मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कॉन्ग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ अपने अन्य हैवीवेट चेहरों को मैदान में उतार दिया है। वहीं, कॉन्ग्रेस अब भी अपने दो सबसे पुराने और विश्वसनीय चेहरों के दम पर ही मैदान में है। ये अलग बात है कि इन दो ‘मजबूत’ चेहरों में ही कपड़े फाड़ने की नौबत आ चुकी है। दोनों एक-दूसरे के समर्थकों से कह रहे हैं कि वो जाकर सामने वाले के कपड़े फाड़े।
वहीं, कमलनाथ ने तो दिग्विजय सिंह के लिए ये कह दिया कि ‘मैंने दिग्विजय सिंह को गाली खाने के लिए पॉवर ऑफ अटार्नी दी है’। खैर, मध्य प्रदेश में चुनावी मुद्दों की बात करें तो विकास, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, वादाखिलाफी, जनजातीय मुद्दे, महिला आरक्षण, ओबीसी आरक्षण और हिंदुत्व के साथ ही धार्मिक केंद्रों के विकास भी खास चुनावी मुद्दों में शामिल हैं।
मध्य प्रदेश का चुनावी गणित
मध्य प्रदेश में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं, जिन्हें मोटे तौर पर 7 हिस्सों में बाँटा जा सकता है। चंबल रीजन में 34 विधानसभा सीटें हैं। वहीं, बुंदेलखंड में 26, बघेलखंड में 30, महाकोशल में 47, भोपाल रीजन में 20, निमाड़ रीजन में 18 और मालवा रीजन में 55 विधानसभा सीटें हैं। मध्य प्रदेश की 230 सीटों में से 35 सीटें एससी वर्ग के लिए आरक्षित हैं तो एसटी वर्ग के लिए 47 विधानसभा सीटें।
पुराने चेहरों पर टिकी है कॉन्ग्रेस की लीडरशिप
मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस अपने दो पुराने चेहरों- कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को ही आगे करके चुनाव लड़ रही है। कमलनाथ मुख्यमंत्री पद के चेहरे हैं, लेकिन खींचतान में दिग्विजय सिंह अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ कमलनाथ को दबाव में लेते दिख रहे हैं। कॉन्ग्रेस के बड़े चेहरों में पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी और केसी वेणुगोपाल हैं।
वहीं, रणदीप सुरजेवाला को केंद्र और राज्य की टीमों के साथ समन्वय बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। कॉन्ग्रेस के पास जनजातीय चेहरे के तौर पर कांतिलाल भूरिया हैं, जो पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। उन्हें कॉन्ग्रेस ने चुनाव प्रचार कमेटी का अध्यक्ष भी बनाया है।
भाजपा ने फिर से बनाया मोदी को चेहरा, कई ‘बड़े’ सूरमा भी खड़े
भारतीय जनता पार्टी के चुनावी कैंपेन का प्रमुख चेहरा निर्विवाद रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। उनका साथ दे रहे हैं भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह। उसके साथ मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष भी चुनाव की कमान संभाल रहे हैं।
राज्य की लीडरशिप में शिवराज सिंह चौहान बिना किसी शक के बड़े चेहरे हैं, लेकिन कोई कमीं न छूट जाए, इसके लिए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। भाजपा के पास भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव जैसे महारथी भी हैं तो रॉयल चेहरे के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी पूरी ताकत झोंक दी है। ग्वालियर संभाव में उनकी पकड़ अब भी काफी मजबूत मानी जाती है।
मध्य प्रदेश का चुनावी इतिहास
मध्य प्रदेश के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो साल 2018 में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में होने के बावजूद 230 में से 109 ही सीटें जीत पाई थी। वहीं कॉन्ग्रेस ने 114 सीटों पर जीत हासिल करके बहुमत पाया था। कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में कॉन्ग्रेस में बगावत होने के बाद गिर गई।
