Sunday, November 24, 2024
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चारधाम का फैसला और कंधे पर PM मोदी का हाथ: उत्तराखंड में ‘बहुत Upyogi’ साबित हो रहे CM धामी, BJP की बम्पर वापसी के आसार

पिछले 1 वर्ष में 3 मुख्यमंत्री देने वाली भाजपा के लिए आखिर ऐसा क्या हो गया जो अब उसके लिए उत्तराखंड में उम्मीदें सकारात्मक होती जा रही हैं? सबसे पहले तो पुष्कर सिंह धामी के बारे में बता दें कि वो राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री ज़रूर हैं, लेकिन राज्यवासी उनके नाम से काफी पहले से वाकिफ रहे हैं।

उत्तराखंड में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जो भी ओपिनियन पोल्स आ रहे हैं, उनमें भाजपा को बढ़त मिलती दिख रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की छवि अब भी बेदाग़ बनी हुई है और भाजपा ने चुनाव की तैयारियाँ भी जोर-शोर से शुरू कर दी हैं। हाल ही में हल्द्वानी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा हुआ, जहाँ उन्होंने इस दशक को उत्तराखंड का बताया। उससे पहले उन्होंने केदारनाथ धाम का दौरा कर के वहाँ कई विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया।

उत्तराखंड में भाजपा के लिए बिगड़ने लगी थी चीजें

लेकिन, मार्च 2021 से पहले तक स्थिति ऐसी नहीं थी। उत्तराखंड में साधु-संत भी नाराज़ चल रहे थे और चार धाम वाले इस राज्य में उनकी भावनाएँ काफी मायने रखती हैं। साथ ही पार्टी के भीतर भी बगावत के सुर उभर रहे थे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटा कर तीरथ सिंह रावत को लाया गया। ये दोनों ही RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) से जुड़े रहे थे। ऐसे में न तो उनके चेहरों को लेकर कोई खास विवाद था और न ही उन्होंने विकास परियोजनाओं को दरकिनार किया।

इन सबके बावजूद राज्य में अगले चुनावों में भाजपा के लिए अच्छे संकेत नजर नहीं आ रहे थे। मामला महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी तक पहुँच गया था, जो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं और वहाँ के सबसे बुजुर्ग नेताओं में से एक हैं। कुछ भाजपा विधायकों ने उनके साथ बैठक भी की। कॉन्ग्रेस अचानक से राज्य में सक्रिय हो गई थी और भाजपा के कई नेताओं पर डोरे डालने भी शुरू कर दिया था। उत्तराखंड ऐसा राज्य है, जहाँ ब्राह्मणों और राजपूतों के साथ OBC समुदाय भी राजनीतिक रूप से काफी मायने रखता है।

राज्य में भाजपा पर इस कार्यकाल में विपक्ष तक ने भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए, लेकिन ऐसा कहा जा रहा था कि ब्यूरोक्रेसी अपनी मनमानी कर रही है और भाजपा कार्यकर्ता/नेता जनता का कोई काम नहीं करा पा रहे हैं। इसके बाद मुख्यमंत्री बनाए गए तीरथ सिंह रावत के महिलाओं के ‘रिप्ड जीन्स’ पहनने को लेकर दिए गए बयान को भी मुद्दा बनाया गया। ऊपर से 6 महीने में वो विधायक नहीं बन पाए तो उनका इस्तीफा संवैधानिक मजबूरी भी थी। ‘चार धाम देवस्थानम बोर्ड’ को लेकर साधु-संतों की नाराजगी को भी वो थाम नहीं पाए।

ताज़ा सर्वे और ओपिनियन पोल में BJP को उत्तराखंड में दिख रही है बढ़त, CM धामी पहली पसंद

अब बात करते हैं हाल ही में आए ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ के एक ओपिनियन पोल की। 70 सदस्यीय उत्तराखंड विधानसभा में बहुमत के लिए 36 विधायकों की जरूरत पड़ती है और इस सर्वे में भाजपा को इससे कहीं ज्यादा 42-48 सीटें मिलती हुई दिख रही हैं। वहीं कॉन्ग्रेस पार्टी के 12-16 सीटों पर सिमटने का अनुमान लगाया गया है। AAP खाता खोल ले, यही बहुत है। लेकिन, उसे 4-7 सीटें मिलती हुई दिख रही हैं। लेकिन, सबसे बड़ी हाइलाइट कुछ और है।

