वित्त वर्ष 2019-20 में वर्तमान सरकार ने अपने दीर्घकालीन इंफ्रास्ट्रक्चर योजना की घोषणा की थी। इसके तहत पहली बार दिसंबर 2019 में राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetisation Pipeline) की परिकल्पना की गई थी। वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में सरकार ने नए और आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की। इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की घोषणा कोई नई बात नहीं थी। नई बात यह थी कि इस घोषणा के साथ ही पहली बार आधुनिक और विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए आवश्यक धन की व्यवस्था के लिए एक समग्र योजना तैयार करने का दायित्व नीति आयोग को दिया गया।
नीति आयोग ने इसी जिम्मेदारी के तहत नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (NMP) की रूपरेखा तैयार की जो वर्ष 2022 से 2025 तक, चार वर्षों के लिए होगी। इसमें केवल धन की व्यवस्था ही नहीं, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि योजना के क्रियान्वयन के लिए उचित संस्थागत व्यवस्था कैसी हो।
कई दशकों तक देश में इंफ्रास्ट्रक्चर की बात पर केवल बिजली, सड़क और पानी की बात होती थी। उसके बावजूद इन क्षेत्रों में भी जो विकास हुआ, वह संतोषजनक नहीं था। वर्तमान सरकार आने के बाद नए इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने पर जोर दिया गया, क्योंकि आर्थिक विकास को अगले स्तर पर ले जाने के लिए यह आवश्यक था। वर्ष 2022 से वर्ष 2025 तक चार वर्षों के लिए NMP के तहत सरकार ने बिजली, सड़क और पानी से आगे जाकर और सेक्टर निर्धारित किए जिनमें आधुनिक और विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता थी। ये सेक्टर हैं- क्लीन एनर्जी, ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक्स, आवास और साफ़ पानी, सबके लिए डिजिटल सर्विसेज का विस्तार, अच्छी और आधुनिक शिक्षा, किसानों की आय दोगुना करने की योजना, अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था और स्मार्ट सिटी।
इन योजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए सरकार ने परंपरागत धन की व्यवस्था के अलावा धन मुहैया कराने के जिन नए तरीकों की आवश्यकता पर बल दिया, उसकी वजह से ही योजना बनाई जिसके तहत इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च होने वाले सरकार के कुल बजट का करीब 15-17 प्रतिशत धन की व्यवस्था इस योजना के तहत की जाएगी। योजना में जिन बातों पर बल दिया जा रहा है इसमें महत्वपूर्ण हैं; योजना के समग्र क्रियान्वयन के लिए संस्थाओं का निर्माण, सरकारी संपत्तियों का मोनेटाइजेशन और केंद्र तथा राज्य के खर्चों में संपत्ति बनाने के लिए खर्चों में वृद्धि। इसी एनएमपी योजना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है सरकारी संपत्तियों को मोनेटाइज करना।
सरकारी योजनाओं और परियोजनाओं को चलाने या उन्हें इम्प्लीमेंट करने के लिए अभी तक जिन तरीकों का सहारा लिया जाता रहा है, उनमें टैक्स से सरकारी आमदनी, सरकार द्वारा लिया गया ऋण और सरकारी कंपनियों में विनिवेश प्रमुख रहे हैं। वर्तमान सरकार पहली बार इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए धन की व्यवस्था के परंपरागत तरीकों से आगे देख रही है और एक नया तरीका लेकर आई है जिनमें इंफ्रास्ट्रक्चर में सरकारी खर्च से बनी संपत्तियों को निर्धारित योजना और निर्धारित समय के लिए चलाने की खातिर निजी क्षेत्र को दिया जाएगा और इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के तहत नई संपत्तियों को बनाने के लिए निजी क्षेत्र से धन लिया जाएगा। यह तरीका विश्व भर में मान्य है। यह अलग बात है कि भारत में पहली बार कोई सरकार इसे आजमा रही है।
