Monday, November 18, 2024
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‘हिंदुत्व ठगों’ को धमकी, भगवा व स्वस्तिक का अपमान: जो राकेश पंडिता के हत्यारों की भाषा, लेफ्ट और विपक्ष की वही है बोली

इसी तरह CPI ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध के लिए भी 'हिंदुत्व समूहों का घृणास्पद अभियान' को जिम्मेदार ठहराया। हिंदुत्व को एक जहरीला प्रोपेगंडा करार दिया। अगर कहीं कोई मुस्लिम मरता है तो इसके लिए 'हिंदुत्व' दोषी है - ये बात लोगों के मन में भरी गई।

जम्मू कश्मीर के त्राल में भाजपा नेता राकेश पंडिता की हत्या कर दी गई। अभी एक साल भी पूरे नहीं हुए, जब जून 2020 में अनंतनाग में सरपंच अजय पंडिता की हत्या की गई थी। अजय कॉन्ग्रेस के नेता थे, राकेश भाजपा के हैं। जम्मू कश्मीर में इस्लामी आतंकियों के लिए पार्टी मायने नहीं रखती, बल्कि धर्म मायने रखता है। अगर आप हिन्दू हैं और अपने धर्म पर गर्व करते हैं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने अच्छे इंसान हैं।

कश्मीरी पंडितों के लिए ये सब नया नहीं है। हैरान कर देने वाली बात ये है कि ये सब कुछ उस नए जम्मू कश्मीर में हो रहा है, जहाँ अनुच्छेद-370 के प्रावधानों के लिए अब कोई जगह नहीं है। ये सब उस जम्मू कश्मीर में हो रहा है, जहाँ सेना और पुलिस लोगों की सुरक्षा के साथ-साथ उनकी भलाई के लिए भी काम करते हैं। उस जम्मू कश्मीर में हो रहा है, जहाँ सत्ता अब उन आतंकियों के प्रति नरम रुख रखने वाले अब्दुल्लाह या मुफ़्ती परिवार के पास नहीं है।

दक्षिण कश्मीर के त्राल में राकेश पंडिता की हत्या की जिम्मेदारी आतंकी संगठन ‘लश्कर-ए-तैय्यबा’ के मुखौटा संगठन ‘पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट’ ने ली है। आपके लिए ये जानना ज़रूरी है कि संगठन ने इस हत्याकांड की जिम्मेदारी लेते हुए किन शब्दों का प्रयोग किया है। उसने अपने ‘प्रेस रिलीज’ में कहा है कि उसके कैडर ने ‘हिन्दू फासिस्ट राकेश पंडिता को न्यूट्रलाइज कर दिया।’ आतंकी संगठन ने दावा किया कि पंडिता मुखबिरों का एक नेटवर्क तैयार कर रहे थे।

साथ ही उन पर ड्रग्स की तस्करी से लेकर अन्य ‘अनैतिक क्रियाकलापों’ में लिप्त होने का भी आरोप लगाया। PAFF ने अपनी ‘प्रेस रिलीज’ में कहा, “अगर हिंदुत्व ठग सोचते हैं कि उनके दुष्ट इरादे कश्मीर में जड़ जमा लेंगे तो वो बहुत बड़े भ्रम में जी रहे हैं। उनकी हर एक गतिविधि पर हमारी नजर है और हम समुचित तरीके से उनसे निपटेंगे।” इस ‘प्रेस नोट’ में स्वस्तिक वाले भगवा झंडे में तीर मारते हुए भी प्रदर्शित किया गया है।

आतंकी संगठन ने अपनी ‘प्रेस रिलीज’ में ‘हिंदुत्व’ को ठहराया जिम्मेदार

ये काफी डरावना है। क्या ये वही भाषा नहीं है, जिसका सहारा लेकर भारत के विपक्षी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर निशाना साधते रहे हैं? क्या ये वही भाषा नहीं है, जिसका इस्तेमाल कर के हिन्दुओं को नीचा दिखाया जाता रहा है? अगस्त 2018 में कॉन्ग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कहा था कि वो हिंदुत्व के किसी भी रूप में विश्वास नहीं रखते हैं। उन्होंने कहा था कि सॉफ्ट या हार्ड हिंदुत्व में उनका कोई भरोसा नहीं है।

क्या हिंदुत्व सचमुच में एक ऐसा शब्द है, जो आतंकवाद का पर्यायवाची है? वीर सावरकर ने इसकी परिभाषा देते हुए कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति जो सिन्धु से समुद्र तक फैली भारत भूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है। आतंकवादियों के लिए भारत को अपना देश मानना गलत हो सकता है, लेकिन भारत के मुख्यधारा की राजनीति से जुड़े लोग अगर इस तरह की बयानबाजी करें तो इसका अर्थ है कि उनकी और आतंकियों की भाषा व सोच समान है।

भारत में भी वामपंथी दल हैं, जो यही सोच रखते हैं। कोरोना काल में भी CPI(M) जैसे दल इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल करते रहे। इस पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को ‘कोरोना कुप्रबंधन’ के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि इसका कारण ‘हिंदुत्व दृष्टिकोण’ है। अर्थात, कोरोना के कारण लोगों की मौत के लिए हिंदुत्व को दोष दे दिया गया। पार्टी ने ‘हिंदुत्व ड्रामा’, ‘हिंदुत्व नासिका’ और ‘हिंदुत्व दृष्टिकोण’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया।

