Sunday, November 17, 2024
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घटते हिन्दू और बढ़ते मुस्लिम भारत के लिए खतरे की घंटी: गजवा-ए-हिन्द के इस मिशन में कॉन्ग्रेसी तुष्टिकरण का भी हाथ, कासिम से PFI तक 1500 साल बीते पर एजेंडा वही

बांग्लादेश में एक अफवाह पर देश भर में नवरात्री के पूजा-पंडालों पर हमले होते हैं, अफगानिस्तान से गुरुग्रंथसाहिब को वापस आना पड़ता है, पाकिस्तान वो तो आए दिन हिन्दू लड़कियों को उठा कर ले जाते हैं और जबरन धर्मांतरण-निकाह कर देते हैं, सरकार तक मंदिरों को गिराने में साथ देती है।

हाल ही में एक रिसर्च सामने आया। 1950 से लेकर 2015 तक के आँकड़ों का अध्ययन किए जाने के बाद इसमें पता चला कि जहाँ देश में हिन्दुओं की जनसंख्या 7.82% घट गई है, वहीं मुस्लिमों की जनसंख्या में 43.15% का भारी इजाफा हुआ है। इस रिसर्च का मानना है कि भारत में विविधता के फलने-फूलने के लिए एक उचित माहौल है, जिस कारण ऐसा हुआ। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) ने अपने सर्वे में ये जानकारी दी है। इसमें बताया गया है कि दुनिया भर में बहुसंख्यकों की आबादी घटने का ट्रेंड है।

न सिर्फ हिन्दू, बल्कि जैन समाज के लोगों की जनसंख्या भी कम हुई है। जैन 0.45% से 0.36% हो गए हैं। 1950 में जहाँ हिन्दू 84.68% हुआ करते थे, वहीं अब 78.06% हो गए हैं। सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि ईसाइयों की जनसंख्या में भी इजाफा हुआ है। वो 5.38% बढ़ कर 2.24% से 2.36% हो गए हैं। सिख 1.24% से 1.85% हो गए हैं। पारसियों की संख्या जबरदस्त तरीके से घटी है। वो 85% घट कर 1950 में 0.03% से सीधे 0.004% हो गए हैं।

इस रिसर्च पेपर में इस बात को भी इंगित किया गया है कि पड़ोसी मुल्कों में जहाँ बहुसंख्यक लगातार बढ़ रहे हैं, वहाँ के अल्पसंख्यकों ने संकट के समय भारत में शरण लिया। पाकिस्तान से भले ही बांग्लादेश कट कर अलग हो गया, लेकिन इसके बावजूद वहाँ इस अवधि में मुस्लिमों की जनसंख्या 10% बढ़ी। क्या मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ने को सचमुच विविधता का फलना-फूलना मान कर हमें जश्न मनाना चाहिए? नहीं, इतिहास तो ऐसा बिलकुल नहीं कहता है।

हिन्दुओं की जनसंख्या बढ़ना खतरे की घंटी है, वहीं इसके साथ-साथ तेज़ी से मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ना और भी अधिक चिंता का विषय है। हमारे सामने उदाहरण है कि कैसे जिस भी इलाके में मुस्लिम प्रभावशाली होते चले जाते हैं, वहाँ वो अपने हिसाब से नियम-कानून चलाने लगते हैं, दूसरी परंपराओं की आस्था का वो सम्मान नहीं करते जिस कारण उन्हें पलायन के लिए विवश होना पड़ता है। गुजरात के सूरत में जैन समाज तो भरूच में हिन्दू समाज इसका निशाना बना

इसी को तो ‘लैंड जिहाद’ कहा जाता है – जहाँ भी बसो, अपने लोगों को बड़ी संख्या में बसाओ और शरिया चलाने लगो। सूरत के गोपीपुरा में कई जैन साध्वियाँ रहती थीं, लेकिन मुस्लिमों ने वहाँ फ़्लैट लेकर बकरियाँ काटनी शुरू कर दी। प्याज-लहसुन उनके घरों के बाहर छोड़ दिए जाते थे। भरूच के सोनी फलिया में मंदिर में आरती को ‘हराम’ बता कर रोक दिया गया। मुस्लिम अधिक दाम देकर संपत्ति खरीदते हैं, लालच में हिन्दू बेच कर निकल जाते हैं, फिर जो बचे-खुचे होते हैं वहाँ उनका रहना ही दूभर हो जाता है।

