‘खतना’ एक शब्द में ही सब कुछ कह जाता है। यह शब्द बोलने में ही कितना गंदा सा लगता है और अगर इसका सच जानें तो और भी घिन सी आ जाएगी। जब लोग खतना बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि किसी के साथ कुछ अत्याचार सा हो रहा है। बात करने में लगता है कि कहीं पर कुछ काटने-पीटने की बात हो रही है और जब काटना-पीटना मनुष्य के शरीर का हो तो मन में एक दया और उस प्रथा के प्रति एक घृणा स्वाभाविक तौर आ जाती है। घृणा होना उस प्रथा के प्रति एक पहलू है। दूसरा पहलू यह भी है कि इस बेवजह की प्रथा को यहूदियों और मुसलामानों ने क्यों अपनाया?
खतना किसी भी धर्म का अंग नहीं है। यह एक प्रथा है, जो मुस्लिम और यहूदियों में बहुत पुराने समय से चली आ रही है। ना तो बाइबल में ऐसा कुछ लिखा है और ना तो कुरान में खतने का कहीं भी जिक्र है फिर भी इस प्रथा को मुस्लिम और यहूदी धर्म के ठेकेदार उसको धर्म से जोड़कर लोगों को डराने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। उनके लिए महिला के शरीर के एक खाल को निकालकर बहार फेंक देना कहाँ तक उस धर्म के इस प्रथा को सही ठहराता है!
महिलाओं की खतना प्रथा के बारे में बहुत से लोगों को नहीं पता है। महिलाओं का जब खतना होता है तो महिला के क्लिटोरिस को काटकर निकाल दिया जाता है। आम भाषा में इस अंग का कोई नाम नहीं है पर संस्कृत में इसे भग्नशिष कहते हैं। यह महिला के जननांग के ऊपरी भाग में खाल का एक टुकड़ा सा होता है। मुस्लिमों में इस अंग को ‘हराम की बोटी’ कहा जाता है। मुस्लिमों के द्वारा मनुष्य के किसी अंग को ‘हराम” शब्द देना वैसे ही अपने आप में मुस्लिमों का महिलाओं के प्रति उनकी दृष्टि को दिखाता है।
महिलाओं का खतना कैसे? इसके प्रकार मुस्लिम समुदायों के अनुसार अलग-अलग हैं। सबसे ज्यादा जिस प्रकार का खतना किया जाता है, उसमें उनके क्लिटोरिस वाले अंग को काटकर निकाल दिया जाता है| आप इस भयावह स्थिति का विचार कर सकते हैं कि महिला के अंग को काटकर निकाला जा रहा हो तो उस समय बच्ची या महिला की शारीरिक वेदना क्या होगी? दूसरे तरह के प्रकार में क्लिटोरिस का थोड़ा सा हिस्सा काटा जाता है। इसके बाद के दो और प्रकार बहुत ही डरावने हैं। तीसरे तरह के प्रकार में महिला के जननांग को बींध दिया जाता है और उससे बहुत ही बुरा चौथा प्रकार यह है कि महिलाओं के जननांग को सिल दिया जाता है। ये चारों ही प्रकार महिलाओं के ऊपर मुस्लिम समाज के द्वारा किया गया चरम सीमा का अत्याचार ही है। कुछ लोंगो का यहाँ तक मानना है कि अगर उनके परिवार की किसी लड़की का उन्होंने खतना कर दिया है तो उस परिवार का समुदाय में मान भी बढ़ता है। मुस्लिम समुदाय अगर इस तरह से अपने मान को बढ़ाने के लिए लड़कियों के ऊपर अत्याचार करते रहेंगे तो यह कहाँ तक सही है?
