कॉन्ग्रेस पार्टी का घोषणापत्र जारी किया जा चुका है। जैसा कि राहुल गाँधी के बारे में प्रचलित है, वो अक्सर झूठ बोलते हैं और अपने आँकड़ों को रह-रह कर बदलते रहते हैं। इसीलिए इस बार आलोचकों को पहले ही चुप कराने के लिए राहुल गाँधी ने पहली ही कह दिया कि उनके घोषणापत्र में झूठ के लिए कोई जगह नहीं है। असुरक्षा की भावना से घिरे राहुल गाँधी ने पहले ही इसका जिक्र कर दिया, क्योंकि उन्हें पता था कि उनके झूठ को पकड़ लिया जाएगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर रोज बड़ी संख्या में झूठ बोलने का आरोप लगाया। राहुल ने कहा कि उन्होंने घोषणापत्र तैयार करने वाले लोगों को पहले ही कह दिया था कि इसमें लिखी हर एक बात सच्चाई से भरी होनी चाहिए, इसमें झूठ के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
Rahul Gandhi at Congress’ election manifesto release: I also said that whatever is going to be in this manifesto has to be truthful, I do not want a single thing in this manifesto that is a lie because we have been hearing large number of lies spoken everyday by our PM. https://t.co/qpK73RZNal
— ANI (@ANI) April 2, 2019
आख़िर क्या कारण है कि राहुल गाँधी को लोगों को ये भरोसा दिलाना पड़ रहा है कि उनके घोषणापत्र में झूठ नहीं है? क्या वजह है कि राहुल को चीख-चीख कर यह बताने की ज़रूरत पड़ गई कि वो नहीं बोलते, उनकी पार्टी झूठ के आधार पर कार्य नहीं करती और उनके घोषणापत्र में लिखी बातें सच है, झूठ नहीं है? अब इससे आगे बढ़ते हैं। इसके अल्वा राहुल गाँधी ने कहा कि किसानों के लिए अलग बजट की व्यवस्था की जाएगी। लेकिन, राहुल गाँधी का यह वादा खोखला है, क्योंकि इसके लिए उन्होंने किसी प्रकार के रोडमैप का जिक्र नहीं किया। किसानों के लिए अलग बजट का वादा करने वाले राहुल गाँधी को जानना चाहिए कि रेलवे बजट को आम बजट में क्यों मिला दिया गया?
पहली बात, रेलवे बजट को ब्रिटिश राज के समय अलग से इसीलिए पेश किया जाता था क्योंकि उस वक्त देश की जीडीपी का सबसे बड़ा हिस्सा रेलवे पर ही निर्भर था। उस समय पूरे बजट का 84% हिस्सा रेलवे का ही हुआ करता था। रेलवे बजट को आम बजट में मिलाने से संसद का समय भी बचा। दूसरी बात, अलग बजट की स्थिति में कृषि क्षेत्र के लिए अलग बजट बनाने से अलग-अलग ‘Appropriation Bill’ बनाना पड़ेगा। रेलवे बजट के दौरान इसे तैयार करने में समय जाया हो जाता था। ये बात एक सरकारी कमेटी ने भी स्वीकारी थी। इसके अलावा आम बजट का आकार घट जाएगा, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने पहले ही कृषि क्षेत्र को मिलने वाले बजट के हिस्से में तीन गुना से भी अधिक की बढ़ोतरी की है, अतः, राहुल का वादा वास्तविकता से परे है।
अब एक ऐसे सवाल पर आते हैं, जिससे कॉन्ग्रेस भाग नहीं सकती। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों ने पार्टी ने किसानों की क़र्ज़माफ़ी को बड़ा मुद्दा बनाया था और तीनो राज्यों में पार्टी की सरकार भी बनी। इसके बाद असली तमाशा शुरू हुआ, जिसमे पता चला कि क़र्ज़माफ़ी सिर्फ़ एक शिगूफ़ा था, जिसके लिए न तो कोई रोडमैप था और न ही कोई योजना। मध्य प्रदेश में आचार संहिता लागू होने से पहले ही उसका बहाना बनाकर किसानों को कहा आज्ञा कि क़र्ज़माफ़ी में देरी होगी। इसके अलावा कई किसानों का 1 रुपया का क़र्ज़ माफ़ किया गया। बाद में यह भी पता चला कि मार्च 2018 से अब तक, यानि एक वर्ष का ब्याज किसानों को ख़ुद देना पड़ेगा।
Whatever happened to your nationwide loan waiver promise? Why is it not in your manifesto? @RahulGandhi
— Manak Gupta (@manakgupta) April 2, 2019
कॉन्ग्रेस के घोषणापत्र में क़र्ज़माफ़ी का जिक्र क्यों नहीं है? क्या कॉन्ग्रेस नई यह मान लिया है कि क़र्ज़माफ़ी फेल हो गई है? अगर नहीं, तो अच्छी योजनाओं को आगे बढ़ाया जाता है, उनपर और अधिक कार्य किया जाता है, उसे लेकर जनता के बीच जाया जाता है। कॉन्ग्रेस ऐसा करने से बच रही है। यह दिखाता है कि जिस मुद्दे को कॉन्ग्रेस ने अपना सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था, उसपर अब ख़ुद उसे ही भरोसा नहीं रहा। या तो वो असफल हो गई है, नहीं तो पार्टी को उसकी वास्तविकता या धरातल पर उतरने की संभावना पर विश्वास नहीं रहा। कॉन्ग्रेस को जवाब देना पड़ेगा कि अगर क़र्ज़माफ़ी सफल हुई है तो उसे अपने घोषणापत्र में क्यों नहीं शामिल किया गया है?
