आज कॉन्ग्रेस पार्टी खुद को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का सबसे बड़ा हितैषी दिखा रही है। पार्टी के नेता लगातार उनका नाम लेकर बयान दे रहे हैं और भाजपा सरकार पर उन्हें अपमानित करने के आरोप मढ़ रहे हैं। ये गंदी राजनीति नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर खेली जा रही है। नए संसद भवन में चोल साम्राज्य का राजदंड ‘सेंगोल’ स्थापित हो रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन कर रहे हैं – इससे कॉन्ग्रेस पार्टी को खासी पीड़ा हो रही है।
ये वही कॉन्ग्रेस है, जिसने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया था, आज पार्टी चाहती हैं कि संसद भवन के उद्घाटन पर राष्ट्रपति का भाषण हो, सारे कार्यक्रमों की अध्यक्षता राष्ट्रपति करें। अगर राष्ट्रपति के लिए पार्टी के मन में इतना ही सम्मान होता तो क्या संसद में उनके अभिभाषण का बहिष्कार किया जाता? तब नहीं याद आया कि संसद में सबसे पहले राष्ट्रपति होती हैं? आज ये सारा का सारा ज्ञान उड़ेलने में लगे हुए हैं।
सबसे पहले बात करते हैं राहुल गाँधी की। एक सांसद के रूप में अयोग्य साबित हो चुके राहुल गाँधी ने ट्विटर पर लिखा कि राष्ट्रपति से संसद का उद्घाटन न करवाना और न ही उन्हें समारोह में बुलाना – यह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है। साथ ही उन्होंने ज्ञान दिया कि संसद अहंकार की ईंटों से नहीं, संवैधानिक मूल्यों से बनती है। 2 साल की सज़ा मिलने के बाद राहुल गाँधी की सांसदी चली गई है और वो सदन के सदस्य नहीं है।
अब कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान को लीजिए। उन्होंने दावा कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नए संसद भवन के उद्घाटन का अधिकार छीन लिया है। फिर उन्होंने कह दिया कि मोदी सरकार की अहंकार की प्रणाली ने संसदीय प्रणाली को ध्वस्त कर दिया है। उन्होंने संसद को जनता द्वारा स्थापित लोकतंत्र का मंदिर बताते हुए कहा कि राष्ट्रपति पद संसद का प्रथम अंग है।
इतना ही नहीं, 19 विपक्षी दलों ने कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार का भी ऐलान कर दिया। लोकतंत्र के खतरे में होने का रोना रोया गया और निरंकुश तरीके से इसके निर्माण की बातें की गईं। संविधान का ज्ञान लेते हुए संयुक्त बयान में राष्ट्रपति के पद के अपमान का आरोप लगाया गया। साथ ही देश की राष्ट्रपति के जनजातीय समाज की महिला होने की दुहाई देते हुए उनके अपमान का आरोप लगाया गया।
सामान्य तौर पर कोई भी इन बयानों को देखेगा तो ऐसा ही मान बैठेगा जैसे कॉन्ग्रेस पार्टी ने ही द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया हो और उन्हें राष्ट्रपति बनाया हो। कम से कम इतना तो मान ही लेगा कि कॉन्ग्रेस ने चुनाव के ज़रूर उनका समर्थन किया होगा। अगर ये दोनों नहीं हुआ, तो कम से कम जनजातीय समाज की महिला राष्ट्रपति का अपमान तो नहीं ही किया होगा। लेकिन, सच्चाई ये है कि कॉन्ग्रेस के नेताओं ने इस मामले में नीचता की सारी पराकाष्ठा पार कर दी।
कॉन्ग्रेस ने एक बार नहीं, बल्कि बार-बार द्रौपदी मुर्मू का अपमान किया और आज खुद को उनका सबसे बड़ा हितैषी दिखा रही है। ‘अखिल भारतीय संगठित कामगाए एवं कर्मचारी कॉन्ग्रेस’ के अध्यक्ष उदित राज ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बारे में कहा था, “द्रौपदी मुर्मू जी जैसा राष्ट्रपति किसी देश को न मिले। चमचागिरी की भी हद्द है । कहती हैं 70% लोग गुजरात का नमक खाते हैं । खुद नमक खाकर ज़िंदगी जिएँ तो पता लगेगा।”
