कॉन्ग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने ऐलान किया है कि जून 2021 तक पार्टी अपने अध्यक्ष पद को लेकर निर्णय ले लेगी। कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी की शुक्रवार (जनवरी 22, 2021) को हुई बैठक के बाद यह ऐलान किया गया। पार्टी का कहना है कि इस साल कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी संगठन का चुनाव करेगी, जिसमें अध्यक्ष पद का चुनाव सबसे अहम है।
Congress Working Committee has decided that there will be an elected Congress President by June 2021: KC Venugopal, Congress pic.twitter.com/JLcPjDHmB9
— ANI (@ANI) January 22, 2021
अब पार्टी में चल रहे आंतरिक मतभेद के बाद जहाँ सार्वजनिक रूप से कॉन्ग्रेस की ओर से यह घोषणा हुई है। वहीं सोशल मीडिया में यूजर्स इस बात को बहुत हल्के में ले रहे हैं। वह पूछ रहे हैं कि आखिर तारीख पर तारीख देने से क्या होगा जब अंतिम जजमेंट सबको मालूम है कि अध्यक्ष पद गाँधी या वाड्रा परिवार के पास ही जाएगा। कुछ यूजर्स मीम बनाकर राहुल गाँधी के ही ट्वीट का स्क्रीनशॉट शेयर कर रहे हैं। इसमें राहुल गाँधी ने लिखा था, “नीयत साफ नहीं है जिनकी। तारीख पे तारीख देना स्ट्रैटेजी है उनकी।”
नियत साफ़ नहीं है जिनकी, तारीख पे तारीख़ देना स्ट्रैटेजी है उनकी! pic.twitter.com/xUabz657JH
— Ajay Tiwari (@AjayTiwari432) January 22, 2021
यहाँ एक तरह से यदि देखें तो कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर जनता के तंज निराधार नहीं है। पिछले 23 सालों से कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का पद लगातार गाँधी परिवार के पास है। 1996 में सीताराम केसरी इस पद पर नियुक्त हुए थे और मात्र 2 साल बाद ही उनके बदले सोनिया गाँधी को 1998 में यह पद सौंप दिया गया।
इसके बाद उन्होंने इस पद को पूरे 19 (1998-2017) साल तक पकड़े रखा। फिर 2017 में ये गद्दी राहुल गाँधी को सौंपी गई और जब 2019 में लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राहुल गाँधी इस्तीफा देकर बैंकॉक की ओर रवाना हुए तो सोनिया गाँधी दोबारा कॉन्ग्रेस में अंतरिम अध्यक्ष पद के लिए चुन ली गईं। ये सब बिलकुल ऐसा था जैसे सोनिया गाँधी ने कुछ दिन राहुल का मन बहलाने के लिए उन्हें गद्दी दी और जैसे ही वह इसके लिए नाकाबिल साबित हुए तो वापस अपने हाथ में ले लिया।
2020 में जब इसके विरोध में आवाज उठनी शुरू हुई तो ऊपरी तौर पर सोनिया गाँधी ने ये कुर्सी छोड़ने की इच्छा जाहिर की। फिर उनके वफादार मोर्चे पर आए और गाँधी परिवार से अध्यक्ष को बनाए रखने के लिए खूब हल्ला किया। नतीजतन, अध्यक्ष फिर वही का वही रहा। हांँ, बीच में कई कॉन्ग्रेसी नेताओं ने इस तरह पार्टी के शीर्ष पद पर स्थिरता न होने पर आपत्ति जाहिर की। लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। बदले में आवाज उठाने वालों को ही विद्रोही करार देने की कोशिश होने लगी।
बता दें कि अध्यक्ष पद पर चुनाव को लेकर कपिल सिब्बल समेत 23 नेताओं ने सोनिया गाँधी को चिट्ठी लिखी थी। इसके बाद उन्होंने जल्द ही इस संबंध में फैसला लेने की बात भी की थी। हालाँकि बैठक के कुछ माह बाद भी जब निर्णय नहीं लिया गया तब कपिल सिब्बल ने दोबारा एक साक्षात्कार में इस मुद्दे को उठाया और उसके कुछ दिन बाद अब ये ऐलान हुआ कि इस पर फैसला अभी 5 माह बाद लिया जाएगा जब सारे राज्यों में विधानसभा चुनाव हो जाएँगे।
इसका एक मतलब हुआ कि तब तक सिर्फ़ सोनिया गाँधी ही अध्यक्ष रहेंगी और दूसरा ये कि यदि दोबारा कॉन्ग्रेस राहुल को ही अध्यक्ष बनाने का प्लान कर रही है तो वह भी आने वाले 5 महीने में सभी विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस के प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराए जाएँगे।
उल्लेखनीय है कि आज कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में भी पार्टी के दिग्गज नेता आनंद शर्मा और राजस्थान सीएम अशोक गहलोत के बीच इसे लेकर बहस हुई। अशोक गहलोत ने पार्टी नेतृत्व में स्थितरता की बात कर रहे असंतुष्ट नेताओं पर निशाना साधा। उन्होंने हुए कहा कि बार-बार चुनाव की माँग जो नेता कर रहे हैं क्या उन्हें पार्टी नेतृत्व पर भरोसा नहीं है, वहीं आनंद शर्मा ने सीडब्ल्यूसी सदस्यों का चुनाव करवाने की माँग उठाई।