अयोध्या में 5 अगस्त को राम मंदिर का भूमि पूजन होगा। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मौजूद रहेंगे। इस दौरान खबर आई कि खुद को भगवान राम का भक्त कहने वाले मोहम्मद फैज खान ने 800 किलोमीटर की लंबी पदयात्रा शुरू कर दी है। तो वहीं जमशेद और सईद को भूमि पूजन में जाना है। क्या पता कोई और भी फैज होगा, जो ईंट लेकर निकल पड़ा होगा।
समस्या तो इस बात को लेकर है कि मीडिया का एक वर्ग इन्हें ऐसे दिखा रहा है कि वो एक व्यक्ति भर नहीं बल्कि व्यक्ति से काफी ऊपर एक राम भक्त हो जाते हैं। जब इस तरह से एक समुदाय को हाइलाइट किया जाता है, माहौल बनाया जाता है, तो सवाल उठने लगता है कि आखिर वो करना क्या चाहते हैं? इसके पीछे एजेंडा क्या है?
ये वामपंथियों की पुरानी चाल रही है। दशकों से ये केस चल रहा था और 1989 में भी वामपंथियों ने टाँग अड़ाकर मुस्लिमों को ये विश्वास दिलाया कि वो केस जीत सकते हैं, जबकि इसमें उनके जीतने लायक कुछ भी नहीं था। फैज का मिट्टी लेकर जाना उस राम मंदिर में समुदाय विशेष के एक व्यक्ति का अपना ‘योगदान’ लिखवाने जैसा है, जिस मंदिर के लिए 500 सालों तक संघर्ष चला है। मंदिर के ध्वस्त होने से लेकर पुनर्निर्माण के बीच लाखों हिन्दुओं की नृशंस हत्याएँ हुईं।
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