प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार (5 नवंबर 2021) को केदारनाथ धाम में जगतगुरु आदि शंकराचार्य की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया। बाढ़ की तबाही से बर्बाद हुए मंदिर परिसर सहित कई विकास परियोजनाओं की समीक्षा करते हुए शिलान्यास और उद्धाटन भी किया। माथे पर त्रिपुण्ड रमाए PM मोदी ने वहाँ लोगों को सम्बोधित करने से पहले मंदिर में करीब 18 मिनट तक पूजा-अर्चना भी की। इन सब से हमेशा की तरह ‘बीफ खाने वाले‘ रामचंद्र गुहा सहित सेक्युलर होने का राग अलापने वाले लिबरलों, कॉन्ग्रेसियों, वामपंथियों और मुस्लिमों को तगड़ी मिर्ची लगी है।
#WATCH Prime Minister Narendra Modi performs ‘aarti’ at Kedarnath temple in Uttarakhand pic.twitter.com/V6Xx7VzjY4
— ANI (@ANI) November 5, 2021
दिवाली पर पटाखों की धूम से भन्नाए ये पूरा गैंग एक साथ ट्विटर के मैदान में उतर आए। इसी कड़ी में सबसे बड़ा ‘ज्ञान’ तथाकथित इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने दिया। उन्होंने इतिहास और इस देश की संस्कृति और परंपरा की तिलांजलि देते हुए ट्वीट किया, “यदि प्रधानमंत्री किसी मंदिर में प्रार्थना करना चाहते हैं तो उन्हें इसे निजी तौर पर और बिना कैमरे के उपस्थिति में करना चाहिए। राज्य के खर्च पर ये सार्वजनिक प्रदर्शन सही नहीं हैं। उन्होंने अपने पद की गरिमा को ठेस पहुँचाया है।”
If the Prime Minister wants to pray in a temple he should do so privately and without cameras in attendance. These public displays at state expense are repugnant. They demean his office.
— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) November 5, 2021
इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपने सेलेक्टिव एक्टिविज्म और विरोध के कारण ही निशाने पर हैं। लोग नेहरू के कुम्भ स्नान से लेकर इंदिरा गाँधी के सार्वजनिक प्रदर्शनों सहित कॉन्ग्रेस और लिबरल गैंग के चहेतों की कई तस्वीरें सामने रख रहे हैं। जब राज्य के खर्चे पर ही राष्ट्रपति भवन में रोजा इफ्तार और दरगाह पर चादर चढ़ाते वक़्त के कई वीडियो और तस्वीरें सार्वजनिक हैं। इसमें राजीव गाँधी से लेकर सोनिया, राहुल गाँधी की भी तस्वीरें हैं तो वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कई दूसरे विपक्षी नेताओं की भी।
Yes of course, btw have not they invited you for food this day👇 https://t.co/WSldTuhnJT pic.twitter.com/7HnjfwgMAU
— Chamcha Number 1 (@CongressiC) November 5, 2021
If the Prime Minister & his offsprings wanted to do Iftaar they should have done so privately and without cameras in attendance. These public displays at state expense were repugnant. They demeaned his office. https://t.co/nOAr8Rw3ea pic.twitter.com/0hhtDwTTjV
— Shehzad Jai Hind (@Shehzad_Ind) November 5, 2021
Sir you’re attacking late PM Indira Gandhi ? pic.twitter.com/KipbYfsM0m
— Subham (@subhsays) November 5, 2021
Mr. Guha: my friend @skamaraj32-ji & I were discussing what would be your take on this photograph ? https://t.co/wLUqNxcNPj pic.twitter.com/qlAAyL185n
