तमिलनाडु के मंदिरों में तीन महिला पुजारियों की नियुक्ति की गई है। इस नियुक्ति के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बृहस्पतिवार (14 सितंबर 2023) को बड़ा दावा किया। उन्होंने कहा कि अब महिलाएँ मंदिरों में पुजारियों की भूमिका निभाएँगी, जो द्रविड़ियन मॉडल का उत्तम उदाहरण है। स्टालिन ने दावा किया कि ऐसा करके ‘उन्होंने’ पेरियार के ‘दिल का काँटा’ निकाल दिया है। हालाँकि, ये सच नहीं है क्योंकि मिस्टर स्टालिन जो कुछ भी कह रहे हैं, वो तथ्यात्मक रूप से न सिर्फ गलत है, बल्कि इतिहास के साथ ही वर्तमान से भी छेड़छाड़ है।
सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि स्टालिन ने दावा क्या किया है। दरअसल, तीन महिलाओं ने श्रीरंगम के तिरुचिरापल्ली में श्री रंगनाथर मंदिर द्वारा संचालित अर्चाकर (पुजारी) प्रशिक्षण स्कूल में प्रशिक्षण पूरा किया है। उन्हें सरकार की तरफ से सर्टिफिकेट और नियुक्ति पत्र मिला है। इसके बाद स्टालिन ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया, “पायलट और अंतरिक्ष यात्री के तौर पर महिलाओं की उपलब्धियों के बावजूद, उनके मंदिर के पुजारी की पवित्र भूमिका निभाने पर रोक थी।”
स्टालिन ने आगे कहा, “उन्हें (महिलाओं को) अपवित्र माना गया है। यहाँ तक कि देवी मंदिरों में भी। लेकिन, अंततः परिवर्तन हुआ। तमिलनाडु में हमारी द्रविड़ मॉडल सरकार ने सभी जातियों के लोगों को पुजारी के रूप में नियुक्त करके थानथाई पेरियार के दिल से काँटा निकाल दिया है। महिलाएँ अब गर्भगृह में कदम रख रही हैं। इससे समावेशी और समानता का एक नया युग आ रहा है।”
பெண்கள் விமானத்தை இயக்கினாலும், விண்வெளிக்கே சென்று வந்தாலும் அவர்கள் நுழைய முடியாத இடங்களாகக் கோயில் கருவறைகள் இருந்தன. பெண் கடவுளர்களுக்கான கோயில்களிலும் இதுவே நிலையாக இருந்தது.
— M.K.Stalin (@mkstalin) September 14, 2023
ஆனால், அந்நிலை இனி இல்லை! அனைத்துச் சாதியினரும் அர்ச்சகர் ஆகலாம் எனப் பெரியாரின் நெஞ்சில் தைத்த… https://t.co/U1JgDIoSxb
दरअसल, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन उस बारे में बात कर रहे हैं, जिसमें ‘पेरियार’ ईवी रामासामी ने एक बार गैर-ब्राह्मणों को मंदिरों में पुजारी की भूमिका निभाने की अनुमति न दिये जाने को अपने दिल में ‘काँटा’ बताया था। पेरियार ने कहा था कि मंदिरों में सभी जाति के लोगों को पुजारी बनाना चाहिए।
एमके स्टालिन की मानें तो महिलाओं को पुजारी के तौर पर नियुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि सनातन परंपरा ऐसी ही है। हालाँकि, स्टालिन की बात पूर्ण रूप से असत्य है। वर्तमान समय में ही पूरे देश के अलग-अलग जगहों पर महिला पुजारी हैं और वह ईश्वर की आराधना भी कर रही हैं। हम कुछ ऐसे ही मंदिरों के बारे में आपको बता रहे हैं।
बिहार के दरभंगा का अहिल्या मंदिर
इस लिस्ट में पहला नाम दरभंगा स्थित अहिल्या मंदिर का है। दरभंगा से 26 किलोमीटर दूर कमतौल में स्थित अहिल्या माता के इस मंदिर की मुख्य पुजारी अवंतिका मिश्रा हैं। इस मंदिर की परंपरा ही है कि यहाँ कोई पुरुष पुजारी हो ही नहीं सकता, क्योंकि माता अहिल्या को छूने की अनुमति किसी पुरुष को नहीं है।
यह मंदिर न सिर्फ बहुत पुराना है, बल्कि सनातन परंपरा के अनुसार त्रेता युग और भगवान राम से भी जुड़ा है। इस पुरुष सिर्फ दूर से दर्शन कर सकते हैं।