साल 2018 में मत प्रतिशत भाजपा और कॉन्ग्रेस का लगभग बराबर 41 प्रतिशत था। भाजपा ने 35 एससी सीटों में से 18 पर जीत हासिल की थी। वहीं, कॉन्ग्रेस को 17 सीटें मिली थीं। एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 30 पर कॉन्ग्रेस को जीत मिली थी तो 16 सीटों पर भाजपा को और एक सीट अन्य के खाते में गई थी।
उससे पहले साल 2013 की बात करें तो भाजपा ने 165 सीटों पर जोरदार जीत दर्ज की थी। कॉन्ग्रेस को महज 58 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, सात सीटों पर अन्य पार्टियों एवं निर्दलीयों को जीत मिली थी। इस चुनाव में भाजपा को एकतरफा 45 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे, जबकि कॉन्ग्रेस महज 36 प्रतिशत वोट ही हासिल कर पाई थी। अन्य के हिस्से में 19 प्रतिशत वोट गए थे।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव की भी बात करें तो मध्य प्रदेश की 29 सीटों में से 28 पर भाजपा को जीत मिली थी, तो कॉन्ग्रेस को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को 59 प्रतिशत वोट मिले थे, तो कॉन्ग्रेस को महज 35 प्रतिशत ही वोट मिल पाए थे।
मध्य प्रदेश में मतदाता वर्ग का ये है गणित
चुनाव आयोग और इंडिया टुडे के मुताबिक, मध्य प्रदेश में कुल 82 सीटें रिजर्व हैं, जिनमें 35 एससी वर्ग के लिए हैं तो 47 सीटें एसटी वर्ग के लिए। जाति आधारित मतदाता वर्ग की बात करें तो मध्य प्रदेश में 15 प्रतिशत वोटर सामान्य वर्ग के हैं, तो ओबीसी सर्वाधिक 38 प्रतिशत हैं।
वहीं, मध्य प्रदेश में 16 प्रतिशत वोटर एससी वर्ग से हैं तो एसटी, जिसमें जनजातीय वर्ग आता है। कुल 21 प्रतिशत मतदाता हैं। राज्य में 7 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं। वहीं, 3 प्रतिशत मतदाता बौद्ध, ईसाई, सिख के साथ अन्य वर्ग के हैं।
मध्य प्रदेश के चुनावी मुद्दे
मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा वोटर वर्ग ओबीसी वर्ग का है। राज्य में 38 प्रतिशत ओबीसी निर्णायक भूमिका में हैं। वहीं, 21 प्रतिशत एसटी वर्ग भी सत्ता में बड़ी भूमिका निभाता है। ऐसे में मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, जो खुद ओबीसी वर्ग से आते हैं वो भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री हैं।
शिवराज सिंह चौहान सभी वर्गों में लोकप्रिय हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी ओबीसी वर्ग से ही आते हैं। वहीं, कॉन्ग्रेस की लीडरशिप में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह, दोनों ही सामान्य वर्ग के हैं। भाजपा में इनकी काट के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरोत्तम मिश्रा जैसे बड़े चेहरे हैं।
महिलाओं के मुद्दे : कॉन्ग्रेस ने महिलाओं के लिए कुछ मुफ्त की घोषणाएँ की हैं, जबकि शिवराज सिंह चौहान का मुख्य वोटर वर्ग महिलाओं को माना जाता है। वो महिलाओं में काफी लोकप्रिय भी हैं, क्योंकि उनकी अगुवाई में भाजपा सरकार ने महिलाओं को केंद्र में रखकर कई योजनाएँ चलाई हैं। इसमें मध्य प्रदेश सरकार ने साल 2023-24 के बजट का एक तिहाई हिस्सा महिलाओं को केंद्र में रखकर तैयार की गई योजनाओं के लिए घोषित किया है।
शिवराज सिंह चौहान की देखरेख में लाडली बहन योजना चलती है, जिसके तहत अभी तक 1250 रुपए प्रति माह की सहायता महिलाओं को दी जाती थी, इसे बढ़ाकर 3000 रुपए प्रति माह करने का ऐलान किया गया है। शिवराज चौहान ने चुनाव के बाद लाडली बहन योजना की लाभार्थी महिलाओं को 450 रुपए में गैस सिलेंडर देने का वादा किया है, जबकि कॉन्ग्रेस का वादा 500 रुपए में सिलेंडर देने का है। केंद्र सरकार ने महिला आरक्षण बिल पास करके पहले ही इस मोर्चे पर बाजी मार ली है, और कॉन्ग्रेस कोटे के अंदर कोटा की माँग करके महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है।
