अभी कुछ दिन पहले मेघना गुलज़ार के निर्देशन में बन रही फ़िल्म ‘छपाक’ का पहला पोस्टर जारी किया गया। दीपिका पादुकोण अभिनीत यह फ़िल्म एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की ज़िदगी पर बन रही है। 15- 16 साल की रही होंगी लक्ष्मी जब उनके चेहरे पर एसिड से हमला किया गया।
लक्ष्मी अग्रवाल एसिड अटैक सर्वाइवर हैं!
जी! सर्वाइवर हमें अपने शब्दकोश को भी दुरुस्त करना होगा, सर्वाइवर: जिसमें जीने की इच्छा, लड़ने की ताक़त इतनी हो की धातु को गलाने वाला एसिड भी उसकी जीवटता को ना गला पाया हो। पीड़िता न लिखिएगा कभी, पीड़िता लिखकर ऐसा लगने लगता है कि मैं ‘उसे’ कमज़ोर कर रही हूँ! उसकी जीवटता के सामने उसकी पीड़ा का समर्पण है। वह सर्वाइवर है!!!!
बिहार भागलपुर की बच्ची जो अभी अस्पताल में है उसे एसिड से नहलाया गया है! महिला-विरोधी हर घटना अपनी पिछली घटना से भयावह होती है। क्योंकि साधन (विशेष तौर पर तकनीकी) तो बढ़ते चले गए लेकिन प्रशासन की भूमिका आज भी घटना के बाद ही शुरू होती है!
एसिड से नहलाना, मैं बार-बार पढ़ती हूँ ‘नहला दिया गया’ क्योंकि एसिड डाला गया है उस बच्ची पर, उसका गैंग रेप उसके घर में हो रहा था, हथियार के बल पर वो भी उसकी माँ के सामने। मना करने पर ऊपर से नीचे तक उसके शरीर को एसिड से भिगो दिया गया।
इसके बाद मैं क्या लिखूँ! जो धातु को गला दे उसकी बूँद जब शरीर पर पड़ेगी तो उस असहनीय तक़लीफ़ को आप क्या कहेंगे? मैं कोई शब्दों की जादूगर नहीं, इसलिए उस दर्द को बयाँ कर पाना मेरे बस की बात नहीं।
एक इंटरव्यू में लक्ष्मी कह रहीं थीं कि एसिड डालने के बाद त्वचा वैसे ही गलना शुरू होती है जैसे आग में प्लास्टिक, जिसकी गंध भी बिल्कुल वैसी ही होती है।
टीवी पर दिए गए साक्षात्कार में रेशमा क़ुरैशी (चेहरे के साथ-साथ एसिड अटैक में रेशमा की आँख चली गई) कहती हैं, “मैं अपने पापा की लाडली हूँ, पापा ने मेरी सारी ख़्वाहिशें पूरी कीं, लेकिन अब वे मेरा चेहरा नहीं देख पाते उन्हें लगता है मेरी बेटी को आँख मिल जाए।”
भागलपुर की बच्ची को तो एसिड से नहला दिया गया, अगर हम योनि के साथ पैदा नहीं होतीं तो बलात्कार नहीं होता? एसिड अटैक नहीं होता?
मेरा मन कहता है तब भी होता।
ऐसा क्यों कह रही हूँ मैं?
क्योंकि ‘आपको’ ना/ NO सुनने की आदत नहीं।
अगर ना बोला तो बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, एसिड अटैक। यह एक तरह की कुंठा ही है जो ‘उन्हें’ NO नहीं सुनने देती।
अंग्रेज़ी में ‘Consent’ बोलते हैं और हिन्दी में सहमति। पति, ब्वॉयफ्रेंड, दोस्त या दफ़्तर का बॉस हो संबंध में बाप/ भाई/ चाचा/ मामा लगता हो किसी को हक़ नहीं कि वह उसकी सहमति के बिना उसे छुए। यह देह हमारी है, जो किसी के भोग की वस्तु नहीं।
भागलपुर में 12वीं में पढ़ने वाली उस बच्ची के साथ घर में ही गैंग रेप हो रहा था। प्रतिरोध के बदले एसिड! क्या हम लोग हाथ जोड़ माफ़ी माँगने के भी क़ाबिल हैं कि हमें माफ़ करो हमने अपने पुरुषों को ‘ना’ सुनना नहीं सिखाया। हमने अपनी कौन-सी ज़िम्मेदारी निभाई है?
एसिड बेचने से पहले कुछ गाइडलाइन्स हैं। गाइडलाइन्स तो हमसे फॉलो होगा नहीं। हम उन लोगों में से हैं जो ट्रेन में पॉटी कर बिना पानी दिए उठ जाएँ तो गाइडलाइन्स कौन याद रखेगा! और प्रशासन तो घटना के बाद मुआवज़ा बाँटने के लिए है!
एसिड अटैक वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गाइडलाइन्स जारी कर रखे हैं जो काग़ज़ो में ही सीलबंद है, जिसका आमतौर पर मज़ाक ही बनाया जाता है। गाइडलाइन्स इस प्रकार हैं:
- 18 वर्ष से कम आयु वर्ग को एसिड नहीं बेचा जाएगा
- एसिड ख़रीदने वाले को फोटो आईडी देना अनिवार्य है
- दुकानदार को ख़रीददार का ब्योरा रजिस्टर में दाखिल करना होगा
- एसिड ख़रीदने वाले को उसे ख़रीदने का उद्देश्य भी बताना होगा
- एसिड की बिक्री सिर्फ़ लाइसेंसी दुकानों से ही हो सकती है
- दुकानों पर मौजूद एसिड के स्टॉक की जानकारी स्थानीय प्रशासन को देनी होगी और ‘प्रशासन को जानकारी लेनी होगी’
- स्कूल लैब आदि जहाँ अधिक मात्रा में एसिड की ज़रूरत होती उन्हें प्रशासन से अनुमति लेनी होगी
- ग़ैर-क़ानूनी तरीके से एसिड बेचने वालों पर जुर्माना और जेल भी जाना पड़ सकता है
लेकिन बाक़ी प्रदेशों की तो बात छोड़ दें देश की राजधानी दिल्ली में साइकिल में कोकाकोला की बोतल में एसिड खुलेआम बेचा जा रहा है। किसी को नहीं पता कि एसिड बेचने के लिए कोई गाइडलाइन्स भी हैं!
सो गाइडलाइन्स तो हम फॉलो कर नही पाएँगे क्योंकि उसकी हमें आदत नहीं और न ही प्रशासन करवा पाएगी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रशासन को तो आदत ही है घटना के बाद आने की। अत: तात्कालिक उपाय यही है कि एसिड बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाए। किसी भी काम के लिए एसिड मिलना ही नहीं चाहिए!!!
अब धातु गलाने के लिए सर्राफ़ा व्यापारी क्या करेंगे यह वही लोग जानें, स्कूलों की लैब में अगर एसिड नहीं उपलब्ध रहेगा तो हमें यह परिस्थितियाँ भी स्वीकार्य हैं, लेकिन हम धातु गलाने की एवज में अपनी बच्चियों की देह नहीं गला सकते! ऐसा इसलिए क्योंकि हमें अपने देश-समाज में और सर्वाइवर नहीं चाहिए!!
लेखिका: प्रीति परिवर्तन