उत्तराखंड के चमोली में स्थित फ्यूंला नारायण मंदिर
उत्तराखंड के चमोली-गढ़वाल जिले में स्थित फ्यूंला नारायण मंदिर में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। यहाँ महिलाएँ ही भगवान की पूजा करती हैं और शृंगार करती हैं। हर साल सावन माह की संक्रांति पर मंदिर के कपाट खुलते हैं और डेढ़ माह बाद नंदा अष्टमी के दिन बंद हो जाते हैं। इस पूरे डेढ़ माह सिर्फ महिला पुजारी ही भगवान का शृंगार करती हैं।
पंढरपुर के विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर
महाराष्ट्र के पुणे स्थित 900 साल पुराने पंढरपुर के विट्ठल -रुक्मिणी मंदिर में महिला पुजारी की नियुक्ति होती है। पारंपरिक तौर पर इस मंदिर में ब्राह्मण परिवार ही पुजारी बनते रहे हैं, लेकिन अब महिला पुजारी की भी नियुक्ति हो चुकी है। पिछले 9 वर्ष से अधिक समय से विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर में महिला पुजारी अपनी जिम्मेदारी संभाल रही हैं।
जैसलमेर के लोकदेवता क्षेत्रपाल (खेतपाल) का मंदिर में दलित महिाल पुजारी
राजस्थान के जैसलमेर शहर से 6 किमी दूर बड़ाबाग में स्थित लोकदेवता खेतपाल जी के मंदिर में माली जाति की महिला पुजारी ही पूजा करा सकती हैं। ये परंपरा के साथ जुड़ा है। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहाँ सिर्फ जोड़े ही पूजा कर सकते हैं। सभी रस्में भी सिर्फ माली समाज की महिला पुजारी ही कराती हैं। ये मंदिर एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है।
महोबा के विंदेश्वरी मंदिर में दलित महिला पुजारी
उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में विंदेश्वरी (विंध्यवासिनी) मंदिर है। चरखारी स्थित इस देवी मंदिर में दलित महिला पुजारी पार्वती ही पूजा-पाठ कराती रही हैं। 30 वर्षों से वो पूजा कराती हैं। इससे पहले उनके ससुर इस मंदिर में पुजारी थे। उन्हीं विंध्यवासिनी का मुख्य धाम विंध्यांचल (मिर्जापुर) मंदिर में है, जो कई राज्यों में फैली आबादी की कुलदेवी भी हैं।
ओडिशा की माँ पंचुबरही मंदिर में दलित महिला पुजारी
ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले में माँ पंचुबरही का सदियों पुराना प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में पुजारी होने की शर्त ही है कि महिला दलित होगी। यहाँ पाँच शताब्दियों से, काले ग्रेनाइट में तराशी गई पाँच देवियों की पूजा होती है। ये मंदिर बागपतिया में स्थित है, जहाँ के स्थानीय लोग ही दलित महिला पुजारियों को अनाज, सब्जियाँ और फल आदि देते हैं।
दावा करना ही काफी नहीं, तथ्यों की जाँच-परख भी जरूरी
तो मिस्टर एमके स्टालिन, हमने महज कुछ ही मंदिरों के नाम और उनके पुजारियों के बारे में बताया है। इन मंदिरों में न सिर्फ महिला पुजारी हैं, बल्कि दलित महिला पुजारी भी अपना काम संभाल रही हैं। ऐसे में मिस्टर स्टालिन, आपका ये दावा कि सनातन मंदिरों में महिला पुजारी नहीं हैं, ये बिल्कुल गलत है।
इसके साथ ही आपका ये दावा भी कि तमिलनाडु में तीन महिला पुजारियों की नियुक्ति से द्रविड़ियन परंपरा जुड़ी है और ऐसा पहली बार है तो ये भी गलत है। मैं आपसे यही निवेदन करूँगा कि समाज को बाँटने वाला कोई भी दावा करने से पहले तथ्यों की जाँच और पड़ताल जरूर कर लें।
क्या है द्रविड़ियन मॉडल?
