पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालत किसी से छिपी नहीं है। आए दिन ऐसी रिपोर्ट आती रहती हैं कि वहाँ के हिंदू और अन्य धर्म के लोगों पर भयानक जुल्म और भेदभाव हो रहा है। एक बार फिर पाकिस्तान के एक विज्ञापन ने देश में अल्पसंख्यकों की बदतर जिंदगी की पोल खोल दी।
All citizens are not equal in the state of Pakistan — Sweepers and Sanitary workers jobs Only for Non-Muslims 🤦🏽♀️ pic.twitter.com/npJTpFBxEL
— Veengas (@VeengasJ) May 22, 2021
पाकिस्तान में निकाले गए विज्ञापन में साफ लिखा है कि सफाई कर्मचारियों की जरूरत है। इसके साथ ही विज्ञापन में एक शर्त लिख दी गई है कि ये सारे पद सिर्फ गैर मुस्लिमों के लिए हैं। इनमें टेलर, नाई, बढ़ई, पेंटर, वाटर करियर, जूता बनाने वाला और सफाई कर्मी जैसे पद शामिल हैं।
Sanitary jobs are EXCLUSIVELY for #Christians & #Hindus in Pakistan. This shows govt’s repeated reiteration that majority will do filth, minority will clean that filth.
— Kapil Dev (@KDSindhi) May 23, 2021
Wese, boht gand kar rahe ho!!
We demand equal proportion of #Muslim sweepers, cleaners & sanitary workers.
जाहिर है कि देश के मुस्लिमों को सफाई कर्मचारी के पद पर नहीं, सेना में तैनात किया जाएगा जबकि अल्पसंख्यकों को ही सफाई कर्मचारी के पद के काबिल समझा जाता है। तो पाकिस्तान में सफाईकर्मी की नौकरी पाने के लिए आपका गैर मुस्लिम होना ही जरूरी है। इसका मतलब है कि मुसलमान सिर्फ देश में गंदगी फैलाए और अल्पसंख्यक उसकी सफाई करें। वहाँ अल्पसंख्यकों का काम केवल सफाई करना ही रह गया है।
बता दें कि नाले-पेशाब-पखाना साफ करते हिंदू दलितों की जो हालत आज पाकिस्तान में है, वही हालत अनुच्छेद 370 के उन्मूलन से पहले भारत के जम्मू-कश्मीर में थी। इस दौरान किसी पार्टी के किसी नेता ने कोई आवाज नहीं उठाई और न ही किसी भी तरह से उनकी मदद की, लेकिन जैसे ही जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा कर उन्हें मुख्य धारा में शामिल किया गया, उन्हें उनका हक दिया गया तो ये नेता अपना विरोध दर्ज कराने जरूर आए। कई पार्टियों ने तो अपने मर चुके राजनीतिक अस्तित्व पर विरोध की राजनीति के छींटे मार कर उसे होश में लाने की कोशिश की।
जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने का फैसला देश के बड़े ऐतिहासिक फैसलों में एक था। जिस धारा 370 को हटाने की बात पर चर्चा से भी कुछ राजनीतिक दल घबराते थे, उसे खत्म करना आसान काम नहीं था। लेकिन केंद्र की मौजूदा सरकार ने अपने चुनावी वादे और कश्मीर के भविष्य का हवाला देते हुए इसे खत्म करने का फैसला किया। राज्यसभा और लोकसभा में इस पर जमकर बहस हुई और अंतत: दोनों सदनों से यह बहुमत के साथ पास हुआ। सरकार के इस फैसले को कुछ ऐसे राजनीतिक दलों का भी साथ मिला जो धुर विरोधी रहे। वहीं कॉन्ग्रेस समेत कुछ अन्य राजनीतिक दलों ने इसका जमकर विरोध भी किया।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जब राज्यसभा और लोकसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल के पेश किया था तब कॉन्ग्रेस पार्टी ने दोनों सदनों में सरकार के इस पहल का पुरजोर विरोध किया था। राज्यसभा में कॉन्ग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने तो इसे लोकतंत्र का काला दिन करार दिया था। हालाँकि इस मुद्दे पर भी कॉन्ग्रेस की सहमति नहीं बन पाई थी। आलम यह हुआ कि अनुच्छेद 370 पर पार्टी दो गुटों में बँट गई।
जम्मू-कश्मीर में दलितों की स्थिति बहुत चिंताजनक थी। धारा-370 के कारण जम्मू और कश्मीर राज्य में अनुसूचित जाति और जनजाति को भारतीय संविधान की ओर से उनके आर्थिक एवं शैक्षणिक उत्थान के लिए किए गए प्रावधान एवं आरक्षण का उन्हें कोई लाभ नहीं दिया जा रहा था। जम्मू-कश्मीर राज्य में धारा-370 के कारण राज्य की विधानसभा के बनाए नियम राज्य में लागू नहीं होते थे। ऐसे में समझा जा सकता है कि 1950 में पंडित नेहरू और शेख अब्दुल्ला के मन में दलितों के लिए क्या सोच रही होगी? और यही कारण भी रहा कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दलितों के उत्थान एवं सशक्तिकरण के बारे में कभी सोचा ही नहीं गया।
