Monday, December 23, 2024
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सनातन के कमल से खिला G20, कॉन्ग्रेस देखकर मुरझाई: केवल चुनाव चिह्न नहीं है भारत का राष्ट्रीय पुष्प, वैभव-संपदा का है प्रतीक

इसे मानसिक दिवालियेपन की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है कि जो फूल हिन्दू आस्था से जुड़ा हुआ है, जिस फूल पर देवी लक्ष्मी व देवी सरस्वती सुशोभित होती हैं, उससे कॉन्ग्रेस को आपत्ति है।

इन दिनों कमल का फूल बहुत चर्चा में है। देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी (BJP) का चुनाव चिह्न होने के कारण कमल का फूल कॉन्ग्रेसियों के लिए किसी दुखद सपने से कम नहीं है। भले ही कॉन्ग्रेस को यह फूल डराता हो, लेकिन भारतीय सनातन धर्म से जुड़ा यह फूल करोड़ों हिन्दुओं के लिए भी आस्था का प्रतीक है। भगवान ब्रह्मा का आसान भी कमल का पुष्प ही दर्शाया जाता है। भगवान विष्णु का एक नाम ‘कमलनयन’ भी है, अर्थात कमल के फूल जैसी आँखों वाले।

अब आते हैं ताज़ा मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (8 नवंबर, 2022) को जी-20 शिखर सम्मेलन के लोगो, थीम और वेबसाइट को जारी किया था। भारत 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक, यानी एक साल के लिए जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता करेगा। इस सुखद मौके पर कॉन्ग्रेस को जी-20 के लोगों में कमल के फूल को लेकर आपत्ति हो गई। पार्टी को ऐसा लग रहा है कि भाजपा जी-20 के लोगो में अपना चुनाव चिह्न डाल कर खुद का प्रचार कर रही है।

इसे मानसिक दिवालियेपन की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है कि जो फूल हिन्दू आस्था से जुड़ा हुआ है, जिस फूल पर देवी लक्ष्मी व देवी सरस्वती सुशोभित होती हैं, उससे कॉन्ग्रेस को आपत्ति है। इसका सीधा मतलब यह भी है कि कॉन्ग्रेस प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति के मांगलिक प्रतीक रहे इस फूल को महज भाजपा का चुनाव चिह्न या प्रतीक समझती है। पार्टी ये तक भूल गई कि यह भारत का राष्ट्रीय फूल भी है। कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश के ट्वीट से तो यही समझ में आता है।

वह कहते हैं, “70 साल पहले नेहरू ने कॉन्ग्रेस के झंडे को भारत का ध्वज बनाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। अब बीजेपी का चुनाव चिह्न जी-20 की अध्यक्षता का आधिकारिक लोगो बन गया है। हमें पता है कि पीएम मोदी और बीजेपी बेशर्मी से खुद को बढ़ावा देने के लिए कोई मौका नहीं गँवाएँगे।” इस हिसाब से तो हर व्यक्ति का हाथ कॉन्ग्रेस का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि ये पार्टी का चुनाव चिह्न है। तो करोड़ों लोग अपना हाथ काट कर फेंक दें? इस लॉजिक के हिसाब से तो दुनिया में भारत कॉन्ग्रेस के ‘चुनाव चिह्न’ हुए, उससे कई गुना कम उन्हें वोट मिलते हैं।

इसे कॉन्ग्रेस की बेशर्मी ही कहा जाएगा कि वह हिन्दू धर्म या उससे जुड़ी चीजों को बदनाम करने या उसे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती है। रामसेतु पर सवाल खड़ा करना हो या भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा देना, कॉन्ग्रेस की यही प्रवृत्ति ही रही है। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो बताया जाता है कि कमल के फूल की उत्पत्ति भगवान विष्णु जी की नाभि से हुई थी, जिससे बाद में ब्रह्माजी जी का प्राकट्य हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इसी कारण ब्रह्मा जी कमल के फूल पर विराजमान होते हैं।

शास्त्रों के अनुसार, कमल के फूल की ही तरह सृष्टि और इस ब्रह्मांड की रचना हुई है, और ब्रह्मांड को इसी फूल की तरह माना जाता है। सनातन धर्म में होने वाले अनेक प्रकार के यज्ञों व अनुष्ठानों में कमल के पुष्पों को निश्चित संख्या में चढ़ाने का विधान है। पीएम मोदी ने भी इस लोगो में कमल के होने के महत्व को बताया है। उन्होंने कहा है कि G-20 में कमल का प्रतीक ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का प्रतीक है। भाजपा 1980 में अस्तित्व में आई, कॉन्ग्रेस 1885 से है – लेकिन भारत में कमल का फूल सदियों से है, लोगों के पास दो हाथ हमेशा से होते हैं।

भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने भी वीडियो ट्वीट कर कॉन्ग्रेस को कमल का मतलब समझाया। उन्होंने कहा, “कमल हमारा राष्ट्रीय फूल भी है। यह माँ लक्ष्मी का आसन भी है। क्या आप हमारे राष्ट्रीय फूल के विरोध में हैं? कमलनाथ के नाम से कमल हटाओगे? राजीव का मतलब कमल भी होता है! आशा है कि आप वहाँ कोई एजेंडा नहीं देखेंगे।” वैसे याद दिला दें कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पत्नी का नाम भी कमला नेहरू था।

भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने भी G-20 में कमल के लोगो पर कॉन्ग्रेस की आपत्ति का करारा जवाब दिया है। उन्होंने कहा, “कमल भारत का राष्ट्रीय फूल है और भारतीय जनता पार्टी का ये निशान 1984 से बना है। राष्ट्रीय फूल तो नेहरू जी के युग से ही बना हुआ है, तो हमने राष्ट्रीय फूल को वहाँ स्थान दिया है, राष्ट्रीय फूल के साथ अपने तिरंगे झंडे को सम्मानित करते हुए, तिरंगे झंडे का निशान दिया है।” भारत के रष्ट्रीय चिह्न ‘अशोक चिह्न’ में भी कमल है।

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राहुल आनंद
राहुल आनंदhttps://hindi.opindia.com/
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