द्रविड़ियन मॉडल एक सामाजिक और राजनीतिक सिद्धांत है, जो तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में शुरू हुआ। इस सिद्धांत के अनुसार, द्रविड़ लोग भारत के मूल निवासी हैं, जबकि आर्य लोग बाहरी आक्रमणकारी हैं। द्रविड़ियन मॉडल के अनुसार, आर्य लोग ही भारत में जाति व्यवस्था लेकर आए।
इसके अनुसार, इस व्यवस्था में महिलाओं को हीन माना जाता है, इसलिए उन्हें मंदिरों में प्रवेश और पूजा की अनुमति नहीं थी। हालाँकि, इतिहास के प्रमाण बताते हैं कि तमिलनाडु के मंदिरों में महिला पुजारियों की नियुक्ति सदियों से चली आ रही है। उदाहरण के लिए, 11वीं शताब्दी में लिखे ग्रंथ में भी महिला पुजारी का उल्लेख है। ऐसे में सनातन परंपरा पर लगाए गए आरोप निरर्थक ही मालूम पड़ते हैं।
दावा गलत, लेकिन महिला पुजारियों की नियुक्ति का स्वागत
तमाम उदाहरणों के साथ, मेरा मानना है कि तमिलनाडु के मंदिरों में महिला पुजारियों की नियुक्ति द्रविड़ियन नहीं, बल्कि सनातनी मॉडल का हिस्सा है। इसका उदाहरण हम कई मंदिरों से दे ही चुके हैं। सनातन मॉडल के हिसाब से सभी लोग, चाहे वो किसी भी लिंग या जाति के हों, को धर्म का पालन करने का अधिकार है।
हालाँकि, हम मानते हैं कि तमिलनाडु के मंदिरों में महिला पुजारियों की नियुक्ति एक प्रगतिशील कदम है। यह कदम महिलाओं के अधिकारों और समानता को बढ़ावा देता है। ऐसे में मैं इसका तहेदिल से स्वागत भी करता हूँ।
बेटे ने कही थी सनातन को जड़ से खत्म करने की बात
यहाँ ये भी बता देना आवश्यक समझता हूँ कि एमके स्टालिन के मंत्री बेटे उदयनिधि स्टालिन ने कुछ दिनों पहले सनातन धर्म की तुलना डेंगू-मलेरिया से करते हुए इसके संपूर्ण नाश की बात कही थी। सीएम स्टालिन ने इस मामले में अपने बेटे उदयनिधि का बचाव भी किया था।
उदयनिधि ने कहा था, “कुछ चीजें हैं जिनका हमें उन्मूलन करना है और हम केवल विरोध नहीं कर सकते। मच्छर, डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना, ये सभी चीजें हैं जिनका हम विरोध नहीं कर सकते, हमें इन्हें मिटाना है। सनातन भी ऐसा ही है। विरोध करने की जगह सनातन को ख़त्म करना हमारा पहला काम होना चाहिए।”
यहाँ बताना जरूरी है कि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पिता करुणानिधि भी हिंदी और हिंदुत्व विरोध की राजनीति करते रहे हैं। इतना ही नहीं, इनकी राजनीतिक चेतना के प्रमुख केंद्र पेरियार हिंदू धर्म के खिलाफ पूरा जीवन जहर उगलते रहे हैं।