Sunday, November 17, 2024
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नाचो-गाओ, देह दिखाओ… सब मजहब को कबूल; लेकिन मंदिर जाना-फरमानी नाज का ‘हर-हर शंभू’ गाना गैर मजहबी: एक इस्लाम के दो पैमाने क्यों

फरमानी ने अपने जीवन में तमाम कठिनाइयाँ झेलने के बाद इस मुकाम को हासिल किया। उन्होंने गाने को तब अपना करियर बनाया जब उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। क्या मजहबी उलेमाओं को उस समय उनका साथ नहीं देना चाहिए था जब शौहर से अलग होकर वह अकेले बेटे की परवरिश कर रही थीं।

सावन के महीने में शिव शंभू का गाना गाकर यूट्यूब से लेकर हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फिर से छा जाने वाली फरमानी नाज को कट्टरपंथियों की नफरत झेलनी पड़ रही है। गंदी-गंदी गालियों के अलावा उन्हें इस्लाम का ज्ञान दिया जा रहा है। मजहबी उलेमा उन्हें ये बता रहे हैं कि कैसे उनका ‘हर हर शंभू’ गाना इस्लाम के खिलाफ है।

हैरानी इस बात की है कि फरमानी नाज देवी-देवताओं के भजन आदि इससे पहले भी गाती थीं मगर तब किसी को कोई आपत्ति नहीं थी, या कह सकते हैं कि उस समय उनके श्रोता केवल हिंदू होते थे, जिन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं थी कि उनके भगवान के भजन सुनाने वाला किस जाति/मजहब का है। मगर, इस बार फरमानी ने गाना सावन के महीने में गाया और वीडियो वायरल होने के कारण कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गईं। 

ध्यान दें अगर तो सावन की शुरुआत से माहौल बिगाड़ने का प्रयास कट्टरपंथी करते रहे। कभी शिवलिंग पर अभद्र टिप्पणी हुई तो शिवभक्ति में डूबे काँवड़ियों पर माँस, थूक आदि फेंके गए। ऐसे समय में जब एक पूरा धड़ा ऐसी गिरी हरकतों पर चुप बैठ उनका समर्थन कर रहा था उस समय फरमानी का गाना आया और हिंदुओं ने जमकर इसकी तारीफ की।

बय यही चीजें कट्टरपंथियों को बर्दाश्त नहीं हो पाई और उन्होंने फरमानी को गाली देना शुरू कर दिया। देवबंद के मौलाना मुफ्ती असद काजिमी ने तो यहाँ तक कहा, “गाना और नाचना इस्लाम में किसी भी रूप में जायज नहीं है। यह सब इस्लाम में वर्जित है। मुस्लिमों को ऐसी चीजों से बचना चाहिए। महिला ने जो गाया वो किसी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है। उसे इससे बचना चाहिए।

कट्टरपंथियों की हिपोक्रेसी

अब दिलचस्प बात ये है कि जिस इस्लाम मजहब में नाचना-गाना प्रतिबंधित बताया जा रहा है, उसी मजहब के हीरो-हिरोइन बॉलीवुड में भरे पड़े हैं। एक समय तो ऐसा भी था कि जब पूरे बॉलीवुड को ‘तीन खान’ के नाम पर जाना जाता था और ‘जीनत अमान’ जैसी मुस्लिम हिरोइनों को बोल्डनेस का पर्याय कहा जाता था।

ये नाचना-गाना-शरीर दिखाना हीरो-हिरोइनों के लिए कोई नया नहीं हैं और न ही ये सब मजहबी उलेमाओं के लिए देखना नया है। पर, ये जानते हैं कि अगर इन्होंने उर्फी जावेद जैसी अभिनेत्रियों पर उंगली उठाई तो इन्हें करारा जवाब मिलेगा। ये जानते हैं नोरा फतेही के स्टेप्स पर कमेंट किया तो इन्हें कुछ हासिल नहीं होगा। 

इनका कट्टरपंथ का जहर सिर्फ फरमानी जैसी महिलाओं के लिए उगला जाता है जिन्होंने मजहब को बेड़ी बनाए बिना फर्श से अर्श तक का सफर खुद से तय किया हो। या फिर सारा अली खान जैसी मुस्लिम एक्ट्रेस पर जिन्होंने मुस्लिम होने के बावजूद हिंदू धर्म में अपनी आस्था को बरकरार रखा और मंदिर जाती रहीं। 

