Sunday, December 22, 2024
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पिछड़े समूह का साथ, ‘त्रिदेव’ की रचना, संगठन-सरकार में समन्वय: योगी की काट ढूँढ़ते-ढूँढ़ते BJP के ‘स्वतंत्र फैक्टर’ में फँसीं विपक्षी पार्टियाँ

पीएम मोदी की कई रैलियों का पर्दे के पीछे से प्रबंधन कर स्वतंत्र देव सिंह ने अपनी क्षमता का परिचय दिया था। ढाई साल तक योगी सरकार में मंत्री रहते हुए भी उन्होंने अपने परफॉर्मेंस से सबका ध्यान खींचा।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अगर एग्जिट पोल्स को देखें तो भाजपा की जीत तय नजर आ रही है। ऐसा लग रहा है कि पार्टी इस बार भी 300 से अधिक सीटें जीत कर इतिहास रच देगी। इसमें कोई शक नहीं है कि इसके पीछे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का 5 वर्षों का अच्छे कानून-व्यवस्था वाले कार्यकाल के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और जन कल्याणकारी योजनाओं का हाथ है। लेकिन, साथ ही इसके पीछे स्वतंत्र देव सिंह की मेहनत भी है।

उत्तर प्रदेश में उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और राज्य में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह पार्टी के दो बड़े OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) नेता हैं। मोदी लहर ने हिंदी पट्टी में जात-पात की सीमाओं को तोड़ डाला और 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव के अलावा 2017 के विधानसभा चुनाव में भी हमने इसे देखा। लेकिन, जब मीडिया केवल जाति-जाति का रट्टा लगा रहा है तो हमें इन दोनों नेताओं के बारे में बताना पड़ता है।

इसे ऐसे समझिए। मीडिया ने अपने तमाम विश्लेषणों में दिखाया कि भाजपा की तरफ से 5 साल मंत्री पद के मजे लेने के बाद चुनाव के ऐन वक्त अखिलेश यादव की पार्टी में मिल जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य बहुत ताकतवर हैं, क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगरा से लेकर पूर्वी यूपी में गोरखपुर तक इस समाज (कुशवाहा, शाक्य और मौर्य) का विस्तार है और गैर-यादव OBC इससे सपा के साथ जुड़ेंगे। लेकिन, इस दौरान वो इसी समुदाय के केशवा प्रसाद मौर्य को भूल गए और बड़ी चालाकी से उनकी बात ही नहीं की।

स्वतंत्र देव सिंह ने कई सघन रैलियों के साथ-साथ रोड शो भी किया। पिछड़े इलाकों तक भी वो पहुँचे। बूथ मैनेजमेंट के साथ-साथ ‘मतदाता संवाद’ पर उन्होंने जोर दिया। ‘त्रिदेव’, अर्थात बूथ अध्यक्ष, BLA2 (बूथ स्तर के एजेंट्स) और बूथ प्रभारी पदों के जरिए उन्होंने निचले स्तर तक चुनावी मैनेजमेंट किया। संगठन और सरकार में समन्वय बनाते रहे। पार्टी की बैठकों में राजनीतिक स्थिति का सही आकलन किया। कई बूथ अध्यक्षों के घर भोजन के अलावा उन्हें पार्टी के छोटे कार्यकर्ताओं तक को सम्मान देते हुए और उन्हें गले लगाते हुए देखा गया।

इसी तरह मीडिया ये बातें करता है कि उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय की आबादी 12% के आसपास है और यादव समाज के बाद राज्य की दूसरी सबसे बड़ी OBC जनसंख्या वोट के गणित तय करेगी। लेकिन, इस दौरान मीडिया केवल ददुआ डाकू और इसके परिवार से आगे नहीं निकल पाता है। स्वतंत्र देव सिंह साफ़ और स्वच्छ छवि के नेता हैं, शायद इसीलिए उनकी बात नहीं की जाती। जबकि सच्चाई ये है कि उन्होंने भाजपा के लिए इस चुनाव में काफी मेहनत की है।

अब देखिए इस समाज के वोटों के लिए अखिलेश यादव ने कितने तिकड़म बेले। नीचे संलग्न की गई तस्वीर को देखिए, जिसमें समाजवादी पार्टी गठबंधन की बैठक चल रही थी और इसके मुखिया की कुर्सी पर ‘अपना दल’ के एक धड़े की प्रमुख कृष्णा पटेल को बिठाया गया था। उन्हें अखिलेश यादव ‘राजमाता’ कह कर पुकारते हैं। मीडिया ने भी इसे ‘बड़ा राजनीतिक सन्देश’ बताया। ये अलग बात है कि उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल केंद्र सरकार में मंत्री हैं और भाजपा की गठबंधन सहयोगी भी।

इसी तरह सपा के प्रदेश अध्यक्ष भी नरेश उत्तम पटेल हैं, जो चुनाव में सक्रियता के नाम पर मंच पर सोने के लिए मशहूर हैं। एक बार तो उनकी जुबान ऐसी फिसली कि उन्होंने ‘अखिलेश यादव ने किसानों को तबाह कर दिया’ वाला बयान दे दिया। सितंबर 2021 में उन्नाव के फतेहपुर चौरासी में उनके काफिले से टकरा कर एक महिला की मौत हो गई। कुल मिला कर वो गलत कारणों से ही चर्चा में रहे हैं। स्वतंत्र देव सिंह के बयान इन सबके मुकाबले ज्यादा सुर्खियाँ भी बने और कभी उसमें कोई नकारात्मक झलक भी नहीं दिखी।