इस सर्वे की सबसे बड़ी बात है कि मात्र 6 महीने पहले मुख्यमंत्री बनाए गए पुष्कर सिंह धामी इस पद के लिए 40.15% लोगों की पसंद है। कॉन्ग्रेस में ही नज़रअन्दाज़ किए जा रहे 73 वर्षीय हरीश रावत अभी भी 25.89% लोगों की पसंद हैं, लेकिन उनकी अपनी ही पार्टी उनके नाम पर दाँव नहीं लगा रही है और नाराज़गी में उन्होंने आलाकमान के खिलाफ बयान भी दिया है। AAP ने कर्नल अजय कोठियाल के नाम पर दाँव आजमाया है, लेकिन इस सर्वे में उन्हें 14.25% लोगों की पसंद ही माना गया है।

पिछले 1 वर्ष में 3 मुख्यमंत्री देने वाली भाजपा के लिए आखिर ऐसा क्या हो गया जो अब उसके लिए उत्तराखंड में उम्मीदें सकारात्मक होती जा रही हैं? सबसे पहले तो पुष्कर सिंह धामी के बारे में बता दें कि वो राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री ज़रूर हैं, लेकिन राज्यवासी उनके नाम से काफी पहले से वाकिफ रहे हैं। हाँ, पिछले कुछ वर्षों से वो चर्चा में नहीं थे। 46 वर्षीय धामी आज से 20 वर्ष पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के सलाहकार और ‘ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी’ के रूप में चर्चा में आए थे।

लखनऊ यूनिवर्सिटी से स्नातक के बाद LLB की डिग्री लेने वाले पुष्कर सिंह धामी को 2008 में ‘भाजपा जनता युवा मोर्चा (BJYM)’ का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। इस दौरान राज्य के उद्योग में स्थानीय युवाओं के लिए 70% आरक्षण की व्यवस्था करवाने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। उससे पहले वो ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP)’ से जुड़े रहे थे। ऐसे में कुमाऊँ क्षेत्र के पिथौरगढ़ स्थित टुंडी गाँव से ताल्लुक रखने वाले धामी शुरू से जमीन से जुड़े रहे हैं। उनके पूर्वज इसी जिले के हरखोला गाँव के निवासी थे।

पुष्कर सिंह धामी उधम सिंह नगर के खटीमा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। उन्होंने लगातार दूसरी बार यहाँ से जीत दर्ज की है और अब हैट्रिक लगाने के लिए उतरेंगे। ये अलग बात है कि मुख्यमंत्री बनने से पहले वो मंत्री भी नहीं रहे थे। राज्य के छात्रों के बीच वो काफी लोकप्रिय रहे हैं, जिसका उन्हें अब फायदा मिलता भी दिख रहा है। स्पष्ट है, भाजपा को भी इससे फायदा है। चूँकि वो 90 के दशक से ही छात्र/युवा राजनीति में सक्रिय रहे हैं, वो कोई ऐसा नाम भी नहीं हैं जिनसे जनता वाकिफ न रही हो।

उत्तराखंड में भाजपा के लिए क्या बदल गया? वो फैसले, जिनसे अगले चुनाव में बढ़ गई उम्मीदें

ऐसे में भाजपा के लिए पहला फैक्टर यही काम कर रहा है कि राज्य के युवाओं में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की लोकप्रियता है। दूसरा फैक्टर ये है कि उन्होंने ‘चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम’ को वापस लेकर साधु-दंतों की नाराजगी को भी दूर कर दिया है। हिन्दुओं, खासकर ब्राह्मणों में इस फैसले से खासी ख़ुशी नजर आई। यही कारण है कि जब पीएम मोदी केदारनाथ के पुनर्निर्माण के बाद यहाँ विकास परियोजनाओं और शंकराचार्य की प्रतिमा का उद्घाटन करने पहुँचे तो राज्य के लगभग सभी बड़े साधु-संतों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

