प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध अनर्गल बयान दिए जाते हैं। देश के सबसे लोकप्रिय नेता के करोड़ों समर्थकों में से एक ने भी किसी ऐसे नेता का घर नहीं घेरा। पश्चिम बंगाल में 200 से अधिक भाजपा कार्यकर्ता मार डाले गए। वहाँ की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बेख़ौफ़ दिल्ली जाती-आती हैं। शिवसेना मुखपत्र ‘सामना’ के संपादक के एग्जीक्यूटिव संजय राउत सांसद हैं। पीएम मोदी के खिलाफ फालतू बोलते रहते हैं, लेकिन निडर होकर दिल्ली में पार्टी करते हैं।
कॉन्ग्रेस नेताओं के मामले में ये अलग केस है। उनकी तो असल में कमाई का जरिया ही मोदी की आलोचना है। कभी प्रधानमंत्री की माँ को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की जाती है, कभी उनकी जाति को लेकर, कभी शैक्षिक योग्यता को लेकर, कभी उनके गुजराती होने को लेकर, कभी पत्नी को लेकर, कभी उद्योगपतियों का नाम लेकर, कभी राफेल पर, कभी देश के लिए नया संसद भवन बनवाने पर तो कभी कृषि सुधारों को लागू करने पर।
कुल मिला कर देखें तो नरेंद्र मोदी जब से गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, तभी से उन्हें गालियाँ पड़ ही रही हैं। लेकिन, ये उनकी सहिष्णुता का प्रमाण ही है कि उन्होंने कभी भी पलट कर इस भाषा में जवाब नहीं दिया। हाँ, ऐसे लोगों में से कई को वो जनता के दरबार में सामने ज़रूर ले गए। मोदी सरकार की सहिष्णुता का ही सबूत है कि लाल किला पर चढ़ कर खालिस्तानी झंडा फहराया गया और ‘किसान आंदोलन’ में 300 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए, लेकिन उन्हें छुआ तक नहीं गया।
बाद में कानूनन कार्रवाई कुछ लोगों के खिलाफ हुई, लेकिन इसके असली गुनहगार आज भी जाट और सिख समुदायों के ठेकेदार बने बैठे हैं और अपना आंदोलन चला रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट से भले ही उन्हें फटकार लग रही हो, उन पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। पीएम मोदी को गालियाँ तो इस ‘किसान आंदोलन’ में भी पड़ीं। साफ़ है कि राजग सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक सबसे सहिष्णु हैं, सहनशीलता उनमें कूट-कूट कर भरी है।
कुछ मामलों में ये सही भी है तो कुछ मामलों में आलोचना से परे भी नहीं है। अब बात करते हैं कॉन्ग्रेस पार्टी की। कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने पंजाब में पार्टी के लिए सूखा समाप्त किया और मुख्यमंत्री बने। उन्हें हटाने के लिए नवजोत सिंह सिद्धू से बगावत करवाई गई और अंततः उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। फिर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर ‘दलित कार्ड’ खेला गया। इधर नई नियुक्तियों से नाराज़ सिद्धू ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा सौंप दिया।
इतनी नौटंकी हो गई, लेकिन कॉन्ग्रेस ने न कोई बैठक बुलाई और न बताया कि किसके आदेश से सब कुछ किया जा रहा है। ‘अंतरिम अध्यक्ष’ के भरोसे चल रही अपनी पार्टी पर काबिल सिब्बल ने सवाल क्या उठा दिया, कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता उनके घर पहुँच हर और प्रदर्शन किया। उनके घर में टमाटर सहित कई चीजें फेंकी गईं, गाड़ियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया और पुलिस के साथ झड़प हुई। उनके विरुद्ध पोस्टर लेकर पहुँचे कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने जम कर नारेबाजी भी की।
अब शायद कपिल सिब्बल को पता चल रहा होगा कि असहिष्णु कौन है। सितंबर 2018 में यही कपिल सिब्बल असहिष्णुता का नारा लगाते हुए कह रहे थे कि जहाँ महात्मा गाँधी अहिंसा के लिए खड़े रहे, उनके विरोधियों ने हिंसा का रास्ता अपनाया। उन्होंने आरोप लगाया था कि RSS हिन्दू धर्म के वैभव को दूसरों से श्रेष्ठ मानता है, असहिष्णुता में भरोसा रखता है। आज कपिल सिब्बल बताएँ कि उनके घर के बाहर हिंसा करने वालों में से कितने संघ के लोग हैं और कितने भाजपाई हैं?
