बजट 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने ग़रीबों का विशेष ध्यान रखा है। गाँवों के इंफ़्रास्ट्रक्चर और अन्य सुविधाओं के साथ-साथ सामाजिक पहलूओं को भी ध्यान में रखा गया है। स्वच्छता पर ख़ास ज़ोर तो दिया ही गया है, साथ ही ग़रीबों के भूखे पेट को भरने की व्यवस्था और सुगम की गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश के संसाधन पर पहला हक़ ग़रीबों का बता कर पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के 2006 में दिए उस बयान का ज़वाब दिया जिसमे उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला हक़ मुसलामानों का है।
आइए एक-एक कर देखते हैं कि ग़रीबों के लिए इस बजट 2019 में क्या है?
आर्थिक आधार पर ग़रीबों को आरक्षण
सामान्य वर्ग के ग़रीबों को आरक्षण देने संबंधी विधेयक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही ऐतिहासिक बता चुके हैं। संविधान संशोधन के बाद राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलते ही, इस विधेयक ने क़ानून का रूप ले लिया था। भाजपा सरकार के इस महत्वाकांक्षी विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा- दोनों ही सदनों में भारी बहुमत से पारित किया गया था। इस विधेयक को पीएम मोदी के नारे ‘सबका साथ-सबका विकास’ से जोड़ कर देखा जा रहा है। बजट पेश करते समय कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने भी इसकी चर्चा करते हुए कहा कि इस से पहले से ही आरक्षण के दायरे में आने वाले समूह पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
वित्त मंत्री ने इस बात की भी जानकारी दी कि सरकारी संस्थानों में सीटों की संख्या 25% (2 लाख) बढ़ाई जाएगी, जिससे किसी भी वर्ग हेतु वर्तमान में आरक्षित सीटों में कमी न आए। वित्त मंत्री का यह बयान एक ऐसे संतुलन की तरह प्रतीत होता है, जो सरकार हर वर्ग के बीच बना कर चलने की कोशिश कर रही है। जहाँ एक तरफ सरकार की कोशिश है कि आर्थिक रूप से विपन्न लोगों को आरक्षण मिले, वहीं दूसरी तरफ सरकार इस बात को लेकर सजग है कि पहले से आरक्षित तबके को यथास्थिति का फ़ायदा मिलता रहे।
भूखे भजन न होए गोपाला
जिस देश में दुनिया की सबसे बड़ी अल्प-पोषित आबादी रहती हो, वो भले ही मंगल और चाँद तक पहुँच जाए, लेकिन भूख से हुई एक मृत्यु भी सारी उपलब्धियों पर एक धब्बा बन जाती है। भारत जैसे विशाल देश में सबको समुचित भोजन मिले- इसकी व्यवस्था करने के लिए केंद्र सरकार सजग दिख रही है। अगर हम 2013-14 और ताज़ा 2019-20 बजट की तुलना करें तो पता चलता है कि ग़रीबों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने के लिए आवंटित बजट दोगुना हो चुका है।
बजट 2013-14 में इसके लिए ₹92,000 करोड़ आवंटित किए गए थे जबकि ताज़ा बजट में ₹1,70,000 करोड़ की व्यवस्था की गई है। अगर हम मनरेगा की बात करें तो उसके लिए आवंटित बजट भी 6 वर्ष में तिगुना हो चुका है। जहाँ 2013-14 में इसके लिए ₹33,000 करोड़ की व्यवस्था की गई थी जबकि इस वर्ष ₹90,000 करोड़ के आवंटन के साथ सरकार ने यह भी कहा है कि ज़रूरत पड़ने पर और रुपयों की भी व्यवस्था की जाएगी।
कुल मिला कर देखें तो निचले स्तर पर ग़रीबों के रोज़गार और भोजन के लिए सरकार चिंतित नज़र आ रही है। मनरेगा और सस्ता अनाज के लिए आवंटित धनराशि में इज़ाफ़ा होना तो यही बताता है।
गाँवों एवं बस्तियों में पक्की सड़क
सबसे पहले सुव्यवस्थित आँकड़ों पर नज़र डाल कर देखते हैं कि ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)’ गाँवों और बस्तियों में सड़कों के निर्माण के लिए क्या किया गया है?
