राजनीति के अखाड़े में कभी भी कुछ भी हो सकता है। सब्जी बेचने से लेकर उप-मुख्यमंत्री पद के सफर तय करने वाले छगन भुजबल को महाराष्ट्र के मंत्रीमंडल में जगह मिलने से एक बार फिर उनकी क़िस्मत बदल गई। बता दें कि छगन भुजबल वही नेता हैं, जो मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ़्तार हो चुके हैं और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की गिरफ़्तारी के आदेश भी दे चुके हैं।
संयोग देखिए कि छगन भुजबल ने अपना राजनीतिक जीवन 1960 में शिवसेना से ही शुरू किया था। लेकिन 1991 में पार्टी छोड़ने से पहले वो कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए। फिर 1999 में एनसीपी के गठन के बाद भुजबल शरद पवार के क़रीबी बन गए और उनके साथ रहे।
आज भले ही भुजबल राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों के पन्ने पर उतनी जगह न बना पा रहे हों, लेकिन जुलाई 2000 का समय कुछ ऐसा था कि उनका नाम सुर्ख़ियों में छाया रहता था। गृह विभाग के प्रभार के साथ महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के रूप में, भुजबल ने कल्पना से परे कई काम किए थे। इनमें एक काम उद्धव के पिता और शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की गिरफ़्तारी का आदेश दिया जाना भी शामिल था।
दिसंबर 1992 से जनवरी 1993 का एक दौर था। उस समय शिवसेना के मुखपत्र सामना में संपादकीय लिखा करते थे बाल ठाकरे। तब के संपादकीय को लेकर साल 2000 में महाराष्ट्र की पुलिस ने बाल ठाकरे को गिरफ्तार करने का प्लान बनाया। क्यों? क्योंकि सामना के तब के संपादकीय लेख ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद कथित रूप से सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का काम किया था। लेकिन पुलिस को बाल ठाकरे जैसे नेता को गिरफ्तार करने का आदेश किसने दिया – राज्य के गृहमंत्री छगन भुजबल ने। इसके बाद बाल ठाकरे को 25 जुलाई 2000 को गिरफ़्तार किया गया और एक मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में ले जाया गया। हालाँकि, मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए मामले को ख़ारिज कर दिया कि यह समय बर्बाद करने जैसा है और चार्जशीट दायर करने में देरी पर भी सवाल उठाए।
बाल ठाकरे की गिरफ़्तारी से मुंबई में माहौल गर्माने के साथ-साथ सियासी समीकरण भी बिगड़े थे। ठाकरे की गिरफ़्तारी से पहले शेयर बाजार लुढ़का था। वहीं दूसरी तरफ बाल ठाकरे ने केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से शिवसेना के मंत्रियों को इस्तीफ़ा देने के लिए भी कहा था।
बाल ठाकरे की गिरफ़्तारी और तत्काल रिहाई एक उपद्रव के रूप में सामने आई। तब शिवसेना प्रमुख के ख़िलाफ़ व्यक्तिगत प्रतिशोध के रूप में भुजबल को ही दोषी ठहराया गया था। उस समय मीडिया रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया था कि वाजपेयी और तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने बाल ठाकरे के ख़िलाफ़ भुजबल के लिए एनसीपी के साथ वार्ता की थी।
2000 में बाल ठाकरे की गिरफ़्तारी शिवसेना के लिए एक भावनात्मक मुद्दा रहा है। और यह इतना रहा है कि पार्टी बार-बार इस घटना के लिए एनसीपी से माफ़ी की माँग करती रही। इसलिए इस बार के विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव प्रचार के दौरान, एनसीपी नेता अजित पवार ने दावा किया था कि उन्होंने और एनसीपी के अन्य नेताओं ने बाल ठाकरे की गिरफ़्तारी का विरोध किया था और इसे एक “ग़लती” बताया था।
भुजबल, जो 1970 के दशक में शिवसेना के कॉरपोरेटर थे, 1985 में मुंबई के मेयर बने। भुजबल ने 1991 में शिवसेना छोड़ दी थी। तब आरोप यह लगाया था कि बाल ठाकरे आरक्षण पर मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने के विरोध में थे। हालाँकि, रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि भुजबल को बाल ठाकरे ने नाराज़ कर दिया था और 1990 के विधानसभा चुनावों के बाद मनोहर जोशी को विपक्ष का नेता नियुक्त किया था। जोशी 1995 में शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री बने थे।
1995 में ही कॉन्ग्रेस और भुजबल विधानसभा चुनाव हार गए और शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन में महाराष्ट्र में अपनी पहली सरकार का नेतृत्व किया। उस समय भुजबल को राजनीति से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए था, लेकिन उनके नए संरक्षक शरद पवार ने उन्हें विधान परिषद में विपक्ष का नेता बना दिया। इस दौरान भुजबल ने दो-तीन वर्षों में, कई घोटालों को उजागर करके अकेले दम पर शिवसेना-भाजपा सरकार पर हमला किया। यहाँ तक कि उन्होंने राज ठाकरे को माटुंगा निवासी रमेश किनी की हत्या के मामले में कटघरे में खड़ा कर दिया, जिसे उसके मकान मालिकों ने अपना घर खाली करने के लिए मजबूर किया था। तब राज ठाकरे फ़रार हो गए थे, लेकिन दोनों के बीच दुश्मनी बनी रही।
इसके बाद कहानी NCP की। कॉन्ग्रेस छोड़ने के बाद जब पवार ने राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी का गठन किया, तो उन्होंने भुजबल को पार्टी का पहला प्रदेश अध्यक्ष बनाया। 1999 के विधानसभा चुनावों के बाद, कॉन्ग्रेस-एनसीपी ने सरकार बनाई और भुजबल उप-मुख्यमंत्री बने।
राज्य में जब कॉन्ग्रेस-एनसीपी सरकार बनी थी तब भुजबल ने लोक निर्माण विभाग संभाला था। तब उन्होंने क्या-क्या गुल खिलाए थे, इसका पता मार्च 2016 चला। प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा 2016 की जाँच में पाया गया था कि उन्होंने पीडब्ल्यूडी परियोजनाओं के लिए ठेके देने में कथित रूप से अपने कार्यालय का दुरुपयोग किया, जिससे सरकारी खज़ाने को नुकसान हुआ।
मार्च 2016 से जेल में बंद 70 वर्षीय भुजबल को 4 मई को उनके बुढ़ापे और बिगड़ती सेहत को ध्यान में रखते बॉम्बे हाईकोर्ट ने ज़मानत दे दी थी। जब भुजबल जेल में थे तब उद्धव ठाकरे ने कहा था कि राजनीतिक स्कोर का निपटान करने के लिए क़ानूनी ताक़त का इस्तेमाल कई बार किया जाता है। लेकिन राजनीति ने पलटा खाया और वही भुजबल आज ठाकरे के मंत्री हैं।
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