इस घिनौनी प्रथा का सच भी बड़ा अजीब सा है। मुस्लिम और यहूदी समुदाय में यह माना जाता है कि अगर लड़कियों का कम उम्र में क्लिटोरिस को काटकर निकाल दिया जाए तो उनके मन में सेक्स के प्रति इच्छा नहीं रहेगी। उस स्त्री का सेक्स करने का मन नहीं करेगा और शादी के पहले वह स्त्री पवित्र रहेगी। क्या लड़कियों का सेक्स करना इतना गलत है कि उनको इतनी अमानवीय प्रथा से गुजरना पड़े? क्या लड़कियों का कोई अधिकार नहीं है कि वो अपने शरीर के बारे में और अपनी इच्छा को अपने अनुसार सोच सकें? यह एक कुप्रथा ही नहीं बल्कि महिला का शारीरिक शोषण भी है।
खतना के बाद महिला को असहनीय पीड़ा सहन करनी पड़ती है। आप यह सोंचे कि जब आपके शरीर में हल्की सी कोई चुटकी काट ले तो आपको कितनी पीड़ा होती है, वहीं जब महिला के एक अंग को निकालकर बाहर फेंका जा रहा है तो उस महिला को कितनी पीड़ा का सामना करना पड़ता होगा! इस खतना क्रिया के बाद महिला या बच्ची में योनि संक्रमण होने की संभावना बहुत ज्यादा रहती है क्योंकि बहुत बार ऐसा होता है कि एक ही रेजर से कई महिलाओं का खतना कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में जननांग के साथ इस तरह से कुकृत्य करने से कई बार महिला के बच्चे की जनन क्रिया में बाधा हो जाती है और कभी-कभी वह महिला बच्चे को जन्म भी नहीं दे पाती है। कितनी गन्दी और घिनौनी प्रथा है यह, जिसमें महिला के आतंरिक अंगों को इस प्रथा के द्वारा हानि पहुँचाई जाती है। जब यह होता है तो कई बार बहुत ज्यादा रक्तस्राव होने से बच्चियों की मृत्यु तक हो जाती है और कभी-कभी बच्चियाँ कोमा तक में पहुँच जाती हैं। मतलब आप यह सोच सकते हैं कि एक प्रथा के चक्कर में यह मुस्लिम समाज किस तरह से बच्चियों को मृत्यु तक पहुँचा रहा है।
इस प्रथा से महिलाओं को मानसिक वेदना का भी शिकार होना पड़ता है। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद शादी के बाद महिला के सेक्स जीवन में काफी असर पड़ता है। वो मानसिक द्वन्द्व से गुजरती रहती है। बच्ची को जब बहला फुसलाकर ले जाकर उसका खतना करवा दिया जाता है, तो उसका अपने लोंगो के प्रति किसी तरह का भरोसा नहीं रह जाता है और यह अविश्वास की भावना उसके जीवन में बहुत समय तक रहती है और मानसिक उत्पीड़न से अपने दिनों को काटती रहती है। वो महिला जिसको इस गंदे और वीभत्स प्रथा से होकर गुजरना पड़ता है उसके मानसिक अंतर्द्वंद्व को हम किसी भी तरह समझ नहीं सकते हैं कि किस पीड़ा से वो महिला या बच्ची गुजर रही होगी।
एक प्रथा जिसका कोई भी कारण नहीं है होने का, जिसमें केवल और केवल वेदना है, वेदना शारीरिक और मानसिक दोनों ही, उस कुप्रथा को कैसे मुस्लिम धर्म अपना सकता है। मुस्लिम धर्म में ऐसी बहुत सी कुप्रथाएँ चल रही हैं जो केवल महिलाओं के ऊपर ही लागू होती हैं। मुस्लिम धर्म महिला की हर तरीके से आजादी छीनने में विश्वास कैसे कर सकता है? मुस्लिम धर्म कैसे किसी महिला के अंग को निकालकर बाहर फेंक सकता है? यह पूरी तरह से मानवाधिकारों का उल्लंघन ही तो है। इसको खत्म करने के लिए हर देश को कानून बनाने ही होंगे, जिससे महिलाओं का शोषण रोका जा सके।
दाऊदी बोहरा समुदाय से आने वाली कई महिलाओं ने प्रधानमंत्री से लड़कियों के खतना को गैरकानूनी करार देने के लिए मदद की गुहार लगाई है। भारत में फिलहाल खतना को लेकर कोई कानून नहीं है और बोहरा समुदाय अब भी इस परंपरा का पालन करता है। जिसे यहाँ खतना या महिला सुन्नत कहते हैं। इसे अंग्रेजी में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (FGM) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में मुस्लिम महिला योनि के एक हिस्से क्लिटोरिस को रेजर ब्लेड से काट दिया जाता है। या कुछ जगहों पर क्लिटोरिस और योनि की अंदरूनी त्वचा को भी आंशिक रूप से हटा दिया जाता है। इस प्रक्रिया में महिला को असहनीय पीड़ा सहन करनी पड़ती है।
