Sunday, November 17, 2024
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रामचंद्र गुहा कभी उन्हें भी याद कर लो जो गोधरा में जिंदा जला दिए गए, क्योंकि रामभक्त भी हाड़-माँस के ही इंसान थे

गुजरात में हुए दंगों को 20 साल पूरे हो रहे हैं लेकिन गुहा ने अपने लेख में जो एक विशेष ध्यान दिया है वो शब्द चुनाव का है। अपने इस लेख में उन्होंने  ‘Pogrom’ शब्द का इस्तेमाल किया और कहा कि जो कुछ भी 2002 में हुआ वो असल में Pogrom था यानी एक समुदाय को विशेष तौर पर बनाया गया निशाना।

कथित इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने स्क्रॉल के लिए एक लेख लिखा है। लेख से बेहतर इसे वैचारिक टट्टी कहना सही होगा, जिसके लिए गुहा जाने जाते हैं। इसमें उन्होंने बताया है कि साल 2022 में अरबिंदो घोष की 150वीं पुण्यतिथि, असहयोग आंदोलन के 100 वर्ष, भारत छोड़ो आंदोलन की 80वीं सालगिरह, भारतीय स्वतंत्रता के 75 साल, पहले आम चुनाव के 70 साल और भारत-चीन युद्ध के 60 वर्ष पूरे होंगे। गुहा ने दावा किया है कि पीएम मोदी इन सभी मौकों को उत्सव की तरह मनाएँगे और हर कार्यक्रम में अपने व्यक्तित्व को प्रमोट करेंगे।

मोदी पर तंज कसने के साथ ही लेख के तीसरे पैराग्राफ में गुहा ने गोधरा कांड को याद किया और बताया कि गुजरात में हुए दंगों को 20 साल पूरे हो रहे हैं लेकिन गुहा ने अपने लेख में जो एक विशेष ध्यान दिया है वो शब्द चुनाव का है। अपने इस लेख में उन्होंने  ‘Pogrom’ शब्द का इस्तेमाल किया और कहा कि जो कुछ भी 2002 में हुआ वो असल में Pogrom था यानी एक समुदाय को विशेष तौर पर बनाया गया निशाना।

गुहा के आर्टिकल की हेडलाइन

गुहा के इस ‘एक समुदाय’ में जाहिर है पीड़ित के तौर पर सिर्फ मुस्लिम आते हैं, क्योंकि इसके अलावा अगर कोई और समुदाय भी आता तो गुहा को गुजरात दंगों के साथ कारसेवकों को जिंदा जलाए जाने की बर्बरता याद आती। हालाँकि, लेख में ऐसा कहीं कुछ नहीं है। अगर है तो वो उस गोधरा कांड को जस्टिफाई करने की कोशिश है जिसे 1984 में हुए सिख नरसंहार से जोड़कर बताया गया है।

गोधरा कांड को छिपाने के लिए कॉन्ग्रेस का महिमामंडन

इस दिशा में भी गुहा संतुलित नहीं हो पाए और गोधरा कांड व सिख नरसंहार के बूते कॉन्ग्रेस के छवि निर्माण में जुट गए। उन्होंने बताया कि कैसे सिख नरसंहार के बाद 1999 में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बनते ही सोनिया गाँधी ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में माफी माँगी थी और मनमोहन सिंह 2005 में प्रधानमंत्री बनाए गए थे। उनके अलावा जनरल जेजे सिंह पहले सिख आर्मी स्टाफ के चीफ बने थे और मोंटेक सिंह आहलूवालिया प्लॉनिंग कमीशन के डिप्टी चेयरमैन बनाए गए थे।

अब गुहा का इन बिंदुओं को समझाने का क्या अर्थ है? ये बात लेख मेंं आगे पता चलती है जब वो कहते हैं कि उन्होंने उस समय (यूपीए काल में) सिखों से बात की थी और उन्हें (सिखों) इस नेतृत्व में हुए बदलाव से ऐसा लगा था कि ये देश उनका है। वहीं गुजरात पर आते हुए उन्होंने कहा कि आज भी गुजरात के मुसलमान उतने ही डरे हुए है जितने वो 2002 में थे।

कॉन्ग्रेस काल से बीजेपी की तुलना करते हुए गुहा ने ये दिखाया कि देखो सोनिया गाँधी ने माफी माँगी लेकिन नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों पर कोई बात तक नहीं की। या कह सकते हैं कि गुहा अपने उदाहरण इसलिए समझा रहे थे कि उनको चाहिए कि जैसे कॉन्ग्रेस ने सिखों का विश्वास जीतने के लिए उन्हें बड़े पद दिए। वैसे नरेंद्र मोदी की सरकार भी उस समुदाय के हाथ में नेतृत्व दे दे जिसे गुजरात दंगों के बाद डरा हुआ महसूस होता है।

