RG Kar मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल में 9 अगस्त, 2024 को एक महिला डॉक्टर की लाश मिली। उक्त महिला डॉक्टर के साथ क्रूरता से बलात्कार किया गया था और फिर मार डाला गया था। परिवार का आरोप है कि काफी बातें छिपाई गईं, जैसे इसे आत्महत्या बताने की कोशिश हुई। आनन-फानन में अंतिम संस्कार किया गया। वहाँ पहले भी ऐसी संदिग्ध मौतें हो चुकी हैं, ऐसे में ड्रग्स-सेक्स रैकेट चलने की अटकलें भी लगीं। जिस तरह से प्रिंसिपल को बचाने की कोशिश हुई उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने फटकार लगाई।
पश्चिम बंगाल में इस बलात्कार और हत्या की वारदात के बाद जम कर विरोध प्रदर्शन हुए। ममता बनर्जी, जो कि मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ राज्य की गृह और स्वास्थ्य मंत्री भी हैं – उन्होंने भी अपनी पार्टी की महिलाओं के साथ एक मार्च निकाला पीड़िता को न्याय दिलाने की माँग करते हुए। ये इतर बात है कि राज्य की सत्ता खुद के हाथ में होने के बावजूद वो किससे न्याय माँग रही रहीं, ये लोगों को समझ नहीं आया। खैर, इस ‘पैदल मार्च’ के जरिए उन्होंने खुद को महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाला दिखाया।
अब विरोध प्रदर्शन को शांत करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार ने एक नया कानून पारित किया है। इसे ‘अपराजिता वुमन एन्ड चाइल्ड बिल (वेस्ट बंगाल क्रिमिनल लॉज अमेंडमेंट) बिल 2024’ नाम दिया गया है। इसमें बलात्कार के दोषी के लिए उसके जीवित रहने तक जेल या फिर फाँसी का प्रावधान किया गया है। गैंगरेप के केस में भी उम्रकैद तक की सज़ा है। पीड़िता की मौत होने या फिर उसके अंग कार्य करना बंद कर दें तो दोषी को फाँसी तक हो सकती है। सबसे बड़ी बात ये है कि FIR दर्ज किए जाने के 21 दिन के भीतर जाँच पूरी किए जाने का प्रावधान है।
हालाँकि, केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए ‘भारतीय न्याय संहिता’ (BNS) में भी बलात्कार के मामलों में 2 महीने के भीतर जाँच पूरी किए जाने का प्रावधान किया गया है। वहीं सुनवाई के लिए BNS में 2 महीने तो ममता बनर्जी वाले कानून में 1 महीने की समय-सीमा है। 2 दिवसीय विधानसभा सत्र बुला कर इस कानून को पारित कराया गया। BNS में भी बलात्कार के मामले में उम्रकैद तक का प्रावधान है, जिसे इसमें बढ़ा कर फाँसी तक किया गया है। इस तरह दोनों कानूनों में बहुत अधिक अंतर नहीं है।
भारत में फाँसी की सज़ा सुनाई तो जाती है, लेकिन सामान्यतः फाँसी दी नहीं जाती है। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और फिर राष्ट्रपति तक याचिका व दया याचिका घूमती रहती है। 2012 में ‘निर्भया’ के 4 बलात्कारियों को 2020 में फाँसी दी गई थी। उससे पहले कोलकाता में 1990 में हुए बलात्कार-हत्या के एक मामले को लेकर 2004 में एक व्यक्ति को फाँसी दी गई थी। इस तरह हमने देखा कि पिछले 2 दशक में सिर्फ रेप-हत्या के 3 मामलों में ही फाँसी दी गई है। जो मामले हाई-प्रोफ़ाइल नहीं बन पाते, उसमें भी बलात्कार तो बलात्कार ही होता है।
अब एक पत्र सामने आया है, जिसे 2021 में केंद्र में तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने पश्चिम बंगाल सरकार को भेजा था। इससे पहले 2019-2021 के बीच 3 बार ऐसे पत्र भेजे जा चुके थे। इसमें पॉक्सो एक्ट, यानी बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों की जाँच के लिए FTSC, यानी ‘फ़ास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स’ की स्थापना और संचालन की सलाह दी गई थी। 2028 में केंद्र सरकार ने इससे संबंधित कानून बनाया था, सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी सलाह दी थी।
