90 के दशक में बच्चों की दिवाली धूम-धड़ाके वाली ही होती थी। आज भी आपको वो दिन याद आते होंगे जब मम्मी-पापा घर की सफाई और पूजा के सामान की चिंता में घुले जाते थे। लेकिन आपको दिन रात बस दिवाली में अपने पटाखों की चिंता रहती थी। शाम को बाजार जाना और आलू बम, चरखी, फूलझड़ी, अनार, लड़ी बम, रॉकेट जैसे जाने कितने पटाखे खरीद लाते।
दिवाली की रात का इंतजार कौन करे। बच्चों की दिवाली तो दो-तीन दिन पहले से ही शुरू हो जाती। वो बम को टूटे-फूटे टीन के डब्बों के नीचे रखकर जलाना। बम फूटने पर उस डब्बे को हवा में उड़ते देखना। हाथ में रखकर अनार जलाना और दोस्तों के सामने हेकड़ी झाड़ना। 100 बमों की लड़ी को मटके में रखकर जलाना और फिर उसकी आवाज का पूरे मुहल्ले तक में गूँजना। रॉकेट जलाना, जो पड़ोसी के घर में घुस जाया करती थी।
याद ही होगा न ये सब आप लोगों को? इन पंक्तियों को पढ़कर आपके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान भी आ गई होगी। क्योंकि कमोबेश 90 के दशक के हर बच्चे का यही बचपन रहा होगा। सबने ऐसे ही दिवाली मनाई होगी। थोड़ी कम या थोड़ी ज्यादा।
अब दिल्ली में दिवाली से ठीक पहले दिल्ली सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। दिल्ली में पटाखों को 9 नवंबर से 30 नवंबर तक पूरी तरह से बैन कर दिया गया है। ग्रीन क्रैकर्स भी नहीं बिकेंगे। कहा गया कि दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए इस तरह की पाबंदी लगाई गई है।
दिल्ली में कोरोना और पॉल्यूशन के कॉकटेल ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। दिवाली के पास पॉल्यूशन का ठीकरा पटाखों पर फोड़ा जा रहा है। दिल्ली समेत कुछ अन्य राज्यों ने पटाखे जलाने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। अब सवाल ये है कि प्रदूषण को लेकर सरकारें साल भर क्यों सोती रहती हैं? पॉल्यूशन का सॉल्यूशन चंद दिनों के बैन से निकलेगा? क्या पटाखा ही पॉल्यूशन का असली विलेन है? पराली जलाने पर बैन क्यों नहीं लगाती सरकारें? क्या पॉल्यूशन के बहाने हिंदू त्योहारों को टारगेट किया जा रहा है? पॉल्यूशन पर कब सख्त बनेगी पॉलिसी?
सवाल तो यह भी है कि पटाखों पर बैन केवल 30 नवंबर तक ही क्यों? यदि पटाखे हवा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं तो पूरे साल के लिए उन्हें बैन कर देना चाहिए। पटाखे उद्योग बंद कर देना चाहिए। पटाखा कारोबारियों को पुनर्वास पैकेज देना चाहिए और भारत को पटाखा मुक्त देश घोषित कर देना चाहिए। सिर्फ हिंदू त्योहारों को प्रदूषण के बहाने क्यों टारगेट किया जा रहा है?
क्या प्रदूषण कम करने नाम पर पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाना उचित है? मैं इस बात से असहमत हूँ। दिवाली में पटाखे फोड़ने से रोकना हिंदू संस्कृति पर हमला है। आखिर तुम हमें हमारा ही त्योहार मनाने से कैसे रोक सकते हो? पहले तुमने होली के समय हमसे ये कहकर पानी छीन लिया कि इस त्योहार में पानी की बहुत बर्बादी होती है। अब दिवाली पर पटाखे भी?
बकरीद के बारे में कोई कुछ नहीं कहता, जब लाखों मासूम जानवरों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। क्या बकरीद के मौके पर बकरे कटने से नदियों का रंग लाल नहीं होता है। तब तो लोगों को प्रदूषण की फिक्र नहीं होती है। क्रिसमस के बारे में क्या कहेंगे जब हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं?
दिल्ली में तो वैसे ही प्रदूषण रहता है, तो सिर्फ पटाखे पर बैन से क्या फर्क पड़ेगा? अजान के लिए मस्जिदों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर क्या कहेंगे? क्या ये ध्वनि प्रदूषण ठीक है। ये अजीब है कि सारा जोर सिर्फ एक ही समुदाय पर चल रहा है। पटाखों की सेल पर जो बैन लगा, वह ‘हिंदू संस्कृति’ को लगा है, पटाखों को नहीं। ऐसा बैन न ईद पर लगता है न मुहर्रम और न ही क्रिसमस पर लगता है। सिर्फ दिवाली-होली पर लगता है, क्यों?