भाजपा ने अगस्त 2021 में ही इसकी तैयारी कर ली थी कि सभी 75 जिलों में OBC सम्मेलन आयोजित किए जाने का खाका तैयार कर लिया था। इसके लिए 32 तीनों का गठन किया गया और सभी 75 जिलों में अभियान चलाया गया। 2019 में स्वतंत्र देव सिंह को राज्य की कमान देकर भाजपा ने बता दिया था कि वो सरकार के साथ-साथ संगठन में भी ‘सबका साथ, सबका विकास’ फॉर्मूले पर चलती है। वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – तीनों के विश्वासपात्र हैं।

ये भी याद रखने की बात है कि 2014 लोकसभा चुनाव में में अमित शाह उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रभारी थे और उस दौरान पीएम मोदी की कई रैलियों का पर्दे के पीछे से प्रबंधन कर स्वतंत्र देव सिंह ने अपनी क्षमता का परिचय दिया था। ढाई साल तक योगी सरकार में मंत्री रहते हुए भी उन्होंने अपने परफॉर्मेंस से सीएम योगी का विश्वास जीता। शुरुआती दौर में विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे स्वतंत्र देव सिंह RSS बैकग्राउंड से आते हैं और 2001 में युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें मध्य प्रदेश का प्रभार सौंपा और वहाँ भी उनका प्रदर्शन शानदार रहा। राज्य में 29 में से 28 सीटें भाजपा के नाम गईं। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से आने वाले स्वतंत्र देव सिंह की कर्मभूमि बुंदेलखंड रही है, जो यूपी के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक रहा है। यही कारण है कि गरीबों की समस्याओं को वो समझते रहे हैं। मीडिया के सामने योगी सरकार के कामकाज को सामने रखने में भी उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।

स्वतंत्र देव सिंह के बारे में एक दिलचस्प तथ्य ये है कि कभी उनके गाँव के लोग उन्हें ‘कॉन्ग्रेस सिंह’ के नाम से जानते थे। असल में इसका कारण ये नहीं है कि वो कभी कॉन्ग्रेस में रहे। वो कभी कॉन्ग्रेस में थे ही नहीं। गाँव में लोगों के नाम कलक्टर से लेकर डिप्टी तक रख दिए जाते थे। हालाँकि, भाजपा में कद बढ़ने के साथ ही उनका ये नाम पीछे छूटता चला गया। कभी पत्रकार रहे स्वतंत्र देव सिंह 2012 में उरई के कालपी से विधानसभा चुनाव हार गए थे, लेकिन उसके बाद उन्होंने अपनी मेहनत से सूबे में एक अलग स्थान बनाया।

फिर उन्हें विधान पार्षद बनाया गया। यूपी में वो पार्टी के महामंत्री रहे। 12 सीटों पर हुए उपचुनाव को उनकी पहली परीक्षा माना गया और वो इसमें सफल रहे। उनसे पहले ओमप्रकाश सिंह और विनय कटियार भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं, जो इसी समाज से आते हैं। इस समाज को योगी सरकार में भी अच्छा प्रतिनिधित्व मिला और तीन नेताओं को मंत्री बनाया गया। 2017 चुनाव के बाद भाजपा में इस समाज से 7 सांसद और 26 विधायक थे।

अगस्त 2021 में एक ऐसा समय भी आया जब समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने स्वतंत्र देव सिंह को अपनी पार्टी में आने का न्योता दे डाला। उन्होंने कहा, “सपा में शामिल हो जाओ, बहुत आगे तक जाओगे।” जब भाजपा के वयोवृद्ध नेता रहे कल्याण सिंह की श्रद्धांजलि सभा में न्योता देने के लिए वो मुलायम के पास गए थे, तब उन्हें ये ‘ऑफर’ मिला था। एक तरफ स्वतंत्र देव सिंह ने अखिलेश यादव को श्रद्धांजलि सभा में न आने पर सोशल मीडिया के मध्यम से लताड़ा, तो दूरी तरफ मुलायम को न्योता दे दिखा दिया कि भाजपा ‘मनभेद’ में विश्वास नहीं रखती।

13 फरवरी, 1964 को जन्मे स्वतंत्र देव सिंह की कर्मभूमि जालौन रही है और झाँसी में उनकी शादी हुई। कभी 1986 में उराई स्थित DAV डिग्री कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव हार जाने वाले इस नेता ने अपनी मेहनत के बल पर इन सबके बावजूद यहाँ तक का सफर तय किया। कभी उनके ही समाज से आने वाले बेनी प्रसाद वर्मा को मुलायम सिंह ने सपा का गैर-यादव OBC चेहरा बनाया था। 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत में सीएम योगी, पीएम मोदी और केशव मौर्य के साथ-साथ स्वतंत्र देव सिंह का योगदान भी होगा।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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