भारत में केवल भाजपा ही वह एकमात्र राजनीतिक दल है, जिसमें ‘कार्यकर्ता’ होते हैं, वरना जितनी भी अन्य राजनीतिक पार्टियाँ हैं, वहाँ कार्यकर्ताओं के स्थान पर सिर्फ गुण्डे, गुर्गे, गुलाम और वंशदास ही होते हैं।
इसकी वजह है कि भाजपा एक ‘विचार’ आधारित पार्टी है। वह विचार है भारत भूमि को ‘माँ’ मानने का, वह विचार है ‘हिंदुत्व’ का, वह विचार है ‘राष्ट्रवाद’ का, वह विचार है ‘सनातन’ का, वह विचार है ‘विश्व बंधुत्व’ और ‘जगत कल्याण’ का।
लेकिन इसके बरक्स आप कॉन्ग्रेस से लेकर सपा, बसपा, राजद, जदयू, बीजद, टीडीपी, द्रमुक, तृणमूल, अन्नाद्रमुक, आम आदमी पार्टी और यहाँ तक कि वाम दलों को भी देख लीजिए; इन दलों में आपको कार्यकर्ता के नाम पर एक परिवार, व्यक्ति और स्वार्थ विशेष को साधने के लिए जुटे हुए लोग ही मिलेंगे।
देश, समाज और राष्ट्र से इनको कोई मतलब नहीं हैं, इनकी महफ़िलों में ऐसी कोई बातें भी नहीं होती हैं। इनको नहीं मतलब है कि सूरत बदले, इनकी पुरजोर कोशिश है कि हंगामा होना चाहिए। हंगामा हो धर्म, जाति, वर्ग की राजनीति करने के लिए, हंगामा हो ठेकेदारी, टेंडर और सरकारी सम्पत्ति में लूट-खसोट के लिए।
वरना आप इनमें से किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता बल्कि उनके मुखिया से पूछ लीजिये कि क्या मतलब है उनकी पार्टी के नाम का और क्या उद्देश्य है उनकी राजनीति का?
क्या राहुल गाँधी और उनकी बहनजी बता सकती हैं, कि कॉन्ग्रेस पार्टी क्यों है इस देश में? यह कैसी पार्टी और कैसा विचार है, जो 70 साल से एक ही परिवार के इर्द-गिर्द घूम रहा है? जब यह परिवार संकट में होता है, तो यह पार्टी भी संकट में आ जाती है? और, जब यह परिवार सत्ता में आ जाता है, तो पार्टी की भी मौज हो जाती है?
क्या अखिलेश यादव बता सकेंगे कि समाजवाद क्या है? इस समाजवाद के तहत वे किस प्रकार के समाज की स्थापना करना चाहते हैं? यह कैसा समाजवाद है कि नगर पालिका से लेकर के प्रदेश के मुख्यमंत्री तक के सभी पद और संसाधन एक ही परिवार और जाति के लिए रिजर्व रहते हैं?
आप पूछ सकेंगे सुश्री मायावती से कि वे किस बहुजन की राजनीति करती हैं? हज़ारों-हजार करोड़ रुपए खुद और अपने चुनाव चिह्न की मूर्तियों पर बहाकर, अतिशय विलासिता और वैभव पूर्ण जीवन जीकर वे किस बहुजन का भला कर रही हैं, जहाँ छापे में उनके पूर्व निजी सचिव के यहाँ से 50 लाख रुपए का पैन बरामद होता है तो सोचिये कि वह कौन सा ‘विचार’ है जो देश की सत्ता और संसाधनों का ऐसा निर्मम दोहन कर सकता है?
