इंटरनेट पर वायरल पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की रैली वाली वीडियो में एक बच्चे को भड़काऊ नारेबाजी करता देख केरल कोर्ट सकते में आ गया। न्यायाधीश पी गोपीनाथ ने छोटे बच्चे के मुँह से हिंदुओं और ईसाइयों के लिए उगली गई घृणा को सुन पूछा है कि क्या रैलियों में ऐसी भड़काऊ बयानबाजी करवाना वैध है। उन्होंने दूसरे मामले पर सुनवाई करने के बीच इस मुद्दे को उठाया और बच्चों के भविष्य पर चिंता जाहिर कर पूछा कि क्या कोई कानून ऐसा नहीं है जो इन चीजों पर प्रतिबंध लगाए। अगर नहीं, फिर तो ये बच्चे ऐसी ही नफरत के साथ बड़े होंगे।
मालूम हो कि भले ही बच्चों के अंदर घृणा भरकर उनका इस्तेमाल रैलियों में किए जाने पर अदालत ने अब चिंता जाहिर की है, लेकिन हकीकत ये है कि इस्लामी कट्टरपंथी हों या वामपंथी…ये लोग हमेशा से बच्चों का प्रयोग अपना एजेंडा चलाने के लिए करते रहे हैं। ये पहली वीडियो नहीं है जब बच्चों ने इस तरह गैर मुस्लिमों को धमकाया हो।
#BREAKING
— Hindu Genocide Watch (@hgenocidewatch) May 22, 2022
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“Hindus should buy rice & flowers for their last rites, Christians buy incense for their last rites. If you want to live here, live ‘decently’; otherwise, we know how to implement ‘Azadi’.” -Slogans are from the PFI rally in #Kerala.
pic.twitter.com/PZfD6LdrdL
इससे पहले भी कई वीडियो सामने आ चुकी हैं जब छोटे-छोटे के भीतर भरी गई घृणा का प्रदर्शन सरेआम हुआ।
पत्थबाजी में बच्चों का प्रयोग
दूसरे समुदाय द्वारा बच्चों के मन में भरी जा रही नफरत का सबसे ताजा उदाहरण जहाँगीरपुरी में हनुमान जन्मोत्सव पर हुई हिंसा का है जहाँ घायल पुलिसकर्मी ने मीडिया के सामने आकर बताया था कि कैसे महिला से लेकर बच्चे तक उनके ऊपर छतों से पत्थरबाजी कर रहे थे। इतना ही नहीं कश्मीर में होने वाली पत्थरबाजी में भी बच्चों का प्रयोग होता था। हालाँकि प्रशासन की सख्ती के बाद अब वहाँ पहले जैसे दृश्य कम देखने को मिलते हैं।
राजनैतिक रैलियों में बच्चों का इस्तेमाल
राजनैतिक रैलियों में भी नारेबाजी करवाके कट्टरपंथी-वामपंथी बच्चों का इस्तेमाल अपने हित में करते आए हैं। साल 2020 में कन्हैया कुमार की रैली में एक बच्चे ने मंच पर चढ़ कर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुलेआम गाली दी थी। बच्चे को मंच से कहते सुना गया था कि अगर भारत में ताजमहल और लालकिला ना होता तो क्या पीएम अमेरिकी राष्ट्रपति को गाय और गोबर दिखाते? प्रियंका गाँधी ने भी बच्चों से चौकीदार चोर के नारे लगवाए थे जिसमें बच्चों ने भद्दी-भद्दी गालियों का प्रयोग शुरू कर दिया था। वीडियो बाद में खूब वायरल हुई थी।
देखेंः कन्हैया कुमार की ‘संविधान बचाओ रैली’ में इस लड़के का भाषण ‘ताज और लालकिला न होता तो गोबर दिखाते।’ pic.twitter.com/3HLzeHxtSH
— NBT Hindi News (@NavbharatTimes) February 28, 2020
शाहीन बाग के समय भी बूढ़ी औरतों से लेकर छोटी बच्चियों का इस्तेमाल प्रदर्शन को मजबूत दिखाने के लिए हुआ था जहाँ समय-समय पर न केवल प्रशासन के खिलाफ बल्कि हिंदुओं के खिलाफ भी गाली उगली जा रही थी। स्थिति इतनी घटिया कर दी गई थी कि कड़ाके की ठंड में बच्चों को लेकर महिलाएँ बैठीं और फिर जब बच्चे ने बीमार होकर दम तोड़ दिया तो उसका पछतावे की जगह बच्चे को कुर्बानी का नाम दिया गया था।
बच्चे/बच्चियों में भरा जा रहा कट्टरपंथी डोज
इसके अलावा आप देखें इसी साल जो कर्नाटक में बुर्का विवाद हुआ था वह भी बताता है कि कैसे कट्टरपंथी अपने मकसद को पाने के लिए छोटी बच्चियों को टारगेट बनाया था। पहले वहाँ स्कूल जाने वाली लड़कियों का ब्रेनवॉश किया गया था, फिर उन्हें हिजाब पहन कर स्कूल जाने की सलाह दी गई थी। नतीजा क्या हुआ ये बजरंग दल कार्यकर्ता हर्षा की हत्या के जरिए हम सबने देखा।
कट्टरपंथियों के कारण कैसा होगा भविष्य?