बिहार में ही देख लीजिए। सीमांचल के जिलों में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी तो वहाँ स्कूलों में रविवार की जगह जुमा को शुक्रवार के दिन साप्ताहिक अवकाश रहने लगा। यानी, शासन-प्रशासन के भी नियम ये अपने इलाकों में बदल देते हैं। मस्जिद के सामने से हिन्दू शोभा यात्रा नहीं गुजर सकती, ‘इनके इलाके’ में हिन्दू DJ नहीं बजा सकते। हाँ, इनके मस्जिद दिन भर में 5 बार माइक से अजान दें तो उसे हर हिन्दू को विवश होकर सुनना पड़ेगा। हर हिन्दू पर्व-त्योहार में पत्थर इकट्ठा करने की इनकी परंपरा है।

जम्मू कश्मीर में देखिए, कश्मीरी हिन्दुओं को वहाँ से भगा दिया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और बड़ी संख्या में नरसंहार भी। इसके बाद पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने घाटी को बंधक बना लिया। भारत की आज़ादी के बाद से ही जवाहरलाल नेहरू ने अपने मित्र शेख अब्दुल्ला को खुली छूट दी, परिणाम ये हुआ कि वहाँ कट्टरपंथ बढ़ता गया, कई अलगाववादी पैदा हो गए। मोदी सरकार ने अनुच्छेद-370 और धारा-35A को निरस्त किया, जिसके बाद वहाँ स्थिति शांत हुई।

आखिर मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ने के पीछे कारण क्या है? इसमें कॉन्ग्रेस पार्टी के तुष्टिकरण की राजनीति का हाथ नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि इसी कॉन्ग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला हक़ मुस्लिमों का है। उन्होंने 10 वर्षों तक शासन किया, सोचिए उनकी नीतियों का हिन्दुओं को कितना नुकसान हुआ होगा। सांप्रदायिक हिंसा को लेकर कॉन्ग्रेस एक बिल लेकर भी आई थी, जो अगर कानून बन जाता तो कहीं भी सांप्रदायिक दंगे होने पर हिन्दू समाज अपने-आप अपराधी घोषित कर दिया जाता और हिन्दू युवक जेल भेज दिए जाते।

हिन्दुओं की जनसंख्या घटने को हम ‘बहुसंख्यकों की जनसंख्या घटना’ कह कर शुभ संकेत की तरह क्यों लें? ये देश हिन्दुओं का है। ये देश सनातन का है, यहाँ हिन्दू धर्म से ही बौद्ध, जैन और सिख जैसे संप्रदाय निकले और फिर वापस समाहित की छाया में ही समाहित हो गए। इस्लाम तो बाहर से आया, हिंसा और धोखेबाजी का सहारा लेकर यहाँ के लोगों को बड़े पैमाने पर धर्मांतरित किया गया। कभी किसी फकीर ने ‘चमत्कार’ दिखाया, कभी किसी बादशाह ने जजिया कर लगाया।

भारत में अगर इस्लाम का प्रसार शांति से हुआ होता तो कोई दिक्कत की बात नहीं थी। कोई विचारधारा, जो हमारे देश की भूमि की सोच से मेल खाती ही नहीं है, वो बाहर से आकर यहाँ के मूलनिवासियों पर अपना आधिपत्य जमाने लगे तो इसमें खुश होने वाली कौन सी बात है? भारत में पहला बड़ा हमला करने वाला इस्लामी मुहम्मद बिन कासिम था, जिसने यहाँ की महिलाओं को सेक्स स्लेव बना कर अरब के बाजारों में भिजवाया, ये सोच तो भारत भूमि की नहीं हो सकती।

दुर्रानी साम्राज्य ने सिखों का सिर काट कर लाने पर इनाम रखा। अयोध्या, मथुरा और काशी से लेकर अनंतनाग तक मंदिर तोड़े गए, जबरन उन अवशेषों से मस्जिदें बनाई गईं। हिन्दू राजाओं के किलों में जाने वाली नहरों में गोमांस फेंके गए। कभी कोई नादिर शाह दिल्ली को लूट ले गया, कभी कोई अहमदशाह अब्दाली आ धमका। आज भी जानबूझकर गोहत्या की जाती है, हिन्दुओं को भड़काने के लिए। सोच वही है, सिर्फ पीढ़ियाँ बदली हैं। आज भी तो खलीफा के शासन के लिए आतंकी हमले किए जाते हैं।

भारत में PFI के एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय था, जिसे प्रतिबंधित किया गया। उससे पहले SIMI हुआ करता था। इनका एक ही लक्ष्य था – भारत में इस्लामी शासन की स्थापना। PFI की छात्र यूनिट SDPI ने कर्नाटक में कॉन्ग्रेस को समर्थन दिया। कॉन्ग्रेस इन ताकतों से मिली हुई है। केरल के वायनाड में राहुल गाँधी ने हरे झंडों वाले IUML (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) से हाथ मिलाया। कॉन्ग्रेस आज भी अपने घोषणा-पत्र के माध्यम से मुस्लिम तुष्टिकरण में लगी है।

बिहार के फुलवारीशरीफ में भी PFI वालों के नेटवर्क पकड़ा गया, जहाँ गजवा-ए-हिन्द, यानी भारत में इस्लामी शासन के लिए साजिश चल रही थी। कई ठिकानों पर रेड पड़ी। कई दस्तावेज भी मिले, जिनमें इसके लिए 2047 यानी आज़ादी से 100 वर्ष बाद तक का लक्ष्य रखा गया था। कहीं युवाओं को हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती है, कहीं ऑनलाइन सीरिया-पाकिस्तान में बैठे आकाओं से संपर्क करा कर भड़काया जाता है। आखिर हिन्दुओं में कोई आतंकी संगठन क्यों नहीं है, ये सब क्यों नहीं होता? हिन्दू तो भारत को अपनी भूमि मानते हैं, यहाँ की धरती को नुकसान क्यों पहुँचाएँगे?

कॉन्ग्रेस पार्टी का एजेंडा है मुस्लिमों को आरक्षण देना, पिछड़ों का हक़ मार कर। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में नौकरी-एडमिशन से लेकर पंचायत चुनावों तक में मुस्लिमों को आरक्षण दिया जा रहा है। ये सब कॉन्ग्रेस ने किया। कॉन्ग्रेस की साजिश है देश की संपत्ति के बँटवारे की, ताकि हिन्दुओं की मेहनत की कमाई कई बच्चे पैदा करने वाले मुस्लिमों को पहुँच जाए। पार्टी घुसपैठियों का समर्थन करती है, इसने CAA का विरोध किया। पश्चिम बंगाल से लेकर दिल्ली तक कॉन्ग्रेस पार्टी घुसपैठियों को प्रश्रय देती है।

एक तो भारत खुद ही इस्लामी ताकतों से परेशान है, ऊपर से बड़ी संख्या में म्यांमार-बांग्लादेश से रोहिंग्या घुसपैठियों के प्रति नरमी दिखा कर देश को तबाही की ओर धकेला जा रहा है। केंद्रीय मंत्री रहे कांतिलाल भूरिया कहते हैं कि पार्टी सत्ता में आने के बाद महिलाओं को एक-एक लाख रुपया देगी, 2 बीवी वालों को 2 लाख रुपए मिलेंगे। अब हिन्दू धर्म में तो बहुविवाह की इजाजत नहीं है। शरिया ही इसकी अनुमति देता है। और हाँ, मुस्लिमों को तो भारत में अपना अलग कानून चलाने की अनुमति भी है, उनके लिए ‘पर्नसल लॉ’ है।

