Sunday, November 17, 2024
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बहुतेरे MP निकम्मे, फिर भी 2024 में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ सकती है BJP: जानिए कैसे और गहरा हुआ मोदी मैजिक

PM मोदी के इस जादू का साल दर साल मजबूत होने का कारण वे लोककल्याणकारी योजनाएँ हैं, जिनका फायदा आम लोगों को सीधे बैंक खाते या घर की रसोई में दिखता है। साथ ही इस समय बीजेपी एकमात्र ऐसी पार्टी है जो चुनाव लड़ना भी जानती है और उसे जीतना भी।

बिहार का एक संसदीय क्षेत्र है- मधुबनी। BJP के अशोक यादव यहाँ से लोकसभा सांसद हैं। पहले उनके पिता हुकुमदेव नारायण यादव सांसद हुआ करते थे। जीवन भर हुकुमदेव अपनी गरीब पृष्ठभूमि की मार्केटिंग करते रहे और उनका परिवार समृद्ध होता रहा। लेकिन बाप-बेटे मिलकर भी मधुबनी शहर तक को नरकीय हालात से बाहर न निकाल सके।

मधुबनी से ही सटा है- दरभंगा। यहाँ से बीजेपी के सांसद सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले गोपाल जी ठाकुर हैं। एक बार विधायक बनने के बाद ठाकुर राजनीतिक बियाबान में चले गए थे। कीर्ति आजाद की बगावत ने उनके लिए मौका पैदा किया और वे संसद पहुँच गए। पर दरभंगा के दिन नहीं बदले। पार्टी के भीतर के ही लोग कहते हैं कि कितना भी खा लें उनका (ठाकुर जी)पेट नहीं भरता। पिछले 5 साल की उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्हें जो भी गर्दन मिली, उसमें उन्होंने मखान की माला को लाद दिया।

मधुबनी जिले का ही एक संसदीय क्षेत्र है- झंझारपुर। यहाँ से जदयू के सांसद हैं- रामप्रीत मंडल। यह दूसरी बात है कि मंडल की ‘अति सक्रियता’ के कारण झंझारपुर के लोगों को भी अपने सांसद का नाम याद नहीं रहता है।

2019 में ये सभी मोदी के नाम पर जीते। लेकिन जीत के बाद इन्होंने अपने कर्मों से ‘अकर्मण्यता’ की नई गाथा लिखने का काम किया। ऐसा करने वाले केवल यही तीन सांसद नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि ऐसे सासंद केवल बीजेपी में ही हैं। निशिकांत दुबे जैसे बहुत कम नाम हैं जो अपने संसदीय क्षेत्र में न केवल विकास योजनाएँ लेकर गए, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि वह जमीन पर समय से उतर भी जाए।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन सांसदों की अकर्मण्यता 2024 के आम चुनावों में बीजेपी को भारी पड़ने वाली है। इसका जवाब है- नहीं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावी नतीजे बताते हैं कि इस अकर्मण्यता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू भारी है। यह जादू लगातार मजबूत होता जा रहा है। यह जादू बीजेपी को 2024 में 2019 से भी बड़ा जनादेश दे सकती है।

PM मोदी के इस जादू का साल दर साल मजबूत होने का कारण वे लोककल्याणकारी योजनाएँ हैं, जिनका फायदा आम लोगों को सीधे बैंक खाते या घर की रसोई में दिखता है। साथ ही इस समय बीजेपी एकमात्र ऐसी पार्टी है जो चुनाव लड़ना भी जानती है और उसे जीतना भी।

2014 के आम चुनावों के बाद से बीजेपी की इस बात को लेकर लगातार प्रशंसा होती रही है कि उसकी मशीनरी हमेशा चुनाव लड़ने को तैयार रहती है। एक चुनाव जीतने के बाद उसके नेता जश्न मनाने को ठहरते नहीं, बल्कि दूसरे मोर्चे पर निकल पड़ते हैं। प्रशंसा इस बात को लेकर भी होती है कि स्थानीय चुनावों तक में बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व पूरी ताकत झोंक देता है और नतीजों की चिंता किए बिना चुनाव को किसी युद्ध की तरह लड़ता है।

लेकिन इन प्रशंसाओं के बीच बीजेपी के उन साहसिक फैसलों का जिक्र कम ही होता है, जिसे लेने में किसी भी राजनीतिक दल के साँस फूल जाए। मसलन, 2018 के दिल्ली नगर निगम चुनावों में पार्टी ने सभी पार्षदों का टिकट काट दिया था। इन पार्षदों के पारिवारिक सदस्यों को भी टिकट देने से इनकार कर दिया था। 2018 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के दौरान सभी सांसदों के टिकट काट दिए थे। इनमें इस राज्य के पार्टी के सबसे बड़े नेता और लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह के सांसद बेटे भी शामिल थे। 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव के समय पार्टी ने कई हैवीवेट सहित 44 विधायकों को बेटिकट कर दिया था। इस बार मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में न केवल सांसदों, बल्कि मोदी मंत्रिमंडल के भी कुछ सदस्यों को उतारा गया।

