आज़म खान के बेहूदे बयानों को अगर कोई बेहतर शब्दों से टक्कर देता है तो वो हैं मजहब विशेष की नई आवाज़ असद-उद-दीन ओवैसी। ये ओवैसी अकबरुद्दीन के ब्रो हैं जिन्होंने ‘पंद्रह मिनट के लिए पुलिस हटा देने पर’ ‘वो’ क्या-क्या कर सकते हैं उसकी एक झलक देने की कोशिश की थी। लेकिन लोगों ने कहा कि ये वाला ओवैसी लम्पट है, इसका ब्रो असद जो है, वो समझदार है।
लोकिन जब आपकी राजनीति मुस्लिम ध्रुवीकरण से चले, और उसमें भी मोदी विरोध का तड़का लगता रहे, तो फिर बयानबाजी में तर्क और मानवीय संवेदना की हदों को पार करना आम बात हो जाती है। असद ओवैसी का ताजा बयान यही दर्शाता है कि नेताओं में मज़े लेने की प्रवृत्ति इतनी प्रबल हो चुकी है कि वो अपनी संवेदना को कहीं परचून की दुकान पर छोड़ आते हैं।
हाल ही में ख़बर आई थी कि भारतीय वायुसेना का एक मालवाहक विमान AN 32 खराब मौसम के कारण रडार से गायब हो गया। उसके बाद कल उसके मलबे के मिलने की ख़बर आई। ऐसा बताया जा रहा है कि ख़राब मौसम में जहाज़ पहाड़ी से टकरा कर क्षतिग्रस्त हुआ। हमारे तेरह वायुसैनिक अभी तक लापता हैं। हृदय नहीं चाहता कि ऐसा मान लूँ लेकिन तर्क यही है कि हमारे वीर अफसर और जवान इस दुर्घटना में शायद बलिदान हो गए।
जब भी ऐसी कोई ख़बर आती है तो लगभग हर भारतीय, धर्म-जाति-क्लास स्टेटस से परे, प्रार्थना करता है कि वो कहीं सुरक्षित मिल जाएँ। अभी भी, जब तक हमारे पास उनके बलिदान हो जाने की पुष्टि नहीं हुई है, तो हम सोचते हैं कि शायद वो जंगलों में कहीं ज़िंदा होंगे और अपने साथियों के आने का इंतज़ार कर रहे होंगे। जिस इलाके में यह विमान क्षतिग्रस्त हुआ है वो दुर्गम है, खोजी दल भी वहाँ जाने में सक्षम नहीं है क्योंकि अभी भी मौसम सही नहीं हुआ है।
इन मौक़ों पर भी छप्पन इंच की बात करने वाले गिरोह के लोग आ जाते हैं कि कहाँ है मोदी, क्यों दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं जहाज़? ऐसे लोग यह बात भूल जाते हैं कि ऐसी दुर्घटनाएँ बस हो जाती हैं, उनसे आप बच नहीं सकते। वैश्विक लिहाज़ से भी देखें तो भारतीय वायु सेना के विमानों के क्षतिग्रस्त होने का प्रतिशत बहुत कम है। इसलिए, इसे एक प्रकृति का कोप कहा जा सकता है, सरकारी या सैन्य ग़लती नहीं।
ऐसे में ओवैसी का जो बयान आया है वो बेहद ख़राब है। जब एयर फ़ोर्स के हवाई खोज अभियान को मौसम के कारण सफलता नहीं मिल रही थी तो वायुसेना ने पाँच लाख रुपए के इनाम की घोषणा की ताकि कोई ग्रामीण व्यक्ति उसकी सूचना दे सके। ऐसा भी नहीं होता कि मौसम ख़राब है और एक लापता विमान की खोज में तीन और विमान वैसे ही मौसम में भेज दिए जाएँ, और वो भी क्षतिग्रस्त हो जाए। इसके लिए मौसम के बेहतर होने से लेकर उस इलाके के मिजाज़ तक को ध्यान में रख कर योजना बनाई जाती है। इसलिए, धैर्य और इंतज़ार ही हमारे वश में होते हैं।
