पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों से अपील की है कि वे पंजाब में प्रदर्शन न करें, क्योंकि यह उनकी जमीन है और इससे राज्य को आर्थिक क्षति पहुँचती है। वे यदि केवल इतना कहते तो गनीमत थी। उन्होंने अपनी इस बात में आगे यह भी जोड़ा कि पंजाब में प्रदर्शन और धरना दे रहे किसान यह सब कुछ वहाँ न करके हरियाणा और दिल्ली में करें और कृषि कानूनों को रद्द करने के उद्देश्य से दिल्ली में प्रदर्शन कर केंद्र सरकार पर दबाव बनाएँ।
अमरिंदर सिंह की इस बात को सुनकर लगता है जैसे किसानों के प्रदर्शन और धरने से पंजाब को आर्थिक क्षति तो होगी पर यदि यही प्रदर्शन हरियाणा और दिल्ली में किए जाएँ तो उन राज्यों को आर्थिक लाभ होगा।
I want to tell Punjab farmers that this is their land. Their ongoing protests here are not in the state’s interest. Instead of holding protests in the state, farmers should mount pressure on the Centre to get farm laws repealed: Punjab CM Captain Amarinder Singh in Hoshiarpur pic.twitter.com/3JFSt0cpuZ
— ANI (@ANI) September 13, 2021
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का यह वक्तव्य शपथ लेकर संवैधानिक पद पर बैठे एक कॉन्ग्रेसी की मानसिकता दर्शाता है। यह भी दर्शाता है कि संवैधानिक पद पर बैठे और मौखिक तौर पर संविधान के प्रति आस्था प्रकट करने वाले कॉन्ग्रेसियों के मन में संविधान और देश के कानून के प्रति कितनी इज्जत है।
इतिहास गवाह है कि कॉन्ग्रेस की राजनीतिक संस्कृति में सरकारों, राज्यों और राजनीतिक दलों के विरुद्ध आंदोलन और आंदोलनजीवियों को खड़ा करना आम बात रही है। कॉन्ग्रेस और कॉन्ग्रेसियों के लिए दूसरी आम बात यह रही है कि इस तरह के आंदोलन का बुरा असर जब खुद पर होता है, तब पार्टी ऐसे आंदोलनों से अपना पल्ला झाड़ लेती है। अमरिंदर सिंह द्वारा किसानों को दी गई सलाह इस बात का सबूत है कि पार्टी के लिए नैतिकता कभी भी राजनीतिक रोटी सेंकने के आड़े नहीं आती।
हाल के वर्षों में पार्टी ने ऐसे कई आंदोलनों का न केवल समर्थन किया, बल्कि उसे खड़ा करने में मुख्य भूमिका भी निभाई। CAA के विरुद्ध शाहीन बाग़ में खड़े किए गए आंदोलन को पार्टी का समर्थन हो या हरियाणा में जाट आंदोलन के पीछे पार्टी की भूमिका, सब को लेकर सार्वजनिक मंचों पर बहुत कुछ कहा और लिखा गया। ऐसे आंदोलनों के पीछे पार्टी की भूमिका किसी से छिपी नहीं है।
कृषि कानूनों के विरुद्ध धरना और प्रदर्शन कर रहे किसानों को पार्टी की ओर से किस-किस स्तर पर समर्थन मिला यह भी किसी से छिपा नहीं है। पंजाब प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नवजोत सिंह सिद्धू की ताजपोशी के समय पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने खुद अमरिंदर सिंह की सराहना करते हुए कहा था कि किसान आंदोलन को राज्य से बाहर भेजने में कप्तान साहब की प्रमुख भूमिका रही है।
आज जब किसान पंजाब में धरना दे रहे हैं तब मुख्यमंत्री सिंह को उनसे समस्या हो रही है पर जब सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन शुरू हुआ था, तब उत्सव मनाने कॉन्ग्रेस के नेताओं की भीड़ लग गई थी। यह समर्थन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर प्रदेश स्तर के नेताओं तक से दिखाई दिया था। उस समय इन नेताओं ने यह अंदाजा लगाने की आवश्यकता नहीं समझी कि सिंघु बॉर्डर या उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर लगातार चल रहे प्रदर्शन से हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश को हो रही आर्थिक क्षति का भी हिसाब लगाया जाना चाहिए। आर्थिक हानि का हिसाब तो अमरिंदर सिंह को तब भी करना चाहिए था जब आंदोलन के नाम पर उनके राज्य में प्राइवेट कंपनी के कम्युनिकेशन टॉवर उखाड़े जा रहे थे या वहाँ प्राइवेट एसेट लूटे जा रहे थे? 26 जनवरी के दिन देश की राजधानी दिल्ली में जो कुछ हुआ कॉन्ग्रेस पार्टी की ओर से उसकी आलोचना तक न की गई।
प्रश्न यह है कि राज्य को होने वाले आर्थिक क्षति की बात इस समय क्यों? इस बात की चर्चा पहले क्यों नहीं की गई? अचानक क्या अमरिंदर सिंह को स्थिति हाथ से निकलती दिखाई दे रही है या वे इस बात से चिंतित हैं कि प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू पर नियंत्रण रखना उनके बस में नहीं है और ऊपर से किसानों ने अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली है। या फिर इसलिए कि चिंगारी को हवा देने से आग पंजाब में ही लगने की संभावना है? अभी तक की घटनाओं से यही लगता है कि जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं न केवल अमरिंदर सिंह के लिए, बल्कि उनकी पार्टी के लिए भी चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं और फिलहाल इसके कम होने के आसार नजर नहीं आ रहे।