83 साल का एक नेता है। लेखक अभी अपने 36वें साल में है। जो नेता है, वो मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र में मंत्री तक रह चुका है। नेता का बाप भी नेता था, बेटा भी नेता है… मतलब ‘जेनेटिकली मोडिफाइड’ नेता है। शब्दों के लिए क्षमा करें लेकिन इस पूरे लेख में आपको 83 साल के इस नेता के लिए हिंदी के ‘आप/इन्होंने/उन्होंने’ की जगह ‘तुम/इसने/उसने’ का प्रयोग ही मिलेगा।
फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) – यह लेख इसी नेता के लिए लिखा गया है। क्यों लिखा गया है? क्योंकि फारूक अब्दुल्ला नाम के इस नेता ने करण थापर को एक इंटरव्यू दिया है। इस इंटरव्यू में फारूक ने जो बोला (जहर उगला) है, उसकी मुख्य-मुख्य बातों पर जरा गौर कीजिए:
- इस समय कश्मीरी लोग अपने आप को न तो भारतीय समझते हैं, ना ही वे भारतीय बने रहना चाहते हैं।
- पिछले साल 5 अगस्त को उन्होंने (मोदी सरकार ने) जो किया, वह भारत के ताबूत में आखिरी कील था।
- आज जब चीन हमारी तरफ बढ़ रहा है, कश्मीरी लोग चाहते हैं कि वो भारत में घुस जाएँ जबकि उन्हें पता है कि चीन ने मुस्लिमों के साथ क्या किया है।
- हम मुस्लिम बहुमत वाले राज्य थे, फिर भी हम पाकिस्तान नहीं गए। हम गाँधी के भारत में रहे, हमें मोदी का भारत नहीं चाहिए।
44 मिनट 28 सेकंड के वीडियो इंटरव्यू में से 4 मिनट 28 सेकंड तक का जहर ऊपर लिखा गया है। इससे ज्यादा सुनने की औकात मेरी नहीं है। कम से कम किसी निर्वाचित सांसद से तो नहीं। सब्जी बेचने वाले गोनू महतो या शकील अंसारी से फिर भी मैं 4 घंटे बातचीत कर सकता हूँ।
सांसद फारूक अब्दुल्ला की बकैती से समस्या क्या?
फारूक अब्दुल्ला सांसद है। सासंद भारतीय लोकतंत्र का है। मतलब वोट भारत के नागरिकों ने दिया होगा। मतलब यह भी कि भारत की ही राजधानी दिल्ली में बने सांसदों के आवास में फारूक अब्दुल्ला नाम का यह आदमी रह भी रहा होगा।
लेकिन इसमें समस्या क्या है? समस्या है, बहुत गंभीर है। वोट लेते समय फारूक अब्दुल्ला भारतीय था, वोटर भी भारतीय थे। अब फारूक अब्दुल्ला खुद बोल रहा है कि वोटर भारतीय नहीं रहे (तन-मन से नहीं रहे) तो फिर उनके द्वारा चुन कर भेजा गया सांसद फारूक अब्दुल्ला किस हक से भारतीय सांसद बना बैठा है?
शायद सांसद की कोठी के हक से? शायद बेटे को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के हक से? बेटे की बीवी को तलाक के बाद भी दिल्ली वाली कोठी मिलती रहे… इसके हक से? या गाँधी वाली पार्टी में दामाद की जगह बची रहे, इसके हक से?
उत्तर मुझे नहीं पता है। उत्तर तो सिर्फ और सिर्फ फारूक अब्दुल्ला को पता होगा। वही बता सकता है कि आखिर कौन सी वजह है, जो वह अब तक सांसद की कुर्सी थामे बैठा हुआ है? क्या भारतीय लोकतंत्र में आज तक ऐसा नहीं हुआ है कि सांसदों ने अपना इस्तीफा सौंपा हो? हुआ है।
शायद फारूक अब्दुल्ला स्वाभिमानी नहीं है। शायद वह निर्लज्ज भी है। जिसे कोस रहा (सरकार को) है, उसके विरोध में अपना पद नहीं छोड़ रहा। जिसकी आवाज (कश्मीरी लोगों की) उठा रहा, उसके लिए आंदोलन का बिगुल नहीं फूँक रहा। तो फारूक अब्दुल्ला आखिर है क्या?
नेता तो नहीं हो सकता! क्योंकि नेता तो जन-आंदोलन के लिए ही जाने जाते हैं। इतना बड़ा मौका हाथ से जाने दे, वह नेता कैसा? लालची (पद का) हो सकता है। धूर्त (शब्दों के साथ खेल रहा) हो सकता है। मक्कार (झूठ बोल कर मीडिया के माध्यम से माहौल बना रहा) हो सकता है।
PS: इस लेख को पढ़ कर फारूक अब्दुल्ला अपनी सांसदी छोड़ देगा। लेखक ने ऐसा सोच कर लिखा है, यह सपने में भी लेखक नहीं सोच सकता।