ओवैसी ने वायु सेना के इस घोषणा पर कहा कि मोदी से पूछ लेते क्योंकि उनको तो रडार की बहुत जानकारी है, और वो तो दुश्मनों के इलाके तक में जहाज़ भेज कर एयर स्ट्राइक करते हैं। वायु सेना को तो मोदी को फोन कर लेना चाहिए था, उनके पाँच लाख बच जाते। इस बयान की क्या ज़रूरत थी, मुझे नहीं पता। अभी तो चुनाव भी नहीं हैं कि कहा जाए कि चुनावी जुमलेबाज़ी है।
शायद, मोदी के दोबारा जीतने पर ये कुंठा बाहर आ रही है। दूसरी बात यह है कि रडार के मामले में मोदी ने जो कहा वो तो वैज्ञानिक रूप से भी सही साबित हो चुका है। हालाँकि, इस मामले में ओवैसी का इस तरह से हमला बोलना यही दिखाता है कि उन्हें उन जवानों की कितनी फ़िक्र है या भारतीय सेना को लेकर उनमें कितनी संवेदना है।
अब, नेता हैं तो यह कह कर भी बच जाएँगे कि उनके बयान को संदर्भ से हटा कर बता दिया गया है लेकिन मुझे ऐसे बयानों में संदर्भ की ज़रूरत कहीं नहीं दिखती। ये बयान विशुद्ध रूप से पोलिटिकल प्वाइंट बनाने के लिए दिए जाते हैं ताकि उनके समर्थकों में ख़ुशी की लहर चल जाए कि उनके नेता ने तो मोदी की कह के ले ली!
इस बयान से ओवैसी या उनके तरह के लोगों ने यह भी जताया है कि अनभिज्ञता और अज्ञान तब हावी हो जाते हैं जब आपके मन में घृणा का स्तर बहुत ज़्यादा हो। मोदी को उन मुद्दों पर घेरिए जहाँ उसकी ग़लती हो। मोदी सरकार की नीतियों पर बयानबाज़ी कीजिए। मोदी सरकार के बजट पर घेरिए। सही आँकड़े और तर्क लाकर घेरिए। लेकिन यूनिट के वो वायुसैनिक जो अपने साथियों के लौटने के इंतज़ार में हैं, उस सेना को अपनी घृणा की राह में मत लाइए।
ऐसा करने से सेना या मोदी को नुक़सान नहीं होगा। मोदी ने तो दिखा दिया कि राष्ट्रवाद भी चुनाव का मुद्दा हो सकता है और सेना पर सवाल करने वाले नेताओं को जनता जवाब दे चुकी है। इसलिए नुक़सान घूम-फिर कर आपका ही होगा क्योंकि आपकी वैचारिक नग्नता सबके सामने खुले में आ जाएगी।
ओवैसी जैसे लोगों का भारतीय राजनीति में होना ज़रूरी है। इसके दो कारण हैं। पहला तो यह है कि ऐसे लोग जब भी बोलते हैं तो समझदार लोग जान जाते हैं कि कैसे नेता या कैसी पार्टी से दूरी बना कर रखनी है। दूसरी यह कि जब तक ऐसे लोग बयान देते रहेंगे, इस विचारधारा को व्यापक कवरेज मिलेगी और लोग बेहतर नेताओं को सत्ता में रखेंगे।
इसलिए, चाहे जितना अजीब लगे सुनने में, आज़म खान और ओवैसी जैसे नेताओं की बयानबाज़ी भारतीय राजनीति की ज़रूरत है। ये लोग जितना ज़हर उगलेंगे, राजनीति में लोगों की भागीदारी उतनी ही बढ़ेगी और लोगों के पास एक ख़ास विचारधारा को नकारने के लिए कई विकल्प उपलब्ध होंगे।