Youth Congress workers protest outside Kapil Sibal’s house with “Get well soon” placards .#Congress #YouthCongress #KapilSibal #G23 #getwellsoon #congressparty #kapil pic.twitter.com/p8tJs8LGj7
— The Papr (@thepaprindia) September 30, 2021
आनंद शर्मा की भी बात कर लें, जो दक्षिण अफ्रीका तक में भारत को बदनाम करने वाले संगठन व उसके कार्यक्रम का हिस्सा बनते हैं। मई 2014 में उन्होंने नरेंद्र मोदी को असहिष्णु बता दिया था। अब वो बताएँ कि 7 सालों से वो पीएम की आलोचना कर रहे, कितने भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनका घर घेरा? सितंबर 2016 में वो एक कदम और आगे बढ़े। उन्होंने कह दिया कि पीएम मोदी के DNA में ही बदले की भावना और असहिष्णुता है।
आज आनंद शर्मा इन कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं की आलोचना कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने उनके साथी कपिल सिब्बल के घर के बाहर हिंसा की है। पी चिदंबरम और मनीष तिवारी ने भी उनके सुर में सुर मिलाया है। शर्मा ने कपिल शर्मा के बाहर कॉन्ग्रेस समर्थकों की ‘गुंडई’ का जिक्र करते हुए कहा है कि इससे पार्टी बदनाम हो रही है और कॉन्ग्रेस की संस्कृति हमेशा से अहिंसा और सहिष्णुता रही है। ये कोई नया मामला नहीं है। अब इन पर खुद पर आया है, इसीलिए ये चिल्ला रहे।
चिदंबरम की बात भी तो करनी ही पड़ेगी, जो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर-कर के मोदी सरकार के खिलाफ बोलते रहे हैं और किस्म-किस्म के आरोप लगाते रहे हैं। आज तक उनके साथ हिंसा नहीं की भाजपा कार्यकर्ताओं ने। मार्च 2016 में उन्होंने असहिष्णुता बढ़ने का दावा करते हुए कहा था कि इससे महिलाओं व दलितों से भेदभाव हो रहा है। उनका दावा था कि घृणा फैलाने वाले असहिष्णुता को संस्थागत बना रहे हैं।
आज पी चिदंबरम से इतना सवाल तो बनता है कि कपिल सिब्बल के घर में टमाटर फेंकने वाले और गाड़ियों को तोड़फोड़ करने वाले किस संस्था के लोग थे? उन्होंने दावा किया था कि असहिष्णु समाज भारत के विकास को भी रोक देगा। गुंडई तो हमेशा से कॉन्ग्रेस की पहचान रही है, लेकिन उन्होंने तब अगर अपनी पार्टी में चल रही तानाशाही पर बोला होता तो शायद आज वो अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं से गाली नहीं खा रहे होते, जिन्हें सहिष्णु बताते-बताते उनकी उम्र गुजर गई।
आनंदपुर साहिब के सांसद मनीष तिवारी को कैसे छोड़ दें? सिख समुदाय के सबसे प्राचीन गढ़ से जीत कर आने वाले सांसद के गृह राज्य में हंगामा बरपा हुआ है, उन्हीं की पार्टी में, लेकिन उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं है। आज वो कपिल सिब्बल के घर के बाहर हुई घटना की निंदा करते हुए पूछ रहे हैं कि ये ‘गुंडई’ नहीं तो क्या है? उन्होंने तो 2012 में ही आरोप लगा दिया था कि कर्नाटक में भाजपा की सरकार आने के बाद से हिंसा और असहिष्णुता बढ़ी है।
इन सबके बीच गुलाम नबी आज़ाद को कैसे छोड़ दें, जिनके पीछे तो कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता तब से पड़े हैं जब से उन्होंने राज्यसभा में अपने कार्यकाल के अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ की थी। मोदी की आलोचना में तो ज़िंदगी गुजर गई, लेकिन कभी उनके घर में किसी भाजपा कार्यकर्ता ने टमाटर नहीं फेंका। नवंबर 2015 में तो उन्होंने राजग सरकार पर असहिष्णुता के विनिर्माण तक का आरोप मढ़ दिया था।
इन नेताओं को अब आगे आकर इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के सबसे बड़े नेताओं की लगातार आलोचना के बावजूद आज तक किसी भाजपा कार्यकर्ता ने उनकी गाड़ी फोड़ी है? असहिष्णु कौन था और है – इसका भान उन्हें अब हो रहा है। लेकिन, RSS और भाजपा के करोड़ों सदस्यों ने उन्हें छुआ तक नहीं। एक बार हिम्मत दिखाइए, और कहिए कि कॉन्ग्रेसियों का चरित्र ही असहिष्णु है। वरना कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं के पास टमाटर की कमी नहीं है।