इससे पहले पटाखों पर बैन का विरोध करते हुए त्रिपुरा के राज्यपाल ने यहाँ तक कह दिया था कि ऐसा लगता है कि प्रदूषण के नाम पर अंतिम संस्कार में शव जलाने पर भी कहीं रोक ना लगा दी जाए। राज्यपाल ने बाद में कहा,
“मैंने अपने ट्वीट में कोर्ट के फैसले पर कुछ नहीं कहा है। मैंने ये कहा है कि जिस तरह से दही हांडी समेत बाकी हिंदू त्योहारों को बैन किया जा रहा है, उसे देखते हुए हिंदुओं के अंतिम संस्कार पर भी रोक लगा दी जाएगी या फिर कोई कोर्ट में याचिका डालकर प्रदूषण के मुद्दे पर शवों को जलाने से रोक लगाने की माँग करेगा। निश्चित तौर पर इसमें राजनीति है। अवॉर्ड वापसी ग्रुप और बाकी लोग जो ऐसी याचिका दायर करते हैं, उनकी नजर हमेशा अल्पसंख्यक वोट बैंक पर होती है। मैं उस राजनीति में नहीं पड़ूँगा लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि इसमें राजनीति है।”
बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल से पटाखा बैन को लेकर सवाल किया, “क्या हर साल दिवाली पर पटाखों को बैन करना उचित है? दिल्ली में आज तो पटाखे नहीं जल रहे हैं तो प्रदूषण का स्तर आज खराब क्यों है? करवा चौथ के दिन चाँद देखने के लिए एक-एक घंटे जद्दोजहद करनी पड़ी, प्रदूषण अपने चरम पर था, लेकिन तब तो पटाखे नहीं चल रहे थे?”
ज्वैलरी ब्रांड तनिष्क ने भी अपने लव जिहाद वाले विवादित विज्ञापन के बाद दिवाली के अवसर पर पटाखे को लेकर नया ऐड तैयार किया। इस ऐड में भी उन्होंने अपने प्रचार के नाम पर हिंदू विरोधी प्रोपेगेंडा परोसा है, जिसकी वजह से सोशल मीडिया पर एक बार फिर बॉयकॉट तनिष्क ट्रेंड करने लगा है।
ऐड शुरू होते ही एक महिला इसमें कहती है, “यकीनन कोई पटाखे नहीं। मुझे नहीं लगता किसी को पटाखे जलाने चाहिए।” इसके बाद दो-तीन महिलाएँ अपनी बातें रखती हैं और अंत में इकट्ठा होकर खिलखिलाती नजर आती हैं। बस ऐड खत्म।
सोचने वाली है बात है कि यह प्रचार दिवाली के लिए निर्मित हुआ है। यदि मान भी लिया जाए कि तनिष्क का प्रोपेगेंडा हिंदू विरोधी नहीं है तो फिर इसमें दीये, कैंडल्स, रंगोली, मिठाई, पूजा की थाली आदि चीजें कहाँ हैं? जो आमतौर पर दिवाली के मौके पर हर घर की शोभा बढ़ाते हैं। क्या दिवाली का मतलब सिर्फ़ तनिष्क का सोना पहनना होता है?
दिल्ली सरकार के फैसले से पटाखा कारोबारियों की नींद उड़ गई है। पटाखा कारोबारियों का कहना है कि दिल्ली में विक्रेताओं ने सरकार से दिवाली तक ग्रीन पटाखे बेचने की अनुमति दी जाए, नहीं तो भारी नुकसान झेलना होगा।
पटाखा कारोबारी के अनुसार “अचानक प्रतिबंध के कारण, हमें लगभग 15-20 लाख रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। पहले सरकार ने कहा कि ग्रीन पटाखे बेचे जा सकते हैं और हमें लाइसेंस दिया गया है। हमने पहले ही स्टॉक खरीद लिया था।”
पटाखे बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि सरकार द्वारा सभी प्रकार के पटाखों पर प्रतिबंध लगाने से उन्हें भारी नुकसान होगा। एक विक्रेता का कहना है, “हमने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ग्रीन पटाखों का स्टॉक खरीद लिया, लेकिन अब सीएम ने उन पर भी प्रतिबंध लगा दिया। हम प्रतिबंध का विरोध करेंगे।”
पटाखे बैन का सीधा असर व्यापारियों पर पड़ेगा, क्योंकि पहले सरकार ने खुद ग्रीन क्रैकर्स की इजाजत दी थी और अब प्रतिबंध लगा दिया। 2 महीने पहले सरकार ने लाइसेंस दिए और जब व्यापारियों ने पटाखे खरीद लिए तो उस पर बैन लगा दिया गया। इस कारण व्यापारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। यह बेहद हास्यास्पद है और यह बताता है कि सरकार के पास कोई विजन नहीं है।
इस मामले में एक सवाल तो यह पूछा जा रहा है कि जब प्रदूषण के अन्य कई कारण हैं, तब फिर अकेले पटाखों की बिक्री पर रोक क्यों? ऐसे सवालों के साथ एक सवाल यह भी उठा है कि क्या सारे नियम-कायदे हिंदुओं के त्योहारों के लिए ही हैं? यह सवाल इसलिए उठा, क्योंकि अतीत में होली पर इस तरह की नसीहत बार-बार दी जाती रही है कि हानिकारक रंगों के इस्तेमाल से बचें। दीपावली के वक्त पटाखों पर अंकुश की चर्चा नई नहीं है।
अरसा पहले कॉन्वेंट स्कूलों में बच्चों को पटाखों के चलते पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के प्रति जागरूक करने की शुरुआत हुई थी, जो धीरे-धीरे पब्लिक स्कूलों तक भी पहुँची। तब भी यह चर्चा चली थी कि एक शहरी वर्ग हिंदुओं के त्योहारों के प्रति तिरस्कार का भाव रखता है। जब मूर्तियों के विसर्जन को लेकर नदियों के प्रदूषण की चिंता की गई, तब भी यह कहा गया कि आखिर सारी हिदायत हिंदुओं के त्योहारों के लिए क्यों?