कॉन्ग्रेस एक मजेदार संगठन है। एक भी नियम और कानून इस पार्टी में नहीं चलते। हम हर मिनट एक नया नियम बनाते हैं और पुराने वाले को दबा देते हैं। कोई हमसे पूछे कि कॉन्ग्रेस पार्टी क्या करती है तो हमारा जवाब होना चाहिए कॉन्ग्रेस पार्टी देश के लिए नेता तैयार करती है।
माफ कीजिएगा देश की सबसे पुरानी पार्टी को लेकर ये मेरे विचार नहीं हैं। ये खुद राहुल गॉंधी के विचार हैं। भरोसा न हो तो 20 जनवरी 2013 को जयपुर के कॉन्ग्रेस चिंतन शिविर में दिए गए करीब 38 मिनट के उनके भाषण को एक बार फिर सुन ले। चिंतन शिविर से दिमाग की बत्ती न जल रही हो तो थोड़ा और स्पष्ट कर दूॅं कि ऊपर लिखे गए एक-एक शब्द ‘सत्ता जहर है’ वाले मशहूर भाषण के अंश हैं।
भावुकता का पुट लिए यह हिन्दी-अंग्रेजी मिश्रित संबोधन राहुल ने पार्टी का उपाध्यक्ष बनने पर दिया था और उस समय की मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि इसे सुन सोनिया गॉंधी सहित वहॉं मौजूद हर कॉन्ग्रेसी की आँखें गीली हो गई थी।
10 अगस्त 2019 को सोनिया गाँधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुन कॉन्ग्रेस ने आखिरकार साबित कर दिया कि राहुल गलत नहीं थे। इस फैसले ने फिर साबित किया है कि जिस पार्टी के लिए कभी मशहूर था ‘खाता न बही, जो कहे केसरी वही सहे’ (वही सीताराम केसरी जिन्हें कथित तौर पर सोनिया के इशारों पर कॉन्ग्रेस मुख्यालय से बेदखल कर दिया गया था), वह कानून से नहीं गॉंधी परिवार के इशारों पर नाचती है।
यह जरूर है कि राहुल जब जयपुर में बोल रहे थे तो उन्होंने सोचा नहीं होगा कि उनकी कुंडली में नरेंद्र मोदी और अमित शाह नाम के दो ग्रह आकर बैठने वाले हैं। और यह तो किसी मोड़ पर ख्याल नहीं आया होगा कि इन दोनों की वजह से सात साल बाद ही सही उनके एक-एक शब्द सच केवल सच साबित होंगे।
उस कथित ऐतिहासिक भाषण में राहुल ने कॉन्ग्रेस को एक परिवार बताते हुए कहा था कि तेजी से बदलाव की जरूरत है। साथ ही जोड़ा था सोच-समझकर, प्यार से और सबकी सुनकर बदलाव करना है। इसलिए राहुल का उत्तराधिकारी चुनने के लिए कॉन्ग्रेसियों ने तेजी से बदलाव करते हुए उनकी मॉं को चुन लिया है। यह बदलाव इतनी तेजी से हुआ कि इसमें करीब दो महीने लगे। आरजू-मिन्नतों से लेकर ‘गॉंधी परिवार से नहीं होगा अगला अध्यक्ष’ वाला शिगूफा और बैठकों का मैराथन रेस भी चला। बदलाव सोच-समझकर, प्यार से और सबकी सुनकर ही किया गया है।
इस बदलाव ने राहुल के उस भाषण के केवल एक अंश को ही गलत साबित किया है। यह बतौर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गॉंधी के करीब 20 महीने के कार्यकाल की भी नाकामी है। चुनावी पराजयों को हम राहुल की नाकामी नहीं मानते, क्योंकि चमत्कार की उम्मीद केवल लिबरलों को ही थी। राहुल ने उस भाषण में हर स्तर पर पॉंच-सात नेता तैयार करने की बात कही थी, जो किसी भी वक्त एक-दूसरे की जगह ले ले। पर कॉन्ग्रेसियों ने इस तर्क का हवाला देकर इस पर अमल नहीं किया कि ‘बिन गॉंधी परिवार हम टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे’।
अब इस पर आते हैं कि बेटे ने जिस विष को छोड़ा था वह मॉं पीने को क्यों मजबूर हुईं? क्यों इस बार अध्यक्ष के पहले अंतरिम शब्द जोड़ा गया? सूत्र बताते हैं कि ऐसा प्रियंका गॉंधी की ताजपोशी के लिए माकूल वक्त के इंतजार में किया गया है।
प्रियंका की ताजपोशी में देरी के लिए भी मोदी-शाह की जोड़ी ही जिम्मेदार बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि भाई के बाद विष का हाला पीने को बहन ने पूरा मंच सजा रखा था। बस लोकतंत्र के नाम पर 10 अगस्त को वर्किंग कमेटी की बैठ के बाद इसका बकायदा ऐलान किया जाना बाकी था।
लेकिन, मोदी-शाह के आर्टिकल 370 के दॉंव ने गॉंधी परिवार को तुरुप के उस पत्ते को चलने से रोक दिया है जो आम चुनावों में उत्तर प्रदेश में औंधे मुँह गिरी थी। बताया जाता है कि इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर से विरोध के स्वर उठने और जनभावना केन्द्र सरकार के फैसले के साथ होने के कारण प्रियंका को आखिरी वक़्त में पैर खींचने पड़े। श्रीमंत जैसे युवाओं की पीठ पर इसलिए हाथ नहीं रखा गया क्यूँकि अब जमाना केसरी वाला नहीं रहा।
आखिर में, राहुल गॉंधी के जयपुर वाले भाषण की एक लाइन शिद्दत से याद आ रही है। राहुल ने कहा था, “कभी-कभी खुद से पूछता हूँ कि कॉन्ग्रेस पार्टी चलती कैसे है।” इसका जवाब पूरा देश जानना चाहता है। विदेशों में चिंतन के बाद किसी दिन जवाब मिल जाए तो राहुल जी प्लीज देश को भी बताइएगा।