बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन हर बदलते दिन के साथ राजनीति नई करवट लेती जा रही है। इसी क्रम में दिल्ली के एम्स में बिस्तर पर लेटे-लेटे ही पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से इस्तीफा दे दिया है।
सादे कागज पर लालू प्रसाद यादव को संबोधित इस्तीफे में उन्होंने लिखा है, “जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे-पीछे खड़ा रहा। लेकिन अब नहीं। पार्टी नेता कार्यकर्ता और आमजनों ने बड़ा स्नेह दिया। मुझे क्षमा करें।” जून में उन्होंने पार्टी उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दिया था। लेकिन उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया था और लालू ने खुद तेजस्वी यादव को रॉंची तलब कर उन्हें मनाने को कहा था। इस बार भी लालू ने जेल से पत्र लिखकर रघुवंश प्रसाद से कहा है, “बैठ कर बात करेंगे। आप कहीं नहीं जा रहे हैं।”
रघुवंश प्रसाद सिंह के करीबियों ने ऑपइंडिया को बताया कि अब राजद से उनका रिश्ता टूट चुका है। पार्टी में बने रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। केंद्रीय मंत्री रहे राजद नेता जयप्रकाश नारायण यादव से जब हमने इस संबंध में सवाल किया तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।
रघुवंश प्रसाद सिंह RJD में पूर्व सांसद रामा सिंह को शामिल करने के प्रयासों को लेकर नाराज चल रहे थे। बाहुबली छवि के रामा सिंह लोकसभा चुनाव में वैशाली से रघुवंश प्रसाद सिंह को हरा भी चुके हैं। इसके अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे जगदानंद सिंह से भी वे नाराज चल रहे थे। जून में लालू को लिखे पत्र में उन्होंने पार्टी की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल भी उठाए थे।
बिहार में हर दल के अपने सामाजिक समीकरण हैं और चुनाव में मतदान उन्हीं समीकरणों के इर्द-गिर्द होता रहा है। ऐसे में सवाल है कि 74 साल के रघुवंश प्रसाद का जाना राजद के जमीनी समीकरणों को कितना प्रभावित करेगा?
रघुवंश प्रसाद सिंह के स्वजतीय राजपूत वोटर बिहार में 5 फीसदी के करीब हैं और पूरे राज्य में बिखरे हुए हैं। जब लालू ने ‘भूरा बाल साफ करो’ का नारा दिया था, उस दौर में भी राजपूत का बड़ा तबका उनके ही साथ रहा। इसकी वजह यकीनन रघुवंश प्रसाद और जगदानंद सिंह जैसे राजपूत नेता थे, जिनका सीमित क्षेत्रों में प्रभाव था। लेकिन, रघुवंश प्रसाद कभी भी बिहार के राजपूतों के एकमात्र नेता नहीं रहे।
बीजेपी के पास भी राधा मोहन सिंह और राजीव प्रताप रूडी जैसे चेहरे रहे हैं, जिनका अपने इलाके में और अपने स्वजातीय वोटरों के एक तबके पर प्रभाव है। इसके अलावा सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत को जिस तरह इस बार ‘बिहारी प्राइड’ से जोड़ा गया है, उससे भी इस वर्ग का झुकाव एनडीए की तरफ बढ़ा है।
फिर यह इस्तीफा राजद की चुनावी संभावनाओं को कैसे प्रभावित करेगा? इसका जवाब हाल ही में पटना विश्वविद्यालय के कुछ पूर्व प्राध्यापकों के बीच हुई चर्चा में छिपा है। यह चर्चा इसी विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्र और प्राध्यापक, जो कभी बीजेपी के बड़े नेता हुआ करते थे तथा चंद्रशेखर से लेकर वाजपेयी कैबिनेट तक में मंत्री रहे, की पहल पर हुई थी।
असल में राजनीति में अप्रसांगिक हो चुका यह नेता एक विजन डॉक्यूमेंट तैयार कर बिहार चुनाव के जरिए खुद के लिए संभावनाओं की पड़ताल कर रहा था। इसी क्रम में हुई चर्चा के दौरान बात 1955 में बिहार में हुए छात्र आंदोलन, जो स्वतंत्र भारत का पहला छात्र आंदोलन माना जाता है, जिसमें उस समय के प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू तक को दखल देना पड़ा था, से शुरू हुई। फिर हर दौर पर बात हुई। आखिर में ये निष्कर्ष निकला कि बिहार की राजनीति में सामाजिक समीकरणों का प्रभाव है।
