूत्र काम कर रहा है। रोज मिलने वाली चीज ‘फ्री’ और साल में जाने वाली चीज महंगी… कभी सोचा है कि जब हम आज कमा भी ज्यादा रहे हैं और हमें सीएम की कृपा से फ्री भी सब मिलने लगा है, तो आखिर हम फिर भी बचत क्यों नहीं कर पा रहे?
ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय दिल्ली में बाजारवाद और केजरीवाल एक जैसे स्ट्रैटेजी के साथ लोगों की मनोस्थिति से खेल रहे हैं। इन ‘दोनों’ द्वारा दिए विकल्पों को न आज हम नकारने की स्थिति में है और न ही स्वीकारने की…
कौन नहीं चाहता कि बिना कुछ मेहनत किए उसे फ्री बिजली, पानी, वाई-फाई की सुविधा मिले? जवाब है- हर कोई चाहता है। हर किसी को चाहिए कि केजरीवाल चाहे समाज सुधार के नाम पर हमारे साथ कितने ही ऑड-ईवन प्रयोग करें, लेकिन आखिर में हमारी मूलभूत जरूरतों को निशाना बना कर, कुछ न कुछ छुनछुना थमा कर दिल्ली पर काबिज हो जाएँ।
इन पाँच सालों में मेट्रो से लेकर सड़कों पर लगी होर्डिंग्स तक में केजरीवाल सिर्फ़ इस बात का प्रचार करते रहे हैं कि वो अपनी ओर से दिल्ली को सुधारने की बहुत कोशिश कर रहे हैं लेकिन केंद्र ने उनके हाथों को बाँधा हुआ है। वो महिलाओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाना चाहते हैं लेकिन दिल्ली पुलिस उनके अधीन नहीं है, वो बड़े-बड़े कॉलेज खुलवाना चाहते हैं लेकिन दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है।
2015 से अब तक हम देख चुके हैं कि केजरीवाल की कार्यशैली से उनकी अपनी पार्टी के सदस्य और कार्यकर्ता ही उनसे कितने नाराज हैं- अल्का लांबा, कपिल मिश्रा, कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव वो नाम हैं जिनके बलबूते केजरीवाल को दिल्ली में ऐतिहासिक मत प्राप्त हुआ था, लेकिन सत्ता के लोभ ने न केवल जनता के बीच केजरीवाल की छवि को धूमिल किया बल्कि उनके अपने लोग ही उनसे अलग-थलग होते गए। अब सोशल मीडिया पर ये ‘बागी’ केजरीवाल के ख़िलाफ़ खुलकर बोलते हैं और उन्हें तानाशाह से लेकर हिटलर जैसी उपाधियाँ देते हैं।
2015 में फ्री वाई-फाई से लेकर गली-गली में सीसीटीवी लगाने का वादा करके दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाले केजरीवाल आज फिर से अपने झूठे वादों की राजनीति खेलकर 2020 फतह करना चाहते हैं लेकिन उनके पिछले वादों की जमीनी हकीकत क्या है, उस पर भी जरा ध्यान डाल लें:
- दिल्ली को पूर्ण राज्य दिलाने के लिए केजरीवाल ने पिछले 4 साल कुछ भी नहीं किया। इस मुद्दे को उन्होंने पिछले साल तक ठंडे बस्ते में डाले रखा और अब वह वादा कर रहे हैं कि अगर वो दोबारा सत्ता में आए तो वो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाकर रहेंगे, जिसके लिए वो कुछ समय पहले आंदोलन तक करने वाले थे। सोचिए, जिस राज्य का सीएम काम करने से ज्यादा धरने पर बैठने की धमकी देता हो, वहाँ प्रगति की गति क्या होगी?
- 2015 में केजरीवाल ने वादा किया था कि वो मोहल्ला क्लीनिक के जरिए हर घर तक हेल्थ फैसिलिटी पहुँचाएँगे, लेकिन वास्तविकता ये है कि उन्होंने न दिल्ली में केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना को आने दिया और न पूर्ण रूप से मोहल्ला क्लीनिक को जनता तक पहुँचाया। उन्हें लगता है कि कुछ हँसते हुए चेहरे होर्डिंग पर लगाने से स्वास्थ्य सुविधाएँ बेहतर हो जाती हैं।
- दिल्ली को प्रदूषण रहित बनाने का वादा करने वाले केजरीवाल ऑड-ईवन जैसी कोशिशों को लेकर चर्चा में जरूर रहे लेकिन उसमें विफल होने के बाद प्रदूषण नियंत्रण कानून बनाने के लिए उन्होंने कोई काम नहीं किया।
- 2015 में अपने घोषणा पत्र में जिन्होंने 2 लाख सार्वजनिक शौचालय बनाने का वादा किया था, सच्चाई यह है कि वो चार साल में अपने लक्ष्य के 15 प्रतिशत तक ही पहुँच पाए हैं।
- शिक्षा के स्तर में आए सुधार पर हम केजरीवाल की तारीफ़ करते नहीं थकते लेकिन बीती 1 जुलाई को दिल्ली भाजपा अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करके इसमें भी केजरीवाल पर और सिसोदिया पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा दिया। उन्होंने, एक आरटीआई का हवाला देते हुए खुलासा किया कि स्कूलों में कमरों के निर्माण के लिए अतिरिक्त ₹2000 करोड़ दिए गए थे, जो केवल ₹892 करोड़ में बनाए जा सकते थे। इन स्कूलों के निर्माण के लिए जिन 34 ठेकेदारों को टेंडर दिए गए थे, उनमें उनके रिश्तेदार भी शामिल हैं।
- इसके अलावा सीसीटीवी मुद्दे को लेकर केजरीवाल सरकार सक्रिय है, लेकिन इस पर भी भाजपा ने उनकी हकीकत का पर्दाफाश कर दिया। भाजपा नेता हरीश खुराना का कहना था कि तो केजरीवाल को अपने कार्यकाल खत्म होने के अंतिम समय में सीसीटीवी कैमरा लगाने की याद आई है, इस पर ही सवाल खड़ा होता है। उनके मुताबिक केजरीवाल सरकार ऐसी कंपनी से सीसीटीवी कैमरे लगवाने जा रही है, जो यूरोप और यूके में पूरी तरह से बैन है। बता दें कि सीसीटीवी कैमरे को बनाने वाली चीन की हिकविजन कंपनी को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में सीसीटीवी कैमरा लगाने का ठेका दिया है, जो यूरोप, अमेरिका और यूके में पूरी तरह से बैन है। हरीश खुराना ने इस दौरान अरविंद केजरीवाल पर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का भी आरोप लगाया।
कुल मिलाकर विपक्ष हो या फिर आम जनता, आज सब जान और समझ चुके हैं कि केजरीवाल सरकार की राजनीति सिर्फ़ झूठ की बिसात पर टिकी है। उनके लिए उनके किए वादों की कोई अहमियत नहीं है। वो चुनाव से पहले बच्चों की कसम खाकर कभी कॉन्ग्रेस से हाथ मिलाने का फैसला नहीं करते हैं, और चुनाव के बाद खुद ही उनसे जुड़ने के लिए लालायित दिखाई पड़ते हैं। राजनीतिक फैसले तो बड़ी बात, केजरीवाल वो शख्स हैं जो छोटी-छोटी चीजों पर भी अपना मत बदलते रहते हैं। तबरेज़ और अंकित की मौत पर उनका सियासी नाटक और मुआवजे पर किया गया ड्रामा इसका जीता-जागता उदाहरण है।