ये जानते हैं कि अगर सारा के मंदिर जाने पर इन्होंने अपनी प्रतिक्रिया दी तो आधे से ज्यादा समुदाय के लोग उन्हें समर्थन देंगे। ये जानते हैं कि अगर इन्होंने फरमानी के ‘हर-हर शंभू’ गाने पर आपत्ति जताई तो आधी आबादी कहेगी कि यही सही बात तो है।

फरमारी के साथ तब क्यों नहीं थे मजहबी उलेमा?

आज जो लोग फरमानी को मजहब का ज्ञान देकर समझा रहे हैं कि इस्लाम में क्या प्रतिबंधित है क्या और क्या नहीं। क्या उन लोगों को इस बात का इल्म है कि फरमानी ने अपनी बीते कल में क्या-क्या झेला है।

क्या वे जानते हैं कि कैसे उनके शौहर ने उन्हें इसलिए छोड़ा क्योंकि उनकी कोख से जन्मा बेटा बीमार था, उसके गले में छेद था और फरमानी ने सिर्फ पाउडर वाला दूध माँगा था, जिसके बदले में उन्हें कहा गया कि वह अपने घर से लड़के के ईलाज का खर्च और दूध का पैसा लाएँ।

फरमानी ने अपने जीवन में तमाम कठिनाइयाँ झेलने के बाद इस मुकाम को हासिल किया। उन्होंने गाने को तब अपना करियर बनाया जब उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। उस समय उनके दिमाग में अगर मजहबी बातें होतीं तो क्या वो गाने गा पातीं और अपने बच्चे को सही परवरिश दे पातीं? फरमानी मजबूरी में गाना शुरू किया जो धीरे-धीरे उनका पैशन बना। आज उन्हें उसी पैशन के बदले पैसा मिलता है। अगर इसी पैशन और प्रोफेशन के रास्ते पर उन्होंने शिव-शंभू गा दिया तो ये इस्लाम के खिलाफ कैसे हो गया?

आप यूट्यूब पर फरमानी की वीडियोज में देखेंगे तो पाएँगे कि गाने के कारण उनके जीवन में कितना बदलाव आया। उनके पहनावे से लेकर रहने की जगह तक बदल गई। क्या ये सारी चीजें मजहबी ज्ञान देने वाले उन्हें दे सकते थे। क्या इन लोगों का फर्ज तब नहीं था जब फरमानी अपने बच्चे के भविष्य की चिंता में परेशान थीं, उनके शौहर ने उन्हें और बीमार बेटे को अकेले छोड़ दिया था।

आज जब उनके जीवन में सब सही है। वह मजहबी कट्टरपंथ के रास्ते पर चले बिना एक नामी हस्ती हैं तो यही उलेमा उन्हें ज्ञान दे रहे हैं। क्या ज्ञान केवल तभी निकलता है जब कोई सारा जैसी मुस्लिम हीरोइन मंदिर चली जाए या नुसरत जैसी अभिनेत्री हिंदू त्योहार की शुभकामना दे दे या फिर कोई फरमानी भगवान का भजन गा ले? ये ज्ञान तब क्यों नहीं बाहर आता जब सलमान पूरी फिल्म में शर्ट उतार देते हैं? शाहरुख किसिंग सीन दे देते हैं। 

आपको याद नहीं होगा, लेकिन म्यूजिक इंडस्ट्री में तमाम मुस्लिम नाम भरे हैं जो समय-समय पर ऐसे गीत गाते आए हैं। इंडियन आयडल जैसा मंच तो वो जगह हैं जहाँ जानकर देवी-देवताओं के गाने दिए जाते हैं और उनकी तारीफ भी होती है। दानिश द्वारा गाया ‘माँ शेरावालिए’ अब भी सबके जहन में रहता है। पर बावजूद इन तमाम उदाहरणों के कट्टरपंथियों के निशाने पर फरमानी और फरमानी जैसी महिलाएँ हैं ताकि मजहब का नाम लेकर औरत पर उनका दबदबा हमेशा कायम रहे और सही-गलत की परिभाषा उनके कहे अनुसार तय हो।

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