ये सब कोई इक्के-दुक्के मामले नहीं है। बच्चों के भीतर दूसरे समुदाय के प्रति नफरत भरने का काम, उनके देवी-देवताओं का अपमान करने का काम लंबे समय से चला आ रहा था। आप इंटरनेट पर खोजेंगे तो ऐसी तमाम वीडियो मिल जाएँगी जब छोटे-छोटे बच्चों ने नकली चाकू-तलवार लेकर काफिरों को मौत के घाट उतारने की बातें कहीं और लोग गर्व से उसे साझा करते रहे
ऐसी वीडियोज की सबसे कॉमन बातें ये हैं कि ये इस्लामी बहुल क्षेत्र या देश से वायरल हुईं और हँसी-मजाक बताकर इसे आगे बढ़ाया। अब ऐसी तस्वीर भारत के कोने-कोने से दिखने लगी हैं। ये हाल उसी भारत में हो रहा है जहाँ हिंदू अपने आपको सेकुलर दिखाने की कोशिशों में दिन-रात धर्म को भूलता जा रहा है और दूसरी ओर दूसरा समुदाय खुद को अल्पसंख्यक बता बता कर मजहबी तालीम के नाम पर बच्चों में जहर भर रहा है।
सोचिए कि यही बच्चे आने वाले समय में न सिर्फ अपने घर के बड़े बनकर आने वाली पीढ़ी को कट्टरपंथ का इंजेक्शन देंगे बल्कि ये आपके और हमारे समाज का हिस्सा होंगे और देश का भविष्य कहलाएँगे। क्या देश का भविष्य आपको ऐसा चाहिए जो हिंदुओं और ईसाइयों से बोले कि उनका समय पूरा हो गया, उन्हें यमराज लेने आ रहे हैं!
ध्यान रहे कि ये केवल कोर्ट के लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए कि बच्चों के अंदर किस स्तर पर घृणा भरी जा रही है, ये देश में रहने वाले हर वर्ग की चिंता होनी चाहिए कि आखिर मजहबी तालीम के नाम पर ये कैसी नफरत समुदाय विशेष के लोग बच्चों के मन में भर रहे हैं कि जिस समय पर उन्हें पढ़ना लिखना चाहिए वो रैलियों में शामिल होकर हिंदुओं को गाली दे रहे हैं, देश के जवानों को पत्थरों से मार रहे हैं। समुदाय की लड़कियाँ- जिन्हें भारत में समानता के अधिकार के तहत स्कूल में शिक्षित होने का इतना अच्छा अवसर है वो कट्टरपंथियों के कहने पर बुर्के और हिजाब की लड़ाई लड़ रही हैं।
क्या आपको लगता है कि ऐसी नफत के साथ आगे चलकर यही बच्चे विविध धर्मों के लोगों के साथ समभाव से गुजर-बसर कर पाएँगे? या इनका मकसद भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाना नहीं रह जाएगा? ऐसी घृणा का अंजाम सिर्फ ऐसे ही दृश्यों को जन्म देगा जैसे पिछले दिनों करौली, खरगोन से लेकर जहाँगीरपुरी में देखे गए थे, जैसे शाहीन बाग, कर्नाटक में देखे गए थे।