कॉन्ग्रेस नेता कल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ ‘चमचागिरी’ और ‘नमक खाने’ जैसे शब्दों को जोड़ते थे, आज उस भाजपा पर उनके अपमान का आरोप लगा रहे जिसने न सिर्फ उन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया बल्कि मजबूती से उनके पीछे खड़े रह कर उनकी जीत भी सुनिश्चित की। द्रौपदी मुर्मू को झारखंड के राज्यपाल के रूप में भी भाजपा की सरकार ने ही नियुक्त किया था। ओडिशा में उन्हें मंत्री भी भाजपा ने ही बनाया था।
द्रौपदी मुर्मू जी जैसा राष्ट्रपति किसी देश को न मिले। चमचागिरी की भी हद्द है । कहती हैं 70% लोग गुजरात का नमक खाते हैं । खुद नमक खाकर ज़िंदगी जिएँ तो पता लगेगा।
— Dr. Udit Raj (@Dr_Uditraj) October 5, 2022
ऐसा नहीं है कि कॉन्ग्रेस की याददाश्त कमजोर है, बल्कि पार्टी जानबूझकर ऐसा करती आई है। अब चलते हैं एक और नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी की तरफ, जो पंजाब से सांसद हैं। उन्होंने तो राष्ट्रपति द्वारा संसद के दोनों सदनों के संयुक्त संबोधन पर ही सवाल उठा दिया था। उन्होंने दावा कर दिया था कि राष्ट्रपति को अपने मन की बोलने ही नहीं दिया जाता, ऐसे में वो हमेशा सोचते हैं कि संसद को संबोधित करने का औचित्य ही क्या है?
ये अलग बात है कि प्रतिभा पाटिल और फिर प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति रहने के दौरान उनके मन में ये विचार नहीं कौंधा और न ही उन्होंने ऐसा कोई ट्वीट किया। यानी, जनजातीय समाज की एक महिला के लिए उनकी कुढ़न और उनकी पार्टी की विचारधारा का संयुक्त प्रदर्शन उन्होंने इस ट्वीट से किया। नहीं तो कोई नेता ऐसा कैसे पूछ सकता है कि राष्ट्रपति को अभिव्यक्ति और बोलने की आज़ादी का अधिकार नहीं है? उन्होंने इस विषय पर गंभर बहस की ज़रूर जताई थी।
क्या कॉन्ग्रेस इस पर कभी बहस कर सकती है कि प्रणब मुखर्जी और प्रतिभा पाटिल को अपने मन की बोलने का अधिकार है या नहीं? ये चीजें द्रौपदी मुर्मू के समय ही याद आईं, इसका अर्थ है कि जनजातीय समाज की महिलाओं को लेकर उसकी सोच ठीक नहीं है। कॉन्ग्रेस पार्टी ने मनीष तिवारी पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? आज राष्ट्रपति के संसद का हिस्सा होने से लेकर उनके अधिकार तक की बातें जो याद आ रही हैं, अपने नेता के बयान के समय ये चीजें क्यों नहीं याद आईं?
ये अलग बात है कि इस दौरान कॉन्ग्रेस नेता अनुच्छेद-87 को भूल गए, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति का अभिभाषण केंद्र सरकार की नीतियों का वर्णन होता है और उसी हिसाब से चीजें तय होती हैं। बदजुबानी की बात आए तो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी का नाम कैसे भूला जा सकता है। वो पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष में हैं। उन्होंने राष्ट्रपति को ‘राष्ट्रपत्नी’ कह दिया था। ये अलग बात है कि उनके बयान पर कोई कार्रवाई नहीं की पार्टी ने।
कॉन्ग्रेस पार्टी को अपने गिरेबान में झाँकना चाहिए। यशवंत सिन्हा जैसे बदजुबान को द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ उतारने वाले आज द्रौपदी मुर्मू का नाम लेकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। अगर जनजातीय समाज की महिला को लेकर इतनी ही गंभीरता थी तो उनके खिलाफ उम्मीदवार क्यों उतारा गया? दुष्प्रचार क्यों किया गया? पार्टी जब तक इन सवालों के जवाब नहीं देती, उसे कोई अधिकार नहीं है राष्ट्रपति पद की गरिमा की बात करने की।