Sunday, December 22, 2024
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काफिरों पर कहर: मोरक्को की हार या जीत से नहीं, कट्टरपंथी इस्लामी मानसिकता और 72 हूरों के लिए दंगे-आतंक

फ्रांस में ही रहने वाले फ्रांसीसी नागरिक की इतनी औकात कैसे हो गई कि वो अपने ही पैसे से खरीदी कार पर फ्रांस का झंडा लगा सके? इस्लामी मुल्क हारा है तो हर झंडा गम में झुका होना चाहिए - इस 'फतवे' को शायद वो कार ड्राइवर समझ नहीं पाया।

हार में हिंसा, जीत में आतंक, खुशी में बम फोड़ना, गम में जान से मारना… हर मानवीय संवेदना में कट्टरपंथी मुस्लिमों की भीड़ का व्यवहार एकसमान रहता है – हूरों की याद में, काफिरों के खिलाफ! फुटबॉल वर्ल्ड कप में इस्लामी मुल्क मोरक्को की जीत या हार इसका ताजा उदाहरण है।

फ्रांस के कई शहरों में दंगे हो रहे हैं। बेल्जियम में पत्थरबाजी चालू कर आतंक कायम किया जा चुका है। नीदरलैंड में सड़कों पर खौफ है, शांति के लिए दंगा-रोधी पुलिस को उतारा गया है। यह सब इसलिए क्योंकि इस्लामी मुल्क मोरक्को फुटबॉल वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में फ्रांस से हार गया।

कट्टरपंथी मुस्लिम हैं तो क्या हुआ, इंसान तो हैं ही – यह तर्क दिया जा सकता है, वाजिब भी है। अपनी पसंदीदा टीम की हार पर गुस्सा आना इंसानी फितरत है। गुस्से में लड़कों से गलतियाँ हो जाती हैं, यह तर्क भी गढ़ सकते हैं। इसमें 14 साल का एक बच्चा मर भी गया तो क्या? 72 हूरों की याद में सब जायज है! आखिर फ्रांस में ही रहने वाले फ्रांसीसी नागरिक की इतनी औकात कैसे हो गई कि वो अपने ही पैसे से खरीदी कार पर फ्रांस का झंडा लगा सके? इस्लामी मुल्क हारा है तो हर झंडा गम में झुका होना चाहिए – इस ‘फतवे’ को शायद वो कार ड्राइवर समझ नहीं पाया।

…और जीत में हिंसा? यह भी वाजिब है जनाब! खेल मतलब जुनून, दिल में उफान, उबलता खून… इतने सब कुछ के बाद मिली जीत पर थोड़ा-बहुत खून सड़कों पर बहा देना कहाँ से गलत है? शहीद होकर 72 हूरों के पास जाने के अलावे काफिरों का खून बहाना भी एक ऑप्शन है, इसको समझिए। पुर्तगाल को फुटबॉल वर्ल्ड कप के क्वार्टर फाइनल में इस्लामी मुल्क मोरक्को द्वारा हराने के बाद फ्रांस के अलग-अलग शहरों में बम-गोली-पत्थरबाजी करने के पीछे कट्टरपंथी मुस्लिमों की मंशा क्या थी – 72 हूरों का ख्वाब, इस्लाम का वर्चस्व!

हारा मोरक्को, जीता फ्रांस तो हिंसा बेल्जियम और नीदरलैंड में क्यों? जीता मोरक्को, हारा पुर्तगाल तो हिंसा फ्रांस में क्यों? कृपया ऐसे सवाल मत पूछिए। इस्लाम भाईचारे का नाम है, इसको समझिए। 20 नवंबर से फुटबॉल वर्ल्ड कप शुरू हुआ। हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई-जैन-बौद्ध सबके मुख्यमंत्री रहे उमर अब्दुल्ला ने तब से लेकर अब तक फुटबॉल पर सिर्फ 3 ट्वीट/रिट्वीट किया है:

  • 22 नवंबर को सउदी अरब की टीम के लिए लिखा – What an amazing goal #SaudiArabia #FIFAWorldCup
  • 22 नवंबर को ही एक रिट्वीट किया – ‘बकरे’ मेसी को आग पर भुनते हुए (संदर्भ यह है कि मेसी की टीम सउदी अरब से हार गई थी)
  • 10 दिसंबर को मोरक्को की टीम के लिए ट्वीट किया – Morocco woo hoo!!!!!! (मोरक्को ने पुर्तगाल को हरा दिया था)

“मेरी कोई फेवरिट टीम नहीं है। मैं सबको एकसमान नजर से देखता हूँ। धर्म के चश्मे से इंसान को बाँट कर राजनीति करने वाली पार्टी का नाश हो… मैं तो लिबरल हूँ, इसलिए जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होगा, कहने की हिम्मत रखता हूँ” – उमर अब्दुल्ला के लिए इस तरह के विचार किसी के भी मन में आ सकते हैं क्योंकि उन्होंने किसी एक नहीं बल्कि दो टीमों का समर्थन किया। यह और बात है कि ये वो 2 टीमें हैं, जिनके मुल्क में इस्लामी झंडे का निजाम है!

घटना फिलिस्तीन में हो, सड़कें जाम भारत-ऑस्ट्रेलिया का आम मुस्लिम करता है। कार्टून किसी और देश में बनता है, फतवा हिंदुस्तान-पाकिस्तान के मुल्ले-मौलवी जारी करने लग जाते हैं। लड़ाई सीरिया में चलती है, लड़ाके केरल-इंग्लैंड से जाने लगते हैं। हीरो-हिरोइन-नेता-पत्रकार… सब पैसा कमाते हैं इंडिया में, डर भारत में रहने से लगने लगता है। इसीलिए कहा था, कट्टरपंथी मुस्लिम भीड़ दंगा क्यों कर रही है, कहाँ कर रही है, ऐसे बेतुके सवाल मत कीजिएगा… इस्लाम भाईचारे का नाम है, इसको समझिए।

“ये अल्लाह की जीत है, ये इस्लाम की जीत है।” – कभी किसी को बोलते सुना है, किसी का लिखा पढ़ा है? अगर नहीं तो आप इस गोले के नहीं हैं। आम इंसान (जो किसी माँ की पेट से पैदा होता है) के लिए सामान्यतः जीत-हार किसी देश/टीम/जगह/जिले/राज्य आदि की होती है। लेकिन यह आम इंसानों की सोच है। जो खास मतलब कट्टरपंथी मुस्लिम होते हैं, उनकी टीम कभी जीत ही नहीं सकती। वो मानते हैं कि सब कुछ उनके अल्लाह करते हैं, इस्लाम के लिए किया जाता है।

शुक्र मनाइए फुटबॉल वर्ल्ड कप का फाइनल फ्रांस और अर्जेंटीना के बीच है। ‘इस्लाम की जीत’ से अगर सउदी अरब या मोरक्को फाइनल में पहुँच कर हारते या जीतते तो तीसरा विश्व-युद्ध होने का तात्कालिक कारण यही होता!

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चंदन कुमार
चंदन कुमारhttps://hindi.opindia.com/
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