केंद्र-राज्य सरकार की योजनाओं का भाजपा को मिल रहा लाभ : भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार की योजनाओं का बड़ा वर्ग मध्य प्रदेश में है। राज्य में प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, पीएम-किसान योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, पीएम गरीब कल्याण योजना और आयुष्मान भारत योजना के करोड़ लाभार्थी भाजपा के आत्मविश्वास को मजबूत कर रहे हैं।
वहीं, कॉन्ग्रेस बच्चों के लिए मंथली स्कॉलरशिप 500 से 1500 रुपए देने का ‘वादा’ कर रही है। कॉन्ग्रेस ने योजनाओं की काट में 100 यूनिट मुफ्त बिजली, 200 यूनिट बिजली आधे दाम पर और हर महिला को 1500 रुपए प्रति माह के अलावा बेरोजगार युवाओं को भत्ता देने का चुनावी वादा किया है।
आदिवासियों के मुद्दे : मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग अगर सबसे ताकतवर है भी तो भी आदिवासियों का महत्व इस बात से समझ सकते हैं कि एसटी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में जो बाजी मारता है, वही राज्य में सरकार बनाता है। मध्य प्रदेश में 21 प्रतिशत आबादी एसटी वर्ग की है, जिसके लिए प्रियंका गाँधी वाड्रा ने पेसा (Panchayat Extension to Scheduled Areas-PESA)) के विस्तार का वादा किया है। वहीं, भाजपा के पास देश को पहली जनजातीय राष्ट्रपति देने का गौरवगान है।
ये बड़ा फर्क आपको चुनावी समर में भी दिखेगा। यही नहीं, साल 2021 के सितंबर माह में अमित शाह ने राजा शंकर शाह और उसने बेटे रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर जबलपुर में कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रानी कमलापति के नाम पर भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का ही नामकरण कर दिया है। राज्य में शिवराज सिंह चौहान सरकार जनजातीय हितों को ध्यान में रखकर कई योजनाएँ चलाती हैं।
आदिवासियों के मामले में पेशाब कांड बड़ा चर्चित रहा था। इस मामले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ित को न सिर्फ अपने घर बुलाया, बल्कि गंगाजल से उनके पैर भी धोए थे। कॉन्ग्रेस ने इस मामले को उठाने की कोशिश तो की, लेकिन वो इस मुद्दे को भुना नहीं पाई। वहीं, भाजपा ने आरोपित व्यक्तियों पर कड़ी कार्रवाई की और आरोपित जिस विधायक से जुड़ा था, उसे इस बार टिकट ही नहीं दिया है।
ओबीसी आरक्षण : कॉन्ग्रेस एक तरफ ओबीसी का आरक्षण बढ़ाने के नाम पर चुनावी वादे किए जा रही है और आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक करने की माँग कर रही है, साथ ही वादा भी कर रही है, लेकिन इसके कानूनी पहलुओं पर वो बात नहीं करना चाहती। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ओबीसी वर्ग के लिए तमाम योजनाएँ चला रही है। ओबीसी वर्ग के चेहरे के तौर पर भाजपा में कई कद्दावर नेता मौजूद हैं।
हिंदुत्व : मध्य प्रदेश में हिंदुत्व बड़ा चुनावी मुद्दा है। हिंदुत्व और विकास की राजनीति के सहारे करीब दो दशकों से मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने की कोशिश कॉन्ग्रेस जरूर कर रही है, लेकिन हकीकत ये है कि उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर से लेकर छिंदवाड़ा के हनुमान कॉरिडोर तक भाजपा ही भारी पड़ रही है। वहीं, रही सही कसर हिंदुत्व और सनातन पर कॉन्ग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों खासकर डीएमके के नेता उदयनिधि स्टालिन के बयान की तो इसके बाद से कॉन्ग्रेस बैकफुट पर आ चुकी है।
खास बात ये है कि भोपाल में इंडी गठबंधन अपनी पहली संयुक्त रैली करने वाला था, लेकिन स्टालिन के बयान के बाद बैकफुट पर आई कॉन्ग्रेस वो रैली करने की हिम्मत तक नहीं जुटा सकी। फिर मध्य प्रदेश के चुनाव समर के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चित्रकूट के तुलसी पीठ जाना अपने आप में भाजपा के हिंदुत्व के बारे में काफी कुछ बता जाता है।
मध्य प्रदेश के चुनाव में मुस्लिम मतदाता कहाँ हैं?