— UN (@UshaNirmala) November 5, 2021
ऊपर के कुछ ट्वीट में महज चंद उदहारण है इंटरनेट और खुद रामचंद्र गुहा के जवाब में ही लोगों ने ऐसे कई लिंक और प्रमाण दे डाले हैं। इतना ही नहीं चर्चे तो राजीव गाँधी के सरकारी खर्चे पर अंडमान निकोबार पर पूरे परिवार, मित्रों और सोनिया गाँधी के रिश्तेदारों के साथ छुट्टियाँ मनाने, पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू के अपनी फ्रेंड एडविना माउंटबेटन के डेथ पर पूरा युद्धपोत लिली के फूलों से भरकर ले जाने और इंदिरा गाँधी के सरकारी विमान में जन्मदिन मनाने का भी है।
Birthday Parties in aeroplane at public expenses are repugnant https://t.co/jruBr4LWM9 pic.twitter.com/SsSrE2HmhL
— Sardar Lucky Singh🇮🇳 (@luckyschawla) November 5, 2021
पर सवाल यह है कि नेहरू पर किताब लिखने के साथ ही स्वतंत्रता के बाद का भी इतिहास लिखने वाले रामचंद्र गुहा का ऐसा कोई सीधा विरोध तब सामने नहीं आया और न ही तब उनको राज्य के खर्च की चिंता हुई। इसी राज्य ने ऐसे इतिहासकारों पर भी खर्च किया है जो वर्षों से देश को अधूरा या सेलेक्टिव इतिहास बताते, लिखते और पढ़ाते आए हैं।
यहाँ एक सवाल यह भी है कि यदि हिन्दू धर्म की, संस्कृति या परंपरा की बात भारत में नहीं होगी तो कहाँ होगी। 50 से अधिक मुस्लिम बहुल देश है जो घोषित रूप से इस्लमिक हैं। वहीं बाकी के अपने ईसाई प्रतीकों और परम्पराओं का खुले तौर पर निर्वाह करते हैं जिसका न उनके देश में बल्कि बाहर भी कहीं कोई विरोध नहीं नजर आता। यहाँ तक अमेरिका की करेंसी पर ही लिखा होता है ‘इन गॉड वी बिलीव’ बाकी वेटिकन से लेकर यहुदी देश इजराइल की बात छोड़ ही देते है जिन्हे अपने गौरव और प्रतीकों के साथ व्यवहार करने में कोई समस्या नहीं है।
भारत में भी जब मुस्लिम परम्पराओं का निर्वाह होता है, राज्य मदरसों (जहाँ मजहबी शिक्षा ही दी जाती है।), मौलवियों, इमामों को सैलरी देता है। वक्फ बोर्ड के नाम पर उनकी संपत्ति को अलग रखते हुए सार्वजनिक स्थानों पर खुले में नमाज का परमिशन देता है तो भी कभी लिबरलों को कोई समस्या नहीं हुई। बल्कि मुस्लिमों की हर अति और राज्यों या देश की मुस्लिम तुष्टिकरण की हर नीतियों का इन्होंने न सिर्फ खुलेआम समर्थन किया बल्कि बढ़ावा भी दिया।
राज्य हिन्दू मंदिरों पर जब खुले तौर पर अधिकार करते हुए मंदिर की संपत्ति और राजस्व का उपयोग मंदिर से हटकर दूसरे कामों में करता है तब भी ऐसी कोई बात सामने नहीं आई कि राज्य को मंदिरों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बल्कि उन्हें मस्जिदों, चर्चों या दूसरे समुदायों की तरह स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए।
वामपंथी लिबरल गैंग ऐसा न करे हैं, न करेंगे क्योंकि यह इनके अजेंडे के अनुकूल नहीं है। एक मात्र भारत को ही अपनी अंतिम शरणस्थली मानने वाले हिन्दुओं-हिन्दू धर्म से जुड़ा जब भी कोई विशेष आयोजन या कल्याण का कार्यक्रम होता है तो इन्हें पीड़ा होने लगती है और ‘सेक्युलर’ जैसे अर्थ खो चुके खोखले शब्द को हथियार बनाकर इस देश की उस बहुसंख्यक हिन्दू आबादी को नीचा दिखाने लगते हैं।