बीजू जनता दल, जिसकी स्थापना ही एक नेता के नाम से कर दी गई और जिसकी बागडोर फिर उस नेता के पुत्र नवीन पटनायक ने संभाल ली, अब चूँकि उनके बाद उनका कोई वंश नहीं है, तो यह ‘विचारहीन’ दल भी खत्म हो जाएगा।
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कॉन्ग्रेस, जिसकी शुरुआत राज्य से वामपंथियों के कुशासन के खात्मे के लिए हुई थी, वह पार्टी विचार के नाम पर एक कोढ़ और कलंक बन चुकी हैं, जहाँ ‘ममता पूजा’ की हाइट देखिए कि बीते दिनों जब ममता की पार्टी में नम्बर दो उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी का जन्मदिन था, तो तृणमूल के सभी सांसद दिल्ली में संसद सत्र को बीच में छोड़कर कोलकाता अपनी अटेंडेंस लगाने के लिए पहुँच गए थे।
ऐसी ही एक पार्टी का रजिस्ट्रेशन शरद पवार साहब ने भी करवाया हुआ है, जिसका नाम उन्होंने ‘राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी’ रखा है, लेकिन यहाँ भी सिर्फ एक ही विचार और उद्देश्य है, ‘परिवारवाद’ और ‘मिल-बाँटकर’ लूटो। बेटी, भाई, भतीजा, भतीजे के भी बच्चों को सेटल करना, इनका घोषणा पत्र है।
यही हाल महाराष्ट्र में दूसरी क्षेत्रीय पार्टी शिवसेना का है, जो राजनीति हिंदुत्व और मंदिर की करते हैं लेकिन अगर सत्ता में उनको अपना हिस्सा नहीं मिले तो वे हिंदुत्व का भी बाजा बजाने से परहेज नहीं करते, और यही वजह रही कि बीते पाँच सालों में जिस प्रकार से भाजपा पर शिवसेना ने हमले किए, वे मुख्य विपक्षी दल कॉन्ग्रेस से किसी भी मायने में कम नहीं थे।
अंत में औकात अनुसार जिक्र वामपंथियों का भी। जहाँ इनकी पार्टी को इस बात के लिए क्रेडिट तो देना पड़ेगा, कि ये लोग व्यक्ति पूजा से परहेज करते हैं, पर जहाँ तक कार्यकर्ता का सवाल है, तो उनका यहाँ इनका कोई काम ही नहीं है, बल्कि यहाँ अर्बन नक्सल होते हैं। बाकी क्षेत्रीय दलों के साथ यह सकारात्मक पक्ष है कि वे जो भी लूट-मार करेंगे, देश में ही करेंगे और देश में समर्पित भी कर देंगे, लेकिन वामपंथियों के साथ यह विडम्बना है कि वे जो कुछ भी करते हैं वह कार्ल मार्क्स, लेनिन और माओ नामक विदेशियों की प्रेरणा से, उनका ही साम्राज्य स्थापित करने के लिए करते हैं।
इसलिए अगर आप भारत में रह रहे हैं, भारतीयता में यकीन रखते हैं तो ‘भारतीय जनता पार्टी’ को लेकर सोचिये। जहाँ भारत पहले है, जनता बाद में और पार्टी सबसे अंत में। अगर हम संघ को ही इसका उद्गम स्थल मान लें, तो सोचिये वह कौन-सी व्यक्ति पूजा और परिवार पूजा है, जिसकी वजह से संघ, जनसंघ से होते हुए आज भाजपा तक का न केवल अस्तित्व कायम है, बल्कि आज वह दल अपनी दम पर देश की सत्ता चला रहा है।
वह क्या कारण है कि इन बीते लगभग सौ सालों में दुनिया में अनेकों धुरंधर लोग और उनके विचार दफ़न हो गए लेकिन 1925 का राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, भारत और सनातन और विश्व बंधुत्व का विचार जस का तस कायम है?
संघ और भाजपा में शीर्ष पदों और ओहदों पर विराज चुके और विराजित लोगों के बारे में सोचिए कि वे वंशवाद की वजह से वहाँ पहुँचे या फिर एक विचार में अपनी आस्था, सेवा और समर्पण से? आप सोच कर भी नहीं सोच पाएँगे कि अमित शाह के बाद भाजपा का अध्यक्ष कौन बनेगा, मोदी के बाद भाजपा का पीएम कौन होगा या फिर यही देख लीजिये कि अटल जी और आडवानी जी की विरासत को कौन आगे बढ़ा रहा है?
लेकिन जब यही सवाल हम कांग्रेस, सपा, बसपा, तृणमूल, राजद, शिवसेना, नेशनल कांफ्रेंस, टीडीपी, जेडीएस, पीडीपी जैसे दलों के बारे में सोचते हैं, तो हमें दिमाग ही नहीं लगाना पड़ता है कि आगे क्या होगा। इसलिए मैं मानता हूँ और फिर से कह रहा हूँ, कि भाजपा में लोग गलत हो सकते हैं, लेकिन भाजपा गलत नहीं हो सकती, क्योंकि यह गलत उद्देश्य के लिए स्थापित ही नहीं हुई है। इसलिए भाजपा एक ‘विचार’ के तौर पर हमेशा ‘पवित्र’ और ‘प्रासंगिक’ रहने वाली है।