जम्मू-कश्मीर राज्य के दलितों की स्थिति की तुलना वहाँ की महिलाओं एवं युवकों से भी की जा सकती है। जिस प्रकार महिलाओं के उत्थान एवं उनके सशक्तिकरण के लिए केंद्र सरकार की अनेकों योजनाएँ चल रही है, किन्तु धारा-370 के कारण उन्हें केंद्र सरकार की इन योजनाओं का लाभ न तो मिल रहा था और न ही उन लाभों को वह ले सकते थे।
उदाहरण के लिए केंद्र की मोदी सरकार द्वारा जारी शासनादेश के अनुसार देश के प्रत्येक बैंक प्रत्येक वर्ष एक महिला एवं एक अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति को कम ब्याज की योजना वाला ऋण देकर उद्यमी बनाएँगे। देश के प्रत्येक राज्य में यह योजना बड़ी सफलता के साथ चल रही हैं, किन्तु जम्मू-कश्मीर में इस योजना का कोई प्रभावी और सफल परिणाम सामने नहीं आया था। इसी तरह युवाओं के लिए उनके सशक्तिकरण एवं रोजगार की दृष्टि से अनेकों योजनाएँ, जो धारा 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होती थी।
1957 में जम्मू-कश्मीर राज्य ने राज्य विधानसभा के शासनादेश से सफाई कर्मी के नाम पर वाल्मीकि समाज के लोगों को पंजाब के पठानकोट, अमृतसर, जालंधर, होशियारपुर इत्यादि से लाकर जम्मू-कश्मीर राज्य के भिन्न-भिन्न स्थानों पर उनकी कॉलोनी बना कर बसाया गया। परन्तु धारा-370 का यह भी एक शर्मनाक रूप रहा कि उन्हें जातिगत आधार पर सरकारी दस्तावेजों में नौकरी को ‘भंगी पेशा’ नाम से जाना जाता है और उन्हें इस सफाई-कर्म के अलावा कोई भी अन्य नौकरी करना आधिकारिक रूप से प्रतिबंधित था। यह मानवता और मानवाधिकार के नाम पर कलंक था। इतना ही नहीं, उन्हें जम्मू-कश्मीर की पूर्ण नागरिकता भी नहीं दी गई थी।
देश-विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त भी जम्मू-कश्मीर के वाल्मीकि लोग अपने राज्य में सफाई कर्मी के अलावा कोई नौकरी नहीं कर सकते थे। जम्मू कश्मीर के वाल्मीकि समुदाय के सफाई कर्मचारी जो सबकी गंदगी साफ करते थे, वे खुद सालों तक कानूनी गंदगी का शिकार रहे। लगभग शरणार्थियों जैसा जीवन जीने को मजबूर वाल्मीकि समुदाय के लोग, जिनको सरकार द्वारा पंजाब से 1957 में जम्मू कश्मीर में बुलाया गया था, 60 साल के बाद भी मूलभूत स्थानीय अधिकारों से वंचित रहे। इनके बच्चे उच्च स्तर तक शिक्षा प्राप्त तो कर सकते थे, परन्तु अनुच्छेद 35A की आड़ में बनाए गए नियमों की वजह से उनके पास सफाई कर्मचारी बनने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
गाँधी और अंबेडकर के इस देश में, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आज भी एक सफाई कर्मी का बेटा चाहे कितना भी पढ़ ले, जम्मू कश्मीर राज्य में उसको सरकार सिर्फ झाड़ू उठाकर जम्मू की सड़कें और गन्दगी साफ़ करने की नौकरी ही दे रही थीl बाकी नौकरियों के लिए उनके दरवाज़े बंद थे। ये लोग न तो सरकारी नौकरी कर सकते थे, न ही किसी सरकारी उच्च शिक्षा या प्रोफेशनल कोर्स, जैसे मेडिकल या इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन ले सकते थे, न ही विधान सभा में चुनाव लड़ सकते थे और वोट भी नहीं डाल सकते थे।
आज भी महबूबा मुफ्ती, अब्दुल्ला परिवार समेत कश्मीरी राजनीतिक पार्टियाँ जम्मू कश्मीर में घोर अलगाववादी प्रचार करते नज़र आते हैं कि धारा 370 ही वो पुल था जिसके सहारे जम्मू कश्मीर और भारत का रिश्ता टिका हुआ था। जो कि सिर्फ सरासर गलतबयानी और भारत के संविधान का मजाक से ज्यादा कुछ नहीं था। दरअसल, जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के बाद भारत का संविधान वहाँ पूरी तरह से लागू होना चाहिए था। यही संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर की भी इच्छा थी, इसलिए अनुच्छेद 370 को अस्थायी प्रावधान कहा गया था। इतना अस्थायी कि उसे समाप्त करने के लिए संसद में जाने की आवश्यकता भी ना पड़े। भारत का संविधान लागू होने के बाद केवल राष्ट्रपति के आदेश से ही इसे हटाने का प्रावधान किया गया था।
5 अगस्त वो ऐतिहासिक दिन था जब जम्मू कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ाने वाला, विकास विरोधी अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के सपनों को पूरा किया गया। आज जम्मू कश्मीर में भारत का पूरा संविधान लागू हो चुका है, तिरंगा पूरे सम्मान से वहाँ लहरा रहा है, भारत की संसद और संविधान यहाँ सर्वोपरि है।