जबकि, सनातन धर्म और हिन्दुओं ने ही हजारों सालों के संघर्ष और बलिदान के बल पर इस देश में तमाम मुग़ल और विदेशी हमलों को झेलते हुए भी अपनी धर्म-संस्कृति को अक्षुण्य रखा है। आज भी जब बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है जिसपर इनके कंठ में शब्द अटक जाते हैं, जुबान खामोश हो जाते हैं तब न सिर्फ हिन्दू बल्कि सिख, बौद्ध, जैन, पारसी भी टकटकी लगाए भारत की तरफ ही आशा की नजरों से देखते हैं। यह इन वामपंथियों का सेक्युलरिज्म ही था जो मुस्लिमों द्वारा सताए इन पीड़ितों को CAA के जरिए नागरिकता देने में आड़े आया। विरोध के नाम पर इन लिबरलों और वामपंथियों ने ही झूठ बोलकर मुस्लिम को भड़काकर दिल्ली में हिन्दू विरोधी दंगों सहित कई राज्यों में हिंसा का नंगा नाच किया।
भारत बहुत कुछ मुगलों, अग्रेजों द्वारा लूट लिए जाने और बाद में ऐसे वामपंथी इतिहासकारों द्वारा ही उन लूटेरों और आक्रमणकारियों का महिमामंडन किए जाने के दंश झेल रहा है। और आज जब सालों बाद प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हिन्दू धर्म पर गौरव करने, उसके प्रतीकों के निर्माण, संरक्षित और उसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाने की कोशिश हो रही है तो इन्हें फिर से स्थान विशेष में दर्द हो रहा है।
वैसे सरकारें किसी दूसरे गृह से नहीं आतीं, वो यहीं की जनता के आकांक्षाओं और उम्मीदों का प्रतिफल होती हैं। प्रधानमंत्री मोदी को देश ने दो बार भारी मतों से इसीलिए चुना है क्योंकि उनमें उन्हें हिन्दुओं के प्रति सहृदयता की उम्मीद दिखी। सरकार लगातार उन उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास कर रही। मोदी सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मन्त्र पर अडिग देश में भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक परंपरा को भी आगे बढ़ा रही है। इसी का प्रतिफल है कि चारधाम रोड, बुद्धा सर्किट, राम या हनुमान सर्किट के साथ राम मंदिर और अयोध्या दीपोत्सव, काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर, विंध्याचल कॉरिडोर जैसी अनेकों परियोजनाओं पर भी काम हो रहा है। जो इस देश की गौरवशाली परंपरा और सनातन संस्कृति की वाहक हैं।
यह देश के प्रधानमंत्री का व्यक्तित्व, अपनी जड़ों के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति ही है कि आज पूरा विश्व भारतीय परंपरा और त्योहारों से जुड़ रहा है। आज अमेरिका सहित कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष हिन्दू त्यौहार मनाते नजर आते हैं, तो कभी उस देश के खर्च पर ऐसे कई सार्वजनिक आयोजनों का हिस्सा होते हैं ताकि खुद को भारत का करीबी दिखा सकें। ऐसे में वामपंथी और लिबरल गैंग की पीड़ा सेक्युलरिज़्म का बचाव नहीं, सिर्फ एक प्रधानमंत्री या पार्टी जो इनको पसंद नहीं है उसका विरोध है। जिसके मूल में उस पार्टी या नेता का हिन्दू धर्म से गहरा जुड़ाव है और राम के अस्तित्व को ही नकारने वाले वामपंथियों और लिबरल गैंग की समस्या हिन्दू धर्म, परंपरा, मान्यताओं और प्रतीकों से है क्योंकि हिन्दू बहुल देश में हिन्दुओं की बात करना ही वामपंथी और लिबरल गैंग के हिसाब से सांप्रदायिक हो जाता है।