- कुल 17.84 लाख बस्तियों में से 15.80 लाख बस्तियों को पहले ही पक्की सड़कों से जोड़ा जा चुका है। सरकार के अनुसार, शेष को भी ज़ल्द ही जोड़ दिया जाएगा।
- अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू की गई PMGSY के लिए केंद्र सरकार ने 2019-20 में ₹19,000 करोड़ का आवंटन किया है। बजट 2018-19 में इस योजना के लिए ₹15,500 करोड़ का आवंटन किया था। अर्थात, एक वर्ष में पूरे ₹3,500 करोड़ की वृद्धि।
हालाँकि 2013-14 का बजट पेश करते हुए पी चिदंबरम ने PMGSY के लिए इस से ज़्यादा धनराशि आवंटित की थी, लेकिन इसके प्रदर्शन के मामले में यूपीए सरकार कहीं नहीं टिकती। जहाँ 2013-14 में इस योजना के तहत 3,81,314 किमी सड़कें बनाई गई थीं, वहीं 2018-19 में 5,75,524 किमी सड़कें बनाई गई। यही कि डेढ़ गुना ज़्यादा।
इसके अलावा वित्त मंत्री ने यह भी बताया कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY)’ के तहत पिछले चार सालों में 1.3 करोड़ आवास बनाए जा चुके हैं। अगर PMAY की तुलना पिछली हाउसिंग योजना IAY से करें तो पता चलता है कि आज औसतन 114 दिनों में एक घर बन कर तैयार हो जाता हैं। वहीं IAY के दौरान एक घर के निर्माण का औसत समय था- 314 दिन।
भोजन के अलावा ग्रामीण जीवन की सबसे बड़ी जरूरत- मकान, और गावों की खुशहाली का सबसे बड़ा माध्यम- सड़कें, ताज़ा बजट में केंद्र सरकार इन दोनों ही मोर्चे पर मुस्तैदी से अपना कार्य करते हुए नज़र आ रही है।
घर-घर में रोशनी पहुँचाने का कार्य
कार्यवाहक वित्त मंत्री ने बताया कि 2014 तक 2.5 करोड़ परिवार बिना बिजली के 18वीं शताब्दी की ज़िंदगी जीने को मज़बूर थे। अब ‘सौभाग्य योजना’ के तहत घर-घर बिजली पहुँचाने का कार्य किया गया है। शेष घरों को भी 2019 तक बिजली से जोड़ दिया जाएगा। पीयूष गोयल मोदी सरकार में बिजली मंत्रालय भी संभाल रहे हैं और उन्हें गाँव-गाँव तक बिजली पहुँचाने के लिए ‘Carnot’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
इसके अलावा केंद्र सरकार ने यह भी बताया कि देश के ग़रीब व मध्यम वर्गीय परिवारों को 143 करोड़ LED बल्ब उपलब्ध कराए गए हैं, जिस से उन्हें बिजली बिल में सालाना ₹50,000 करोड़ की बचत हो रही है। 2016 में मोदी सरकार के दो वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद LED बल्ब के मूल्य की तुलना 2014 से करें तो उस समय यह दस गुना से भी ज्यादा था। इस से पता चलता है कि सरकार द्वारा ग़रीबों को कम मूल्य पर बेचे जाने वाले LED बल्बों की क़ीमत में भारी कमी आई है।
स्वास्थ्य सुविधाएँ- करोड़ों लोगों को पहुँचेगा फ़ायदा
कार्यवाहक वित्त मंत्री ने कहा कि पहले ग़रीब लोग बीमारी से लड़े या रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करें- इसी सोच में डूबे रहते थे। उन्होंने प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी ‘आयुष्मान भारत योजना’ का ज़िक्र करते हुए बताया कि इस योजना से 50 करोड़ नागरिक लाभान्वित होंगे, जिन्हे चिकित्सा व उपचार मुहैया कराया जाएगा। बकौल गोयल, अब तक 10 लाख लोग इस योजना के द्वारा मुफ़्त चिकित्सा का लाभ उठा चुके हैं। इस से उन्हें क़रीब ₹3,000 करोड़ रुपयों की बचत हुई है।
आयुष्मान भारत लॉन्च लके बाद से ही विपक्ष की आलोचना के कारण लगातार ख़बरों में है, लेकिन इस योजना के लाभान्वितों की संख्या अलग ही कहानी कहती है। नवंबर 2018 में पानीपत में इस योजना के तहत एक ग़रीब मरीज़ की सफल हार्ट वॉल्व सर्जरी हुई थी। वह इस योजना के अंतर्गत हुई पहली हार्ट सर्जरी थी। इस योजना का पहले तीन महीने में ही 5 लाख लोगों ने लाभ उठाया था और बिल गेट्स जैसे दिग्गज उद्योगपति ने इसकी तारीफ़ की थी।