Friday, November 15, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्देमनमोहन सिंह का PM मोदी को पत्रः पुराने मुखौटे में कॉन्ग्रेस की कोरोना पॉलिटिक्स...

मनमोहन सिंह का PM मोदी को पत्रः पुराने मुखौटे में कॉन्ग्रेस की कोरोना पॉलिटिक्स को छिपाने की सोनिया-राहुल की नई कवायद

विपक्षी दलों की जो भूमिका पिछले एक वर्ष में दिखाई दी है, उसके बाद इस तरह के पत्रों को सरकार की तरफ़ से भले नहीं पर उसके समर्थकों की तरफ़ से शंका की दृष्टि से देखा जाएगा।

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार को कोरोना से लड़ने के लिए सुझाव दिए हैं। डॉक्टर सिंह के इन सुझावों में सबसे अधिक ज़ोर राज्यों को वैक्सीन की खरीद/निर्यात, उत्पादन और उनके इस्तेमाल पर नीति बनाने के लिए स्वतंत्रता की माँग को लेकर है। साथ ही उन्होंने यह माँग की है कि वैक्सीन की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार से पेटेंट अधिनियम 1970 के तहत अनिवार्य लाइसेन्सिंग से सम्बंधित धाराओं का सहारा लेकर दवा बनाने वाली अन्य कंपनियों को वैक्सीन का उत्पादन करने का अधिकार दे।

इसके अलावा डॉक्टर सिंह ने प्रधानमंत्री से माँग की है कि राज्यों को और अधिक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए ताकि वे अपनी ज़रूरतों के अनुसार अपने लिए नियम तय कर सकें। उनकी एक और माँग के अनुसार सरकार दवाओं और वैक्सीन के आँकड़ों को लेकर और पारदर्शिता बरते। यह पत्र कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी की एक मीटिंग के बाद लिखा गया है।

पिछले लगभग एक महीने से राहुल गाँधी के साथ ही विपक्ष के नेताओं ने कई बार यह माँग रखी कि सरकार भारत में बनने वाली वैक्सीन के अलावा और भी वैक्सीन आयात करने की अनुमति दे। उनके सहायकों ने उनकी इस माँग का समर्थन करते हुए सोशल मीडिया पर बहस भी चलाई। हाल ही में सरकार ने कुछ और वैक्सीन के आयात की अनुमति दी जिसे बाद में राहुल गाँधी की जीत बताया गया। यह बात अलग है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन वैक्सीन के भारतीय निर्माताओं के साथ पहले भी बात कर चुके थे।

भारत में महामारी आए एक वर्ष से अधिक हो गए। सरकार ने विपक्ष के साथ मिलकर काम किया और हर निर्णय, आदेश, अनुमति और प्रोटकॉल तय करने में राज्यों से मिलने वाली जानकारियों को आधार बनाया। कई मौक़ों पर केंद्र ने राज्य सरकारों को कोरोना से लड़ने के लिए अपने नियम ख़ुद बनाने की स्वतंत्रता दी। ऐसे में डॉक्टर सिंह की माँग कि राज्यों को नियम बनाने की अनुमति दी जाए, एक राजनीतिक माँग लगती है।

जहाँ तक आँकड़ों में पारदर्शिता की बात है, सुझाव और नियम बनाने से लेकर राज्यों को दी जाने वाली वैक्सीन और उसके इस्तेमाल के आँकड़े पहले ही सार्वजनिक हैं और मीडिया, शोधकर्ता और तमाम संस्थान अपने विश्लेषण के लिए इन आँकड़ों का इस्तेमाल करते रहे हैं। वैक्सीन उत्पादन के लिए अनिवार्य लाइसेन्सिंग से सम्बंधित धाराओं का इस्तेमाल करने का सुझाव नया नहीं है। इससे पहले वामपंथी दल यह सुझाव दे चुके हैं। इस पर कहाँ तक काम हो सकेगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वर्तमान परिस्थितियों में कोरोना के वैक्सीन से सम्बंधित पेटेंट के अंतर्राष्ट्रीय नियम क़ानूनी और व्यावहारिक तौर पर क्या कहते हैं।