इस कुरीति को लेकर विश्वास है कि महिला यौनिकता पितृसत्ता के लिए खतरनाक है और महिलाओं को सेक्स का का कोई अधिकार नहीं है। इससे मुस्लिम महिला एक मानसिक वेदना से गुजरती है| मुस्लिम समाज में रूढ़िवादिता हावी है| माना जाता है कि जिस मुस्लिम महिला का खतना हो चुका है, वह अपने पति के प्रति ज्यादा वफादार होगी और घर से बाहर नहीं जाएगी।
यूनिसेफ के आँकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में सालाना 20 करोड़ मुस्लिम महिलाओं का खतना होता है। इनमें आधे से ज्यादा सिर्फ मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया में होते हैं। आँकड़ों के मुताबिक जिन 20 करोड़ लड़कियों का खतना होता है, उनमें से करीब साढ़े चार करोड़ बच्चियाँ 14 साल से कम उम्र की होती हैं। इंडोनेशिया में आधी से ज्यादा बच्चियों का खतना हो चुका है। माना जाता है कि अफ्रीका में हर साल तीस लाख लड़कियों पर इसका खतरा मंडरा रहा है।
ऐसा समझा जाता है कि तीस अफ्रीकी देशों, यमन, इराकी कुर्दिस्तान और इंडोनेशिया में महिला खतना ज्यादा चलन में है। वैसे भारत समेत कुछ अन्य एशियाई देशों में भी इसके मामले मिले हैं। औद्योगिक देशों में बसी प्रवासी आबादी के बीच भी महिला खतना के मामले देखे गए हैं। यानी नए देश और समाज का हिस्सा बनने के बावजूद कुछ लोग अपनी पुरानी रीतियों को जारी रखे हुए हैं। जिन देशों में लगभग सभी महिलाओं को खतना कराना पड़ता है, उनमें सोमालिया, जिबूती और गिनी शामिल हैं। ये तीनों ही देश अफ्रीकी महाद्वीप में हैं।
आम तौर पर परिवार की महिलाएँ ही इस काम को अंजाम देती हैं। साधारण ब्लेड या किसी खास धारदार औजार के जरिए खतना किया जाता है। हालाँकि मिस्र और इंडोनेशिया जैसे देशों में अब मेडिकल स्टाफ के जरिए महिलाओं का खतना कराने का चलन बढ़ा है। महिला खतने का चलन मुस्लिम और ईसाई समुदायों के अलावा कुछ स्थानीय धार्मिक समुदायों में भी है। आम तौर पर लोग समझते हैं कि धर्म के मुताबिक यह खतना जरूरी है लेकिन कुरान या बाइबिल में ऐसा कोई जिक्र नहीं है।
माना जाता है कि महिला की यौन इच्छा को नियंत्रित करने के लिए उसका खतना किया जाता है। लेकिन इसके लिए धर्म का बेतुका हवाला दिया जाता है। बहुत से ईसाई और मुस्लिम समाज के लोग का मानना है कि खतने के जरिए महिलाएँ पवित्र होती हैं। इससे समुदाय में उनका मान बढ़ता है और ज्यादा कामेच्छा नहीं जगती। जो लड़कियाँ खतना नहीं करातीं, उन्हें समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जाता है। खतने के कारण उस महिला को माँ बनने के समय बहुत सी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके कारण कई तरह की मानसिक समस्याएँ और अवसाद भी हो सकता है।
बहुत से अफ्रीकी देशों में महिला खतने पर प्रतिबंध है। लेकिन अकसर इस कानून को सख्ती से लागू नहीं किया जाता है। वहीं माली, सिएरा लियोन और सूडान जैसे देशों में यह कानूनी है। महिला खतने से कई अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन होता है। 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महिला खतने को खत्म करने के लिए एक प्रस्ताव स्वीकार किया था। यूएन महिला खतने को ‘मानवाधिकारों का उल्लंघन’ मानता है। खतना से पहले एनीस्थीसिया भी नहीं दिया जाता। बच्चियाँ पूरे होशोहवास में रहती हैं और दर्द से चीखती हैं।
