जम्मू-कश्मीर में बीते दिनों आतंकवादियों ने सतपाल निश्चल की गोली मार कर हत्या कर दी। उन्हें हाल ही में डोमिसाइल सर्टिफिकेट मिला था। इससे उन्हें कश्मीर में अचल संपत्ति खरीदने और अन्य चीजों के अधिकार मिले थे। दुखद बात यह है कि यही उनकी हत्या की वजह भी बनी। 70 वर्षीय बुजुर्ग सतपाल पिछले चालीस वर्षों से कश्मीर में रह रहे थे और गुरुवार को डोमिसाइल सर्टिफिकेट प्राप्त करने के कारण मारे जाने वाले वह पहले व्यक्ति बन गए।
सतपाल निश्चल की हत्या की जिम्मेदारी आतंकी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली है। इस आतंकी संगठन ने सोशल मीडिया पर धमकी देते हुए एक बयान भी जारी किया। बयान में कहा गया कि जिन लोगों ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल किया है वे सभी ‘आरएसएस’ एजेंट हैं। वह ऐसे सभी लोगों के नाम और पते जानता है। यह भी जानता है कि वे क्या करते हैं। टीआरएफ ने धमकी दी है कि अगला नंबर ऐसे ही अन्य लोगों का हो सकता है।
सतपाल निश्चल कश्मीर में चल रहे सिविलाइज़ेशन वॉर में जान गँवाने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं। उनकी हत्या इसलिए नहीं की गई है क्योंकि वह एक कश्मीरी नहीं थे या उन्होंने कश्मीरियों के खिलाफ कोई काम किया हो। उनकी हत्या तो इसलिए की गई कि वह इस्लाम के अनुयायी नहीं थे।
हैरानी की बात है कि म्यांमार के रोहिंग्या जम्मू कश्मीर में ‘घुसपैठ’ करने में कामयाब रहे हैं। आज वे बिना किसी खतरे के वहाँ रह रहे हैं। लेकिन कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से बाहर कर दिया गया और वे तीन दशक बाद भी वापस नहीं लौट पाए। ऐसा क्यों है?
कुछ लोगों को भ्रम है कि कश्मीर में आतंकवाद कश्मीरी स्वतंत्रता से संबंधित है और इस्लाम का इससे बहुत कम लेना-देना है। मीडिया में मौजूद प्रोपेगेंडाबाज भी इस नैरेटिव को आगे बढ़ाने की भरसक कोशिश करते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि वहाँ पर अवैध रोहिंग्या मुस्लिम अप्रवासी को तो शरण मिल जाता है, लेकिन कश्मीरी पंडितों को भगा दिया जाता है। भारत के अन्य क्षेत्र के हिंदुओं को ‘आरएसएस एजेंट’ करार दिया जाता है। यह सब दिखाता है कि यह कश्मीरियत के बारे में नहीं, बल्कि इस्लामी आतंकवाद के बारे में है।
दुर्भाग्य की बात यह है कि कुछ ही दिनों में सतपाल निश्चल का नाम भुला दिया जाएगा और कश्मीर में दशकों से जारी हिंसा का सिलसिला यूँ ही जारी रहेगा। इसके बाद अधिकारी खुद को यह कहते हुए सांत्वना देंगे कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हत्या के लिए जिम्मेदार हैं।
हो सकता है कि आतंकवादियों को पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त हो। लेकिन क्या कोई गंभीरता से इस बात को मानेगा कि कश्मीर में हिंदुओं की स्थिति पाकिस्तानी हिंदुओं से अलग नहीं होती, अगर वहाँ पर भारतीय सेना नहीं होती। फिर भी इस्लामी कट्टरपंथ की वास्तविक समस्या को ढँकने के लिए हम पर कश्मीरी प्रोपेगेंडा थोपा जाता है।
वैसे देखा जाए तो इसका कोई सरल समाधान भी नहीं है। अंतत: सिविलाइज़ेशन वॉर में लोगों को अपने खून की कीमत ही चुकानी पड़ेगी और इतिहास इस तथ्य का प्रमाण है कि इसके लिए पहले से ही बहुत सारे रक्त का बलिदान किया जा चुका है और आगे भी जारी रहेगा।
कश्मीर में भारतीय राज्य और भारतीय नागरिक जिस दुश्मन का सामना कर रहे हैं, वह है- राजनीतिक इस्लाम। दूसरी ओर, धर्मनिरपेक्षता का भारतीय ब्रांड इस मामले पर वैचारिक स्पष्टता को रोकने के लिए ओवरटाइम काम करता है, ताकि खतरे का प्रभावी ढंग से सामना किया जा सके। जब कश्मीर की बात आती है तो बहुसंस्कृतिवाद हमारी ताकत है। कश्मीर में राजनीतिक इस्लाम के खतरे को बेअसर करने का एकमात्र तरीका क्षेत्र की सांस्कृतिक समृद्धि है।
यदि ‘विविधता वास्तव में हमारी ताकत है’, तो भारत में कश्मीर इसका परीक्षण करने के लिए सबसे उपयुक्त जगह है। लेकिन जब इस तरह के सुझाव दिए जाते हैं, तो हमारे देश में सेक्युलर-लिबरल फासीवाद का रोना रोना शुरू कर देते हैं। यह जानना काफी महत्वपूर्ण है कि सतपाल निश्चल की हत्या इसलिए की गई क्योंकि वह उस विविधता का प्रतिनिधि थे, जिससे घाटी में इस्लामी आतंकवादी सबसे ज्यादा डरते हैं।
सतपाल निश्चल की हत्या कर दी गई क्योंकि कश्मीर में इस्लामी आतंकवादी क्षेत्र के सांस्कृतिक संवर्धन की अनुमति नहीं दे सकते। लेकिन भारत सरकार इस त्रासदी के बाद चुने गए रास्ते से नहीं हट सकती। इसके बजाए, उसे उन अताताइयों को सबक सिखाना होगा, जिन्होंने 70 साल के बुजुर्ग को मौत के मौत के घाट उतार दिया।
यही आगे का रास्ता है। सेक्युलर-लिबरल भारतीय हितों को कमजोर करने के लिए जातीय-वर्चस्ववादी इस्लामी आतंकवादियों के साथ सहयोगी बनने के लिए तैयार हैं। लेकिन भारी दबाव के बावजूद पीछे नहीं हटा जा सकता। अगर ऐसा हुआ तो धारा 370 के निरस्त होने के बाद से कश्मीर ने जो प्रगति की है, वह सब खत्म हो जाएगी।