साल 2012 में निर्भया के साथ हुई बर्बरता सोचकर भी रूह काँप जाती है। रात में घर से निकलते हुए डर लगता है और कोई मदद के लिए हाथ बढ़ाए तो उस पर शक होता है। उस रात जो कुछ भी हुआ और जो कुछ भी निर्भया ने झेला, उसे जानने के बाद शायद ही कोई ऐसा शख्स हो, जो उन दरिंदों के लिए सजा-ए-मौत न माँगे। आखिर कौन चाहता है ऐसे दानवों के बीच में रहना, जो एक लड़की के यौनांग में व्हील जैक घुसा दें और जब बाद में इस क्रूरता की वजह पूछी जाए तो जवाब दें कि अगर वो उस रात विरोध नहीं करती तो वे इस हद तक नहीं जाते।
सोचिए, ऐसी मानसिकता के लोग अगर आसपास हों, तो कितनी देर लगेगी हर दूसरी लड़की को निर्भया बन जाने में और कितनी देर लगेगी हर वहशीपन को जस्टिफाई करने में…। पूरे आठ साल तक हमारी चरमराई व्यवस्था ने निर्भया को इंसाफ के लिए इंतजार कराया। ये अंतराल इतना लंबा था कि 6 में से एक दोषी ने तो खुद आत्मग्लानि में मौत को गले लगा लिया और 1 को नाबालिग होने का फायदा मिल गया। लेकिन बाकी चार के लिए निर्भया की माँ फाँसी की गुहार लगाती रहीं और रो रोकर न्यायव्यवस्था से इंसाफ माँगती रहीं।
8 साल तक इस मामले में सुनवाई चली। पूरे 8 साल। इस बीच दोषियों की ओर से याचिका पर याचिका दाखिल हुईं। कभी मानवता को शर्मसार करने वाले उनके वकील ने उन्हें बचाने के लिए नाबालिग कार्ड खेला तो कभी मानसिक बीमारी वाला। कभी इंद्रा जय सिंह जैसी बड़ी वकील ने निर्भया की माँ से चारों को माफ करने की खुद गुजारिश की। मगर, आज जब सभी युक्तियाँ खत्म हो गई और दरिंदों को फाँसी पर लटकाने की अंतिम तिथि आई, तो एक नया ड्रामा शुरू हुआ।
ये ड्रामा दोषियों के घरवालों की ओर से देखने को मिला। हालाँकि, दोषियों के सजा के दिन नजदीक आते आते ये सब बहुत पहले से शुरू हो चुका था। लेकिन पटियाला कोर्ट के बाहर आज हद पार हो गई। आज यहाँ दोषी अक्षय कुमार की पत्नी ने अपने पति की सजा को रुकवाने के लिए रो-रोकर खुद को चप्पलों से मारा और बार-बार बोलती रही कि उसे नहीं जीना है, उसे मार दो। इसके बाद निर्भया के गुनहगार विनय शर्मा की माँ ने भी अपने बेटे को आखिरी बार अपने हाथ से सब्जी,पूड़ी और कचौड़ी खिलाने की इच्छा जताई। इससे पहले एक दोषी की बहन को बैनर लिए ये सवाल पूछते देखा गया था कि अगर उसके भाई को फाँसी हो गई तो उससे शादी कौन करेगा?