यही तो कारण है कि भाजपा अपने घोषणा-पत्र में UCC (समान नागरिक संहिता) लाने की बात करती है, जबकि कॉन्ग्रेस 2 बीवियों और ज़्यादा बच्चों वालों को प्रोत्साहित करती है। देश में सबके लिए समान कानून होना चाहिए, इसमें भला क्यों किसी को आपत्ति हो? महिला-पुरुष को बराबर अधिकार मिलें, इसमें कोई किसी को दिक्कत हो? लेकिन इस्लाम में तो मातृभूमि से पहले कुरान को रखा जाता है, स्वयं बबासाहब भीमराव आंबेडकर कह गए हैं।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि मुस्लिमों की हिस्सेदारी देश में 20% हो गई है। उनका कहना है कि ये सनातन को खत्म करने की साजिश है, घुसपैठियों को कॉन्ग्रेस ने अपना वोट बैंक बना रखा है। वास्तविक परिस्थितियाँ इससे भी भयावह हैं। भारत में कई छोटे-छोटे पाकिस्तान बन गए हैं जहाँ शरिया चलता है। जिस ‘सोने की चिड़िया’ को हजारों वर्षों से हिन्दुओं ने अपने खून-पसीने से सींच कर उपजाऊ बनाया, जिसे बहार से आक्रांता लूट-लूट कर ले गए, अब वो क्षेत्र भी हिन्दुओं के हाथों से चला जाए तो कैसा लगेगा?

बार-बार ये कह कर मजाक बनाया जाता है कि धर्म कभी खतरे में था ही नहीं। अगर धर्म खतरे में नहीं था, फिर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान कट कर कैसे अलग हुए भारत से? इतना बड़ा क्षेत्र हिन्दुविहीन कैसे हो गया? बांग्लादेश में एक अफवाह पर देश भर में नवरात्री के पूजा-पंडालों पर हमले होते हैं, अफगानिस्तान से गुरुग्रंथसाहिब को वापस आना पड़ता है, पाकिस्तान वो तो आए दिन हिन्दू लड़कियों को उठा कर ले जाते हैं और जबरन धर्मांतरण-निकाह कर देते हैं, सरकार तक मंदिरों को गिराने में साथ देती है।

कॉन्ग्रेस पार्टी ने शुरुआत से ही जो माहौल पैदा किया, ये सब उसका परिणाम है। जवाहरलाल नेहरू कहते थे कि राम-कृष्ण जैसे देवताओं ने गरीबी के सिवा और कुछ नहीं दिया। जिस देश की आत्मा में राम और कृष्ण बसते हों, वहाँ इस तरह के बयान से हिन्दू विरोधी उत्साहित नहीं होंगे तो और क्या। कभी राजीव गाँधी मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट देते हैं, कभी कॉन्ग्रेस सरकार ऐसा कानून लेकर आती है जिससे हिन्दू अपने ही तबाह धर्मस्थल को लेकर न्याय का दावा नहीं कर सकें।

और हाँ, ये आँकड़े तो सिर्फ 2015 तक के हैं। ‘लव जिहाद’ से लेकर कई अन्य तरह की आपराधिक घटनाएँ तो इसके बाद और भी तेज़ हो गईं, क्योंकि इसके लिए बाहर से फंडिंग तक आने लगा। अब तो सलमान खुर्शीद की भतीजी मारिया आलम ने ‘वोट जिहाद’ की अपील कर दी है। 2015 के बाद के 9 वर्षों में ही 2020 के फरवरी में दिल्ली में दंगे हुए, दिव्यांगों को मुस्लिम बनाने का नेटवर्क पकड़ा गया, औरंगजेब के महिमामंडन के लिए बुद्धिजीवियों को लगाया गया और ‘भारत से बाहर ‘भारत में मुस्लिम खतरे में हैं’ वाला माहौल दुनिया भर में बनाया गया।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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