इसी तरह CPI ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध के लिए भी ‘हिंदुत्व समूहों का घृणास्पद अभियान’ को जिम्मेदार ठहराया। हिंदुत्व को एक जहरीला प्रोपेगंडा करार दिया। अगर कहीं कोई मुस्लिम मरता है तो इसके लिए ‘हिंदुत्व’ दोषी है – ये बात लोगों के मन में भरी गई। अगर इसी सोच से प्रभावित होकर कोई आतंकवादी बन जाए और हिन्दुओं की हत्या करने लगे तो ऐसे दलों की मंशा सफल होती दिखती है।

फासिस्ट – ये एक ऐसा शब्द है जिसे सामान्य बना दिया गया है। अब आतंकी भी उसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। शाहीन बाग़ आंदोलन और CAA विरोधी अभियान में नरेंद्र मोदी को न जाने कितनी बार फासिस्ट कहा गया होगा। स्वस्तिक का अपमान तो वहाँ भी हुआ था। स्वस्तिक का अपमान आतंकी भी अपनी ‘प्रेस नोट’ में कर रहे हैं। गीतकार जावेद अख्तर ने पीएम मोदी को फासिस्ट कहा। पाकिस्तानी अख़बार Dawn ने भी इस भाषा का इस्तेमाल किया।

यहाँ तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी एक तस्वीर शेयर की थी, जिसमें एक व्यक्ति झाड़ू से स्वस्तिक को मार रहा था। पत्रकार सबा नकवी ने सोशल मीडिया पर स्वस्तिक के टुकड़े-टुकड़े होने वाली तस्वीर शेयर की। घृणा फैलाते-फैलाते अब यही हरकतें लाशें गिराने का माध्यम भी बन रही हैं। AltNews जैसे मीडिया संस्थान ने स्वस्तिक को लेकर गलत सूचनाएँ फैलाईं। उसने स्वस्तिक के अपमान को ढकने की कोशिश की थी।

तथाकथित इतिहासकार रामचंद्र गुहा से लेकर वामपंथी दलों तक ने उन्हें फासिस्ट कहा। अब हिन्दुओं को फासिस्ट कह कर मारा जा रहा है। हिटलर ने 60 लाख यहूदियों की बेरहम तरीके से हत्या कराई थी। क्या किसी हिन्दू पर किसी मुस्लिम को थप्पड़ मारने का झूठा आरोप भी लग जाए तो इसके लिए उसकी तुलना 60 लाख लोगों के हत्यारे से कर दी जाएगी? इसे ही नैरेटिव गढ़ना कहते हैं। यहाँ लोग तथ्य को नज़रअंदाज़ कर भाषा पकड़ते हैं।

ये भाषा खूनी हो जाती है और इसके दुष्परिणाम हिन्दुओं को भुगतने पड़ते हैं। कभी राकेश पंडिता को, कभी अजय पंडिता को। अगर आज कोई ऐसा आतंकी संगठन ऐसा कह रहा है कि उसकी ‘हिंदुत्व ठगों’ की हर एक गतिविधि पर नजर है, तो ये खतरे से खाली नहीं है। 56 वर्षीय राकेश पंडिता अपने सुरक्षा गार्ड्स को छोड़ कर ही जम्मू गए थे। फिर वो त्राल में अपने दोस्त मुस्ताक अहमद से मिलने गए।

उन पर नजर रखी जा रही थी, तभी तो सुरक्षा गार्ड्स को न पाकर उनकी हत्या कर दी गई। किसी ग्रामीण ने ही उनकी मुखबिरी की थी, ऐसा उनके करीबियों द्वारा शक जताया जा रहा है। जम्मू कश्मीर भाजपा इसे पाकिस्तान की करतूत बता रही है। लेकिन, असली दोषी यहाँ के ही वो नेता और मीडिया समूह हैं, जो हिंदुत्व को बार-बार ‘आतंकवाद’ के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग में लाते हैं। हिन्दुओं को बदनाम कर के उनके खिलाफ लोगों को बरगलाते हैं।

किसी अच्छी चीज को भी हजार लोग हजार जगह हजार बार गाली दें तो लोगों को लगने ही लगेगा कि इसमें कुछ न कुछ खोट है। ‘हिंदुत्व’ को लेकर यही किया जा रहा है, जहाँ पाकिस्तान, इस्लामी आतंकी, लेफ्ट और कुछ विपक्षी नेता एक ही पन्ने पर हैं। ‘मॉब लिंचिंग’ के अफवाह से लेकर हिन्दू प्रतीकों के अपमान तक, उन्होंने ब्रेनवॉश कर के लोगों, खासकर मुस्लिमों के मन में ये बिठाया है कि उनकी हर समस्या के लिए हिन्दू ही दोषी हैं।

राकेश पंडिता के बेटे पारस ने पिता की मौत के पीछे किसी साजिश की संभावना से इनकार नहीं किया और कहा, ”जब उनकी डेथ हुई थी तो उससे पहले उन्होंने मुझे फोन किया था, अब जब मैं सोच रहा हूँ तो लग रहा है कि उन्हें पता था कि ऐसा कुछ होने वाला है। धोखा दिया या क्या पता किसी ने मिलीभगत की हो।” राकेश पंडिता की पत्नी ने कहा कि कश्मीरी पंडिता यहाँ के कट्टरपंथियों को खटकते हैं, इसीलिए उनके पति की हत्या कर दी गई। उनके अनुसार, कट्टरपंथी कहते थे कि त्राल में कई लोग ऐसे थे जो कहते थे कि मुस्लिम ही अध्यक्ष बनेगा हिंदू नहीं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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