एक वर्ग जो इससे अप्रभावित है, उसके लिए तमाम नाराजगी के बावजूद आज भी नीतीश कुमार ही विश्वसनीय चेहरा हैं। तेजस्वी यादव में उनकी जगह लेने की क्षमता नहीं है। सामाजिक समीकरणों को भी कमजोर करने के लिए चेहरे की जरूरत है और 15 साल बाद भी नीतीश का विकल्प नहीं है। विकल्प के बिना एनडीए की संभावनाओं को प्रभावित करना मुश्किल है। विपक्ष के पास तेजस्वी की जगह कोई ऐसा विश्वसनीय चेहरा होना चाहिए जो छवि के मामले में नीतीश कुमार पर बीस पड़े।
फिर उस नेता ने तेजस्वी से संपर्क किया। तेजस्वी ने टका सा जवाब दिया- हमको पता है कि हम हार रहे हैं, फिर भी विपक्ष का नेता तो मैं ही रहूॅंगा न।
रघुवंश प्रसाद सिंह के इस्तीफे ने विधानसभा में विपक्ष के नेता बने रहने के तेजस्वी के इस गणित को फॅंसा दिया है। तेजस्वी फिलहाल राघोपुर से विधायक हैं। यह वो सीट है, जहॉं रघुवंश प्रसाद का प्रभाव है।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने ऑपइंडिया को बताया:
“राजद का अपना वोट बैंक है। उस पर इस इस्तीफे का कोई असर नहीं होगा। हॉं, वैशाली में इसका जरूर कुछ प्रभाव दिखेगा। रघुवंश प्रसाद को तेजस्वी के तौर-तरीकों से दिक्कत नहीं थी। उन्हें रामा सिंह के पार्टी में आने से खतरा था। रामा सिंह के आने से वैशाली पर उनकी दावेदारी खत्म हो जाती। खुद की राजनीति को बचाए रखने के लिए उन्होंने इस्तीफा दिया है। रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेता हमेशा से राजद में गेस्ट आर्टिस्ट रहे हैं। गेस्ट आर्टिस्ट का जितना महत्व होता है, उनके पार्टी छोड़ने पर राजद को नुकसान भी उतना ही होगा।”
समाजशास्त्री नवल किशोर चौधरी का भी मानना है कि इस इस्तीफे का राजद के जमीनी समीकरणों पर कोई असर नहीं होगा। उनका कहना है कि संप्रदाय विशेष वर्ग का मतदाता बीजेपी के विरोध में जो सशक्त होगा, उसे ही वोट करेंगे और बिहार के विपक्ष में राजद से मजबूत कोई और नहीं है।
यादव वर्ग का भले अब एकमुश्त वोट राजद को नहीं मिलता है, लेकिन आज भी इस वर्ग का बड़ा तबका उसके ही साथ है। इस समीकरण में रघुवंश प्रसाद की भूमिका वैशाली और आसपास तक ही सीमित थी। इसलिए राजद पर उनके इस्तीफे का असर सीमित होगा।
नवल किशोर चौधरी ने बताया कि इससे राजद को लेकर यह धारणा और मजबूत होगी कि पार्टी में अच्छे लोगों के लिए जगह नहीं है, क्योंकि रघुवंश प्रसाद की छवि साफ-सुथरी और भ्रष्टाचार मुक्त रही है। इससे जो वर्ग सामाजिक समीकरणों से अप्रभावित रहता है, वहॉं राजद और तेजस्वी दोनों की छवि को नुकसान पहुॅंचेगा और नीतीश को फायदा होगा। चौधरी ने बताया कि यही वजह है कि रघुवंश प्रसाद यदि एनडीए में आए तो आप पाएँगे कि उनको काफी सम्मान मिल रहा है।
यानी, राजद से ज्यादा यह लालू के परिवार के लिए झटका है। नीतीश की मदद से पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने दोनों बेटों को सियासत में फिट किया था। इस बार उनके लिए मुश्किलें बढ़ रही हैं।
उनके बड़े बेटे तेजप्रताप को लेकर पहले से ही खबरें आ रही हैं कि ऐश्वर्या के चुनाव लड़ने की संभावनाओं को देख वे अपने लिए कोई नई और सुरक्षित सीट तलाश रहे हैं। अब रघुवंश प्रसाद के इस्तीफे ने उनके छोटे बेटे तेजस्वी के लिए भी राघोपुर को सुरक्षित सीट नहीं रहने दिया है।
तेजप्रताप ने रघुवंश प्रसाद की नाराजगी को लेकर पूछे गए सवाल पर कुछ समय पहले कहा था, “पार्टी समुद्र होता है, उससे एक लोटा पानी निकलने से कुछ नहीं होता है।” कहीं यह ‘एक लोटा पानी’ चुनावी राजनीति में उनके छोटे भाई का बोरिया-बिस्तर ही न बॉंध दे।
इस खतरे को चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू बखूबी समझते हैं। लिहाजा उन्होंने भी रॉंची के जेल से हाथ से ही पत्र लिख रघुवंश प्रसाद को मनाने की कोशिश की। उन्होंने लिखा है, “प्रिय रघुवंश बाबू आपके द्वारा कथित तौर पर लिखी एक चिट्ठी मीडिया में चलाई जा रही है, मुझे तो विश्वास ही नहीं होता। अभी मेरा परिवार और पूरा राजद परिवार आपको शीघ्र स्वस्थ होकर अपने बीच देखना चाहता है। चार दशकों में हमने हर राजनीतिक सामाजिक और यहॉं तक कि यदा-कदा पारिवारिक मामलों में मिल बैठकर विचार किया है। आप जल्दी स्वस्थ हों, फिर बैठ कर बात करेंगे। आप कहीं नहीं जा रहे हैं, समझ लीजिए।”
अब देखना दिलचस्प होगा कि बेटे की नजर में ‘एक लोटा पानी’ को लालू बहने से रोक पाते हैं या नहीं?