इसे उनके कुशल प्रबंधन और रणनीति का परिणाम ही माना जाएगा कि उन्होंने जनता का मूड भाँप कर ये फैसला लिया, वरना कॉन्ग्रेस ने ये ऐलान कर के मुश्किल खड़ी कर दी थी कि वो सत्ता में आते ही सबसे पहले इस बोर्ड को भंग करेगी। विपक्ष के हाथ से सीएम धामी ने ये मुद्दा छीन लिया। पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बिना किसी बाधा के पूरा हुआ और उत्तरकाशी एवं चमोली के अलावा रुद्रप्रयाग में जनता की नाराज़गी थम गई। भाजपा को सही समय पर इस फैसले से एक मजबूती मिली।

हाल ही में हल्द्वानी पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएम धामी के कंधे पर हाथ रखा, जो तस्वीर काफी वायरल हुई। साथ ही उनके हाथ में फ्रैक्चर को लेकर उनका कुशल-क्षेम भी पूछा, जिसका सीएम धामी ने भी आभार जताया। सन्देश साफ़ है – जिस तरह उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भाजपा आलाकमान का भरोसा है, ठीक उसी तरह उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के साथ आलाकमान ने एकजुटता दिखाते हुए प्रदर्शित किया है कि राज्य में चेहरे को लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं है।

राजनीति में प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है, इसीलिए इस तस्वीर के मायने फ़िलहाल यही निकाले जाएँगे। ऊपर से तीसरा बड़ा फैक्टर ये है कि भाजपा में अंदरूनी बगावत थम गई है और उलटा कॉन्ग्रेस-AAP ही समस्या में फँसी हुई है। चुनाव के दौरान दलबदल सामान्य है, लेकिन शायद ही भाजपा को इसका नुकसान हो। AAP के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष कॉन्ग्रेस में शामिल हुए हैं और भाजपा नेता यशपाल आर्य अपने बेटे संजीव के साथ कॉन्ग्रेस में चले गए, लेकिन ये व्यक्तिगत हितों को लेकर लिया गया इन नेताओं का फैसला था और भाजपा को इसका नुकसान होने की उम्मीद न के बराबर है।

केंद्र में संसदीय मामलों के अलावा कोयला एवं खनन विभाग का जिम्मा संभाल रहे प्रह्लाद जोशी को भाजपा ने उत्तराखंड में पार्टी का प्रभारी बनाया है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि पार्टी पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रही है और 2022 में वो सत्ता में वापस आएँगे। उन्होंने कहा कि पुष्कर सिंह धामी को लेकर पार्टी में संशय की कोई स्थिति नहीं है और वो मुख्यमंत्री के रूप में बने रहेंगे। कृषि कानूनों के वापस लिए जाने के बाद से किसानों की नाराजगी भी थम गई है, ऐसे में भाजपा की राह में कोई बड़ा रोड़ा है भी नहीं।

इन सबके अलावा पुष्कर सिंह धामी के बयान भी चर्चा का मुद्दा तो बनते हैं, लेकिन उनसे विवाद पैदा नहीं होता। हाल ही में BJYM नेताओं के साथ उन्होंने क्रिकेट मैच भी खेला। पीएम मोदी जिस तरह से खेल को प्रमोट कर रहे हैं, खिलाड़ियों से मिल कर उनका मनोबल बढ़ाते हैं और मेरठ में ‘मेजर ध्यानचंद खेल विश्वविद्यालय’ का उद्घाटन हुआ है, उस हिसाब से ये उनकी नीति के अनुरूप ही है। देहरादून में अब भाजपा की ‘संकल्प यात्रा’ भी शुरू हो गई है।

राज्य में भाजपा के लिए मीडिया में बगावत की जो बात चलाई जा रही थी और जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता था, वो था हरक सिंह रावत को लेकर। एक कैबिनेट बैठक में उनकी गैर-मौजूदगी को लेकर ये बातें चलाई जा रही थीं। लेकिन, मुख्यमत्री आवास में पुष्कर सिंह धामी ने कोटद्वार के विधायक के साथ भोजन कर के इन अटकलों को विराम दे दिया। इस ‘रात्रिभोज’ से मीडिया का भी मुद्दा छिन गया। हरक रावत ने उन्हें अपना छोटा भाई बताया। अब सवाल ये है कि क्या इस ‘डैमेज कंट्रोल’ की तरह धामी भाजपा को उत्तराखंड में एक बड़ा बहुमत दिलाएँगे? आँकड़े और अनुमान तो यही कह रहे।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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