साहसिक फैसले लेने वाली आज की बीजेपी अपने ही भूलों से सीखती भी दिखती है। सितंबर 2023 में ऑपइंडिया ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि कैसे तेलंगाना में लगातार आगे बढ़ रही बीजेपी के अचानक से पाँव उखड़ने लगे हैं और उसकी जगह को कॉन्ग्रेस भर रही है। 3 दिसंबर 2023 को आए तेलंगाना विधानसभा चुनाव के नतीजे भी बताते हैं कि बीजेपी ने इस राज्य में कई बड़ी रणनीतिक भूलें की। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि बीजेपी नेतृत्व को भी इस भूल का एहसास शायद हो चुका था। यही कारण है कि जिन परिस्थितियों के कारण उसने तेलंगाना से बंदी संजय को हटा लिया था, ठीक उसी तरह की परिस्थितियाँ तमिलनाडु में बनने के बाद भी के अन्नामलई को नहीं हटाया।

पर चुनाव केवल फैसलों और रणनीतियों से ही नहीं जीते जाते। सामान्य वोटरों को मतदान केंद्र तक लाने के लिए जरूरी होता है- उम्मीद। अच्छे दिनों की उम्मीद। यह उम्मीद चेहरा पैदा करता है। वो योजनाएँ पैदा करती हैं जिसका लाभ आम लोगों तक सीधे पहुँचता है और वे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उससे बदलाव महसूस करते हैं। भविष्य में और बेहतरी के सपने देखते हैं।

बीजेपी ने उम्मीद जगाने वाला चेहरा 13 सितंबर 2013 को ही खोज लिया था, जब उसने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। मोदी ने 2014 का आम चुनाव सामान्य लोगों के मन ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ की उम्मीद जगाकर जीता था। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अच्छे दिन लाने वाली योजनाओं की डिलिवरी की और इसका नतीजा 2019 के आम चुनावों में दिखा जब बीजेपी ने अकेले 303 सीटें जीती थी।

गरीबों को बैंकिंग सिस्टम में शामिल करने के लिए मोदी सरकार ‘जन धन योजना’ लेकर आई। जीरो बैलेंस पर यह अकाउंट खुलता है। चेक बुक, पासबुक, दुर्घटना बीमा के अलावा ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी की सुविधा मिलती है। ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी के कारण जनधन खाता धारक बैलेंस नहीं रहने पर भी अपने अकाउंट से 10 हजार रुपए निकाल सकते हैं। इस योजना से अब तक करीब 51 करोड़ लोग लाभ उठा चुके हैं। कोविड संकट जैसे समय में यह योजना गरीबों तक सीधे पैसे पहुँचाने के काम भी आई।

कोविड महामारी के दौरान फ्री राशन यानी ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ केंद्र सरकार ने शुरू की। इसे हाल ही में 2028 तक बढ़ाने का फैसला किया गया है। 80 करोड़ से अधिक लोगों को हर महीने इस योजना का लाभ मिलता है। इसके अलावा गरीबों की रसोई में गैस सिलिंडर पहुँचाने के लिए ‘उज्ज्वला योजना’ लाई गई। इस योजना में बीपीएल कार्ड वालों को मु्फ्त गैस कनेक्शन मिलता है। सब्सिडी पर एक साल में 12 गैस सिलिंडर मिलते हैं। सब्सिडी सीधे बैंक खाते में जमा होती है। 1 मार्च 2023 तक उज्ज्वला योजना का 9.60 करोड़ लोगों को लाभ मिल चुका है। अगले तीन साल में इस योजना के तहत 75 लाख नए कनेक्शन जारी करने का लक्ष्य है।

देश के छोटे, लघु और सीमांत किसानों को केंद्र सरकार ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना’ के तहत सालाना 6 हजार रुपए की आर्थिक मदद देती है। करीब आठ करोड़ किसानों को इसका सीधा लाभ मिलता है। इसी तरह श्रमिकों के लिए ‘पीएम विश्वकर्मा योजना’ लाई गई है। 13000 करोड़ रुपए इस पर खर्च होंगे।

इसके अलावा 10 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण हो या फिर प्रधानमंत्री आवास योजना। घर-घर बिजली और पानी पहुँचाने की योजना हो या फिर गरीबों के इलाज के लिए लाई गई आयुष्मान भारत। या फिर प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना… बीते 9 साल में मोदी सरकार ने जितनी भी जनकल्याणकारी योजनाएँ शुरू की हैं, उसका सीधा लाभ आम लोगों को मिल रहा।

2014 में उम्मीद जगाकर आए मोदी को साल दर साल मजबूत बनाने वाली ये योजनाएँ ही हैं, क्योंकि इसका असर आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में दिख रहा है। उनका जीवन सरल हो रहा है। वे मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। इन योजनाओं के बलबूते मोदी ने एक ऐसा वोट बैंक तैयार किया है, जिसके सामने जातीय/क्षेत्रीय/ मजहबी समीकरण दम तोड़ देते हैं। साल दर साल इन योजनाओं का असर बढ़ता जा रहा है। इसके कारण मोदी का जादू भी और असरदार होते जा रहा है। ऐसे में जब लोग वोट डालने जाते हैं तो वे अकमर्णय सांसदों को भूल जाते हैं, क्योंकि उनके सामने मोदी का चेहरा रहता है। वे उन राज्यों में भी बीजेपी को सत्ता दे देते हैं, जहाँ राजनीतिक पंडित उसे मुश्किल मुकाबले में बता रहे होते हैं या फिर बीजेपी के लिए संभावना ही नहीं देखते।

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के नतीजे भी उम्मीदों का ही जनादेश हैं। ये जनादेश जिस तरह से आया है वह यह भी बताता है कि 2024 के आम चुनावों से कुछ महीने पहले मतदाताओं पर PM मोदी का प्रभाव अब तक के सर्वोच्च स्तर पर है।

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अजीत झा
अजीत झा
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