कॉन्ग्रेस ने जॉब क्रिएशन पर कहा है कि ऐसे व्यापार जो जॉब्स पैदा करेंगे, उन्हें इफेक्टिव बेनिफिट देकर पुरस्कृत किया जाएगा। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी की ब्रेनचाइल्ड ‘स्टार्टप इंडिया’ और ‘मुद्रा योजना’ यही काम कर रही है। इंस्पेक्टर राज को ख़त्म करने के कारण नई कंपनियों का रजिस्ट्रेशन आसान हो गया है और लोगों को अपनी कम्पनी खोलकर अन्य लोगों को जॉब्स देने प्रोत्साहित किया जा रहा है। छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने और स्किल डेवलपमेंट के लिए प्रोग्राम्स चल रहे हैं। ऐसे में, डायरेक्ट टैक्स बेनिफिट का कोई तुक नहीं बनता क्योंकि स्टार्टअप्स के लिए पहहले से ही टैक्स वगैरह में छूट का प्रावधान मोदी सरकार ने कर रखा है।
Will make NSA statutory and accountable to Parliament, not PMO: #CongManifestohttps://t.co/sf8n8bRVXL
— Republic (@republic) April 2, 2019
सिर्फ़ ’20 लाख जॉब्स दे देंगे’ कहने या लिख देने से जॉब्स पैदा नहीं हो जाते, उसके लिए आपको कुछ रोडमैप देना पड़ता है। इस मामले में कॉन्ग्रेस का घोषणापत्र फिसड्डी है और एक-एक लाइन की हज़ारों दावों और वादों की झड़ी है, अजय देवगन के ‘हिम्मतवाला’ की वन-लाइनर्स की तरह। इसमें वो सबकुछ है, जिसके बारे में कॉन्ग्रेस पार्टी ने पाँच दशक तक सोचा भी नहीं। साथ ही नेशनल सिक्योरिटी पर कॉन्ग्रेस ने एनएसए के पर कतरने की योजना भी बनाई है। एनएससी और एनएसए जैसी संस्थाएँ और पद संवेदनशील होते हैं, इसके कई क्रियाकलाप सीक्रेट होते हैं। ऐसे में, उसे नेताओं के बीच उतार देना क्या उचित होगा?
Congress party in its election manifesto promises to amend the Armed Forces (Special Powers) Act – AFSPA. #LokSabhaElections2019 pic.twitter.com/IamvljCc5G
— ANI (@ANI) April 2, 2019
इसके अलावा पार्टी ने आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट, 1958 (AFSPA) में भी संशोधन करने की बात कही है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ख़ुद इससे छेड़छाड़ करने के विरोधी रहे हैं, ऐसे में क्या ऐसे संवेदनशील एक्ट में संशोधन कर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को पंगु बना दिया जाएगा? राष्ट्रीय सुरक्षा पर कॉन्ग्रेस का घोषणापत्र असंवदेनशील है, सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाला है, एनएसए जैसे अधिकारियों को नेताओं के बीच खड़ा करने वाला है और मानवाधिकार की आड़ में सुरक्षा बलों को पंगु बनाने वाला है। यह भ्रामक है, चंद वोटों के लिए बिना किसी अध्ययन के हड़बड़ी में तैयार किया गया है। कॉन्ग्रेस ने मानवाधिकार के साथ यौन हिंसा का जिक्र कर सुरक्षा बलों को कठघरे में खड़ा करने का कार्य किया है।
Congress Manifesto on Foreign Policy:
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) April 2, 2019
1) National Council on Foreign Policy to be established.
2) Congress implacably opposed to terrorism anywhere in the world.
3) Pressure on Pakistan to end its support to terror groups.
4) New Law on Asylum.
5) Efforts to join UNSC and NSG. pic.twitter.com/iXU2uGsaOe
विदेश नीति पर कॉन्ग्रेस के मैनिफेस्टो में कुछ भी नया नहीं है। इसमें वही सब बातें कही गई है, जिनपर कॉन्ग्रेस पिछले कार्यकालों में नाकाम रही और जिनपर मोदी सरकार द्वारा आगे बढ़ा जा रहा है। हाँ, कॉंग्रेसने शरणार्थी क़ानून को अंतरराष्ट्रीय संधियों के हिसाब से डिज़ाइन करने की बात कही है। इसपर सवाल उठ सकता है कि क्या अंतरराष्ट्रीय संधियों का आँख बंद कर के पालन करने के चक्कर में रोहिंग्या आतंकियों को भी शरणार्थी बना दिया जाएगा क्या? यह भाजपा सरकार की एनआरसी से कॉन्ग्रेस की घबराहट को दिखाता है। शरणार्थी क़ानून में क्या बदलाव किए जाएँगे और इसे कैसे डिज़ाइन किया जाएगा, इसपर ज्यादा कुछ नहीं कहा गया है।