प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने वैश्विक महामारी कोरोना के लड़ाई में 200 करोड़ टीकाकरण का आँकड़ा पार कर लिया है। यह बोलने और सुनने में कितना आसान लगता है, लेकिन इस आँकड़े तक पहुँचने में जिन कठिनाइयों का सामना हमारे फ्रंटलाइन वर्कर्स, स्वास्थ्यकर्मियों और सरकार ने किया है – वह भारत के इतिहास में सदैव अविस्मरणीय रहेगा।
इस टीकाकरण यात्रा को आज लगभग 1.5 वर्ष पूरे हो गए। शुरुआत धीमी रही लेकिन वक़्त के साथ रफ़्तार मिलती गई और कारवाँ बनता गया। आज भारत ने वो कर दिखाया है जो दुनिया के अन्य देशो के लिए अब भी कल्पना मात्र है, जो अपने आप को सबसे विकसित व बेहतरीन हेल्थ इंफ़्रास्ट्रक्चर का तमगा देते रहते है।
आज इस अभियान में भारत के मुकाबले कोई अन्य देश खड़ा होता नहीं दिखाई देता है। 200 करोड़ टीकाकरण की यह वह संख्या है जो तमाम यूरोपीय देशों की कुल आबादी से भी अधिक है और इसके लक्ष्य के माध्यम से भारत ने एक ऐसा आयाम स्थापित किया है, जो कि अन्य सभी देशों के लिए एक मार्ग प्रशस्त करेगा।
भ्रम-भ्रांतियों का तिलिस्म और स्वास्थ्यकर्मियों का कमाल
भ्रम–भ्रांतियाँ, राजनैतिक हस्तक्षेप और अंधविश्वासों के मध्य वैक्सीनेशन को लेकर आम जनमानस का भरोसा जीतना भी सरकार के लिए आसान नहीं रहा। ये मोदी सरकार की उत्कृष्ट रणनीति और धरातल पर कार्य कर रहे स्वास्थकर्मियों का आत्मविश्वास ही था, जिसने सभी क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों एवं अंधविश्वास के चक्रव्यूह को तोड़ते हुए भारत को आज इस मुकाम पर खड़ा किया है।
इस सफलता तक पहुँचने में हमारे लाखों कोरोना वॉरियर्स का सम्पूर्ण समर्पण शामिल है। उन्होंने देशवासियों की सुरक्षा हेतु अपना बलिदान तक दे दिया। हमने लगातार न्यूज़ चैनलों व सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम वीडियो व खबरें देखी, जिनमें हमारे स्वाथ्यकर्मियों ने कैसे दुर्गम इलाकों में पहुँच कर भारत की कोशिशों को यशस्वी बनाया। इस दौरान उन्होंने अपने तमाम साथियों को भी खोया लेकिन ये देश के प्रति सच्ची निष्ठा व अपने कर्म के प्रति समर्पण ही था जो वे तमाम कठिनाइयों को पराजित कर सके।
आरोप-प्रत्यारोप का दौर
इस यात्रा में तमाम सफलता-असफलता के बीच सरकार जहाँ लगातार देशवासियों को जागरूक करने में जुटी रही, वहीं ऐसे विषम परिस्थितियों में भी देश के कई राजनीतिक दल व देश विरोधी ताकतों ने अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने में कोई कसर न छोड़ी। विदेशी कंपनियाँ भी लगातार देश को गुमराह करने में जुटी रहीं ताकि भारत में निर्मित स्वदेशी टीके को लोग अस्वीकार कर दें और उनके विदेशी टीके मन मुताबिक दामों व शर्तों में बेचे जा सकें।
भारत एकमात्र देश रहा जहाँ इनकी दाल न गल सकी वरना इस महामारी के दौर में दुनिया के तमाम देशों ने इनके सामने घुटने टेक दिए। भारत का कुशल नेतृत्व एवं स्वास्थ्यकर्मियों का सामर्थ्य ही था कि इन सभी कुचक्रो को तोड़ते हुए आज हमने एक विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है, जिसके आगे सभी आरोप-प्रत्यारोप परास्त होते हुए दिखाई पड़ रहे है।
जंग जारी है
ये वक़्त निश्चित ही देश की इस उपलब्धि पर गर्व करने का है। लेकिन, इन सब के बीच ध्यान रहे अभी कोरोना ख़त्म नहीं हुआ है और छिटपुट मामले प्रतिदिन सामने आ रहे है, जो कि हमें आगाह कर रहे है चुनौतियाँ कम ज़रूर हुई हैं लेकिन समाप्त नहीं। ऐसे में हम अति उत्साहित होकर कोई ऐसा कार्य न करें जिससे देश को कोरोना के आगामी लहर के निकट दिखे। हालाँकि, इन गुजरते समय के साथ भरोसा भी कायम हुआ है। भरोसा है जैसे 200 करोड़ का लक्ष्य हम सभी ने जन भागीदारी से पूरा किया आने वाले दिनों में उसी तरह टीकाकरण से जुड़ी अन्य सभी गंभीर चुनौतियों को भी लड़कर पार कर लेंगे।
(लेखक श्रेयश सिंह उत्तर प्रदेश स्थित वाराणसी के रहने वाले हैं। वर्तमान में वो दार्जिलिंग के सांसद के सहयोगी के रूप में कार्यरत हैं।)