इसके तहत जिस भी जिले में POCSO से संबंधित लंबित मामलों की संख्या 100 से अधिक थी, वहाँ-वहाँ एक्सक्लूसिव पॉक्सो अदालतों की स्थापना का निर्णय लिया गया था। पश्चिम बंगाल में ऐसे 123 FTSC का प्रावधान किया गया था, जिनमें 20 ePOCSO अदालतें थीं। मुख्य सचिव तक इस मामले को ले जाया गया, लेकिन इसके बावजूद पश्चिम बंगाल सरकार ने इस दिशा में कदम नहीं उठाया। मोदी सरकार बार-बार आग्रह करती रह गई, याद दिलाती रह गई।
इस पत्र में आँकड़ा भी बताया गया था कि मई 2021 तक ही पश्चिम बंगाल में बलात्कार के 28,559 मामले दर्ज थे। केंद्र और राज्य, दोनों के लिए महिला सुरक्षा को सर्वाधिक चिंता का विषय बताते हुए इस पत्र में लिखा गया था कि ऐसे टास्क फोर्सेज और अदालतों की स्थापना के जरिए इन मामलों में सज़ा दिलाने के लिए मजबूत मशीनरी की आवश्यकता है। इस मामले में केंद्र सरकार ने पूर्ण सहयोग का भी आश्वासन दिया था। अब पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने भी इस पत्र को साझा किया है।
उन्होंने इसके जरिए ये बताने की कोशिश की है कि महिला सुरक्षा को लेकर ममता बनर्जी कितनी सजग हैं। उन्होंने बताया है कि जब यौन शोषण से पीड़ित महिलाओं-बच्चों को न्याय दिलाने का मौका था तब ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार की एक न सुनी। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी आज जो भी कर रही हैं वो सिर्फ दिखावा है। उन्होंने चेताया कि एक सही में काम करने का समय है। खैर, इस प्रकरण से कम से कम ममता बनर्जी के ड्रामे की तो पोल खुलती ही है और साथ ही उनकी इस जनता की आँखों में धूल झोंकने वाली राजनीति की भी।
अगर ममता बनर्जी सचमुच महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को लेकर सजग होतीं तो चुनाव के समय जो भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले होते हैं और कई महिलाओं-बच्चों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता है उन मामलों में न्याय होता। भाजपा के दफ्तर में जो लोग शरण लेते हैं कई-कई दिनों तक रहने को मजबूर होते हैं उनमें महिलाएँ-बच्चे भी होते हैं। भाजपा ने अपनी कई महिला कार्यकर्ताओं के यौन शोषण का भी आरोप लगाया था। उन मामलों में TMC सरकार ने क्या कार्रवाई की?
Thanks to Hon'ble Union Minister; Shri @KirenRijiju Ji for exposing Mamata Banerjee and her Govt.
— Suvendu Adhikari (@SuvenduWB) September 4, 2024
This letter of 2021, sent by the then Union Minister of Law & Justice; Shri Kiren Rijiju Ji, highlighted the lackluster attitude of the WB Govt regarding establishing Fast Track… https://t.co/WdoOuQBHYj pic.twitter.com/JmmJL0JNc4
अगर ममता बनर्जी महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर सजग होतीं तो संदेशखली में जिस शाहजहाँ शेख और उसके गुर्गों ने जनजातीय समाज की महिलाओं का यौन शोषण किया उन लोगों को गिरफ्तार करने में देरी नहीं की जाती। चोपरा में ताजेमुल लड़कियों को बाँध कर उनकी पिटाई करता था, वीडियो आने के बाद TMC विधायक हमीदुल रहमान ने पश्चिम बंगाल को ‘मुस्लिम राष्ट्र’ बताते हुए इसे जायज ठहराया। ममता बनर्जी ने इस विधायक के खिलाफ कोई कार्रवाई की? नहीं।
और अब भी क्या हो रहा है। प्रदर्शनकारी डॉक्टरों को ही धमकाया जा रहा है। सांसद अरूप चक्रवर्ती ने कहा कि अगर कोई मरीज हड़ताल की वजह से मरता है कि इन डॉक्टरों को जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा, फिर हम आपको नहीं बचाएँगे। TMC नेता उदयन गुहा ने कहा था कि ममता बनर्जी की तरफ जो लोग उँगलियाँ उठा रहे हैं, उनकी उँगलियाँ तोड़ दी जाएँगी। इन सब पर कार्रवाई हुई? नहीं। फिर ममता बनर्जी द्वारा पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने की बातों को कोरा न माना जाए तो और क्या?