पश्चिमी एशिया में एक छोटा सा देश है – इजरायल। यहाँ हर साल (अप्रैल-मई में) ‘योम हाशाह’ मनाया जाता है। इसे अंग्रेजी में कह लीजिए- Holocaust Remembrance Day, अर्थात होलोकॉस्ट को याद करने का दिन। होलोकॉस्ट को संक्षेप में समझिए यहूदी नरसंहार। नाज़ी जर्मनी में हिटलर के शासनकाल में 1940 के दशक में 60 लाख यहूदियों का नरसंहार हुआ था। उन्हें ही श्रद्धांजलि देने और उन्हें याद करने के लिए ये दिवस मनाया जाता है।
इजरायल एक विकसित देश है, जो रक्षा तकनीक के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में आता है। या इजरायली बेवकूफ हैं? हम ऐसा इसीलिए पूछ रहे हैं क्योंकि भारत के लिबरल गिरोह ने ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (Partition Horrors Remembrance day) को लेकर कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया दी है। किसी का कहना है कि विभाजन को क्यों याद करें तो कोई कह रहा है कि पुराने घाव क्यों ताज़ा करें।
हिन्दू धर्म में तो रीति-रिवाज है कि किसी के मरने के बाद उसका अंतिम-संस्कार और फिर श्राद्ध करते हैं। अगले वर्ष ठीक उसी तारीख़ पर ‘बरखी‘ मनाई जाती है, जिसमें ब्राह्मणों व लोगों को भोजन कराया जाता है। दान-पुण्य किए जाते हैं। पितृपक्ष में पितरों का तर्पण किया जाता है। अब यहाँ लिबरल लॉजिक लगाएँ तो क्या लोग अब मृत्यु के बाद अपने पूर्वजों को भी भूल जाएँ? मृतकों को याद करने का अर्थ सिर्फ ‘घाव कुरेदना’ नहीं होता।
आइए, कुछ और देशों की बात भी कर लेते हैं। कई देशों में ‘National day of mourning’, अर्थात शोक का दिवस मनाया जाता है। सामान्यतः किसी त्रासदी की याद में ऐसा किया जाता है। यूरोपियन यूनियन अमेरिका में हुए 9/11 हमले की बरसी पर शोक मनाता है। नवंबर 2015 में पेरिस में हुए आत्मघाती हमले की बरसी पर भी शोक मनाया जाता है। क्या लिबरल गिरोह पूरे यूरोप को मूर्ख बता देगा?
रूस-कोकेशियान युद्ध की याद में और उस दौरान हुए नरसंहार की याद में सिकैसियन (Circassian) समाज के लोग हर साल 21 मई को शोक दिवस मनाता है। ऑस्ट्रेलिया के स्थानीय निवासियों के खिलाफ हुए अत्याचार के विरोध में हर साल ‘नेशनल सॉरी डे’ मनाया जाता है। उत्तर-पूर्वी अमेरिका के न्यू इंग्लैंड में हर साल नेटिव अमरीकी ‘नेशनल डे ऑफ मोर्निंग’ मनाते हैं। फिलिस्तीन वाले हर साल ‘नकबा दिवस’ मनाते हैं, शरणार्थियों को याद करने के लिए।
इस तरह हमने देखा कि दुनिया के कई देश और समूह अपने ऊपर हुए अत्याचारों को याद करने के लिए, उस क्रूरता के पीड़ितों को सम्मान देने के लिए और नरसंहार के मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए शोक दिवस मनाते हैं। फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? हमारा देश तो सैकड़ों वर्षों तक आक्रांताओं से पीड़ित रहा है। देश का विभाजन एक त्रासदी थी, जिसने 20 लाख लोगों की जान लील ली। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर रविवार (15 अगस्त, 2021) को कहा,
“हम आजादी का जश्न मनाते हैं लेकिन बँटवारे का दर्द आज भी हिंदुस्तान के सीने को छलनी करता है। ये पिछली शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदी में से एक थी। आजादी के बाद इन लोगों को बहुत ही जल्द भुला दिया गया। कल ही (अगस्त 14, 2021) भारत ने एक भावुक निर्णय लिया है। अब से हर वर्ष 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में याद किया जाएगा। जो लोग विभाजन के समय अमानवीय हालात से गुजरे, जिन्होंने अत्याचार सहे, जिन्हें सम्मान के साथ अंतिम-संस्कार तक नसीब नहीं हुआ, उन लोगों का हमारी स्मृतियों में जीवित रहना भी उतना ही जरूरी है। आजादी के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का तय होना, ऐसे लोगों को हर भारतवासी की तरफ से आदरपूर्वक श्रद्धांजलि है।”
और ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ का विरोध कौन लोग कर रहे हैं? वही लोग, जो हर साल बाबरी विध्वंस पर मातम मनाते हैं। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी भविष्य की पीढ़ी को बाबरी के बारे में बताने की बात करते हैं। कभी राजदीप सरदेसाई की पूरी पत्रकारिता ही 2002 के गुजरात दंगों तक सीमित थी। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बरसी पर ज़हर उगले गए। यही लोग अब पूछ रहे कि पुरानी बातें क्यों याद की जाएँ?