विचार करिए…ये सब उन लोगों की हरकतें हैं जिन्हें मालूम है कि उनके बेटे ने, उनके पति ने, उनके भाई ने कैसे एक बच्ची की आत्मा के परखच्चे उड़ाए, उसके शरीर को तहस-नहस किया..।आज विनय कुमार की माँ इच्छा जताती हैं कि उन्हें अपने बेटे को पूड़ी-सब्जी खिलाना है। उस बेटे को जिसे कल फाँसी होनी हैं, क्योंकि उसने 8 साल पहले एक लड़की के चीथड़े उड़ाने में सहयोग दिया था। उस बहन को अपने भाई के साथ आज भी रहना है जिसे मालूम है कि उसका भाई उस लड़की का दोषी है, जिसकी माँ के आँख से आँसू भी अब सूख चुके हैं, जो बार-बार नृशंस वारदात के बदले सिर्फ़ सजा-ए-मौत माँग रही है।
याद करिए हैदराबाद में रेप पीड़िता के दोषियों में से एक की माँ के शब्द…। जिन्होंने अपने बेटे के एनकाउंटर पर न अपनी परवरिश को कोसा, न अपने बच्चे की गलती को, न उसकी मानसिकता को… उन्हें बस अपने बेटे के जाने का दुख हुआ और उन्होंने डॉ प्रीति को मीडिया के सामने गाली दे डाली। उनके लिए अपशब्द इस्लेमाल किए। क्या वो नहीं जानती होंगी कि उनके बेटे ने आखिर क्या किया था और डॉ प्रीति की क्या गलती थी? क्या औरत होने के बाद भी उन्हें नहीं समझ आया होगा कि उनके बेटे ने कितना घिनौना पाप किया है? या उनकी आँख पर ममता की पट्टी इतनी कसके बँधी रही होगी कि मानवता का हर अंश उनके भीतर से खत्म हो गया होगा।
हम हर ऐसी वारदात के बाद कैंडल मार्च करते हैं। दरिंदों को फाँसी देने की गुहार लगाते हैं। हैशटग चलाते हैं। निंदा करते हैं। न्याय प्रशासन को कोसते हैं। लेकिन एक काम जो हम करना भूल जाते हैं वो होता है ऐसी महिलाओं की सोच को सुधारना, जो कहने सुनने के लिए तो बलात्कार को बुरा मानती हैं, लेकिन जब किसी लड़की का दोषी उनके अपने घर का कोई पुरुष निकलता है तो वह हर कोशिश करके उसे बचाने में लग जाती हैं, फिर चाहे कोई उनके अस्तित्व पर ही क्यों न सवाल उठा दे। ऐसी महिलाएँ ही महिलाओं के लिए घातक होती हैं।
Delhi: Punita Devi, wife of Akshay (a convict in the 2012 Delhi gang-rape case) who has filed a divorce petition in a Bihar court, appeared to have a nervous breakdown and fainted outside Patiala House Court complex, earlier today. pic.twitter.com/DTDBKCd8oB
— ANI (@ANI) March 19, 2020
आज, पुनीता देवी समेत सभी दोषियों के घर की महिलाओं को ये सब करते देखना ज्यादा हैरान करने वाला नहीं है। क्योंकि ये प्रतिक्रियाँ आज के समय में बहुत सामान्य प्रतिक्रियाँ हैं। जिन्हें समाज ने गढ़ा है अपने लिए। जिन्हें उन पुरुषों ने बढ़ावा दिया है अपने लिए, क्योंकि उन्हें मालूम है कि वे आज नहीं कल ऐसी हरकत जरूर करेंगे और उस समय उनकी माँ-बहने ही उनके चरित्र के गुणगान करके उन्हें बचाएँगी, और साबित करेंगी कि दूसरे लड़की पर ढाया गया जुल्म मात्र एक गलती साबित थी, अपराध नहीं।
कहना गलत नहीं है ये सब एक लम्बी प्रक्रिया का नतीजा है, जिसे समाज ने पोसा है और अब ये महिलाओं (ग्रामीण महिलाओं) में इस तरह बस गई है कि वे जानते-समझते हुए भी खुद को इससे दूर नहीं कर सकती और अपराधी बनती जाती हैं- कभी भाई को बचाने के लिए, कभी पिता को बचाने के लिए, तो कभी बेटे को बचाने के लिए… आज का समय एक ऐसा समय है जब समाज को मदर इंडिया फिल्म में दर्शाई गई माँ की जरूरत है। जिसने अपने गाँव की बेटी की रक्षा के लिए अपने बेटे को गोली मारी थी। न कि ऐसी माँ की, जो सबकुछ जानते हुए ममता की आड़ में दरिंदों का बचाव करती हैं और अंत समय में उन्हें पूड़ी सब्जी खिलाने की बात करती है।