गुहा के इस लेख को पढ़ते-पढ़ते आपको उनकी ये अनकही इच्छा और स्पष्ट हो जाएगी जब वो खुलकर कहते हैं कि मोदी काल में मुस्लिम प्रधानमंत्री आना मुश्किल ही है। उनके मुताबिक मुस्लिमों के साथ मोदी सरकार अभी लंबा भेदभाव करने वाली है और उनकी पार्टी से जुड़े संगठन तो मुस्लिमों को सड़क चलते ढूँढ-ढूँढकर परेशान करते ही हैं। गुहा की शिकायत है कि मोदी आज भी गुजरात दंगों के लिए मुस्लिमों से माफी नहीं माँगते और इसके पीछे की वजह वो आंशिक रूप से उनके घमंड को मानते हैं और ज्यादा जिम्मेदार वो उस राष्ट्रवाद के उनके आदर्शों को मानते हैं जो संविधान के बिलकुल विपरीत थे।

गुजरात दंगों में मोदी को क्लीन चिट

गौरतलब है कि साल 2002 में 27 फरवरी को साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में गुजरात के गोधरा स्टेशन पर समुदाय विशेष के कुछ लोगों ने आग लगा दी थी, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी। मृतकों में अधिकतर कार सेवक थे। इस घटना के बाद 28 फरवरी से 31 मार्च तक गुजरात में दंगे भड़के। जिसके कारण 1200 से अधिक लोग मारे गए थे और साथ ही 1500 लोगों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज हुई थी। इस मामले पर जाँच के लिए नानावती आयोग गठित हुआ था। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट का पहला हिस्सा 2009 को विधानसभा में पेश किया। फिर अगली रिपोर्ट 18 नवंबर 2014 को दी गई और। साल 2019 में नानावती-मेहता आयोग की फाइनल रिपोर्ट विधानसभा में पेश हुई। इस अंतिम रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी पर लगे आरोपों से उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी। इस रिपोर्ट में साफ लिखा था गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगी जलाए जाने के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा सुनियोजित नहीं थी। इसलिए, आयोग ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन गुजरात सरकार को अपनी रिपोर्ट में क्लीन चिट दी है।

आपातकाल से लेकर कश्मीर पंडितों का नरसंहार…कौन माँगेगा माफी?

अब दिलचस्प और ध्यान देने वाली बात है ये है कि गुजरात दंगे जिसमें मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार को क्लीन चिट मिली हो और दूसरी ओर कारसेवकों को जलाए जाने की घटना को भी 20 वर्ष पूरे हो रहे हों, उस समय में गुहा के लिए चर्चा का विषय गुजरात दंगे इसलिए हैं क्योंकि निशाने पर मुस्लिम थे। वरना सोचिए उन कारसेवकों की गलती ही क्या थी जो आज उनका जिक्र भी लिबरल मीडिया, वामपंथी इतिहासकार करने से गुरेज करते हैं और ये दिखाते हैं कि साल 2002 में सीधे गुजरात दंगे हुए, जिसकी पृष्ठभूमि उनके हिसाब से कुछ थी ही नहीं। मोदी माफी माँगेगे या नहीं इस पर सवाल ये लोग आए दिन करते हैं लेकिन क्या इनसे नहीं पूछा जाना चाहिए कि जिस कॉन्ग्रेस का वो महिमामंडन करते नहीं थकते वो  1975 के आपातकाल के लिए कब माफी माँगेगे, कब कश्मीर में उपजे हालातों के लिए शर्मिंदा होंगे। सिख नरसंहार के लिए 14-15 साल बाद माफी माँगना क्या इस सवाल को खत्म कर देता है कि आखिर दिल्ली के बिगड़े हालातों पर कानून व्यवस्था क्यों विफल हुई थी।

ये पहली बार नहीं है कि गुजरात दंगों पर दुख मनाते हुए लिबरल गोधरा कांड को भूले हों। पिछले साल भी स्वरा भास्कर समेत कई लिबरलों ने गुजरात मुद्दे पर नरेंद्र मोदी को घेरने का प्रयास किया था और हर साल की तरह इस साल भी वो इस्लामी बर्बरता पर पर्दा डालने का काम शुरू हो गया है जिसकी आग में 59 कारसेवक जलाकर मारे गए।

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