अयोध्या का निर्णय हो चुका है और कुछ ही महीनों में वहाँ भगवान श्रीराम का एक भव्य मंदिर खड़ा होकर भारत की नई पहचान बनेगा। 90 के दशक में कई कारसेवकों ने बलिदान दिया, पिछले लगभग 500 वर्षों में कई बार हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष हुआ और अदालत में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई, लेकिन बाबरी ढाँचे के विध्वंस के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम की जन्मभूमि उन्हें वापस मिल गई। 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले अब मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा गरमा रहा है।
सबसे पहले आपको मथुरा में ताज़ा हालात की बात करें तो उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बयान के बाद से तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। यूपी के डिप्टी सीएम ने कहा है कि अयोध्या और काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है और मथुरा की तैयारी है। ट्विटर पर उन्होंने इसके साथ ही ‘जय श्रीराम’, ‘जय शिव शम्भू’ और ‘जय श्री राधे-कृष्ण’ का टैग भी लगाया। तो क्या ये माना जाए कि हिन्दुओं के लिए अब अगला मुद्दा मथुरा में मुगलों के अवैध अतिक्रमण को दुरुस्त करना है?
पुलिस-प्रशासन लोगों से अपील कर रहा है कि वो 6 दिसंबर को होने वाले किसी कार्यक्रम में शामिल न हों। SSP गौरव ग्रोवर ने बताया कि धारा-144 पहले से ही लागू है और अगर कोई व्यक्ति अफवाहें फैलाने में संलिप्त पाया जाता है तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि शहर के शांतिपूर्ण माहौल में खलल डालने का कार्य बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से भी संपर्क स्थापित कर के उनके अंदर आत्मविश्वास भरा गया है।
बता दें कि जिस उत्तर प्रदेश में अब तक जाति के आधार पर राजनीतिक दल सत्ता हथियाया करते थे, वहाँ 2017 में समीकरण बदल गया और हिन्दू एकता के साथ-साथ केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के कामकाज को देखते हुए जनता ने भाजपा को मौका दिया। गोरखपुर में इंसेफ्लाइटिस से निपटना हो या कोरोना महामारी का कुशल नियंत्रण, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जम कर प्रशंसा हुई। जेवर एयरपोर्ट हो या पूर्वांचल एक्सप्रेस, इंफ्रास्ट्रक्चर में भी खूब कार्य हुए हैं।
अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है
— Keshav Prasad Maurya (@kpmaurya1) December 1, 2021
मथुरा की तैयारी है #जय_श्रीराम #जय_शिव_शम्भू #जय_श्री_राधे_कृष्ण
ऐसे में चुनाव से पहले मथुरा में कुछ हिन्दू संगठनों द्वारा शाही ईदगाह मस्जिद में श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित करने के ऐलान ने पुलिस-प्रशासन को सतर्क कर दिया। उत्तर प्रदेश में 45% मतदाता OBC समुदाय से आते हैं और इनका 9% यादव समुदाय है। यादव समुदाय खुद को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज मानता है। लेकिन, इसके बावजूद 3 बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव और एक बार सीएम रहे उनके बेटे अखिलेश ने कभी मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर निर्माण का मुद्दा नहीं उठाया।
मुलायम परिवार की यहाँ बात इसीलिए की जा रही है, क्योंकि उनकी समाजवादी पार्टी राज्य के यादव समुदाय के वोटों का खुद को इकलौता ठेकेदार मानती आई है। जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश, दोनों जगह देखा गया है कि हिंदुत्व और विकास के मुद्दे पर जातिवाद टूटा है और लोगों ने नरेंद्र मोदी के चेहरे को देख कर वोट दिया है। ऐसे में आज के माहौल में अखिलेश यादव का मथुरा में मंदिर निर्माण को लेकर नकारात्मक बयान देना उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कह डाला कि कोई नई रथ-यात्रा या मंत्र भाजपा को अगले चुनाव में नहीं बचा सकती है। राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने हाल ही में अखिलेश को चुनौती भी दी है कि वो मंच से सार्वजनिक रूप से ये बोलें कि मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है और अवैध तरीके से मस्जिद खड़ी हुई है। उन्होंने ये बोलने की चुनौती दी कि मथुरा में श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पूरी तरह मस्जिद से मुक्त होनी चाहिए। जाहिर है, अखिलेश यादव ऐसा नहीं बोलेंगे।
इसका सबसे बड़ा कारण है – मुस्लिम तुष्टिकरण। उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की जनसंख्या लगभग साढ़े 4 करोड़ आँकी गई है, जो वहाँ की कुल जनसंख्या का साढ़े 19 प्रतिशत के करीब है। ऐसे में अखिलेश यादव कभी नहीं चाहेंगे कि शाही ईदगाह मस्जिद के खिलाफ बयान देकर वो मुस्लिमों को नाराज करें। 13 दिसंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे, ऐसे में मथुरा-काशी का मामला अभी और आगे बढ़ेगा।