मध्य प्रदेश में कुल 7 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं। इतने कम मतदाता होने की वजह से मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस भी मुस्लिमों को नहीं पूछ रही है, वहीं भाजपा की सरकार ने समावेशी विकास कार्यक्रम चलाए हैं। भाजपा का नारा ही है- ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ का।
वहीं, विडंबना देखिए कि जो कॉन्ग्रेस हर समय मुस्लिमों की बात करती रही है, वो खुद भाजपा के सॉफ्ट हिंदुत्व पर उतर आई है और मध्य प्रदेश में मुस्लिमों को पूरी तरह से भुला दिया है। यही वजह है कि भोपाल जैसे मुस्लिमों की अच्छी खासी आबादी वाले क्षेत्रों में भी भाजपा की मजबूत पकड़ है।
बागी और अन्य पार्टियाँ कहाँ?
मध्य प्रदेश में सीधी टक्कर भारतीय जनता पार्टी और कॉन्ग्रेस की है, लेकिन बाकी पार्टियाँ भी खेल बिगाड़ने में जुटी हुई हैं। कहाँ तो इंडी गठबंधन के नाम पर समाजवादी पार्टी भी कॉन्ग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन कॉन्ग्रेस से मिली दुत्कार के बाद उसे अलग राह पकड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला कर दर्जनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी भी मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ रही है। इसके अलावा छोटे-मोटे कई दल भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। ऐसे में एक तरफ भाजपा का अकेले होना और दूसरी तरफ कई पार्टियों का अलग-अलग चुनाव लड़ना भी भाजपा को ही मजबूती देता दिख रहा है।
बात बागियों की करें तो बगावत हरेक पार्टी में हुई है। भाजपा में होने वाली बगावतों को थामने के लिए एक बड़ी टीम रही तो इसका ज्यादा असर नहीं पड़ता दिख रहा। वहीं, कॉन्ग्रेस में बागियों के तेवर ऐसे रहे कि करीब आधा दर्जन सीटों पर उसे अपने कैंडिडेट ही बदलने पड़े। फिर कई सीटों पर सपा के साथ उसकी ‘फ्रेंडली फाइट’ भी उसे ही नुकसान पहुँचाती दिख रही है।
कितने मतदाता, कब मतदान और नतीजे कब?
चुनाव आयोग द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, मध्य प्रदेश में कुल 5 करोड़ 61 लाख 36 हजार 229 मतदाता हैं, जिसमें 11 लाख 29 हजार 513 मतदाता पहली बार विधानसभा चुनाव में वोट देंगे। इन मतदाताओं की औसत उम्र 18-19 साल है। मध्य प्रदेश में इस बार 5.05 लाख दिव्यांगजन, 1373 मतदाता थर्ड जेंडर के और 6 लाख 53 हजार 640 लाख मतदाता वरिष्ठ नागरिक हैं, जिनकी उम्र 80 वर्ष से अधिक है। इनका मतदान दोनों ही पार्टियों पर निर्णायक असर डालने वाला है।
इस बार चुनाव आयोग ने पूरे राज्य में मतदान केंद्रों की संख्या घटा कर 64 हजार 523 कर दिया है, जबकि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में 65 हजार 367 मतदान केंद्र बनाए गए थे। मध्य प्रदेश में 17 नवंबर 2023 को मतदान होना है। 3 दिसंबर 2023 को चुनाव परिणाम घोषित किया जाएगा।