ऐसा इसीलिए, क्योंकि डर है कि जब बात विभाजन की होगी, 20 लाख मौतों की होगी और 2 करोड़ लोगों के विस्थापन की होगी तो उन लोगों की आलोचना तो होगी ही, जिनके कारण देश को ये सब भुगतना पड़ा। वो लाखों परिवार आज भी इस दंश का सामना कर रहे हैं। जो इस त्रासदी के पीड़ित थे, उनसे और उनके परिवारों से जाकर पूछिए। उस समय के हर एक पीड़ित की व्यथा आज के प्रत्येक भारतवासी के पास पहुँचनी चाहिए, भविष्य की पीढ़ी को जाननी चाहिए।
इन्हें डर है कि विभाजन की बात होने पर उस मोहम्मद अली जिन्ना की बात होगी, जिसकी तस्वीर ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU)’ में लगी थी। इन्हें डर है कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलतियों की बात होगी, जिन्होंने हाथ उठा कर विभाजन का समर्थन किया था। कॉन्ग्रेस की बात होगी, जिसने विभाजन को स्वीकार किया और जिसे इसके बाद सत्ता मिली। नेहरू पीएम बन गए और जिन्ना कायदे आजम, लेकिन आम जनता सड़क पर मरती रही।
Yesterday, India has taken an emotional decision. Hereon, August 14 will be celebrated as Partition Horrors Remembrance Day in memory of people who were affected by the Partition in 1947.#IndiaIndependenceDay pic.twitter.com/4Q2QX2hxPW
— BJP (@BJP4India) August 15, 2021
खासकर बंगाल और पंजाब के लोगों से विभाजन के बारे में पूछिए। ये दोनों राज्य इस त्रासदी से सबसे ज्यादा पीड़ित रहे थे। मोहम्मद अली जिन्ना ने 16 अगस्त, 1946 को ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ की घोषणा की थी। इस दिन पूरे देश भर में जिन्ना के मुस्लिम अनुयायियों ने हिंसा की। खासकर कोलकाता में तो हिन्दुओं का नरसंहार हुआ। आधिकारिक आँकड़े ही कहते हैं कि 4000 लोग मारे गए। असली आँकड़े इससे काफी ज्यादा हो सकते हैं।
ये वो समय था, जब कॉन्ग्रेस और मुस्लिम लीग कंस्टिट्यूएंट एसेम्ब्ली में सबसे बड़े दल हुआ करते थे। जिन्ना ने कहा था कि या तो वो भारत का विभाजन कर देगा, नहीं तो इसे तबाह कर देगा। कोलकाता में 72 घंटों के भीतर 1 लाख लोगों के विस्थापन के लिए जिम्मेदार ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के जवाब में कॉन्ग्रेस ने क्या किया? और ज्यादा खूनखराबे का रास्ता तैयार किया? जिस कॉन्ग्रेस के हाथ में सब कुछ था, वो हिन्दुओं और सिखों को मरती हुई देखती भर रही।
इसीलिए, उन 20 लाख मौतों और करोड़ों विस्थापितों के दर्द को याद करने के लिए ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ ज़रूरी है। हिन्दुओं के खिलाफ कत्लेआम के ऐलान इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा सालों से किए जाते रहे हैं, इसे याद करने के लिए विभाजन की स्मृति हमारे और हमारी आने वाली पीढ़ियों में होनी चाहिए। किसकी गलती थी, कौन मरे, मारने वाले कौन थे और कौन सब कुछ देख-सुन कर भी शांत था – इन चीजों पर नए सिरे से चर्चा के लिए ये ज़रूरी है।