अखिलेश यादव ने सैफई में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने श्रीकृष्ण प्रतिमा की राजनीति खेली थी। वो भी ऐसी प्रतिमा, जिसमें वो युद्ध की मुद्रा में दिखे थे। फिर मथुरा पर चुप्पी क्यों? सपा अध्यक्ष अंकोर वाट की तर्ज पर भगवान विष्णु के नाम पर एक भव्य मंदिर और शहर के निर्माण का वादा भी कर चुके हैं। फिर उनके 8वें अवतार की जन्मभूमि से परहेज क्यों? उन्होंने इसके लिए विशेषज्ञों की समिति को कम्बोडिया तक भेजने की बातें की थीं।
याद रखने की ज़रूरत है कि 80 के दशक में जब राम मंदिर के लिए आंदोलन तेज़ हुआ था, तब इसमें इसके साथ-साथ काशी और मथुरा की भी बात की। थोड़ा इतिहास में चलें तो हम पाएँगे कि सन् 1670 में औरंगजेब ने मथुरा पर हमला बोला और केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कर के उसके ऊपर शाही ईदगाह मस्जिद बनवा दिया। ये पहली बार नहीं था जब इस्लामी आक्रांताओं ने ऐसा किया। औरंगजेब का सूबेदार अब्दुल नबी खान पहले से ही मथुरा में तबाही मचाता रहा था।
BJP has the agenda of robbing the poor & filling the pockets of the rich, they have always worked to benefit the rich class. No Rath Yatra or new Mantra is going to help BJP in the upcoming polls: SP chief Akhilesh Yadav on Deputy CM KP Maurya's tweet pic.twitter.com/fy4pmUdRQM
— ANI UP (@ANINewsUP) December 1, 2021
उससे पहले सन् 1017-18 में महमूद गजनी ने मथुरा पर हमला बोला था और कई मंदिरों को ध्वस्त कर के कइयों को जला डाला था। मथुरा का जिक्र पाणिनि ने अपने संस्कृत व्याकरण की पुस्तक में भी किया है। प्राचीन काल में मथुरा एक भव्य शहर हुआ करता था, जहाँ ब्राह्मणों की अच्छी-खासी जनसंख्या थी। जैन और बौद्ध समुदाय की भी इस स्थल में खासी आस्था थी। वामपंथी इतिहासकार भी मानते हैं कि ईसा से 600 वर्ष पूर्व तक के इस शहर के लोकप्रिय होने के प्रमाण मिलते हैं।
6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी विध्वंस की बरसी भी है, ऐसे में मथुरा में अभी से ही धारा-144 लगा दी गई है। पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है तो कुछ नजरबंद किए गए हैं। ‘नारायणी सेना’ ने संकल्प यात्रा की योजना बनाई है। CRPF ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इबादतगाह मेंअचानक से लोगों की संख्या बढ़ गई है और संदिग्ध गतिविधियाँ देखी जा रही हैं। शाही ईदगाह मस्जिद में इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिमों का आना ज़रूर ही चिंता का विषय है।
मथुरा का मुद्दा नया नहीं है। अदालत में इस मामले में याचिकाएँ दाखिल की गई हैं और उन सुनवाई होती रही है। 13.37 एकड़ जमीन पर दावा करते हुए हिन्दू यहाँ से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की माँग करते रहे हैं। 1935 में इलाहाबाद उच्च-न्यायालय ने वाराणसी के हिन्दू राजा को भूमि के अधिकार सौंपे थे। 1951 में ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट’ बना और यहाँ भव्य मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया गया। 1958 में ‘श्रीकृष्ण जन्म सेवा संघ’ का गठन हुआ।
इसी ट्रस्ट ने प्रबंधन का जिम्मा उठाया। 1968 का एक समझौता ही सारे विवाद की जड़ है जिसे मंदिर और मस्जिद पक्ष की बैठक के बाद तय किया गया था। उसमें मुस्लिमों को मस्जिद के प्रबंधन के अधिकार दे दिए गए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या दीपोत्सव में जब कारसेवकों पर मुलायम सिंह यादव की सरकार द्वारा करवाई गई गोलीबारी को याद किया, तब उन्होंने स्पष्ट कहा था कि अब कारसेवा होगी तो कृष्णभक्तों पर फूल बरसेंगे। उन्होंने कहा था कि तब यही लोग कारसेवा के लिए लाइन में खड़े होंगे।
ये हमने देखा, जब राम मंदिर के निर्माण के बाद इसके सालों से विरोध करते आ रहे लोगों ने भी समर्थन करना शुरू कर दिया। औरंगजेब ने अपने दरबार के ‘मुहतसिब’ की सलाह पर कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को तोड़ा था, जो मजहबी मामले देखता था। इसीलिए, बाबरी और शाही ईदगाह में कोई अंतर नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ‘किसान आंदोलन’ का भी असर देखा गया, ऐसे में वहाँ विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और हिन्दुओं में मथुरा को लेकर भावनाएँ नए-नए ठेकेदारों के लिए भी समस्या पैदा कर सकता है।