डॉक्टर सिंह द्वारा लिखा गया यह पत्र कॉन्ग्रेस वर्किंग कमिटी की मीटिंग के बाद की औपचारिकता से अधिक कुछ नहीं लगता। यह बात अलग है कि जब कोरोना की दूसरी लहर शायद अपने चरम पर है और स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा दबाव है, ऐसे समय में यह पत्र जनता के बीच कई सवाल खड़े करता है।

पिछले एक वर्ष में जब देश के लगभग सभी राज्यों ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करते हुए पहली लहर पर लगभग हर तरह से क़ाबू पा लिया था, तब कुछ गिने-चुने राज्य, जिनमें कॉन्ग्रेस शासित राज्य भी शामिल हैं, केंद्र सरकार के साथ क्या पूरी तरह से समन्वय बना सके? महाराष्ट्र और केरल ऐसे राज्यों में से रहे हैं। पिछले एक महीने में महाराष्ट्र की तरफ़ वैक्सीन की सप्लाई को लेकर कई बार भ्रम की स्थिति पैदा की गई। वैक्सीन को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से जो बयान दिए गए, उन बयानों पर रोक लगाने को लेकर कोई बहस क्यों नहीं हुई? यह जानना दिलचस्प रहता कि डॉक्टर सिंह ने इन राज्यों की अकर्मण्यता पर उन्हें क्या सुझाव दिया होगा?

कोरोना की दूसरी लहर आने से पहले बिहार चुनावों के समय सारे दल मिलकर इस बात पर विचार क्यों नहीं कर सके कि संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए चुनाव प्रचार के नए संभावित तरीक़ों पर सहमति बनाई जाए? यदि कॉन्ग्रेस वर्किंग कमिटी तब एक पत्र लिखकर सरकार और विपक्ष के बीच एक समन्वय बनाने का प्रयास करती दिखाई देती तो अच्छा रहता।

कॉन्ग्रेस पार्टी जब भी केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री को पत्र लिखती है तो उस पर हस्ताक्षर करने के लिए डॉक्टर मनमोहन सिंह को आगे ले आती है। पार्टी को शायद लगता है कि किसी भी तरह के पत्र को विश्वसनीय बनाने के लिए एक ही रास्ता है और वह है पत्र पर डॉक्टर सिंह का हस्ताक्षर। दल को शायद यह लगता है कि सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी यदि सरकार को पत्र लिखेंगे तो उसे शायद गंभीरता से न लिया जाएगा।

वर्तमान परिस्थितियाँ किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं हैं। ऐसे में सरकार और विपक्ष जितना अधिक समन्वय बना सकें, देश के लिए अच्छा होगा। डॉक्टर सिंह के सुझावों का सरकार स्वागत करेगी पर विचार कितना करेगी वह जल्द ही दिखाई देगा। विपक्षी दलों की जो भूमिका पिछले एक वर्ष में दिखाई दी है, उसके बाद इस तरह के पत्रों को सरकार की तरफ़ से भले नहीं पर उसके समर्थकों की तरफ़ से शंका की दृष्टि से देखा जाएगा।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

थीसिस पेश करने से लेकर, डिग्री पूरी होने तक… जानें जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुस्लिमों के साथ होता है कैसा बर्ताव, सामने आई रिपोर्ट

'कॉल फॉर जस्टिस' की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट से पता चलता है कि जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुस्लिमों के साथ न केवल भेदभाव हुआ बल्कि उन्हें धर्मांतरण के लिए उकसाया भी गया।

बांग्लादेश में संविधान का ‘खतना’: सेक्युलर, समाजवादी जैसे शब्द हटाओ, मुजीब से राष्ट्रपिता का दर्जा भी छीनो – सबसे बड़े सरकारी वकील ने दिया...

युनुस सरकार बांग्लादेश के संविधान से 'सेक्युलर' शब्द निकालने की तैयारी कर रही है। इसे इस्लामीकरण की दिशा में एक कदम के तौर पर देखा जा रहा है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -