Sunday, December 22, 2024
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लॉकडाउन में घरेलू हिंसा: महिलाओं पर बढ़े अत्याचार, क्या महामारी भी नहीं दे रही पुरुषों को सीख?

लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों के बीच आज हर एक भारतीय को खुद से कुछ प्रश्न जरूर करना चाहिए। हमारी असमानतावादी सोच महिला सशक्तिकरण के मार्ग में एक अवरोध है, चाहे इसे हम स्वीकार करें या ना करें।

दुनिया पर अभी कोरोना नामक महामारी का काला साया छाया हुआ है। कई देशों में लोग लॉकडाउन में अपने-अपने घरों में कैद हैं। अब तक करीब एक लाख 80 हजार लोग मर चुके हैं और करीब 26 लाख लोग बीमार हैं। कितनी हैरानी की बात है न कि जब हर जान खतरे में है, अरबों लोग घरों में कैद हैं तो लॉकडाउन में घरेलू हिंसा यानी दुनियाभर में पुरुषों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार और तेज हो रहे हैं।

ये आँकड़े चौंकाऊ, लेकिन सच हैं कि लॉकडाउन के दौरान दुनियाभर में घरेलू हिंसा तेजी से बढ़ी है। इस लिस्ट में हमारा देश भी शामिल है, वो धरती जहाँ नारियों को पूजने की परंपरा है। शर्मनाक है, लेकिन आज का सच यही है।

लॉकडाउन में लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों के बीच आज हर एक भारतीय को खुद से कुछ प्रश्न जरूर करना चाहिए। हमारी असमानतावादी सोच महिला सशक्तिकरण के मार्ग में एक अवरोध है, चाहे इसे हम स्वीकार करें या ना करें।

भारत कोरोना संकट से निपटने हेतु बहुतेरे प्रयास कर रहा है। लेकिन लॉकडाउन के समय महिलाओं पर ज्यादती के तेजी से बढ़ते मामले चिंताजनक हैं। सामान्यतया पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ घरों में औसतन ज्यादा काम करती हैं। आज जब लॉकडाउन हुआ है तो प्रत्येक घर में महिलाओं हेतु काम भी बढ़ गए हैं। साथ ही उनके खिलाफ हिंसा भी।

राष्ट्रीय महिला आयोग को 23 मार्च से 16 अप्रैल तक के बीच में 587 शिकायतें मिलीं। इनमें से 239 घरेलू हिंसा से संबंधित हैं। ये तो वे केस है जो दर्ज हुए हैं। परंतु घरेलू हिंसा के अभी तो ढेर सारे मामले होंगे जो या तो परिवार या समाज के लोक-लाज की वजह से दर्ज नहीं हुए होंगे। आज इस संकट की घड़ी में महिलाओं पर काम का बोझ और उन पर अत्याचार दोनों बढ़ गए हैं। उपरोक्त परिस्थितियाँ हमें सोचने पर मजबूर कर रही है कि कैसे महिलाओं को सुरक्षित रखा जा सकता है।

महिलाओं पर घरेलू हिंसा ना हो जैसे महत्वपूर्ण विषय को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन रेखा शर्मा ने कई सारे स्वागत-योग्य कदम उठाए है। राष्ट्रीय महिला आयोग हर प्लेटफॉर्म पर सक्रिय है और जहाँ कहीं भी किसी तरीके की महिलाओं पर घरेलू हिंसा या मानसिक प्रताड़ना हो रहा है और वो उनकी नजर में आता है तो आयोग तुरंत कार्यवाही करता है।

बात इतने पर ही नहीं ठहरती है। रेखा शर्मा जी ने एक सरल एवं बेहतरीन कदम उठाया। वो यह है कि महिलाओं हेतु 10 अप्रैल को एक व्हाट्सएप नम्बर लॉन्च किया गया जिसके अंतर्गत अगर कोई महिला किसी भी तरीके की घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं तो वो तुरंत दिए गए व्हाट्सएप नम्बर पर कॉल करें एवं अपना रिपोर्ट दर्ज कराए। जवाब में शीघ्रातिशीघ्र उपयुक्त सहायता उस महिला तक पहुँच जाएगी।

इस व्हाट्सएप नंबर के लॉन्च होने के बाद से घरेलू हिंसा से जुड़ी हुई करीब 40 मैसेज आयोग को मिले हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार इन संदेशों की पहले जाँच की जाती है और जो भी घरेलू हिंसा के मामले लॉकडाउन के दौरान हुए होते हैं उन्हें प्राथमिकता दी जाती है। राज्य पुलिस और प्रशासन की मदद से पीड़ित महिलाओं को तत्काल सुरक्षा प्रदान की जाती है। राष्ट्रीय महिला आयोग का यह प्रयास क़ाबिलेतारीफ़ है।

संकट की इस घड़ी में, कई सारी समाजसेवी संस्थाएँ भी आगे आ रहे हैं। उनकी नजर भी इस समस्या पर है ताकि कहीं भी कोई महिला पर किसी तरीके की घरेलू हिंसा ना हो। इनमें एक संस्था ‘भारतीय स्त्री शक्ति’ है जो महिला सशक्तिकरण हेतु सक्रिय रूप से कार्य कर रही है।

1988 में स्थापित यह संस्था, महिलाओं, परिवारों और समाज को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह संस्था पंचसूत्रीय कार्य पर बल देती है: शिक्षा और कौशल विकास, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य, आत्म-सम्मान, वित्तीय स्वतंत्रता और लिंग समानता।

नयना सहस्रबुद्धे इस संस्था की वाइस प्रेसिडेंट हैं। वे पिछले कई सालों से इस संस्था के माध्यम से महिलाओं के मौलिक अधिकारों हेतु आवाज़ उठा रही हैं। आज जब संकट की घड़ी आई है तब भी यह संस्था अपना योगदान देने से पीछे नहीं हट रही है। नयना सहस्रबुद्धे के निर्देशन में इस समाजसेवी संस्था द्वारा हरसंभव प्रयास किया जा रहा है ताकि महिलाओं को सुरक्षित रखा जा सके और उन पर कोई घरेलू हिंसा ना हो।

नयना सहस्रबुद्धे एवं उनकी संस्था के वालंटियर्स हर प्लेटफॉर्म से आवाज़ उठा रहे हैं ताकि लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक किया जा सके एवं महिलाओं की स्थिति को सुरक्षित किया जा सके। घरेलू हिंसा एवं मानसिक प्रताड़ना से पीड़ित महिलाओं हेतु इस संस्था ने महाराष्ट्र राज्य के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ हेल्पलाइन नम्बर भी जारी किए हैं। ‘भारतीय स्त्री शक्ति’ जैसी संस्था का ये कदम सराहनीय है।

महिलाओं को सुरक्षित रखने हेतु, सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किए जा रहे ढेरों प्रयास अपने आप में इस बात का संकेत हैं कि हमारे समाज में महिलाओं के साथ किसी भी तरीके का असमान व्यवहार नहीं होना चाहिए। ये संस्थाएँ इस लक्ष्य पर प्रतिबद्ध हैं। महिलाओं पर किसी भी तरीके की हिंसा ना हो इस हेतु इन संस्थाओं को पंचायत, गाँव, मोहल्ला स्तर पर इकाई-बद्ध होकर कार्य करने की जरूरत है। साथ ही साथ इन्हें अपने वालंटियर्स को इस दिशा में प्रशिक्षित करना होगा। संभवतः तब जाकर अधिकतर महिलाएँ अपनी पीड़ा साझा कर पाएँगी।

आज हमें एक जागरूक नागरिक की तरह सोचने की जरूरत है कि आखिर महिलाओं की स्थिति अभी तक ऐसी क्यों बनी हुई है? इनकी सुरक्षा का प्रश्न क्यों उठ खड़ा होता है? हमारी माताएँ, बहने क्यों नहीं सुरक्षित महसूस करती हैं?

आज हमें इस बात को भी स्वीकार करना चाहिए कि महिलाओं पर घरेलू हिंसा का एक प्रमुख कारण महिला स्वयं भी हैं। कहीं सास, तो कहीं बहू, कहीं ननद, तो कहीं भाभी, तो कहीं पड़ोस की चाची, घरेलू हिंसा को तूल या बढ़ावा देती रहती हैं। महिलाओं को एक कड़ी के रूप में कार्य करने की जरूरत है। हर महिला को ये प्रण लेना चाहिए कि किसी भी तरीके की हिंसा अपने घर की महिलाओं पर नहीं होने देंगे। फिर देखिए, सारी समस्याओं का अंत खुद ही हो जाएगा।

महिला की स्थिति हर प्रकार से समाज में सबसे ऊपर है। इन्हें जग जननी कहते हैं। हम कब समझेंगे कि जिस समाज में महिलाओं को उचित मान-सम्मान नहीं मिलता है वह समाज गर्त की ओर जाता है। मनुस्मृति में उल्लिखित एक श्लोक यहाँ प्रासंगिक है-

“शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।”

इस श्लोक का अर्थ यह है कि जिस कुल में स्त्रियाँ कष्ट भोगती हैं, वह कुल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जहाँ स्त्रियाँ प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सदैव फलता-फूलता और समृद्ध रहता है। आखिर हम कब इस बात को समझेंगें कि महिलाएँ हैं तो हम हैं, ये नहीं तो हम नहीं।

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Dr. Mukesh Kumar Srivastava
Dr. Mukesh Kumar Srivastava
Dr. Mukesh Kumar Srivastava is Senior Consultant at Indian Council for Cultural Relations (ICCR) (Ministry of External Affairs), New Delhi. Prior to this, he has worked at Indian Council of Social Science Research (ICSSR), New Delhi. He has done his PhD and M.Phil from the School of International Studies, Jawaharlal Nehru University, New Delhi.

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