अगर बच्ची का खतना वाकई यौन इच्छा घटाने के लिए है तो सात साल की लड़की का खतना कराके वो क्या हासिल करना चाहते हैं? छोटी बच्ची को सेक्स और यौन इच्छा से क्या मतलब? खतना से औरतों को शारीरिक तकलीफ तो उठानी ही पड़ती है, इसके अलावा तरह-तरह की मानसिक परेशानियाँ भी होती हैं। उनकी सेक्स लाइफ पर भी असर पड़ता है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, बेल्जियम, यूके, अमरीका, स्वीडन, डेनमार्क और स्पेन जैसे कई देश इसे पहले ही अपराध घोषित कर चुके हैं।
इस परंपरा पर 42 देशों ने रोक लगा दी है, जिनमें 27 अफ्रीकी देश हैं। बच्चियों का खतना बहुत छोटी उम्र में कराया जाता है। उस वक्त उन्हें कुछ पता ही नहीं होता, फिर वो पुलिस को कैसे बताएँगी? और फिर खतना कराते ही घरवाले हैं, तो बात बाहर कैसे आएगी? सरकार को बोहरा समुदाय के धार्मिक नेताओं से भी बात करनी चाहिए, उनके बिना इस अमानवीय परम्परा को खत्म करना बहुत मुश्किल है।
हाई-प्रोफाइल बोहरा परिवार अपनी बच्चियों का खतना कराने के लिए डॉक्टरों के यहाँ ले जाते हैं| चूँकि खतना मेडिकल प्रैक्टिस है ही नहीं इसलिए डॉक्टरों को भी इस बारे में कुछ पता नहीं होता फिर भी पैसों के लिए वो भी इसमें शामिल हो जाते हैं। ये सब बिल्कुल गुपचुप तरीके से होता है और कोई इस बारे में बात नहीं करता। महिलाओं का खतना एक ऐसी कुप्रथा है, जिससे न सिर्फ महिलाएँ अपना मानसिक संतुलन खो देती हैं, बल्कि उनके शरीर को बेहद नुकसान भी पहुँचता है।
यूएन ने साल 2030 तक महिला खतना को खत्म करने का लक्ष्य रखा है। दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना करने की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं का खतना सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सकता है क्योंकि उन्हें शादी करनी है। इस मसले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं का जीवन केवल शादी और पति के लिए नहीं होता है। शादी के अलावा भी महिलाओं के दायित्व होते हैं। कोर्ट ने साफ कहा कि किसी महिला पर ही ये दायित्व क्यों हो कि वह अपने पति को खुश करे।
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के खतने वाली प्रथा को निजता के अधिकार का उल्लंघन माना है। साथ ही ये भी कहा है कि यह लैंगिक संवेदनशीलता का मामला है और ऐसा किया जाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। महिलाओं के खतना जैसे आपराधिक कृत्य को इस आधार पर इजाजत नहीं दी सकती कि वह प्रैक्टिस का हिस्सा है। प्राइवेट पार्ट को छूना पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने भी महिलाओं की खतना प्रथा के खिलाफ कहा कि ये किसी भी व्यक्ति के पहचान का केंद्र बिंदु होता है और ये एक्ट (खतना) किसी की पहचान के खिलाफ है। कोर्ट ने माना कि इस तरह का एक्ट एक औरत को आदमी के लिए तैयार करने के मकसद से किया जाता है, जैसे वो जानवर हों।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्म के नाम पर कोई किसी महिला के यौन अंग को कैसे छू सकता है। यौन अंगों को काटना महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है और वह इस पर रोक का समर्थन करती है। बोहरा मुस्लिम समुदाय से संबंधित एक महिला के अनुसार क्लिटरिस को बोहरा समाज में हराम की बोटी कहा जाता है।
दाउदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं के खतना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं का खतना यानी महिला जननांग का छेदन करने की परंपरा संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है, जो कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा और धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करने की गारंटी देता है। खतना प्रथा के समर्थन में खड़े संगठन की ओर से पेश हुए वकील और कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि खतना करना इतना क्रूर भी नहीं है, जितना कि इसे बताया जा रहा है। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा था, “यह संविधान के अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है क्योंकि इसमें बच्ची का खतना कर उसको आघात पहुँचाया जाता है।” केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि सरकार याचिकाकर्ता की दलील का समर्थन करती है कि यह भारतीय दंड संहिता (IPC) और बाल यौन अपराध सुरक्षा कानून (POCSO Act) के तहत दंडनीय अपराध है।
