इतिहास अलमारी में सजाने की चीज नहीं। उससे सबक़ लेकर वर्तमान में वह सब करने की सीख देने का विषय है ताकि भविष्य में अगली आने वाली पीढ़ी को निष्कंटक जीवन की परिस्थितियाँ उपलब्ध करवायी जा सकें! इतिहास सबक़ लेने का विषय है ताकि वह भूल न दोहरायी जाएँ जिनके कारण कष्ट, उत्पीड़न और हिक़ारत झेलनी पड़ी हो!
इतिहास की दो किताबें जिनका अवलोकन मैंने किया है, वह है रामधारी सिंह दिनकर की ‘संस्कृति के चार अध्याय’ और कन्हैया लाल मुंशी की ‘जय सोमनाथ’। वैसे सोमनाथ नामक उपन्यास विधा की किताब आचार्य चतुरसेन ने भी लिखी है, उसकी विषयवस्तु और आधार मुंशी की किताब ही है, वह भी पढ़ी है।
दिनकर जी लिखते हैं कि सिंध पर जब बिन क़ासिम ने 712 ई. में इस्लामी आक्रमण किया, तब उस समय राजा दाहिर वहाँ पर शासन कर रहा था और यह भारत पर पहला इस्लामी आक्रमण था। इस आक्रमण में राजा दाहिर मारा गया। इसके बाद क्या हुआ? क़ासिम दाहिर की बेटियों को भोगदासी बनाकर और लूटपाट कर वापस लौट गया।
यह भारत के इतिहास की पहली घटना थी, जब स्त्री को औरत समझा गया और राजा की पराजय को स्त्री के शील भंग करने के पर्याय के रूप में देखने की कुदृष्टि के साथ कोई विचार भारत आया।
बाबर मात्र 12000 घुड़सवारों के साथ आता है और जीतकर सत्ता स्थापित कर लेता है। ख़िलजी 250 आततायियों के साथ बिहार को रौंद डालता है। महमूद गजनवी हमारे मानबिंदु भगवान सोमनाथ के मंदिर को तहस-नहस कर चला जाता है और हम देखते रह गए।
इस्लामी आक्रमण और बिखरता भारत: कारण क्या था?
दिनकर लिखते हैं कि हर्षवर्धन के बाद इस देश में कोई सम्राट ऐसा नहीं हुआ, जो केन्द्रीय सत्ता को सलामत रख रखे। हमारी केन्द्रीय सत्ता टूट जाने से अनेक क्षेत्रीय छत्रपों में बिखर गया यह राष्ट्र, उसकी राजनीतिक चेतना खो गई। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि कुछ सिरफिरे आए और हमें लूटकर चले गए। मुग़ल आए और हम पर क़ाबिज़ हो गए। अंग्रेज आए और सत्ता स्थापित कर हमारा भरपूर शोषण किया। हमें हज़ार वर्ष की ग़ुलामी को झेलना पड़ा कुल मिलाकर।
कन्हैया लाल मुंशी ‘जय सोमनाथ’ में लिखते हैं कि जब गजनी का अमीर आया तो झालौर में वाक्पतिराज शासन कर रहे थे। वल्लभी के राजा भीमदेव गजनवी से लड़ने के लिए तैयारी कर रहे थे, लेकिन जब उन्होंने झालौर संदेश भेजा सहयोग के लिए तो वाक्पतिराज ने यह कह कर मना कर दिया कि यह तुम्हारा मामला है, तुम जानो।
परिणाम यह हुआ कि गजनी का अमीर आया और सोमनाथ का विध्वंस करने में सफल हो सका। कारण हम क्षेत्रीय क्षत्रपों में बँट कर अपने-अपने स्वार्थ की लड़ाई लड़ रहे थे। हम आसन्न बाहरी ख़तरे से बेख़बर अपना स्वार्थ देख रहे थे बस। जिसके दुष्परिणाम में राष्ट्र को हिक़ारत, शोषण और ध्वंस झेलने के लिए मजबूर होना पड़ा।
वर्तमान का भारत, हिंदू और बिखराव की साजिश
चुनाव अब गुजर चुका है, इसलिए इस बात को चुनाव की दृष्टि से न देखा जाए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का वह बयान जिस पर विपक्ष ने बिना समझे बवाल किया, गौर करेंगे तो इसके आयाम बड़े हैं! यह बात इस देश के 1300 वर्ष पूर्व के इतिहास को वर्तमान से जोड़ते हुए भविष्य तक जाती है। अगर सियासत को एक कोने में रखकर कोई भी व्यक्ति विचार करे इस वाक्य पर तो कोई भी इस कटु सत्य से इनकार नहीं कर सकता।
चार उदाहरण से समझते हैं इसे:
- जिस तरह से तुष्टिकरण पर जरा सा सवाल खड़ा करने पर पत्थरबाज़ी होती है।
- नारा-ए-तकबीर के साथ जिस तरह भय फैलाने का प्रयास किया जाता है।
- अनुकूल निर्णय न आने पर अदालत पर अविश्वास जताया जाता है।
- इबादत के नाम पर जिस तरह का उन्माद फैलाने का प्रयास होता है।
ऊपर के चारों उदाहरण हर आए दिन दिख जाता है समाज में। यह वह मानसिकता है, जो बार-बार अपने इरादे उजागर करती है। इन सब बातों/घटनाओं को सामान्य नहीं कहा जा सकता है। यह वैसी ही घटनाएँ हैं, जो 1947 में घट रही थी, जिसके परिणाम बताने की आवश्यकता नहीं है।
अकेले भारत ही नहीं, दुनिया का कोई भी देश इस विचारधारा से सुरक्षित नहीं है। शान्ति के पैग़ाम के नाम पर जिस तरह की अशान्ति का सुनियोजित प्रयास होता है, छिपा नहीं है किसी से।
हम उस विचारधारा से आने वाले लोग हैं जो सर्वे भवन्तु सुखिनः में विश्वास रखते हैं। लेकिन बार-बार जब हमारे अधिकारों का अतिक्रमण कर आतंक फैलाने का प्रयास किया जाए तो मामला गंभीर और विचारणीय हो जाता है।
इसलिए विचार करिए और समाधान की तरफ़ बढ़िए, यही वक्त की माँग है!