जैसा कि अपेक्षित था, रथ यात्रा शुरु हुई नहीं कि कट्टरपंथियों और वामपंथी लम्पटों का गिरोह कटकाहा कुत्तों की तरह सोशल मीडिया पर झाँव-झाँव करने लगा है और दूर से मूसड़ों के पीछे से रदनक दाँत दिखा रहा है। अचानक से देश को तोड़ने का एकसूत्री अजेंडा ले कर चलाने वाले कलाकार उड़ीसा के हिन्दुओं को ले कर चिंतित हो गए हैं कि ‘अरे कोविड फैल जाएगा भीड़ से’।
यही बात मैंने कल अपने वीडियो में भी स्पष्ट की थी कि यह यात्रा पूरी तरह से प्रशासन और न्यायालय के आदेशों और निर्देशों को अनुसार, एक सीमित दायरे में हो रही है। सारी सावधानियाँ बरती गई हैं, हर व्यक्ति जो रथ यात्रा में शामिल होगा, उसका परीक्षण हुआ है, इसके बाद ही वो उस जगह पर जा सकते हैं।
खैर, इसे कुछ चतुर चम्पू तब्लीगियों के मरकज से जोड़ कर देख रहे हैं। वो अचानक से भावविह्वल हो कर मार्च के उस दौर में पहुँच गए जब पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा था और तब्लीगियों के निज़ामुद्दीन मरकज में सैकड़ों कोरोना मरीज न सिर्फ बैठे हुए थे, बल्कि प्रशासन के निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाई।
-Every single Sevayat there has been tested and is Covid negative.
— Pratyasha Rath (@pratyasharath) June 23, 2020
-There are no devotees. Just servitors and cops.
-This is in a period when the country has been unlocked.
-This is with the permission of the state and the SC.
-No one is hiding information or denying tests. https://t.co/oLz7iL26Ej
मौलाना साद बार-बार अपने ऑडियो में यह कहता सुना जा सकता था कि ‘अगर अल्लाह ने कोरोना भेजा है तो डॉक्टर क्या करेंगे? मस्जिदों में जाओ, उन्हें आबाद करो, वहाँ फरिश्ते उतरेंगे और वही कोरोना भगा देंगे’। वो डॉक्टरों का मजाक बना रहा था। रथ यात्रा में इसके विपरीत, पुजारियों ने स्वयं ही डॉक्टरों से परीक्षण का निर्णय लिया, भीड़ जुटने से मना किया और सीमित संसाधन में रथ यात्रा के आयोजन का फैसला किया।
उसके बाद का दौर याद कीजिए कि कोर्ट से ले कर पुलिस और प्रशासन, इन तब्लीगियों को खोज-खोज खोज कर निकाल रही थी। ये मस्जिदों में छुपे हुए थे, भारत के लगभग हर राज्य के किसी न किसी गाँव में तब्लीगी जमात के लोगों में कोरोना के लक्षण होने के बाद भी छुप रहे थे? लेकिन क्यों?
क्या रथ यात्रा में शामिल कोई भी व्यक्ति छुप रहा है? किसी पुजारी ने कहा कि उसके धर्म के खिलाफ है? कहीं सुना कि उन्होंने कहा हो कि सेनिटाइजर में अल्कोहल होता है तो हम मंदिर में, या रथ पर, या अपने हाथों में नहीं लगाएँगे? जी नहीं, पूरे इलाके को सेनिटाइज किया गया, हर व्यक्ति जो इससे जुड़ा है, चिकित्सकीय परामर्श लेने के बाद ही इस आयोजन का हिस्सा बना है।
वापस याद कीजिए कि जब इन तब्लीगियों को डॉक्टर के पास ले जाया जा रहा था, क्वारंटाइन करने की कोशिश हो रही थी तो ये क्या कर रहे थे? ये बस पर थूक रहे थे, डॉक्टरों पर थूक रहे थे, रास्ते में थूक रहे थे, और जहाँ रखा गया थी, वहाँ थूक रहे थे। लग रहा था आदमी नहीं थूक का कुदरती पम्प है!
किसी रथ यात्री के बारे में ऐसा सुना कि वो गैर-हिन्दुओं पर थूक रहे हैं? ये काम एक्सक्लूसिव डोमेन है तब्लीगियों का, और कई मजहबी फल विक्रेता का, जो पूरी दुनिया ने वीडियो पर देखा है। तो उनकी इन बेहूदगियों के कारण आम आदमी उन्हें तिरस्कृत कर रहा था। समुदाय के सभी लोगों को तो किसी ने गाली नहीं दी, बुरा-भला नहीं कहा।
अब और याद कीजिए कि कैसे इन्होंने पुलिस पर मधुबनी में गोली चलाई, कई जगह पत्थरबाजी हुई, नमाज पढ़ने को तब इकट्ठा हुए जब लॉकडाउन था। क्या ऐसा कुछ जगन्नाथ यात्रा के बारे में सुना? नहीं सुना, क्योंकि वो गोली नहीं चलाते, पत्थरबाजी के लिए उनको गुरुकुल में शिक्षा नहीं मिलती, न ही मूर्खतावश वो लॉकडाउन में आरती और रामनवमी कर रहे थे।
तो, अंत में, कोरोना को हल्के में लेने वाले, डॉक्टरों पर हमला करने वालों, थूकने, मल-मूत्र त्यागने वाले अधम श्रेणी के मनुष्यों की तुलना स्वामी जगन्नाथ के सेवायतों से करना धूर्तता है। मीडिया ने तब्लीगियों को अपराधी की तरह नहीं दिखाया, तब्लीगी स्वयं हर जगह कपड़े उतार कर नग्न हो रहे थे। नर्सों को देख कर पैंट उतारने वाले तो याद ही होंगे?
ऐसे ज़लील और नराधमों से महाप्रभु जगन्नाथ के सेवायतों की तुलना तो रहने दो, वहाँ के धूल का एक कण भी इन विष्ठाप्रेमी थूकलीगियों से लाख गुणा पवित्र और कोरोनामुक्त है। यूँ तो, इस कुत्सित चर्चा का हिस्सा नहीं बनना चाहिए, लेकिन कई बार जो बातें स्वयंसिद्ध हों, उन्हें भी कहना पड़ता है ताकि कोई स्वयं को पीड़ित और दूसरे को शोषक की तरह न दिखाए।