प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग रखने वाले अनुच्छेद 370 को तिलांजलि दे दी थी। मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक कदम की जहाँ बड़े स्तर पर प्रशंसा होती रही है वहीं एक तबका इससे कुपित रहा है। हमेशा कश्मीर को अलग रखने की राजनीति करने वाले नेता और एक्टिविस्ट लगातार मोदी सरकार के इस फैसले पर प्रश्न उठाते हैं। अनुच्छेद 370 से होने वाले बदलाव श्रीनगर के लाल चौक से लेकर टीथवाल में फिर से चालू हुए शारदा मंदिर तक दिखते हैं।
अनुच्छेद 370 से होने वाला बदलाव इतना साफ़ है कि अब देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता अपने लावलश्कर के साथ पैदल चलते हुए आधा कश्मीर नापता है। वह श्रीनगर और उन इलाकों में जाता है जिन्हें कभी आतंक का गढ़ माना जाता था लेकिन उसे खरोंच तक नहीं आती। राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा इसी का उदाहरण है। कश्मीर में बदलाव पर सवाल पूछने वालों को यह जवाब देना चाहिए कि यही माहौल वह 1990 के दशक में क्यों नहीं दे पाए थे जब भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी तिरंगा लेकर श्रीनगर गए थे।
तब जोशी और उनके साथ मौजूद वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला भी हुआ था। श्रीनगर की गलियों को तक तब की कॉन्ग्रेस सरकार सुरक्षित नहीं कर पाई थी। भाजपा नेताओं को जगह-जगह रोका गया था। अनुच्छेद 370 पर मोदी सरकार के काम को मानने के लिए ज्यादा समय को पीछे ले जाने की जरूरत नहीं है। आज से 13 साल पहले 2011 का समय याद कर लिया जाना चाहिए जब भाजपा के युवा मोर्चा ने एक एकता यात्रा का आह्वान किया था।
तब की कॉन्ग्रेस सरकार ने इन युवाओं को श्रीनगर ना पहुँचने देने को सारे हथकंडे अपना लिए थे। तब केंद्र और राज्य, दोनों जगह कॉन्ग्रेस सत्ता में थी। जिस नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ वह गलबहियाँ करती है, उसके मुखिया के बेटे उमर अब्दुल्लाह सत्ता संभाल रहे थे। लेकिन इस दौरान भाजपा नेताओं को जम्मू कश्मीर में घुसने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। कश्मीर के इस बदलाव की इस बात को क्षद्म एक्टिविस्ट और कश्मीर की कथित आजादी का सपना देखने वाले मानें या ना मानें, UPA सरकार में गृह मंत्री रहे सुशील शिंदे ने खुद माना है।
UPA की सरकार में गृह मंत्री रहे शिंदे ने अपनी किताब विमोचन के कार्यक्रम में तब के कश्मीर की स्थिति बताई है। उन्होंने कहा, “जब मैं होम मिनिस्टर था, तो मैं उनके पास जाता था और सलाह माँगता था। उन्होंने मुझे कहा कि सुशील तुम लाल चौक जाकर भाषण करो और लोगों से मिलो। मुझे उस सलाह से फायदा मिला कि एक ऐसा होम मिनिस्टर है जो वहाँ जाता है लेकिन मेरी फ$ती थी ये किसको बताऊँ। ये सच ही है।”
At the launch of his memoir, UPA era Home Minister Sushil Shinde admits that things were so bad in Kashmir valley in those days that उनकी भी वहाँ जाने में फटती थी।
— Amit Malviya (@amitmalviya) September 10, 2024
Things have changed dramatically since. 2-3 crore tourists visit Jammu & Kashmir every year. Even Balak Buddhi and… pic.twitter.com/2YqRjRiqWm
सुशील शिंदे का यह खुलासा इसलिए अहम हो जाता है कि वह कोई सामान्य इंसान नहीं है। देश के गृह मंत्री, दूसरे सबसे बड़े सूबे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल जैसे पदों पर वह रह चुके हैं। गृह मंत्री के तौर पर उनके साथ बड़ा भारी प्रशासनिक अमला चलता था। लेकिन तब भी उनको लाल चौक पर डर लगता था। अब कश्मीर में माहौल इतना बदला है कि लाल चौक पर 24 घंटे तिरंगा लहराता है और कोई भी आम आदमी किसी भी समय यहाँ जाकर उस तिरंगे को सलाम कर सकता है।
सुशील शिंदे की यह स्वीकारोक्ति यह भी दिखाती है कि दशकों तक केंद्र सरकार में रहने वाली कॉन्ग्रेस ने कश्मीर समस्या को इतना गम्भीर बनाया कि उसके मंत्री ही जाने में डरने लगे। यहीं तक कॉन्ग्रेस की समस्या नहीं रूकती। अब उसने उस पार्टी से दोबारा गठबंधन कर लिया है जो कश्मीर को अनुच्छेद 370 से पहले वाले दौर में ले जाने को अमादा है। उसने नेशनल कॉन्फ्रेंस को कश्मीर की सत्ता में लाने के लिए हाथ मिलाया है। इससे साफ़ होता है कि वह अब भी कश्मीर का भला नहीं, राजनीति चाहती है।
चाहे राहुल गाँधी की सुरक्षित यात्रा हो, कश्मीर में G20 का आयोजन हो या फिर सुशील शिंदे की स्वीकारोक्ति, यह जवाब है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 ने क्या बदल दिया है। यह दिखाता है कि कश्मीर में केवल लोग अब अपने आप को सुरक्षित महसूस ही नहीं करते बल्कि इसे बताते भी हैं कि अब स्थिति बदली है।