इसके साथ ही जिन सरकारी संपत्तियों से आय नहीं हो रही है या जो संपत्तियाँ किसी काम नहीं आ रही हैं, उन्हें निजी क्षेत्र के ऑपरेटर या निवेशकों को बेचने की योजना है। लगभग हर मंत्रालय के पास ऐसी बहुत सी संपत्ति है जो इस केटेगरी में आती हैं और जिन्हें निजी क्षेत्र को देकर न केवल उनमें आवश्यक निवेश कर उन्हें चलने लायक बनाया जा सकता है, बल्कि देश के आर्थिक विकास में उनका योगदान भी तय किया जा सकता है। सरकार की यह योजना एक साइकिल की तरह चलेगी जिनमें पहले से बनी सरकारी संपत्तियों को मोनेटाइज कर निजी क्षेत्र के निवेशकों से धन आएगा ताकि नई संपत्ति बने। जो नई संपत्ति बनेगी उन्हें भी आगे चलकर मोनेटाइज कर नए सिरे से धन इकठ्ठा किया जाएगा ताकि और नई संपत्ति बने। कह सकते हैं विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने को लेकर यह सरकार का एक रोलिंग प्लान है जिसके अनवरत चलते रहने की आशा है।
चूँकि इंफ्रास्ट्रक्चर सम्बंधित सरकारी संपत्ति का मोनेटाइजेशन भारत के लिए एक नई योजना है ऐसे में इसका राजनीतिक विरोध स्वाभाविक है। यह केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी बेचने का मामला नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी को बेचने की योजना लगभग बीस वर्षों से चल रही है पर हमें याद रखना चाहिए कि अभी तक कोई भी सरकार विनिवेश के अपने घोषित लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी है। विनिवेश के घोषित लक्ष्य और उससे प्राप्त धन का अंतर हम वर्ष दर वर्ष देखते आए हैं। यही कारण है कि हम आज पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में यदि वर्तमान सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए धन इकट्ठा करने के नए तरीके आजमाना चाहती है तो उसका स्वागत होना चाहिए, क्योंकि इसे न केवल विश्व के अन्य देशों में स्वीकार किया जाता है, बल्कि यह सरकारी संपत्तियों का आदर्श उपयोग भी सुनिश्चित करती है।
देश आज उस बिंदु से आगे आ चुका है जब न्यूनतम इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण भी चुनावी घोषणा पत्र तक सीमित रह जाता था। आज के वैश्विक परिवेश में नए और आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी विकास की दौड़ में भारत के पिछड़ने का कारण बन सकती है। आज जब सरकार दशकों तक विकास का हिस्सा न बन पाने वाले गंवई भारत को उसका हिस्सा देना चाहती है तब यह काम केवल नारों और वादों तक नहीं रखा जा सकता। दशकों तक बिजली, सड़क और पानी (BSP) को आर्थिक विकास समझने वाला भारत अब सूचना क्रान्ति के इस युग में काफी हद तक समझता है कि असली विकास क्या होता है। ऐसे में विकास के लिए आवश्यक सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना को समर्थन मिलना चाहिए। वर्तमान में हम जिस तरह की महामारी झेल रहे हैं उसमें रोजगार का सबसे सरल साधन इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण है।
नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन को लेकर भ्रांतियाँ बनाई और फैलाई जा रही हैं। यह आज हो रहा है और शायद निकट भविष्य में न रुके पर इसमें किसी तरह का आश्चर्य भी नहीं है। पिछले कई वर्षों की राजनीति बताती है कि विपक्ष गवर्नेंस के वैकल्पिक मॉडल के रूप में केवल प्रोपेगेंडा ही कर सका है। ऐसे में NMP का विरोध भी होगा और उसके खिलाफ प्रोपेगेंडा भी फैलाया जाएगा। वर्तमान सरकार पर आरोप लगेंगे कि वह सरकारी संपत्तियों को ‘कौड़ी’ के भाव बेच रही है। पर इन सब के बीच हमें याद रखने की आवश्यकता है कि वर्तमान सरकार को धन इकठ्ठा करने के लिए सरकारी संपत्तियों के मोनेटाइजेशन का अधिकार है, क्योंकि यह न केवल एक अच्छा वैकल्पिक मॉडल है, बल्कि उसने अपने कार्यकाल में नई सरकारी संपत्तियों का निर्माण भी किया है।