आज की भारतीय राजनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्दगिर्द घूमती है। उन पर लगे आरोप, उनके बयान, उनकी प्रतिक्रियाएँ, उनके सम्बोधन, उनके भाषण, उन्हें लेकर विपक्षी नेताओं के आपत्तिजनक शब्द। लेकिन, चुनाव प्रचार की प्रक्रिया में उनकी ही नकल उतारने की कोशिश होती है। लेकिन, इस दौरान प्रियंका गाँधी जैसे नेता झाड़ू पकड़ने से पहले भूल जाते हैं कि मोदी हर चीज राजनीति के लिए नहीं करते।
प्रियंका गाँधी ने झाड़ू पकड़ी है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव आ रहे हैं। ऐसे में कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए धुआँधार प्रचार कर रहीं प्रियंका गाँधी ने लॉकअप में झाड़ू क्या थामा, अब ये उनके हाथ से निकल ही नहीं रहा है। पंजाब के बाद अब उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस की ‘दलित सियासत’ चालू है। झाड़ू से अभी क्या-क्या होना है, देखा जाएगा। लेकिन, क्या इन लोगों को याद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना किसी चुनाव के झाड़ू पकड़ी थी?
अब याद कीजिए 2 अक्टूबर, 2014 को। देश में आम चुनाव हो चुके थे और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने 6 महीने भी नहीं हुए थे। तभी उन्होंने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ लॉन्च कर दिया था। बाद में चम्पारण की एक रैली में उन्होंने ‘सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह’ का नारा दिया। इसका किसी चुनाव से कोई लेनादेना नहीं था क्योंकि इसके बाद इसके कई चरण लॉन्च हुए और अब इस साल नया मिशन लॉन्च किया गया है, जिससे शहरों से कचरे के ढेर हटाए जाएँगे।
प्रियंका गाँधी लखीमपुर खीरी जा रही थीं। रास्ते में उन्हें गिरफ्तार किया गया और एक लॉकअप में रखा गया। गेस्ट हाउस के उस कमरे में उन्होंने झाड़ू लगाई। कॉन्ग्रेस नेताओं ने जम कर इस वीडियो को शेयर किया। शेयर तो कुछ भाजपा वालों ने भी किया, लेकिन वीडियो के उस एडिटेड वर्जन में प्रियंका गाँधी कॉन्ग्रेस के चुनाव चिह्न हाथ छाप को ही बुहार कर साफ़ करते दिख रही हैं। खैर, ये मजाक की बात की।
अब प्रियंका गाँधी ने लखनऊ के इंदिरा नगर स्थित एक दलित बस्ती में झाड़ू लगाई और वाल्मीकि मंदिर में पूजा की। वैसे भी चुनाव आते ही दोनों भाई-बहनों का मंदिर-मंदिर घूमना आम हो जाता है। इस बार तो कॉन्ग्रेस ने ये भी बताया है कि प्रियंका गाँधी नवरात्र का व्रत रख रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले तीन दशक से निराहार नवरात्र व्रत रखते आए हैं, जब वो चुनावी राजनीति का सक्रिय हिस्सा नहीं थे, तभी से।
खैर, वाल्मीकि समुदाय को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए पैंतरे आजमा रही कॉन्ग्रेस ने कभी अनुच्छेद-370 को हटाने की पहल नहीं की, जिसके कारण जम्मू कश्मीर के वाल्मीकि समुदाय के लोगों को मैला ढोने को विवश होना पड़ता था और उन्हें भारत का नागरिक तक नहीं माना जाता था। मोदी सरकार ने जब उन्हें अधिकार दिए, तब यही कॉन्ग्रेस इसका विरोध कर रही थी। CAA के माध्यम से दलितों को अधिकार मिले, तब तभी पार्टी इसके विरोध में थी।
फिर अब ये यूपी चुनाव से पहले कैसा ‘दलित प्रेम’ जग आया? आज जो पार्टी झाड़ू लगाने को सादगी का प्रतीक और प्रियंका गाँधी के झाड़ू लगाने पर मजाक व विरोध को दलितों का अपमान बता रही है, क्या अब वो बताएगी कि उसके नेताओं ने प्रधानमंत्री का अपमान क्यों किया था, जब उन्होंने झाड़ू पकड़ी थी? पार्टी ने इसे एक तिकड़म बताया था, हथकंडा करार दिया था। केरल में पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष वीएम सुधीरण ने कहा था कि ऐसा कुछ सभी दलों व मुख्यमंत्रियों को बुला कर किया जाना चाहिए था, वरना ये तो ‘नौटंकी’ है।
यहाँ तक कि जब तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘स्वच्छ भारत मिशन’ चैलेंज स्वीकार कर लिया था, तब उनके खिलाफ भी कॉन्ग्रेस ने कार्रवाई करते हुए उन्हें पार्टी के प्रवक्ता पद से हटा दिया था। ये कैसा झाड़ू प्रेम? स्वच्छता का विरोध करने वाली ये पार्टी आज झाड़ू पर सियासत कर रही? अब आपको जानना चाहिए कि पीएम मोदी ने झाड़ू पकड़ी तो देश में उसका असर क्या हुआ।
‘स्वच्छ भारत अभियान’ के पहले चरण में ही 10.71 करोड़ शौचालयों का निर्माण भारत सरकार द्वारा किया गया। अगर विपक्षी नेताओं या मोदी विरोधियों को लगता है कि ये सब क्षणिक था, तो उन्हें जानना चाहिए कि 2021-22 में भी अब तक 6,16,336 शौचालय बन चुके हैं। इसी का नतीजा है कि 6.03 लाख गाँव खुले में शौच से मुक्त हुए। ये आँकड़े गवाह हैं इस बात के कि चुनावी तिकड़म और जमीन पर वास्तविक काम में बड़ा अंतर होता है।
जरा प्रियंका गाँधी ये भी तो बताएँ कि उनकी पार्टी के शासन वाले राजस्थान में सफाईकर्मियों का क्या हाल है। बीकानेर का ही उदाहरण ले लीजिए। जहाँ 2800 सफाईकर्मियों की जरूरत है, वहाँ इस शहर में मात्र 1661 पद ही स्वीकृत हैं। कई बड़े बाबुओं ने अपनी कोठियों पर इन्हें लगा रखा है। उन्हें अलग-अलग कामों में लगा दिया गया है। इसी तरह पंजाब के तरनतारन में 150 सफाईकर्मियों का भविष्य दाँव पर है, क्योंकि उन्हें स्थायी नहीं किया जा रहा। ये सभी हाल की ही खबरें हैं।
इसीलिए, झाड़ू पकड़ने से ज्यादा जरूरी है कि उसका उद्देश्य क्या है। आज चुनाव में झाड़ू चलाने वाली प्रियंका गाँधी के पार्टी के नेताओं को जब याद दिलाया जाएगा कि उनके नेताओं ने कैसे पीएम मोदी के ‘स्वच्छता अभियान’ का विरोध किया था, तब उन्हें इसका अंदाज होगा कि ‘दोहरा रवैया’ क्या होता है। नकल करना आसान है, लेकिन कहावत है कि कभी-कभी इसमें शक्ल भी बिगड़ जाती है। वैसे भी ये पूरा चुनाव ‘दादी की शक्ल’ पर ही लड़ा रहा रहा कॉन्ग्रेस द्वारा।