Friday, November 22, 2024
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बीफ को जब बताया जा रहा ‘संवैधानिक अधिकार’, तब हिंदू मंदिरों की जमीन की लड़ाई कब तक और कितनी महत्वपूर्ण?

मद्रास हाईकोर्ट द्वारा कही गई ये बात- ”मंदिरों की जमीन का उपयोग सार्वजनिक कामों के लिए न किया जाए” बेहद अहम है और इसे हर सरकार, हर अधिकारी द्वारा याद रखा जाना चाहिए, जो हिंदू मंदिरों को प्रशासन की जंजीर में जकड़ने की पैरोकारी करते हैं।

लक्षद्वीप में विकास को अवरुद्ध करने के लिए उठा कट्टरपंथियो का स्वर अब अपना असली रंग दिखाने लगा है। अब तक जहाँ केंद्र सरकार पर द्वीप के लोगों के विरुद्ध काम करने के इल्जाम लगाए जा रहे थे, वहीं मोहम्मद फैजल नाम के सांसद ने बीफ को बैन होने से रोकने के लिए उसे खाना अपना संवैधानिक अधिकार बता दिया है।

दिलचस्प बात ये है कि एक ओर लक्षद्वीप का ये समुदाय विशेष है जो विकास की राह में रोड़ा बनने को, हिंदुओं की भावना को ठेस पहुँचाने को, अपना अधिकार बता रहा है और दूसरी ओर तमिलनाडु के वह हिंदू मंदिर हैं, जिनकी जमीन को 36 साल में 46000 एकड़ गायब कर दिया गया और आज उन्हें हक पाने के लिए अभियान चलाने पड़ रहे हैं। हाईकोर्ट में अपनी बात रखनी पड़ रही है।

आज लॉस्ट टेम्पल्स के मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने बड़ा कदम उठाते हुए मंदिरों की गायब जमीन पर तमिलनाडु सरकार से स्पष्टीकरण माँगा है। इसके अलावा सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु राज्य सरकार को 75 निर्देशों का एक सेट जारी किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य में प्राचीन मंदिरों और प्राचीन स्मारकों का रखरखाव उचित ढंग से हो।

224 पन्नों के फैसले में जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस पीडी ऑदिकेसवालु की खंडपीठ ने कहा, “…हमारी मूल्यवान विरासत किसी प्राकृतिक आपदा या विपदा के कारण नहीं बल्कि जीर्णोद्धार की आड़ में लापरवाह प्रशासन और रखरखाव के कारण बिगड़ रहा है।”

हालातों को देखते हुए व राज्य में प्रशासन की आलोचना करते हुए न्यायालय ने इस बात को गौर करवाया कि कैसे लापरवाहियों के चलते 2000 साल पहले बने मंदिर खंडहर हो गए हैं। कोर्ट ने जोर दिया है कि मंदिर की भूमि हमेशा मंदिरों के पास ही रहनी चाहिए और राज्य सरकार या HR&CE (हिन्दू रिलीजियस एण्ड चैरिटेबल एंडोवमेंट विभाग) विभाग को दानदाताओं की इच्छा के विपरीत ऐसी भूमि को अलग नहीं करना चाहिए या देना नहीं चाहिए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिग्रहण के लिए मंदिर की भूमि पर ‘सार्वजनिक उद्देश्य सिद्धांत’ को लागू नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि समुदाय के हित आम तौर पर ऐसी भूमि के सा‌थ शामिल होते हैं। अदालत ने अधिकारियों को मंदिर की जमीन पर लीजहोल्ड और अतिक्रमण का जायजा लेने और बकाया किराया वसूली, बकाएदारों और अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने के लिए तत्काल कदम उठाने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि ये सारे काम HR&CEअधिनियम और उसके तहत नियमों के प्रावधानों के अनुसार होने चाहिए।

आज ऐसे वक्त में जब लक्षद्वीप में बैठा कोई सांसद बीफ खाने को अपना संवैधानिक अधिकार बता देता है, बहुल आबादी के समर्थन के बूते वो विकास कार्यों से किनारा कर ले रहा है… उस समय हिंदुओं के लिए मद्रास हाईकोर्ट द्वारा कही गई ये बात- ”मंदिरों की जमीन का उपयोग सार्वजनिक कामों के लिए न किया जाए” बेहद अहम है और इसे हर सरकार और अधिकारियों द्वारा याद रखा जाना चाहिए, जो हिंदू मंदिरों को प्रशासन की जंजीर में जकड़ने की पैरोकारी करते हैं।

कुछ दिन पहले तमिलनाडु के मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की माँग सोशल मीडिया पर जोर पकड़ी थी। हिंदुओं में इस बात को लेकर जागरुकता बढ़ी थी कि कैसे सरकार उनके मंदिरों को अपने नियंत्रण में लेकर खिलवाड़ कर रही है। 

आज तमिलनाडु और लक्षद्वीप दोनों की स्थिति मात्र क्षेत्रीय नहीं है। यह राष्ट्रव्यापी समस्या है, जिसका अवलोकन हर हिंदू समाज के व्यक्ति को करना चाहिए कि आखिर कैसे उनके मंदिरों पर प्रशासन का हक हो गया और कैसे वहाँ दिए गए दान पर मंदिर से पहले सरकार का हक हो गया।

सोचिए कि कैसे लक्षद्वीप में केंद्र में बैठी सरकार विकास की मंशा से भी कानून लाने पर विरोध झेल रही है… और दूसरी ओर तमिलनाडु है, जहाँ मंदिर की भूमि मंदिर को वापस दिलाने के लिए भी कोर्ट का दरवाजा पीटा जा रहा है।

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