मिस्र में आमतौर पर 9 से 12 साल की उम्र में ही लड़कियों का खतना कर दिया जाता है। मिस्र सरकार के मुताबिक, यहाँ 92 फीसदी शादीशुदा महिलाएँ खतना की प्रक्रिया से गुजर चुकी है। यूएन के आँकड़ों के मुताबिक, इस प्रक्रिया से गुजरने वाली सबसे ज्यादा महिलाएँ मिस्र की हैं। दक्षिण अफ्रीकी देश गुयाना को आधिकारिक तौर फ्रेंच गुयाना के नाम से जाना जाता है। यहाँ खतना गैरकानूनी है। इसके बावजूद दुनिया में खतने के मामले में यह दूसरे नंबर पर है। एक सर्वे के मुताबिक, 15 से 49 साल की 96 फीसदी महिलाएँ खतना की प्रक्रिया से गुजरीं। इसके लिए यहाँ धर्म या क्षेत्र का कोई भेद नहीं है।
दक्षिण अफ्रीका में स्थित माली में भी खतना परंपरा आम है। WHO के आँकड़ों के मुताबिक, माली में 15-49 साल की उम्र की 85.2 फीसदी महिलाएँ इस प्रक्रिया से गुजरीं। यहाँ के सोनरई, तामाचेक और बोजो लोगों में ही इसका आँकड़ा कम है। माली में 64 फीसदी महिलाएँ एफएमजी को धार्मिक दृष्टि से जरूरी मानती हैं। यहाँ इसके खिलाफ अब तक कोई सख्त कानून भी नहीं है। दक्षिण अफ्रीकी देश एरिट्रिया में सरकार की ओर से जारी रिपोर्ट में FGM की दर 89 फीसदी बताई गई थी। यहाँ भी ग्रामीण इलाकों में धार्मिक दृष्टि से इसे जरूरी माना जाता है। ये मुस्लिम और ईसाई, दोनों ही धर्मों में प्रचलित है। मार्च 2007 में सरकार ने इसके खिलाफ कानून बनाया गया। इसके तहत जुर्माने से लेकर कैद तक की सजा का प्रावधान है।
सोमालिया में करीब 80 से 98 फीसदी महिलाओं का खतना होता है। WHO ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि सोमालिया में 97.7 फीसदी महिलाएँ और लड़कियाँ खतने की प्रक्रिया से गुजरीं। वहीं, यूनिसेफ ने भी अपनी रिपोर्ट में सोमालिया में खतने की दर को दुनिया में सबसे ज्यादा बताया था। अगस्त 2012 में संविधान के आर्टिकल 15 में खतना पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन इस पर रोक नहीं लग पाई है। मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी वाले जिबूती में 93 फीसदी से 98 फीसदी महिलाओं का खतना होता है। यूनिसेफ की रिपोर्ट में जिबूती को दुनिया का दूसरा ऐसा देश बताया गया था, जहाँ तीसरे स्तर के खतने की दर बहुत ज्यादा है।
हालाँकि, यहाँ के मौलवी भी इस प्रक्रिया को लेकर दो धड़ों में बँटे हुए हैं। देश में इसके खिलाफ सख्त कानून है। जिसके तहत दोषी पाए जाने पर पाँच साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान भी है। बुर्किना फासो को बुर्किना और आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ अपर वोल्टा के नाम से जाना जाता है। इस छोटे से देश की आबादी डेढ़ करोड़ से थोड़ी ज्यादा होगी। खतना यहाँ की संस्कृति में शामिल है। WHO ने 2006 की अपनी रिपोर्ट में यहाँ खतने की दर 72.5 फीसदी बताई थी। 1996 में देश में इसके खिलाफ कानून बनाया गया, जो फरवरी 1997 से लागू है।
हे शक्ति
तुम क्यों निराश हो
उदास हो
बदहवास हो।
हे शक्ति
तुम हनुमान नहीं
कि तुम्हें
तुम्हारी शक्ति का अहसास दिलाऊँ
तुम्हारी ऊर्जा का श्रोत बताऊँ।
हे शक्ति
तुम उठो
जागो
तुम अपने खड्ग से
महिसासुर ‘खतना’ का वध कर दो।
हे शक्ति
तुम क्यों निराश हो
उदास हो
बदहवास हो।